बांग्लादेश में भारतीय साड़ी अचानक विपक्षी बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) और सत्तारूढ़ अवामी लीग (एएल) के बीच राजनीतिक फुटबॉल बन गई है.
अगर सालों से नहीं तो कम से कम कुछ महीनों से तो यह समस्या जरूर अंदर ही अंदर खुदबुदा रही है. लेकिन बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के खुद अपनी आस्तीन चढ़ाकर फुटबॉल मैच में शामिल होने के साथ, नई दिल्ली अब पूर्वी मोर्चे पर होने वाली हलचलों से आंखें नहीं मूंद सकती है जो बांग्लादेश को मालदीव 2.0 में बदल सकती है.
संक्षेप में: जनवरी के चुनावों के ठीक बाद जब हसीना ने जीत हासिल की और बीएनपी ने यह दावा करते हुए बहिष्कार किया कि चुनाव न तो स्वतंत्र थे और न ही निष्पक्ष, सोशल मीडिया पर एक अभियान सामने आया, जो यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले बांग्लादेशियों की तरफ से चलाया गया था.
हैशटैग बिल्कुल मालदीव की तरह थे, जिसने भारत को मार्च की शुरुआत में वहां से सैनिकों के पहले बैच को वापस बुलाने के लिए मजबूर किया था: #IndiaOut #BoycottIndia and #BoycottIndianProducts. बेशक, बांग्लादेश में भारत के सैनिक नहीं हैं. लेकिन अभियान का मुख्य उद्देश्य यह है कि नई दिल्ली उस बांग्लादेशी प्रधानमंत्री का समर्थन कर रहा है जो लोकतंत्र को खत्म कर रही है, इसलिए #BoycottIndia.
पिछले सप्ताह तक, अभियान केवल बातों ही बातों तक सीमित था जमीनी स्तर पर इसके कोई ठोस नतीजे नहीं थे. इसमें से कुछ काफी बुरा था. मोदी और हसीना को सबसे काफी असम्मानजनक शब्दों के साथ निशाना बनाया गया.
लेकिन 20 मार्च के बाद से चीजें और बदतर होती गईं.
कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि बीएनपी के वरिष्ठ नेता रूहुल कबीर रिज़वी ने सार्वजनिक रूप से अपने कंधों पर पहनी हुई एक शॉल – कश्मीर की एक भारतीय शॉल – को फेंक दिया और #IndiaOut अभियान को बीएनपी का समर्थन दिया. अवामी लीग के नेता ओबैदुल क़ादर ने इसके लिए बीएनपी की आलोचना की.
साड़ी की पावर से ‘इंडिया आउट’ का मुकाबला करना
यदि मामला यहीं समाप्त हो जाता, तो यह बिना किसी वजह के बहुत बड़ा हंगामा खड़ा करने वाली बात होती. लेकिन 27 मार्च को, हसीना ने सार्वजनिक रूप से #IndiaOut के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी.
और इसके लिए जो हथियार उन्होंने चुना वह थी भारतीय साड़ी.
उन्होंने एक पार्टी मीटिंग में कहा, “बीएनपी नेता #BoycottIndian products कह रहे हैं. लेकिन उनकी पत्नियों के पास कितनी भारतीय साड़ियां हैं? वे अपनी पत्नियों की साड़ियां उनसे लेकर उनमें आग क्यों नहीं लगा देते हैं?”
हसीना ने आगे आरोप लगाया कि कई बीएनपी नेताओं की पत्नियां और बेटियां अक्सर भारत जाकर साड़ियां खरीदती हैं और बांग्लादेश में आकर बेचती हैं. “बीएनपी नेताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी पत्नियां भारतीय साड़ी न पहनें. जिस दिन आप (बीएनपी) कार्यालय के सामने उन्हें (अपनी पत्नियों की भारतीय साड़ियों को) जला देंगे, उस दिन मुझे विश्वास हो जाएगा कि आप वास्तव में भारतीय सामानों का बहिष्कार कर रहे हैं.
बीएनपी ने इस बात के लिए शेख हसीना की तीखी आलोचना की. रिजवी ने पलटवार करते हुए कहा, ”बीएनपी नेता भारत से इतनी साड़ियां नहीं खरीदते हैं. मेरे दादा का घर भारत में है. मेरी शादी के बाद मैं एक बार वहां गया था. एक अंकल ने मुझे एक साड़ी गिफ्ट की थी. मैंने अपनी पत्नी से पूछा, वह साड़ी कहां है? उन्होंने कहा कि मैंने इससे एक रजाई बनवा ली थी और वह भी अब फट गई है.”
भारत को सवाल पूछना चाहिए
क्या शेख हसीना को #IndiaOut पर मुंहज़बानी लड़ाई में शामिल होना चाहिए? क्या उन्हें दंगा भड़काने वाले सोशल मीडिया अभियान पर टिप्पणी करके उसका महत्त्व बढ़ाना चाहिए था?
लब्बोलुआब यह है कि, बांग्लादेश की दोनों पार्टियों के बीच यह फुटबॉल बनी हुई है और अब समय आ गया है कि भारत यह सवाल पूछना शुरू कर दे कि #IndiaOut हैशटैग के पीछे कौन है, पहले मालदीव में और अब बांग्लादेश में.
उपमहाद्वीपीय भू-राजनीति पर थोड़ी भी नजर रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए उत्तर है: चीन.
मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को सत्ता में लाने वाली राजनीति, उनका भारत-विरोधी और चीन-समर्थक मुद्दा था.
शेख हसीना निःसंदेह पड़ोस में भारत की सबसे अच्छी दोस्त हैं. लेकिन चीन की गहरी जेब और ढाका में बड़े निवेश की बराबरी करना दिल्ली के लिए कठिन है.
भारत यह जानता है: बीजिंग इस क्षेत्र में नई दिल्ली के स्वाभाविक महत्त्व को चुनौती देने पर तुला हुआ है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी ने रणनीतिक रूप से स्थित भूटान को भारत की तरफ से दी जाने वाली सहायता 5,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर दोगुनी करके 10,000 करोड़ रुपये कर दी है.
शायद ढाका पर इससे कहीं अधिक ध्यान देने की जरूरत है. भारत बांग्लादेश की वफादारी को सिर्फ इसलिए हल्के में नहीं ले सकता क्योंकि उसने 1971 में देश को पाकिस्तान से आजादी दिलाने में मदद की थी. नई दिल्ली को दोनों देशों के बीच गड़े कांटे को निकालना ही होगा चाहे ये कितना ही निरर्थक क्यों न प्रतीत हो.
प्रसिद्ध महीन सूती टैंगेल साड़ी को लें. जनवरी में भारत द्वारा पश्चिम बंगाल को इसके लिए भौगोलिक संकेतक (जीआई) दिए जाने के बाद यह दोनों देशों के बीच रस्साकशी का विषय बन गया. ढाका गुस्से में था. टैंगेल बांग्लादेश का एक जिला है. साड़ी का नाम उस जिले से लिया गया है. भारत जीआई पर दावा कैसे कर सकता है? हसीना दुखी थीं. उन्होंने मीडिया को बताया कि जर्मनी यात्रा के दौरान उन्होंने केवल टैंगेल साड़ियां पहनी थीं क्योंकि वे बांग्लादेश का गौरव थीं.
यह एक छोटी-मोटी किटी पार्टी के झगड़े जैसा लग सकता है, लेकिन देखिए कि कैसे साड़ी – इस बार भारतीय साड़ी – दोनों देशों को परेशान करने के लिए एक बार वापस लौट आई है. शेख हसीना ने #IndiaOut बहस में भारतीय साड़ी को केंद्र में रखा है. ऐसा करके उन्होंने अनजाने में ही भारत के खिलाफ चलाए जा रहे इस अभियान को बढ़ाने में मदद कर दी. भारत अपने जोखिम पर इस आंदोलन को नजरअंदाज कर सकता है.
(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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