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Sunday, 24 November, 2024
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नोटिस, जुर्माना, अदालती मामला और अब एक सीमित प्रतिबंध, RBI के साथ कोटक के संबंध सालों से ख़राब रहे हैं

RBI ने बुधवार को कोटक महिंद्रा बैंक पर डिजिटल चैनलों के माध्यम से नए ग्राहक जोड़ने और नए क्रेडिट कार्ड जारी करने पर प्रतिबंध लगा दिया. उल्लंघनों का संबंध बैंक के आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर से था.

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नई दिल्ली: हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कोटक महिंद्रा बैंक (केएमबी) के खिलाफ पर कार्रवाई करते हुए ऑनलाइन या डिजिटल पोर्टल के जरिए नए खाते खोलने और नए क्रेडिट कार्ड को ईश्यू करने पर रोक लगा दी. लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है बल्कि दोनों संस्थाओं के बीच लंबे समय से चले आ रहे खींचतान वाले संबंधों में सबसे नया है. देखा जाए तो बैंक की अस्तित्व में आने के बाद से ही यह कहानी लगभग शुरू हो गई थी.

केएमबी और आरबीआई के बीच तनातनी 2008 से चली आ रही है जिसमें इसके प्रमोटर्स के पास स्वीकृत हिस्सेदारी के मामले से लेकर, आवश्यक धनराशि में पर्याप्त डिपॉज़िट रखने में विफल रहने, ग्राहकों को परेशान करने और उन पर कुछ का कुछ फीस वसूलने जैसे कई मुद्दे शामिल हैं. और, हाल ही में, अब इसके आईटी बुनियादी ढांचे का मामला.

रेग्युलेटर आरबीआई और बैंक के बीच की खींचतान ने बार-बार भेजे गए कई पत्रों, कारण बताओ नोटिस जारी किए जाने, कई जुर्माने लगाए जाने और यहां तक कि बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक अदालती मामले का रूप ले लिया है.

नवीनतम घटना बुधवार को हुई, जब आरबीआई ने एक आदेश जारी कर आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर में कमी और इसे हल करने में असफल रहने का हवाला देते हुए कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड को अपने ऑनलाइन और मोबाइल बैंकिंग चैनलों के माध्यम से नए ग्राहक बनाने और “महत्वपूर्ण चिंताओं” के कारण नए क्रेडिट कार्ड  जारी करने को “बंद करने” का निर्देश दिया.

आरबीआई ने अपने बयान में कहा, “आईटी इन्वेंट्री मैनेजमेंट, पैच एंड चेंज मैनेजमेंट, यूज़र्स ऐक्सेस मैनेजमेंट, विक्रेता जोखिम मैनेजमेंट, डेटा सिक्युरिटी एंड डेटा लीक प्रिवेंशन रणनीति, व्यापार निरंतरता और आपदा से बचाव कठोरता और ड्रिल, आदि के क्षेत्रों में गंभीर कमियां और गैर-अनुपालन देखे गए.”

इसमें कहा गया है कि केएमबी को नियामक दिशानिर्देशों के तहत आवश्यकताओं के विपरीत, अपने आईटी जोखिम और सूचना सुरक्षा प्रशासन में लगातार दो वर्षों से कमी पाई गई है.

इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि बैंक को 2022 और 2023 के लिए आरबीआई द्वारा जारी सुधारात्मक कार्य योजनाओं के साथ “काफी गैर-अनुपालक” (significantly non-compliant) पाया गया है क्योंकि, बैंक द्वारा पेश किया गया प्रस्तुत अनुपालन (Compliance) या तो अपर्याप्त था या गलत था और या तो अधारणीय (Not Sustained) था.

RBI ने कहा, “मजबूत आईटी बुनियादी ढांचे और आईटी जोखिम प्रबंधन ढांचे के अभाव में, बैंक की कोर बैंकिंग प्रणाली और इसके ऑनलाइन और डिजिटल बैंकिंग चैनलों को पिछले दो वर्षों में लगातार और महत्वपूर्ण रुकावटों का सामना करना पड़ा है, हाल ही में 15 अप्रैल, 2024 को बैंक की सेवाओं में समस्या देखी गई, जिससे ग्राहकों को गंभीर असुविधाएं हुईं.”

हालांकि, बैंक को अपने क्रेडिट कार्ड ग्राहकों सहित अपने मौजूदा ग्राहकों को सेवाएं प्रदान करना जारी रखने की अनुमति है. लगाए गए प्रतिबंध तब तक लागू रहेंगे जब तक केएमबी अपने आईटी बुनियादी ढांचे पर बाहरी ऑडिट नहीं करा लेता और आरबीआई की संतुष्टि के अनुसार ऑडिट में बताई गई सभी कमियों से निपट नहीं लेता.

डिजिटल प्रतिबंधों से बैंक को नुकसान हो सकता है

आरबीआई के आदेश के बाद, केएमबी ने एक बयान जारी कर अपने मौजूदा ग्राहकों को आश्वासन दिया कि उसका संचालन निर्बाध रूप से जारी रहेगा और कहा कि वह अपनी शाखाओं के माध्यम से नए ग्राहक बनाना जारी रखेगा.

बयान में कहा गया, “हम अपने मौजूदा ग्राहकों को क्रेडिट कार्ड, मोबाइल और नेट बैंकिंग सहित निर्बाध सेवाओं के बारे में आश्वस्त करना चाहते हैं. हमारी शाखाएं नए ग्राहकों का स्वागत करना और उन्हें अपने साथ जोड़े रखना जारी रखे हुए हैं, उन्हें नए क्रेडिट कार्ड जारी करने के अलावा, बैंक की सभी सेवाएं प्रदान की जा रही हैं.”

हालांकि, बयान से ऐसा प्रतीत होता है कि बैंक अपनी शाखाओं के माध्यम से नए-नए ग्राहकों को बनाना जारी रखेगा, अपने खुद के डेटा पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि बैंक अपने डिजिटल चैनलों पर कितना निर्भर है, जो कि राज्य पर आरबीआई द्वारा आईटी बुनियादी ढांचे को लेकर उठाई गई आपत्ति के बाद विशेष चिंता का विषय बन गया है.

अक्टूबर-दिसंबर 2023 तिमाही के लिए की गई बैंक की इन्वेस्टर प्रेजेंटेशन के विश्लेषण से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान जारी किए गए 95 प्रतिशत नए व्यक्तिगत ऋण डिजिटल चैनल के माध्यम से किए गए थे. तिमाही के दौरान बेचे गए नए क्रेडिट कार्डों में से 99 प्रतिशत या तो इसके ऐप के माध्यम से या ऑनलाइन बैंकिंग के माध्यम से बेचे गए.

जहां तक व्यावसायिक ऋणों की बात है, सभी नए ऋणों में से 79 प्रतिशत डिजिटल चैनलों के माध्यम से जारी किए गए थे.

इसके डिजिटल प्लेटफॉर्म पर निर्भरता ने आरबीआई की चिंताओं को बढ़ा दिया है, जिसमें कहा गया है कि “यह भी देखा गया है कि, हाल ही में, बैंक के डिजिटल लेनदेन की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसमें क्रेडिट कार्ड से संबंधित लेनदेन भी शामिल है, जो कि आईटी सिस्टम पर आगे बोझ डाल रहा है.”

हालांकि ये प्रतिबंध मौजूदा ग्राहकों को प्रभावित नहीं करेंगे, लेकिन डेटा से पता चलता है कि डिजिटल माध्यम बैंक के लिए एक महत्वपूर्ण चैनल है, और इसलिए नए ग्राहकों को शामिल करने के लिए इसका उपयोग करने में सक्षम नहीं होने से इसके कस्टमर बेस की वृद्धि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है.


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एक लंबा, खराब रिश्ता

केएमबी को 2003 में आरबीआई से अपना बैंकिंग लाइसेंस प्राप्त हुआ, जिसमें बैंक के प्रमोटरों की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत तक सीमित थी. बैंक का संचालन शुरू होने के एक वर्ष के भीतर प्रमोटर्स की 49 प्रतिशत से ऊपर की हिस्सेदारी (उस समय यह 61 प्रतिशत थी) को कम किया जाना था.

फिर, 2005 में, आरबीआई ने ‘निजी क्षेत्र के बैंकों में स्वामित्व और शासन पर दिशानिर्देश’ जारी किए. इन नए नियमों के तहत, कोई भी एकल इकाई या उससे संबंधित संस्थाओं के समूह को किसी भी निजी क्षेत्र के बैंक में उस बैंक की चुकता पूंजी या पेड-अप कैपिटल के 10 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी रखने की अनुमति नहीं थी.

चुकता पूंजी से तात्पर्य उस राशि से है जो किसी कंपनी को शेयरों की खरीद के बदले शेयरधारकों से प्राप्त होती है.

कुछ साल बाद पत्रों के आगे-पीछे होने का सिलसिला शुरू हुआ.

2008 में, RBI ने बैंक को पत्र लिखकर नए नियमों के अनुरूप, अपनी प्रमोटर हिस्सेदारी को 10 प्रतिशत तक कम करने की योजना लाने के लिए कहा. केएमबी इन निर्देशों से सहमत नहीं था, इसके प्रमोटर उदय कोटक ने कहा कि 49 प्रतिशत प्रमोटर शेयरधारिता सीमा उसके बैंकिंग लाइसेंस समझौते का हिस्सा थी.

इसके बाद केंद्रीय बैंक और केएमबी के बीच 35 से अधिक पत्र और ईमेल भेजे गए, जिसमें आरबीआई इस बात पर अड़ा रहा कि उसके शेयरधारिता मानदंडों का पालन किया जाना चाहिए, और केएमबी को ऐसा करने के लिए एक योजना के बनाने की जरूरत पर बल दिया.

बैंक ने अपनी ओर से तर्क दिया कि आरबीआई की जरूरतें स्पष्ट नहीं थीं और इसके 2005 के दिशानिर्देशों और केएमबी को जारी बैंकिंग लाइसेंस के बीच भ्रम पैदा हुआ.

2012 में, बैंक ने आरबीआई को लिखा था कि “हालांकि उपरोक्त नीति की आवश्यकता और वैधानिक आधार हमारे लिए स्पष्ट नहीं हैं”, फिर भी इसके प्रमोटर होल्डिंग को 31 मार्च, 2020 तक पेड-अप कैपिटल के 20 फीसदी तक लेकर आने के लिए “निष्पक्ष और गैर-विघटनकारी रोडमैप” (Fair and Non-Disruptive Roadmap) पर काम करने की कोशिश की जाएगी. इसकी योजना के तहत, प्रमोटर की हिस्सेदारी को 31 मार्च, 2014 तक 40 प्रतिशत, 31 मार्च, 2017 तक 30 प्रतिशत और 31 मार्च, 2020 तक 20 प्रतिशत तक कम किया जाना था.

आरबीआई ने केएमबी के प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि बैंक को 31 मार्च, 2018 तक अपने प्रमोटर शेयरहोल्डिंग को अपनी भुगतान पूंजी का 20 प्रतिशत और 31 मार्च, 2020 तक 10 प्रतिशत तक कम करना होगा.

बैंक ने दोबारा एक विकल्प सुझाया: 31 मार्च, 2014 तक 40 प्रतिशत प्रमोटर होल्डिंग, 31 दिसंबर, 2016 तक 30 प्रतिशत, और 31 मार्च, 2018 तक 20 प्रतिशत. हालांकि, मार्च 2014 की समय सीमा के करीब, बैंक ने शेयर होल्डिंग को घटाने की योजना को उस साल होने वाले लोकसभा चुनाव का हवाला देते हुए सितंबर 2014 तक के लिए टाल दिया.

आरबीआई इससे खुश नहीं था, और उसने धमकी दी थी कि अगर 31 मार्च, 2014 की समय सीमा के हिसाब से शेयर होल्डिंग को कम नहीं किया जाता है, तो केंद्रीय बैंक “कोटक महिंद्रा बैंक के खिलाफ रेग्युलेटरी ऐक्शन शुरू करने के लिए बाध्य होगा, जैसे कि नई शाखाएं खोलने पर रोक लगाना इत्यादि”.

अगले कुछ वर्षों में, आरबीआई और केएमबी के बीच और भी पत्राचार होते रहे, जिसमें आरबीआई ने समय सीमा का अनुपालन करने पर जोर दिया जबकि बैंक ने बार-बार इसे बढ़ाए जाने की मांग की.

पहला बड़ा झटका

2 अगस्त, 2018 को, केएमबी ने 500 करोड़ रुपये मूल्य के Perpetual Non-Cumulative Preference Shares (पीएनसीपीएस) जारी करने की घोषणा की. ये मूल रूप से ऋण का एक रूप था जिसमें मतदान का कोई अधिकार नहीं था. इसका परिणाम यह हुआ कि बैंक की चुकता पूंजी बढ़ गई, जिसका मतलब था कि प्रमोटरों की हिस्सेदारी आरबीआई की सीमा से नीचे गिर गई.

आरबीआई ने इस पर सख्त प्रतिक्रिया दी, जिसमें कहा गया था कि उसने इस तथ्य पर “गंभीर आपत्ति जताई” थी कि उसे पीएनसीपीएस के मुद्दे के बारे में सूचित नहीं किया गया था, और कहा कि इस कार्रवाई से प्रमोटरों की शेयर होल्डिंग में कोई बदलाव नहीं आया. आरबीआई का उद्देश्य स्वामित्व और नियंत्रण में विविधता लाना था, जो केएमबी के इस तरह के कदम से नहीं हुआ था.

हालांकि, केएमबी ने बाद में अपनी स्थिति स्पष्ट की, फिर भी आरबीआई ने अक्टूबर 2018 में बैंक को कारण बताओ नोटिस जारी किया. बैंक के खिलाफ आरोप यह था कि उसने केंद्रीय बैंक के आदेशों के बावजूद प्रमोटर्स की हिस्सेदारी को कम करने के लिए पीएनसीपीएस जारी करने के बारे में आरबीआई को सूचित नहीं किया था.

केएमबी ने आरबीआई को जवाब देते हुए कहा कि कारण बताओ नोटिस “उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है और कानूनी रूप से इसका कोई आधार नहीं है”. ऐसे में इसने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक रिट याचिका भी दायर की.

केएमबी ने दिसंबर 2018 में स्टॉक एक्सचेंजों को सूचित किया, “हमने पीएनसीपीएस को चुकता पूंजी का हिस्सा होने और बैंकिंग विनियमन अधिनियम के तहत शेयर होल्डिंग को कम करने के मामले पर कानूनी आधार के संबंध में आरबीआई को अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है और बता दी है.”

इसमें कहा गया है, “हमने आरबीआई के साथ देश के प्रतिष्ठित न्यायविदों और वरिष्ठतम कानूनी सलाहकारों की राय भी साझा की है, जो हमारी समझ की पुष्टि करती हैं. अत्यधिक सावधानी बरतते हुए, बैंक ने आज बैंक की स्थिति को वैधानिकता प्रदान करने के लिए माननीय बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है.”


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कुछ जुर्माना, मामला सुलझ गया फिर और अधिक जुर्माना

मामला अब अदालत में था, लेकिन इसने आरबीआई को बैंक पर भारी जुर्माना लगाने से नहीं रोक नहीं लगाया.

जून 2019 में, RBI ने बैंक के प्रमोटर्स द्वारा रखी गई शेयर होल्डिंग का विवरण प्रस्तुत करने और अनुमत समय-सीमा के भीतर प्रमोटर्स की शेयर होल्डिंग को कम करने के अनुपालन में उठाए गए कदमों का विवरण देने में असफल रहने के लिए बैंक के ऊपर 2 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया.

अंत में, जनवरी 2020 में, केएमबी ने स्टॉक एक्सचेंजों को सूचित किया कि वह आरबीआई के साथ एक समझौते पर पहुंच गया है, जिसमें बैंक में प्रमोटरों की हिस्सेदारी RBI से अंतिम मंजूरी के छह महीने के भीतर बैंक की चुकता पूंजी के 26 प्रतिशत तक कम हो जाएगी.

परिणामस्वरूप, केएमबी ने कहा कि वह बॉम्बे हाई कोर्ट से अपनी रिट याचिका वापस ले रहा है.

यह बैंक के खिलाफ आरबीआई की कार्रवाई का अंत नहीं था, और बाद में शेयर होल्डिंग के अलावा भी अन्य मामलों में जुर्माना लगाया गया था जिनका शेयरधारिता से कोई लेना-देना नहीं था.

जुलाई 2022 में, RBI ने विभिन्न उल्लंघनों के लिए KMB पर 1.05 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया, जिसमें निर्धारित अवधि के भीतर जमाकर्ता शिक्षा और जागरूकता कोष (Depositor Education and Awareness Fund) में उचित राशि न जमा कर पाने और अनाधिकृत इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन में शामिल राशि को ग्राहकों द्वारा नोटिफिकेशन की तारीख के दस दिनों के भीतर उनके खाते में वापस न कर पाना शामिल था.

फिर, अक्टूबर 2023 में, RBI ने KMB पर 3.95 करोड़ रुपये का और भी बड़ा जुर्माना लगाया. इस बार उल्लंघन यह हुआ कि बैंक यह सुनिश्चित करने में विफल रहा कि ग्राहकों से शाम 7 बजे के बाद और सुबह 7 बजे से पहले संपर्क नहीं किया जाएगा.

आरबीआई ने कहा कि बैंक ने ऋण पर देने या संवितरण (Disbursement) की वास्तविक तिथि के बजाय ऋण संवितरण की नियत तिथि (due date) से ब्याज लगाया और लोन एग्रीमेंट में ऐसा कोई खंड नहीं होने के बावजूद ऋण को पहले चुकता करने पर अतिरिक्त शुल्क (Foreclosure) शुल्क लगाया.

आरबीआई द्वारा बुधवार को जारी गिया गया आदेश, दरअसल इस साल यानि 2024 में अब तक केंद्रीय बैंक द्वारा केएमबी के खिलाफ की गई एकमात्र कार्रवाई है.

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(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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