गुरुग्राम: कांग्रेस ने हिसार के सांसद बृजेंद्र सिंह को टिकट देने से इनकार कर दिया है, जिन्होंने पिछले महीने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था. वे पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के बेटे हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के जाने-माने आलोचक हैं, जो भाजपा में एक दशक रहने के बाद इस महीने की शुरुआत में कांग्रेस में लौट आए हैं.
गुरुवार देर रात घोषित हरियाणा के आठ उम्मीदवारों की सूची में कांग्रेस ने तीन बार के सांसद और हुड्डा के वफादार जय प्रकाश को हिसार से मैदान में उतारा है. बृजेंद्र ने भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देने के बाद 2019 में भाजपा के टिकट पर सीट जीती थी.
इसी तरह, हुड्डा के बेटे दीपेंद्र, जो राज्यसभा सांसद हैं, को रोहतक सीट से मैदान में उतारा गया है, जहां वे 2019 में भाजपा से 7,000 से थोड़े ज़्यादा वोटों के मामूली अंतर से हार गए थे.
कांग्रेस ने हुड्डा की जानी-मानी विरोधी कुमारी शैलजा को भी सिरसा से उम्मीदवार बनाया है. दीपेंद्र के वफादार हरियाणा युवा कांग्रेस के अध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा करनाल में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मुकाबला करेंगे. गुरुवार को घोषित अन्य उम्मीदवारों में फरीदाबाद से महेंद्र प्रताप सिंह, भिवानी-महेंद्रगढ़ से राव दान सिंह, अंबाला से वरुण चौधरी और सोनीपत से सतपाल ब्रह्मचारी शामिल हैं.
पार्टी ने अभी तक गुरुग्राम से अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि गुरुग्राम से टिकट चाहने वालों में अभिनेता-राजनेता राज बब्बर भी शामिल हैं.
इस बीच, कुरुक्षेत्र — जो कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे के तहत आम आदमी पार्टी (आप) को मिला — में AAP के पूर्व राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे उद्योगपति नवीन जिंदल के बीच मुकाबला होगा. गुप्ता हरियाणा आप के अध्यक्ष हैं.
बीरेंद्र सिंह के परिवार के करीबी माने जाने वाले राज्य कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारी विजय कौशिक ने कहा, “यह हमारे लिए बहुत निराशाजनक है. कांग्रेस ने एक ऐसे व्यक्ति के दावों को नज़रअंदाज किया है जो भाजपा में भरी थाली छोड़कर आया था. कांग्रेस में शामिल होने से पहले ही पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व ने आश्वासन दिया था, हालांकि, मुझे पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन फिर भी, पार्टी ने हमारे नेता को नज़रअंदाज करना चुना.”
कौशिक ने आरोप लगाया कि हुड्डा के कहने पर बृजेंद्र को टिकट नहीं दिया गया, जिनके बारे में माना जाता है कि वे आजकल हरियाणा कांग्रेस में फैसले लेते हैं. कौशिक ने कहा, “दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस समय कांग्रेस आलाकमान बहुत कमज़ोर हैं. ऐसे में स्थानीय नेता अपनी मर्ज़ी से पार्टी चलाते हैं. हरियाणा में इस समय यही हो रहा है.”
हालांकि, उन्होंने कहा कि उतार-चढ़ाव राजनीति का हिस्सा हैं.
बीरेंद्र सिंह के परिवार के करीबी माने जाने वाले एक अन्य कांग्रेस नेता ने दावा किया कि अगर पार्टी आज हरियाणा में सीटों के लिए दौड़ में है, तो बृजेंद्र सिंह का भाजपा से इस्तीफा वह घटना थी जिसने इस धारणा को बदल दिया कि राज्य भाजपा के लिए आसान जीत होगी, जिसने 2019 में हरियाणा में सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थीं.
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए कॉल के ज़रिए बीरेंद्र और बृजेंद्र सिंह से संपर्क किया, लेकिन रिपोर्ट छापे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला. जवाब आने के बाद इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
बृजेंद्र सिंह के अलावा, श्रुति चौधरी का नाम भी कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची से गायब है. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पोती और पूर्व राज्य मंत्री दिवंगत सुरेंद्र सिंह और कांग्रेस नेता किरण चौधरी की बेटी श्रुति ने 2009 में भिवानी से अपना पहला चुनाव जीता था — एक सीट जो उनके दिवंगत पिता ने दो बार जीती थी. हालांकि, वे 2014 में सीट बरकरार रखने या 2019 में इसे वापस जीतने में असमर्थ रहीं.
किरण चौधरी ने दिप्रिंट से कहा कि हालांकि, उनकी बेटी को इस सीट से न उतारने का फैसला पार्टी का है, लेकिन उनका मानना है कि इस बार श्रुति जीत जातीं.
उनके एक समर्थक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि हुड्डा के कहने पर ही राव दान सिंह को टिकट दिया गया था.
दूसरी ओर, भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि सूची को पार्टी हाईकमान ने अंतिम रूप दिया है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि वे पार्टी द्वारा उतारे गए उम्मीदवारों से काफी हद तक संतुष्ट हैं. इस आरोप का सामना करते हुए कि उम्मीदवारों की सूची पर उनकी मुहर लगी है और बृजेंद्र सिंह और श्रुति चौधरी जैसे कुछ लोगों को उनके कहने पर सूची से बाहर रखा गया है, हुड्डा ने कहा कि यह “मेरी सूची नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी की सूची है”.
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पिता-पुत्र का कांग्रेस की ओर रुख
बृजेंद्र सिंह ने 10 मार्च को कांग्रेस में शामिल होने के लिए भाजपा से इस्तीफा दे दिया था, उस समय जब अन्य दलों के कई नेता भाजपा में शामिल हो रहे थे. कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष सोनिया और राहुल गांधी से उनके आवास पर मुलाकात की.
अपने बेटे को टिकट न दिए जाने से एक बार फिर बीरेंद्र सिंह पर ध्यान केंद्रित हो गया है, जिन्हें मुख्यमंत्री बनने की उनकी अधूरी महत्वाकांक्षा के कारण हरियाणा के राजनीतिक हलकों में “ट्रेजेडी किंग” के नाम से भी जाना जाता है. बीरेंद्र सिंह ने अपने पिता के समय से कांग्रेस छोड़ दी थी और 2014 में भाजपा में शामिल हो गए थे. तब उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया था.
हालांकि, जब उन्होंने 2019 में बेटे बृजेंद्र के लिए हिसार से टिकट मांगा तो उन्हें राज्यसभा से इस्तीफा देना पड़ा था. बृजेंद्र ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के दुष्यंत चौटाला और भव्य बिश्नोई को हराकर सीट जीती, जो उस समय कांग्रेस में थे, लेकिन अक्टूबर 2019 में विधानसभा चुनाव में बृजेंद्र की मां प्रेम लता परिवार के गढ़ उचाना कलां में चौटाला से हार गईं.
पार्टी सूत्रों ने कहा कि 2019 में दुष्यंत के उपमुख्यमंत्री बनकर मनोहर लाल खट्टर सरकार में शामिल होने के बाद बृजेंद्र भाजपा में खुद को दरकिनार महसूस करने लगे थे. यह हरियाणा में जेजेपी के साथ भाजपा के गठबंधन के उनके बार-बार विरोध से भी स्पष्ट हुआ.
पिछले साल 2 अक्टूबर को, बीरेंद्र सिंह ने जींद में “मेरी आवाज़ सुनो” रैली आयोजित की थी, जिसमें भाजपा को जेजेपी से नाता तोड़ने का अल्टीमेटम दिया था.
हालांकि, भाजपा और जेजेपी द्वारा अपने गठबंधन को समाप्त करने की घोषणा से ठीक दो दिन पहले बेटे बृजेंद्र ने भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए.
बीरेंद्र सिंह — वे मुख्यमंत्री जो कभी नहीं थे
बीरेंद्र सिंह ने आपातकाल के बाद पार्टी के खिलाफ असंतोष की मजबूत लहर का सामना करते हुए 1977 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उचाना कलां से अपना पहला विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक लड़ा. तब से वे इस सीट से चार बार — 1982, 1991, 1996 और 2005 — जीत चुके हैं और भजन लाल और भूपिंदर हुड्डा सरकार में मंत्री रहे हैं.
अविभाजित पंजाब के राजनेता नेकी राम के बेटे और जाट नेता दिवंगत छोटू राम के पोते, बीरेंद्र सिंह 1984 में हिसार से लोकसभा के लिए चुने गए और बाद में 2010 से 2020 तक राज्यसभा के सदस्य रहे.
1991 में उन्हें कथित तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी द्वारा मुख्यमंत्री पद का वादा किया गया था, लेकिन उस साल मई में गांधी की हत्या ने उनके खिलाफ माहौल बना दिया और भजन लाल को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया.
शीर्ष पद पर उनका दूसरा ‘मिस्ड’ शॉट 2013 में आया, जब एक कांग्रेसी के रूप में, उन्हें कथित तौर पर पीएम मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में जगह देने पर विचार किया जा रहा था, लेकिन ऐसा माना जाता है कि भूपिंदर सिंह हुड्डा के आग्रह पर अंततः उन्हें हटा दिया गया था.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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