पानी से संबंधित सभी संस्थाओं और मंत्रालयों को मिलाकर जल शक्ति मंत्रालय का गठन हो चुका है. सरकारी नजरिए से नदी सिर्फ पानी आपूर्ति का ही माध्यम है इसलिए गंगा संरक्षण एवं अन्य नदियों से संबंधित मुद्दे भी जल शक्ति का ही हिस्सा होंगे. नीति नियंताओं को यह तो पता ही है कि संस्थाओं को जोड़ने से पानी के कुल जोड़ पर असर नहीं पड़ता.
वैसे भी देश ‘मुझे गंगा ने बुलाया है’ के दौर से आगे निकल चुका है इसलिए कोई कारण नहीं है कि गंगा सफाई के लिए अलग मंत्रालय रखा जाए.
तो केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने गंगा सफाई के मुद्दे पर दी अपनी पहली प्रतिक्रिया में ही जता दिया कि मंत्रालय के अधिकारी उन्हे अंधेरे में रख रहे हैं. सबसे पहले उन्होंने कहा कि 298 में 98 परियोजनाएं पूरी हो चुकी है. शायद इसी आधार पर उनके पूर्ववर्ती, रैलियों में यह दावा करते घूम रहे थे कि 90 फीसद गंगा साफ हो गई है. मंत्री जी को यह स्पष्ट होना चाहिए कि 98 परियोजनाएं पूरी नहीं हुई है इनमें से कई अपने अंतिम चरण में हैं और कई पूरी होने के बावजूद पूरी क्षमता से काम नहीं कर रही है.
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उदाहरण के तौर पर वाराणसी दीनापुर में 140 एमएलडी के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने किया था, जब वही अपनी क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पा रहा तो बाकि परियोजनाओं की स्थिती भी समझी जा सकती है कि वो कागजों पर ही मजबूत है. मंत्री जी की जानकारी में यह तथ्य भी होगा कि इन 298 प्रोजेक्ट के लिए दिए गए 28,451.29 करोड़ रूपए में से मात्र 6838.67 करोड़ रूपए ही खर्च हुए हैं. यानी कुल खींचतान के 25 फीसद के करीब राशि खर्च की जा सकी है.
फिर उन्होंने कहा कि दो सालों में परिणाम नजर आने लगेंगे. किसी विषय को टालने का यह सटीक फार्मूला है. बेहतर होगा उमा भारती और नितिन गडकरी की तरह शेखावत जी तारीख देने से बचें. गंगा सफाई तारीखों में नहीं आपकी कोशिशों में नजर आनी चाहिए. तारीख वही देते हैं जिनके पास बताने को कुछ नहीं होता.
तीसरी और बेहद मासूम बात उन्होंने कही कि गंगा सफाई के लिए जनआंदोलन जरूरी है. इसका मतलब क्या यह है कि वे आत्मबोधानंद सहित गंगा पथ पर चल रहे आंदोलनों के पक्ष में हैं या वे सरकार समर्थित कोई आंदोलन चाहते हैं, जो नमामि गंगे के साथ मिलकर जोर से अपने गाल बजाएं और कहें – ‘हर हर गंगे’.
यह समझना इसलिए भी जरूरी है क्योकि उनके पूर्ववर्ती आंदोलनों के प्रति निहायत असंवदेनशील थे. प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की मौत के बावजूद उनके रवैये पर कोई फर्क नहीं पड़ा. सरकार ने छह महीने तक आत्मबोधानंद से बात भी नहीं की. जब उनके जल त्यागने की घोषणा पर सत्ता को लगा कि कहीं चुनावों में नुकसान ना हो जाए, आत्मबोधानंद जी से कुछ वादे कर दिए गए.
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जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र शेखावत को निश्चित तौर पर बताया गया होगा कि नमामि गंगे के वरिष्ठ अधिकारी मातृ सदन जाकर क्या वादा करके आएं हैं. वे वहां वादा करके आए हैं कि रायवाला से भोगपुर तक खनन पर पूरी तरह रोक लगाई जाएगी. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को शामिल करने और हरिद्वार कलेक्टर को नए सिरे से दिशा निर्देश जारी करने के बावजूद अवैध खनन जारी है. नमामि गंगे ने मातृ सदन को दिए अपने पत्र में कहा था कि सभी प्रस्तावित और निर्माणाधीन जलविधुत परियोजनाओं पर शीघ्र निर्णय लिया जाएगा.
एक और महत्वपूर्ण वादा ई -फ्लो को लेकर भी किया गया था. हलांकि आंदोलन की मांग पूर्ण अविरलता की है, लेकिन प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की मौत के तुरंत बाद डैमेज कंट्रोल के लिए पिछली सरकार में गंगा सरंक्षण मंत्री नितिन गडकरी ने आनन फानन में ई- फ्लो नोटिफिकेशन जारी कर दिया. इस नोटिफिकेशन में न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह अलग – अलग मौसमों में 20 से 30 फीसद तक रखने का प्रस्ताव है.
ध्यान रखिए कि जब नदी को बहुत जरूरत है तब प्रवाह मात्र बीस फीसद होगा. जबकि सातों आईआईटी कंसोर्डियम की रिपोर्ट में यह साफ कहा गया है कि गंगा को बचाने के लिए हर समय कम से कम 50 फीसद प्रवाह की आवश्यकता है. ऊपर से तुर्रा यह कि सरकार स्वंय के जारी किए गए नोटिफिकेशन को भी अमल लाने के प्रयास नहीं कर रही और बांध कंपनियां आदेश को धता बता पहले की तरह मनमानी कर रही है.
इन वादों और इरादों पर अविलंब अमल ही बताएगा कि नए मंत्रालय और नए मंत्री की दिशा क्या है, अन्यथा आप यह भी कह सकते है कि मुझे क्या मालूम मैं तो अभी नया हूं.
(अभय मिश्रा लेखक और पत्रकार हैं.)