नई दिल्लीः केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने एनजीओ लायर्स कलेक्टिव और इसके संस्थापक सदस्य वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर के खिलाफ विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत नियमों के उल्लंघन करने के आरोप में मामला दर्ज किया है. एनजीओ ने एफआईआर को निराधार बताया है.
गृह मंत्रालय की शिकायत पर एनजीओ के खिलाफ यह एफआईआर दर्ज की गई है, जिसमें विदेशी योगदान अधिनियम, 2010 के तहत नियमों के उल्लंघन का आरोप है. शिकायत में रैली का जिक्र है जो एचआईवी/एड्स बिल को लेकर है. बयान में कहा गया है कि विदेश से एनजीओ ने 2006-7 से 2014-15 के बीच 39.39 करोड़ रुपये प्राप्त किये हैं. एनजीओ के संस्थापक सदस्य वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर हैं.
सीबीआई ने कहा है कि ग्रोवर ने विदेशी मदद को निजी फायदों, देश से बाहर खर्च के लिए इस्तेमाल किया है जो फेमा के नियमों का उल्लंघन करता है. जांच एजेंसी ने कहा कि सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह ने जब 2009-14 के बीच अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल थीं तो उन्होंने विदेशी मदद का इस्तेमाल एनजीओ के लिए किया था.
जांच एजेंसी ने कहा कि वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह को एनजीओ में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (2009-14) के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान विदेशी योगदान से 96.6 लाख रुपये का मेहनताना मिला. शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया कि एएसजी के रूप में विदेश यात्राओं का खर्च गैर-सरकारी संगठन द्वारा गृह मंत्रालय की पूर्व स्वीकृति के बिना किया गया था.
वहीं एक बयान में, लायर्स कलेक्टिव (एलसी) ने अपने खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने पर ‘सीबीआई की कार्रवाई पर आश्चर्य और नाराजगी’ जताई है.
बयान में कहा है, ‘एफआईआर पूरी तरह से विदेशी योगदान नियमन अधिनियम, 2010, (एफसीआरए) एक्ट के तहत कार्यवाही पर आधारित है जिसमें 2016 में विदेशी धन प्राप्त करने के लिए एलसी के पंजीकरण को रद्द करने के आदेश गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा पारित किए गए थे, जिसको एलसी ने बंबई उच्च न्यायालय में अपील कर चुनौती दे चुका है. अपील लंबित है.’
दि लायर्स कलेक्टिव ने कार्रवाई पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, ‘आरोप का कोई आधार नहीं है.’
बयान में कहा गया है, ‘एलसी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसके अधिकारी व्यक्तिगत रूप से मानवाधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सभी मंचों पर बात करते हैं जिसके लिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है, खास तौर से अदालत में वरिष्ठ वकीलों को. सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से हाशिए के लोगों के प्रतिनिधित्व के अधिकार और सत्ता पक्ष से असहमति रखने वालों पर यह कठोर हमला है. यह स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार और कानूनी पेशे पर भी एक हमला है.’
बयान में कहा गया है, ‘उदाहरण के लिए, जयसिंह को मेहनताना एफसीआरए के तहत दिया गया है. उनके एएसजी बनने से पहले इसे एलसी द्वारा भुगतान किया जा रहा था. इसके अलावा, एमएचए के बनाये नियम के मुताबिक कानून मंत्री से (नियम और शर्तों) से पारिश्रमिक की अनुमति ली गई है. एमएचए ने आरोप इस धारणा पर लगाया है कि एएसजी जयसिंह एक सरकारी कर्मचारी थीं, जो कि वह नहीं थीं.
इस प्रकार यह पीसी अधिनियम के तहत कथित अपराधों का आधार नहीं बनता. इसी तरह, आनंद ग्रोवर के खर्चे की भरपाई एफसीआरए और इसके नियमों के तहत स्वीकार्य थी. यह सब एमएचए ने नजरअंदाज किया था जिस पर अंतरिम आदेश दिए गए थे.
बयान में कहा गया है, ‘लगभग ढाई साल तक, सीबीआई, एनडीए शासन के तहत काम करने के कारण लायर्स कलेक्टिव/ या उसके पदाधिकारियों के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज करना उचित नहीं समझा क्योंकि इसमें कोई भी अपराध में शामिल नहीं था. 2016 के सबूत बताते हैं कि परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है, और इसलिए यह सवाल उठता है कि 2016 और 2019 के बीच क्या बदलाव हुआ है. ऐसा कोई साक्ष्य नहीं जो कि आईपीसी, पीसी अधिनियम के तहत लागू किए गए प्रावधानों में से किसी के उल्लंघन का आधार बनता हो.
एनजीओ का कहना है कि इसके अधिकारी ‘व्यक्तिगत रूप से मानवाधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा में बोलने के लिए निशाना बनाये जा रहे हैं.
बयान के अनुसार ‘एलसी इसे जो लोग सत्तारूढ़ पार्टी से अपने विचारों में असंतोष करते हैं ऐसे सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से हाशिए के लोगों के प्रतिनिधित्व के अधिकार पर एक कठोर हमले के रूप में देखता है और यह भी कि यहा स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार पर एक हमला है.’
‘लायर्स कलेक्टिव का मानना है कि एफआईआर का वास्तव में कोई कानूनी आधार नहीं है. लॉयर्स कलेक्टिव और उसके पदाधिकारियों को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वे अतीत में संवेदनशील मामलों को उठा चुके हैं और उन्हें जारी रखना चाहते हैं.’