एक ऐसे वक्त में जब हवा का रूख साफ-साफ बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन के खिलाफ बदलता नजर आ रहा है, साल 2024 के लोकसभा चुनावों का यह मध्य बिन्दु निर्णायक साबित हो सकता है. सात चरणों में हो रहे मतदान के इस लंबे मैराथन के तीसरे चरण में कुल 93 सीटों पर मुकाबले में वोटों के गिरने के साथ आधे से ज्यादा यानी 283 सीटों पर जन-प्रतिनिधियों को चुनने का काम पूरा हो जायेगा. हमारा आकलन कहता है कि पहले दो चरणों के चुनाव में एनडीए पांच साल पहले जीती गईं अपनी 113 सीटों में से 20 सीटें संभवतया गंवा चुकी है. और, बड़ी संभावना यही है कि तीसरे चरण के चुनाव में भी एनडीए को लगभग 20 सीटों पर मुंह की खानी पड़े. सीटों के ऐसे नुकसान से पूरी तस्वीर बदल जायेगी और नई लोकसभा में बीजेपी बहुमत के आंकड़े से नीचे खिसक सकती है. बीजेपी और उसके साथी दलों को तीसरे चरण के चुनाव में अपनी अजेय बढ़त को बनाये रखने के लिए हद से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करना होगा.
दूसरे चरण की तरह तीसरे चरण के चुनाव में भी बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की मुश्किल यह है कि उसे सीटों की एक भारी-भरकम तादाद— कुल 93 सीटों पर हो रहे चुनावी मुकाबले में 80 सीटों को बचाना है (अगर सूरत वाली सीट को जोड़ लें जिसे बीजेपी निर्विरोध जीत चुकी है तो तीसरे चरण में दांव पर लगी सीटों की संख्या 94 हो जाती है). हां, बीजेपी इस बात का इत्मीनान पाल सकती है कि गुजरात से शुरू होकर आगे बढ़ता तीसरे चरण के मतदान का पूरा इलाका एनडीए का मजबूत गढ़ रहा है— तीसरे चरण में दस राज्यों में लोकसभा की सीटें दांव पर लगी हैं और इनमें से आठ राज्यों में एनडीए की सरकार है.
तीसरे चरण में दांव पर लगी सीटों में इंडिया गठबंधन को पिछली बार सिर्फ 12 सीटें हाथ लगी थीं सो उसके पास अपनी सीटों की तादाद बढ़ाने की बड़ी संभावना है. अगर हम बीच की अवधि में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो तीसरे चरण के चुनाव में इंडिया गठबंधन अपनी जीती हुई सीटों की फेहरिश्त में 15 और सीटों का इजाफा कर सकती है. (देखें इस लेख के साथ दी गई राज्यवार तालिका). एनडीए की बढ़त का अनुपात 80:12 से घटकर 65:27 पर पहुंच सकता है. विपक्षी गठबंधन को सत्ताधारी दल के विरूद्ध अपनी सीटों की तादाद में इजाफे के लिए कुछ और वोटों को अपनी तरफ मोड़ना जरूरी होगा.
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कर्नाटक में तस्वीर बदलेगी ही
तीसरे चरण के चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती और इंडिया गठबंधन के लिए सबसे ज्यादा संभावना कांग्रेस के शासन वाले कर्नाटक में है. कर्नाटक में यह दूसरे और अंतिम चरण का चुनाव है जिसमें उत्तर और मध्य कर्नाटक में दांव पर लगी कुल 14 सीटों में से ज्यादातर सीटों पर एनडीए को नुकसान होता दिख रहा है: साल 2019 में एनडीए ने सभी 14 सीटें जीती थीं जबकि 2014 में इन 14 सीटों में 11 सीटें और साल 2009 में 12 सीटें उसके हाथ लगी थीं. पिछले साल कांग्रेस ने इन सीटों पर जबर्दस्त प्रदर्शन किया था और 2023 के विधानसभा चुनावों में इन संसदीय सीटों में 7 पर बढ़त कायम की थी. हालांकि इतने भर को निर्णायक नहीं माना जा सकता. सूबे में बीते तीन दशक का चलन रहा है कि बीजेपी ने विधानसभा चुनावों की तुलना में लोकसभा के चुनाव में अपने वोट-प्रतिशत में औसतन 7 प्रतिशत का इजाफा किया है.
तमाम कोणों से विचार करने के बाद लगता यही है कि इतिहास-क्रम से चला आ रहा यह रूझान इस बार बदल जायेगा. पहली बात तो यही कि सिद्धारमैया सरकार ने पांच गारंटियों वाले अपने चुनावी वादे को लागू कर दिया है और इससे लगभग सभी परिवारों, खासकर महिलाओं को फायदा पहुंचा है. इससे सत्ताधारी दल के पक्ष में हल्की सी हवा बनी है. दूसरी बात कि बीते वक्तों के विपरीत जब राज्य के नेता लोकसभा के चुनावों को लेकर तटस्थ बने रहते थे, इस बार कांग्रेस ने सुनिश्चित किया है कि सूबे के दिग्गज नेता चुनावी लड़ाई में पूरी ताकत झोंके. कांग्रेस ने जो उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं उनमें से आधे, प्रदेश के सरकार में मंत्री पद पर कायम नेताओं के रिश्तेदार हैं. तीसरी बात कि सूबे में जहां कांग्रेस चुनावी लड़ाई में एकजुट दिख रही है वहीं बीजेपी के भीतर फूटमत बनी हुई है. हालांकि बीजेपी ने चुनावी लड़ाई की कमान अपने सबसे तेज-तर्रार नेता बीएस येदियुरप्पा (और उनके पुत्रों) को थमायी है तो भी पार्टी को पूर्व उपमुख्यमंत्री के.एस ईश्वरप्पा की बगावत का सामना करना पड़ रहा है और स्वयं येदियुरप्पा जिस लिंगायत समुदाय से हैं उसके एक प्रमुख संत की नाराजगी से पार्टी को उस इलाके में निपटना पड़ रहा है जहां लिंगायत समुदाय का खास दबदबा है.
सूबे में एनडीए की कामयाबी की जो कुछ भी संभावनाएं शेष थीं उसमें पलीता लगाने का काम जेडी(एस) के नेता तथा हासन से सांसद एमपी रेवन्ना पर लगे कथित यौन दुराचार के आरोपों ने कर दिया है. रेवन्ना पर विगत कई सालों में सैकड़ों महिलाओं के साथ यौन दुराचार करते आने के आरोप लगे हैं और बीजेपी ऐसे आरोपों के घेरे से खुद को बाहर निकालने में असहाय पा रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रेवन्ना के चुनाव प्रचार में भाग लिया था और लोगों से रेवन्ना को वोट देने की अपील की थी— रेवन्ना लोकसभा की सीट से निर्वाचित होने के लिए दोबारा चुनाव मैदान में हैं और यौन दुराचार के वीडियोज के सामने आने पर जर्मनी भाग गये हैं. बीजेपी ने जवाबी हमले के तौर पर एक 23 साल की महिला की हत्या का मसला उभारा है. माना जा रहा है कि उसकी हत्या उसके क्लासमेट रहे एक मुस्लिम युवक ने की थी. लेकिन इस मसले को तूल देने की बीजेपी की कोशिश पर रंग नहीं चढ़ सका है. इसी तरह, भले ही राष्ट्रीय मीडिया में टीवी के एंकर प्रधानमंत्री के इस विचित्र से दावे को उछल-उछल कर बताते हों कि तीन दशक से चला आ रहा, ओबीसी आरक्षण के भीतर मुस्लिम समुदाय के लिए 3 प्रतिशत का उपकोटा ( याद रहे कि इसे कर्नाटक में बीजेपी की सरकार समेत अन्य सभी सरकारों ने लागू किया है और बीजेपी ने इसे 2023 के विधानसभा चुनाव से तुरंत पहले खत्म किया) दरअसल एक बहुत बड़ी चाल है जिसके सहारे कांग्रेस एससी-एसटी-ओबीसी को मिला आरक्षण मुसलमानों के हिस्से में करना चाहती है लेकिन टीवी एंकरों के मुंह से सुनायी जा रही यह कहानी कर्नाटक में कोई जोर नहीं पकड़ पायी है.
मतलब, अगर कांग्रेस ने एक साल पहले हुए विधानसभा चुनावों जितना वोटशेयर हासिल करने में कामयाबी पायी तो दांव पर लगी कुल 14 सीटों में से 7 सीटें बीजेपी से छीन लेगी. अगर कांग्रेस बीजेपी के बदनाम हो चले साथी जेडी(एस) के भी वोटशेयर अपने हिस्से में खींच लेती है तो कर्नाटक में इस चरण के चुनाव में उसके हाथ लगी सीटों की फेहरिश्त 11 तक जा पहुंचेगी.
महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में संभावनाएं प्रबल
तीसरे चरण में उत्तर कर्नाटक की सीमा से लगते महाराष्ट्र के कुछ समृद्ध और कुछ पिछड़े इलाकों में भी मतदान होने हैं. महाराष्ट्र में जिन 11 सीटों पर तीसरे चरण का मतदान है उनमें से 7 सीटें 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना (उस समय पार्टी अविभाजित थी) ने जीती थीं और शरद पवार की एनसीपी तथा कांग्रेस को करारी चोट मारी थी. तीसरे चरण के चुनाव में महाराष्ट्र में सबकी निगाहें पश्चिमी क्षेत्र पर टिकी होंगी जहां पार्टी के अस्तित्व पर मंडराते खतरे को भांपकर शरद पवार ने अपने प्रभाव के विस्तार के लिए जबर्दस्त कोशिश की है जबकि अजित पवार सिर्फ बारामती पर पकड़ बनाये रखने की जुगत में जुटे रहे हैं. अगर हम साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को नजर में रखें और वोटों के एनसीपी तथा शिवसेना के दोनों धड़ों के बीच बराबर-बराबर बांट दें तो नजर आयेगा कि बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन यानी एनडीए (महाराष्ट्र में इसका नाम महायुति है) की तीसरे चरण के चुनाव में अपनी सीटों पर पकड़ बरकरार है. लेकिन तमाम कोणों से विचार करने पर लगता यही है कि शरद पवार की एनसीपी तथा उद्धव ठाकरे की शिव सेना को इस बार मूल पार्टी के रूप में ज्यादा वोट मिलेंगे. इसके अलावा शिव सेना (उद्धव ठाकरे), एनसीपी (शरदचंद्र पवार) तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच कायम तालमेल और इन दलों के बीच मौजूद यह भावना कि बीजेपी उन्हें हड़प लेना चाहती है— जमीन पर बीजेपी तथा एनसीपी (अजित पवार) और शिवसेना (एकनाथ शिंदे) के आपसी तालमेल के मुकाबले बेहतर काम कर रहा है. इस नाते तीसरे चरण के चुनाव में इंडिया गठबंधन महाराष्ट्र में फायदे में रहने की उम्मीद कर सकता है.
पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में इंडिया गठबंधन के लिए संभावनाएं कहीं ज्यादा बेहतर प्रतीत होती हैं, खासकर चंबल-ग्वालियर वाले इलाके में जहां 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की लहर होने के बावजूद कांग्रेस का सफाया नहीं हो पाया. बीजेपी को इस इलाके में 2019 में सभी 9 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी इस इलाके में तीन सीटों पर कांग्रेस से पीछे रही, सो विपक्ष के लिए यहां संभावनाओं के दरवाजे खुले हुए हैं. पहले दो चरणों के चुनाव में मतदान के प्रतिशत में आयी गिरावट बीजेपी के लिए बड़ी चिन्ता का सबब बनने जा रहा है: बीजेपी ने विधानसभा की जिन 26 सीटों को 10 प्रतिशत के मतों के अन्तर से जीता था वहां इस बार मतदान में 8.5 प्रतिशत की गिरावट आयी है.
उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण में जिन इलाकों में चुनाव हैं उनमें एक बहुत बड़ा हिस्सा परंपरागत रूप से समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है. उत्तर प्रदेश मे तीसरे चरण में कुल 11 सीटों पर हो रहे चुनाव में 6 सीटें दोआबा-ब्रज क्षेत्र में हैं जहां समाजवादी पार्टी अपेक्षाकृत मजबूत स्थिति में रही है, हालांकि पिछली बार पार्टी को इस इलाके में मात्र दो सीटों पर कामयाबी मिली थी. शेष चार सीटें रोहिलखंड इलाके की हैं जहां बीजेपी ने विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया था.
हालांकि, इस बार बीजेपी के लिए मुकाबला आसान नहीं होने जा रहा क्योंकि आठ बार सांसद रहे संतोष गंगवार को टिकट न मिलने से बरेली में कुर्मी मतदाता नाराज हैं. इसके अतिरिक्त बीएसपी ने इलाके में पांच मुसलमान उम्मीदवार खड़े किये हैं जिससे इंडिया गठबंधन को चुनौती मिल रही है.
जहां इंडिया गठबंधन के लिए मुकाबला मुश्किल है
तीसरे चरण के चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा इनाम गुजरात से मिलने जा रहा है जहां दांव पर पच्चीस सीटें लगी हैं (इनमें से सूरत की सीट बीजेपी पहले ही जीत चुकी है). प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह के गृहराज्य में बीजेपी पिछले दो चुनावों में एक भी सीट नहीं हारी है. लेकिन इस बार राह उतनी आसान नहीं रहने वाली क्योंकि कुछ सीटों पर मुकाबला कांटे का रहने वाला है. माना जा रहा है कि सूबे के आदिवासी बहुल पूर्वी इलाके में कांग्रेस इस बार मुकाबले में पहले की तुलना में दमदार स्थिति में है. आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का जोड़ तीन और सीटों पर इस गठबंधन को मदद पहुंचा रहा है. इन सीटों पर दोनों पार्टियों (कांग्रेस और आम आदमी पार्टी) को मिले वोट को जोड़ दें तो वह बीजेपी को मिले वोटों से ज्यादा ठहरते हैं जबकि बीजेपी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की थी. सूबे में बीजेपी का दबदबा भीतर ही भीतर दरक रहा है— क्षत्रिय समाज लगभग एक माह तक विरोध-प्रदर्शन पर उतरा रहा और पार्टी ने सूबे के मौजूदा सांसदों में से 50 फीसद को इस बार टिकट नहीं दिया है. इन बातों के मद्देनजर इंडिया गठबंधन को दो-तीन सीटें हाथ लग जायें तो कोई अचरज की बात नहीं.
तीसरे चरण में पश्चिम बंगाल में मुस्लिम बहुल मालदा और मुर्शिदाबाद में जिन चार सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, जहां मुकाबला त्रिकोणीय है और कांग्रेस तथा वामदलों का गठबंधन दमदार स्थिति में है, वहां अगर विधानसभा चुनाव के नतीजों को ध्यान में रखें तो नजर यही आयेगा कि तृणमूल कांग्रेस इन सीटों को बीजेपी तथा कांग्रेस से झटकते हुए जीत दर्ज करने जा रही है. बहरहाल, परंपरागत रूप से कांग्रेस की पकड़ वाले इन सीटों पर कांग्रेस और वाम गठबंधन ने इस बार चार मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है सो वोटों के बंट जाने की आशंका है—ऐसे में बीजेपी के लिए संभावनाएं बेहतर होंगी.
इसी तरह इंडिया गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती इस चरण के चुनाव में असम में है, खासकर बारपेटा और कोकराझार इलाके में जहां कांग्रेस का मुकाबला न सिर्फ एनडीए से बल्कि अपने इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल सीपीआई (एम) तथा टीएमसी से भी है और नये सिरे से हुए परिसीमन का भी असर पड़ने वाला है.
तीसरे चरण के चुनाव में शेष सीटें बिहार और छत्तीसगढ़ से हैं तथा दो सीटें गोवा से. इन सीटों पर खास उलटफेर होता नजर नहीं आ रहा. तीसरे चरण के चुनाव में बिहार में तेजी से जमीन खोते जा रहे जद(यू) के सामर्थ्य की परीक्षा होगी क्योंकि जिन पांच सीटों पर चुनाव हैं उनमें चार सीटें अभी जद(यू) के पास हैं. परख ये होनी है कि जद(यू) अपने अति-पिछड़ा तबके के वोट बचा पाती है या नहीं. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट हाथ आयी थी और 2023 के विधानसभा में भी इस समीकरण को बदलने में वह कामयाब नहीं हो पायी. माना जा रहा है कि इस बार एक-दो सीटों पर कांग्रेस कड़ी टक्कर दे सकने की स्थिति में है और ऐसे में एक-दो सीटें हाथ लग जाती हैं तो पार्टी के लिए खुशी की बात होगी. गोवा में एनडीए तथा इंडिया गठबंधन को पहले से चले आ रहे समीकरणों को बदलना एक चुनौती होगीः हिन्दू बहुल उत्तरी गोवा बीजेपी की तरफदारी करता है जबकि ईसाई बहुल दक्षिणी गोवा उम्मीद की जानी चाहिए कि इंडिया गठबंधन की तरफ झुकेगा.
सारी बातों की एक बात ये कि अगर एनडीए तीसरे चरण के चुनाव में 20 सीटें गंवाता है तो फिर हमारे सामने एक ऐसी तस्वीर होगी जिसके बारे में इस चुनाव की शुरूआत के समय किसी ने सोचा तक न होगा. बात ये कि इस चरण में 20 सीटें गंवाने की सूरत में एनडीए 272 के जादुई आंकड़े से नीचे खिसक सकता है.
(योगेन्द्र यादव भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक हैं. उनका एक्स हैंडल @_YogendraYadav. श्रेयस सरदेसाई भारत जोड़ो अभियान से जुड़े एक सर्वेक्षण शोधकर्ता हैं. राहुल शास्त्री एक शोधकर्ता हैं. व्यक्त किए विचार निजी हैं.)
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