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Sunday, 24 November, 2024
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शाह और नड्‌डा से लेकर राजनाथ सिंह तक — BJP करनाल में खट्‌टर को मुश्किल स्थिति से बचाने में जुटी

असंतुष्ट किसान, सत्ता विरोधी लहर और विद्रोही जाति समूह करनाल सीट को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के लिए ‘सुरक्षित’ बना रहे हैं. उनके मीडिया सचिव ‘कुछ स्वार्थियों’ को दोषी मानते हैं.

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करनाल: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का समर्थन करने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है, जो करनाल संसदीय क्षेत्र में मुश्किल स्थिति में हैं. उन्हें न केवल कांग्रेस के धुरंधर दिव्यांशु बुद्धिराजा से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि साढ़े नौ साल के सीएम के रूप में सत्ता विरोधी भावनाओं, पार्टी के भीतर आंतरिक उथल-पुथल और क्षेत्र में नाराज़ किसान भी उनकी राहें मुश्किल बना रहे हैं.

पिछले कुछ दिनों में बीजेपी ने तीन शीर्ष केंद्रीय नेताओं को खट्टर के प्रचार के लिए भेजा. 19 मई को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने निर्वाचन क्षेत्र में दो रैलियां कीं, जिसके बाद अगले दो दिनों में क्रमशः गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने करनाल के नमस्ते चौक और घरौंडा में रैलियां कीं.

केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले, उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी और कुरुक्षेत्र के स्वामी ज्ञानानंद और बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जैसे धार्मिक नेताओं को भी भाजपा ने खट्टर के लिए प्रचार करने वालों की सूची में शामिल किया है.

भाजपा के एक सूत्र ने कहा कि हालांकि, करनाल को बहुत “सुरक्षित” सीट माना जाता है, लेकिन पार्टी वहां “हाल के घटनाक्रम” को देखते हुए कोई जोखिम नहीं लेना चाहती. हालांकि, उन्होंने विस्तार से बताने से इनकार कर दिया, लेकिन भाजपा को करनाल में किसानों के विरोध प्रदर्शन, कुछ पार्टी नेताओं के इस्तीफे, सरपंचों और जिला परिषद सदस्यों के विरोध और विभिन्न जाति समूहों के असंतोष के रूप में उथल-पुथल का सामना करना पड़ रहा है.

विभिन्न अनुमानों के अनुसार, करनाल संसदीय सीट में लगभग 13 प्रतिशत पंजाबी मतदाता, 12 प्रतिशत जाट, 9 प्रतिशत ब्राह्मण, 7.5 प्रतिशत रोड-मराठा, 6 प्रतिशत सिख, 4.5 प्रतिशत राजपूत, 4.5 प्रतिशत मुस्लिम, 3.5 प्रतिशत अग्रवाल और लगभग 20 प्रतिशत मतदाता एससी और ओबीसी के शामिल हैं.

करनाल में चुनाव प्रचार कर रहे जेपी नड्डा | फोटो: एक्स/@JPNadda

जातिगत भेदभाव से परे मतदाताओं के समर्थन के भाजपा के दावों के बावजूद, इस साल की शुरुआत में किसानों के विरोध के मद्देनज़र जाट और सिख खट्टर से नाराज़ हो गए हैं. पिछले महीने, पूर्व सीएम दो सिख बहुल गांवों में अपना रोड शो नहीं कर पाए थे क्योंकि किसानों के एक बड़े समूह ने उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया था. चुनाव प्रचार के बीच में ही दो प्रमुख पंजाबी नेताओं, रोहिता रेवड़ी और मनोज वाधवा ने भाजपा छोड़ दी, जिससे परेशानियां और बढ़ गईं.

अन्य पेचीदा मुद्दे भी हैं. अगर, बीजेपी “400 पार” का जनादेश हासिल कर लेती है तो अनुसूचित जाति को अपना आरक्षण खोने का डर है, जबकि वीरेंद्र वर्मा “मराठा”, स्थानीय रूप से प्रभावशाली रॉड समुदाय के एक नेता, इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) के समर्थन के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे संभावित रूप से वोटों का विभाजन हो सकता है.

इसके अलावा, कथित तौर पर ब्राह्मण और राजपूत विभिन्न कारणों से भाजपा से नाखुश हैं. एक वायरल वीडियो में ब्राह्मण समुदाय के सदस्यों को इस महीने की शुरुआत में पानीपत में एक परशुराम जयंती समारोह में खट्टर को बोलने से रोकते हुए देखा जा सकता है. इसी तरह मिहिर भोज जाति विवाद को लेकर भी राजपूत बीजेपी से नाखुश हैं. 5 मई को बराड़ा में आयोजित एक सम्मेलन में कई लोगों ने पार्टी का विरोध करने का संकल्प लिया.

भाजपा के एक सूत्र ने बताया, “नड्डा और राजनाथ सिंह के दौरे का उद्देश्य क्रमशः ब्राह्मणों और राजपूतों को खुश करना था.”

करनाल सीट एक और वजह से भी अहम है. मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी करनाल विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ रहे हैं — जो 13 मार्च को खट्टर के इस्तीफे के कारण ज़रूरी हो गया है.

खट्टर और सैनी राज्य में अन्य उम्मीदवारों के लिए वोट मांगने के लिए पूरे हरियाणा में यात्रा कर रहे थे, लेकिन दोनों पिछले छह दिनों से करनाल में डेरा डाले हुए हैं. हरियाणा की सभी 10 सीटों पर 25 मई को मतदान होना है.


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नाराज़ किसान, शहरी सत्ता विरोधी लहर

भाजपा ने 2019 में करनाल लोकसभा सीट 6.56 लाख वोटों के भारी अंतर से जीती, जो गुजरात में नवसारी के बाद देश में दूसरी सबसे बड़ी सीट है. करनाल लोकसभा सीट के नौ विधानसभा क्षेत्रों में से चार (इंद्री, घरौंडा, पानीपत सिटी और पानीपत ग्रामीण) पर भाजपा का कब्ज़ा है, तीन (असंध, इसराना और समालखा) पर कांग्रेस का कब्ज़ा है और हाल ही में नीलोखेड़ी के निर्दलीय विधायक धर्मपाल गोंदर का कब्ज़ा है जो अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. खट्टर द्वारा खाली की गई करनाल विधानसभा सीट पर सैनी का मुकाबला कांग्रेस के तरलोचन सिंह से है.

लेकिन यह क्षेत्र अब भाजपा के लिए पहले की तरह ‘सुरक्षित’ नहीं माना जाता है, मार्च में प्रचार अभियान शुरू होने के बाद से पार्टी के उम्मीदवारों को ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत अत्री के अनुसार, फरवरी में किसानों के दिल्ली चलो मार्च पर भाजपा की प्रतिक्रिया, जहां एक किसान की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए, साथ ही 2020-21 में कृषि कानूनों को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ, जहां 750 से अधिक किसानों की जान चली गई. ग्रामीण विरोध का मुख्य कारण है. महिला पहलवानों के विरोध प्रदर्शन और अग्निवीर योजना जैसे मुद्दों ने जाटों और जट्ट सिखों के बीच भाजपा की स्थिति को और प्रभावित किया है.

शहरी इलाकों में भी भाजपा के लिए सब कुछ स्पष्ट नहीं है.

अत्री ने कहा, “मतदान की तारीख नज़दीक आने के साथ, शहरी मतदाता, जो अब तक चुप थे, ने भाजपा सरकार के खिलाफ अपनी शिकायतें ज़ाहिर करना शुरू कर दिया है. हरियाणा में भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई पारिवारिक आईडी और संपत्ति आईडी योजनाओं ने लोगों को महीनों तक कतारों में खड़ा किया. चूंकि, इन योजनाओं को शुरू करने के पीछे खट्टर का हाथ है, इसलिए उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.”

हालांकि, खट्टर के मीडिया सचिव प्रवीण अत्रे ने इस धारणा को खारिज कर दिया कि शीर्ष राष्ट्रीय नेताओं का करनाल में चुनाव प्रचार करना असामान्य है.

उन्होंने कहा, “जब चुनाव की बात आती है तो भाजपा की अपनी एक शैली होती है. प्रचार के दौरान पार्टी अपना 100 फीसदी देती है. पार्टी ने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की. इन प्रचारकों को रैलियों को संबोधित करने के लिए देश भर में यात्रा करनी है, जो वरिष्ठ नेता कर रहे हैं. सभी संकेत करनाल में खट्टर की जीत की ओर इशारा करते हैं.”

अत्रे ने कहा कि किसी भी समुदाय के लोगों के खट्टर से नाखुश होने का कोई सवाल ही नहीं है और ब्राह्मण समुदाय द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के दौरान विरोध प्रदर्शन “कुछ स्वार्थियों” की करतूत थी.

अत्रे ने कहा, “भाजपा इस सीट को 2019 में पार्टी की जीत से भी बेहतर अंतर से जीतेगी.”

इस बीच, हरियाणा की कई अन्य सीटों की तरह, कांग्रेस उम्मीदवार दिव्यांशु बुद्धिराजा का अभियान भी पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह या पार्टी नेताओं के समर्थन की कमी से ग्रस्त है.

हरियाणा के पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा, जिन्होंने 2019 में करनाल से चुनाव लड़ा था, बुद्धिराजा के अभियान में कहीं नहीं दिख रहे हैं, जैसा कि करनाल से पूर्व कांग्रेस विधायक सुमिता सिंह के मामले में है. हालांकि, शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि करनाल में उनके न दिखने का एकमात्र कारण यह है कि उन्हें सोनीपत और सिरसा में स्टार प्रचारक के रूप में नियुक्त किया गया है और वे वहां अपने कर्तव्यों में व्यस्त हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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