नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक ने गुरुवार को वर्तमान वित्तवर्ष की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में वाणिज्यिक बैंकों के लिए प्रमुख ब्याज दर में 25 आधार अंकों की कटौती की. प्रमुख ब्याज दर यानि रेपो रेट अब 5.75 फीसदी हो गई है. आरबीआई ने आम जनता को बड़ा तोहफा देते हुए फंड ट्रांसफर करने पर सभी तरह के लगने वाले शुल्क को हटाने का फैसला लिया है.
आरबीआई ने यह कदम डिजिटल बैंकिग को बढ़ाने के लिए लिया है. बता दें कि जल्द ही बैंकों को इस फैसले को लागू करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए जाएंगे.
अभी ज्यादातर बैंक रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) और नेशनल इलेक्ट्रिक फंड ट्रांसफर (एनईएफटी) करने पर ग्राहकों से राशि के हिसाब से शुल्क वसूलते हैं. हालांकि आरबीआई के इस फैसले के बाद ग्राहकों को फायदा होने की उम्मीद है. आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने नीतियों में बदलाव के बाद कहा कि जिस बदलाव से अगर देश में वित्तीय स्थिरता आती है उसे लागू करने में आरबीआई किसी भी तरह के उपाय को करने में संकोच नहीं करेगा. क्योंकि वित्तीय स्थिरता, शॉट-टर्म, मध्यम-अवधि और लंबी अवधि तक बनाए रखना आवश्यक है
एमपीसी के सभी छह सदस्यों ने रेपो रेट में कटौती का समर्थन किया
गुरुवार को छह सदस्यीय एमपीसी (मौद्रिक नीति समिति) की बैठक की अध्यक्षता आरबीआई के गर्वनर शक्तिकांत दास ने कहा कि रेपो रेट के अतिरिक्त रिवर्स रेपो रेट में भी कटौती की गई है. नई मौद्रिक नीति के तहत रिवर्स रेपो रेट घटकर 5.50 फीसदी पर आ गया है, जबकि बैंक रेट छह फीसदी है. रिजर्व बैंक ने 2019-20 के लिये जीडीपी वृद्धि दर अनुमान को पहले के 7.2 प्रतिशत से घटाकर 7 प्रतिशत किया.
रिजर्व बैंक ने अपने नीतिगत रुख को नरम करने की कोशिश की है. रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के सभी सदस्य रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती और नीतिगत रुख में बदलाव के पक्ष में दिखे.
मौद्रिक नीति समिति की बैठक का ब्योरा 20 जून 2019 को जारी किया जाएगा. समिति की अगली बैठक 5-7 अगस्त 2019 को होगी. आर्थिक विकास की रफ्तार सुस्त पड़ने से रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों में कटौती का दबाव बढ़ गया था. इसी वजह से ये कदम उठाया गया. वित्त वर्ष 2018-19 में विकास दर 6.8 फीसदी रही, जो पिछले पांच साल में सबसे कम है. ऐसे में केंद्रीय बैंक की कोशिश है कि सस्ते कर्ज के जरिए बाजार में नकदी बढ़ाकर अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज की जाए.
अर्थशास्त्र विशेषज्ञ ईला पटनायक ने कहा कि आरबीआई के नीतिगत दर में कटौती का स्वागत करने लायक है. लेकिन अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों को अधिक मजबूती से प्रसारित करने की जरूरत है. वह आगे लिखती हैं कि हाल के संदर्भ में अगर देखें तो आरबीआई को तरलता संबंधी चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता है. बैंकों में एनपीए संकट के परिणामस्वरूप ऋण संकट पैदा हो गया है.
वह आगे बताती हैं कि जो बांड बाजार से और बैंकों के लिए पैसा जुटाने में सक्षम थे. वे सभी क्रेडिट वृद्धि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में चली गए जिससे भारी घाटा का सामना करना पड़ा.
आईएल एंड एफएस क्राइसिस के बाद एनबीएफसी सेक्टर में डिफॉल्टर बहुत तेजी से बढ़े हैं और धन जुटाना मुश्किल हो गया. वहीं उन्होंने इस घाटे पर और गहरी नजर डालते हुए बताया कि म्यूचुअल फंड, प्रॉविडेंट फंड और पेंशन फंड, जो काफी हद तक एनबीएफसी व्यवसायिक पत्र के खरीदार थे, ने एनबीएफसी को अपना कर्ज देना कम कर दिया है.
ईला कहती हैं कि सुधार के लिए, आरबीआई ने अपनी नीतिगत दर को बेहतर करने लिए बैंकों की ब्याज दरों के लिए कई रूपरेखाओं के साथ प्रयोग किया है.
तीसरी बार घटा रेपो रेट
इससे पहले केंद्रीय बैंक ने आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने के लिए इस साल फरवरी और अप्रैल में रेपो रेट में 25-25 आधार अंकों (0.25 फीसदी) की कटौती की थी. हालांकि अप्रैल में जब आरबीआई द्वारा रेपो रेट में कटौती की गई थी. तब कुछ ही बैंकों ने इसका लाभ लोगों को दिया था.