मुंबई, 10 अप्रैल (भाषा) उम्रदराज लोगों की बढ़ती तादाद, जनसांख्यिकीय बदलाव और हृदय रोग एवं कैंसर जैसी गैर-संचारी बीमारियों के कारण वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य पेशेवरों की मांग वर्ष 2030 तक दोगुनी हो जाने की उम्मीद है। एक विशेषज्ञ ने बुधवार को यह अनुमान जताया।
प्रतिभा समाधान प्रदाता एनएलबी सर्विसेज के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सचिन अलुग ने पीटीआई-भाषा से कहा कि स्वास्थ्य पेशेवरों की वैश्विक कमी और बढ़ती आबादी ने अपने कौशल के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेहद सम्मानित भारतीय स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की मांग बढ़ा दी है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम भारत के साथ मलेशिया, इटली, पुर्तगाल, पोलैंड और जर्मनी जैसे देशों में स्वास्थ्य पेशेवरों की मांग में वृद्धि देख रहे हैं। उम्मीद है कि वर्ष 2030 तक भारतीय स्वास्थ्य पेशेवरों की मांग राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर दोगुनी हो जाएगी।’’
अलुग ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या, जनसांख्यिकीय बदलाव और गैर-संचारी रोगों के बढ़ने से कोविड-19 महामारी के बाद से भारत के साथ वैश्विक स्तर पर भी स्वास्थ्य पेशेवरों की मांग में लगातार वृद्धि हुई है।
उन्होंने कहा कि इस समय भारत में 30 लाख से अधिक पंजीकृत नर्सें मौजूद हैं। इसका मतलब है कि देश में प्रति 1,000 व्यक्ति पर सिर्फ 1.7 नर्स ही उपलब्ध हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार प्रति 1,000 व्यक्ति पर तीन नर्सें होनी चाहिए। इसी तरह, भारत में 1,500 मरीजों पर एक डॉक्टर है जबकि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए।’’
अलुग ने कहा कि भारत दुनिया भर में मेडिकल कॉलेजों की सबसे बड़ी संख्या के साथ यूरोप, खाड़ी क्षेत्र, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और इजराइल जैसे देशों में स्वास्थ्य कर्मियों के प्राथमिक निर्यातकों में से एक है।
भाषा राजेश राजेश प्रेम
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