भुवनेश्वरः बिहार में इंसेफेलाइटिस से अब तक 100 से ज्याद मौतों के बाद ओडिशा सरकार ने मंगलवार को अधिकारियों को आदेश दिया कि बाजार में बिक रही लीची के नमूने लिए जाएं और जांच की जाए कि क्या उसमें मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला कोई विषाक्त पदार्थ है. स्वास्थ्य मंत्री नवकिशोर दास ने खाद्य सुरक्षा आयुक्तों को बाजार में बिक रही लीची की जांच करने के निर्देश दिए. बिहार से भी ऐसी खबरें आई हैं कि वहां सौ से ज्यादा बच्चों की मौत खाली पेट लीची खाने से हुई है.
यह निर्देश उन रिपोर्टों के मद्देनजर आया है कि मुजफ्फरपुर जिले और देश के अन्य हिस्सों सहित बिहार के लीची के बढ़ते क्षेत्रों में इंसेफेलाइटिस फैल रहा है और रोग के प्रसार के लिए फलों की खपत कारकों में से है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने खाद्य आयुक्त को बाजार में बेची जा रही लीची के नमूने को इकट्ठा करने और परीक्षण करने के लिए कहा.
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम और जापानी इंसेफलाइटिस से मौतों की संख्या बढ़कर 100 से ज्यादा हो गई है.
इससे पहले, बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने कहा था कि इंसेफेलाइटिस के कारण का पता लगाने के लिए गठित एक टीम ने निष्कर्ष निकाला कि रात में खाली पेट सोना, नमी के कारण निर्जलीकरण और खाली पेट लीची खाने से बीमारी के कुछ कारण थे.
इंसेफेलाइटिस एक वायरल बीमारी है, जो हल्के बुखार जैसे लक्षण जैसे तेज बुखार, ऐंठन और सिरदर्द का कारण बनती है.
क्या लीची से होती है ये बीमारी
दिप्रिंट ने जिन तीन डॉक्टरों से बात की उनके मुताबिक लीची से इस बीमारी का दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है. छोटे-बड़े स्तर पर ये बीमारी पूरे साल होती रहती है और लीची का मंजर लगने से पहले से बच्चे बीमार पड़ रहे होते हैं. डॉक्टरों के मुताबिक एक से दो साल के बच्चे लीची नहीं खाते हैं. ऐसे में लीची के सेवन को कारण नहीं माना जाना चाहिए.
डॉ. मंडल ने आगे बताया कि ये बीमारी पूरे साल होती है और मुजफ्फरपुर महामारी वाला क्षेत्र है. ज़्यादातर मरीज़ बेहद ग़रीब परिवार से होते हैं और गांवों से ताल्लुक रखते हैं. शहरी बच्चे शायद ही इसकी चपेट में हैं. हालांकि, उनके मुताबिक ज़्यादातर बीमार बच्चे कुपोशित नहीं होते.
हालांकि, डॉक्टर बंसल कहते हैं कि लीची एक कारण हो सकता है क्योंकि उसमें कीड़े भी होते हैं. कीड़े का रंग सफेद होता जिसकी वजह से बच्चे इसे पहचान नहीं पाते और बिना कीड़ा हटाए खा लेते हैं. यही कीड़ा जब दिमाग़ में चला जाता होगा तो बीमारी होती होगी, हालांकि इसे प्रमाणित नहीं किया जा सका है.