scorecardresearch
Tuesday, 17 December, 2024
होममत-विमतभारत में किसानों के विरोध का समर्थन क्यों कर रहे हैं वामपंथी? यह एक ‘कुलक’ आंदोलन है

भारत में किसानों के विरोध का समर्थन क्यों कर रहे हैं वामपंथी? यह एक ‘कुलक’ आंदोलन है

विशुद्ध रूप से नष्ट करने के लिए किसी के भी साथ सहयोग करने की यह अनोखी क्षमता कुछ मायनों में बोल्शेविक नैतिकता का मूल सिद्धांत है.

Text Size:

ये शब्द “किसान आंदोलन” पूरी तरह से गलत नाम है. ज्यादा से ज्यादा इसे ज़मींदारों का आंदोलन कहा जा सकता है. जारी विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों के पास ट्रैक्टर और हार्वेस्टर हैं — विलासिता के सामान जो गरीब खेतिहर मज़दूर के पास नहीं हैं. वे अमीर बिचौलियों के साथ जुड़े हैं जिन्हें उत्तरी भारत में आढ़ती कहा जाता है. वे पहले से ही ऐसे कारोबार में हैं जहां उन्हें खरीदार और उनके प्रमुख उत्पादों के लिए न्यूनतम कीमत की गारंटी दी जाती है. दूसरे शब्दों में उनके लिए व्यवसाय के सामान्य जोखिम काफी हद तक कम हो जाते हैं. अब, वे अपने सभी प्रोडक्ट्स के लिए गारंटीशुदा खरीद और कीमतों की तलाश कर रहे हैं. वे अपने जोखिमों को ख़त्म करने के लिए राज्य-वित्त पोषित फसल बीमा कवर भी चाहते हैं. किसान चाहते हैं कि राज्य अन्य व्यवसायों के विपरीत, 60 साल से अधिक उम्र के सभी किसानों और खेतिहर मज़दूरों को बिना खेत मालिकों के कोई योगदान दिए 10,000 रुपये की मासिक पेंशन प्रदान करे. आंदोलन के लिए ज़मींदार-किसानों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. अगर वे हममें से बाकी करदाताओं को मज़बूर कर सकते हैं और अपना रास्ता निकाल सकते हैं, तो क्यों नहीं?

दिलचस्प बात को समझने की कोशिश कीजिए कि वामपंथी इस विचित्र आंदोलन का समर्थन क्यों कर रहे हैं. कॉफी पीने वाले वामपंथी जानते हैं, या उन्हें पता होना चाहिए कि कॉमरेड स्टालिन ने इन ज़मींदार-किसानों को “कुलक” कहा था. अब जिसने भी बोल्शेविक प्राइमरों को पढ़ा है वो जानता है कि कुलकों को पूंजीपति वर्ग से भी बड़ा वर्ग शत्रु माना जाता है.

तो फिर, हमारे घरेलू साथी इन कुलक प्रतिक्रियावादियों का समर्थन क्यों करेंगे? कॉमरेड लेनिन और स्टालिन का अनुकरण न करना पाप है. यहां तक कि कथबर्ट बैंक्स भी आपको यह बता सकते हैं! पंजाब के कुलक बड़े घरों में रहते हैं, वे “बाहरी लोगों” को रोज़गार देते हैं और उन्हें निर्वाह मज़दूरी देते हैं. वे बिचौलियों के साथ मिले हुए हैं, जो किसी भी सच्चे बोल्शेविक के लिए एक और वर्ग शत्रु हैं. कुछ लोगों ने कथित तौर पर भारतीय खाद्य निगम के अधिकारियों को भी “निश्चित” कर दिया है, जिससे यह प्रदर्शित होता है कि भारतीय बुर्जुआ गणराज्य क्रांति के दुश्मनों के साथ मिला हुआ है. यह हैरानी की बात लगती है कि भारत के वामपंथी अपने आचरण में इतने प्रतिक्रांतिकारी हैं. उन्होंने तेलंगाना या नक्सलबाड़ी में ऐसा व्यवहार नहीं किया, 1920 के दशक में यूक्रेन में या चेयरमैन माओ के अधीन चीन में भी ऐसा नहीं किया. उनके साथ क्या गलत हुआ है?


यह भी पढ़ें: भारत एमएसपी का बोझ उठा नहीं पाएगा, इसे खत्म करने की 9 वजहें


वामपंथ की विरोधाभासी स्थिरता

मैं अपने वामपंथी मित्रों के बारे में सोचता रहा कि क्या उन्होंने लेनिन की द स्टेट एंड रिवोल्यूशन पढ़ी है और फिर इसने मुझे अचानक चौंका दिया: बेशक उनके पास है. कॉमरेड लेनिन हमेशा से व्यावहारिक थे. उन्होंने असहाय अलेक्जेंडर केरेन्स्की, जो मूर्खतापूर्ण रूप से देशभक्त होने की कोशिश कर रहे थे, को नीचे लाने के लिए अपने ही देश के दुश्मन कैसर विल्हेम और जर्मनी के साथ सहयोग करना काफी उचित समझा. चेयरमैन माओ एक कदम आगे बढ़ गए. उन्होंने चियांग काई-शेक की राष्ट्रवादी ताकतों को बाद में अपने ही देशवासियों के खिलाफ अपनी ताकत दिखाने के लिए जापान के साथ संघर्ष का खामियाज़ा भुगतने की इज़ाज़त दी.

हमारे वामपंथियों ने ऐसी ही रणनीति निकाली है. हालात किसी भी तरह से सही नहीं हैं, लेकिन हमारे देश में एक सकारात्मक हवा चल रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था काफी अच्छी तरह से बढ़ रही है, मध्यम वर्ग का विस्तार हो रहा है. मध्यम वर्ग के बोल्शेविक समर्थक होने की संभावना नहीं है. तो, अब घृणित “सिस्टम” को पटरी से उतारने का समय आ गया है. मित्रता करने के लिए कोई जर्मन साम्राज्यवादी नहीं हैं, लेकिन पंजाब के अमीर ज़मींदार-किसान बुर्जुआ भारतीय राज्य को बर्बाद करने के लिए “उपयोगी बेवकूफ” हो सकते हैं.

विशुद्ध रूप से नष्ट करने के लिए किसी के भी साथ सहयोग करने की यह अनोखी क्षमता कुछ मायनों में बोल्शेविक नैतिकता का मूल सिद्धांत है. ज़रा भारत के बाहर की दुनिया पर नज़र डालिए. वामपंथ का एक वर्ग ईरान में धार्मिक शासन का समर्थन करता है जो ईरानी महिलाओं पर अत्याचार करता है. इस शासन ने ईरान के सभी कम्युनिस्टों को भी सफलतापूर्वक मार डाला या निर्वासित कर दिया, लेकिन वैश्विक नव-उदारवादी पूंजीवादी व्यवस्था को नष्ट करने के लिए ईरान एक उपयोगी उपकरण है. कुछ मृत ईरानी कम्युनिस्ट कॉमरेड या जेल में बंद महिलाएं कोई मायने नहीं रखतीं. वामपंथी हमास का समर्थन करते हैं. अब हमास मुस्लिम ब्रदरहुड का विस्तार है और हर कोई जानता है कि जैसे ही ये लोग सत्ता में आएंगे, सबसे पहला काम ये करेंगे कि अपने बीच के सभी कम्युनिस्टों को फांसी पर लटका देंगे. कोई बात नहीं. हमास एक सहयोगी है क्योंकि वह विनाश के लिए खड़ा है और सभी विनाश अच्छे हैं.


यह भी पढ़ें: पंजाब के किसानों का गुस्सा वोटिंग पैटर्न को नहीं बदल पाता; UP, MP, राजस्थान इसके उदाहरण हैं


सफल नहीं होंगे, बाधा डाल सकते हैं

यहां तक कि हमारे अपने देश में भी वामपंथियों ने उस आंदोलन का समर्थन किया है जिसमें नाबालिग लड़कियों का उनके परिवारों और दोस्तों द्वारा ब्रेनवॉश किया जाता है और उन्हें हिजाब पहनने के लिए मज़बूर किया जाता है, जिसे प्रगतिशील ईरानी महिलाएं छोड़ने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन फिर, प्रगतिशील होना महत्वपूर्ण नहीं है. जो कुछ भी घृणित बुर्जुआ राज्य के प्रति विरोध उत्पन्न करता है उसका समर्थन किया जाना चाहिए. मार्क्स ने शायद कहा हो कि धर्म लोगों के लिए अफ़ीम है, लेकिन अफ़ीम तभी स्वीकार्य है जब वो व्यवस्था विरोधी हो.

आर्थिक पक्ष पर तो स्थिति और भी विचित्र है. भारत में सरकारी कर्मचारी, किसी भी उचित परिभाषा के अनुसार, श्रमिक वर्ग के सदस्य नहीं हैं; उन्हें उचित रूप से निम्न बुर्जुआ कहा जाता है. फिर भी, वामपंथी देश के वास्तविक श्रमिक वर्ग की कीमत पर अत्यधिक उच्च, गारंटीकृत पेंशन की खोज में इन कथित रूप से नफरत करने वाले वर्ग शत्रुओं का समर्थन करते हैं. आखिरकार, सरकारी कर्मचारी अराजकता पैदा कर सकते हैं और अराजकता ने ही महान अक्टूबर क्रांति को संभव बनाया.

निःसंदेह, बर्लिन की दीवार गिरने के बाद हम सभी जानते हैं कि वामपंथ कभी भी जीतने वाला नहीं है. इसलिए, उनकी वर्तमान रणनीति पूरी तरह से सकारात्मक गति को पटरी से उतारने और अराजक प्रवचन को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित लगती है. वे पहले की उदारवादी पार्टियों में भी अपनी पैठ बनाने और उन्हें बोल्शेविक विचारों से संक्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं. वामपंथी सफल नहीं होंगे, लेकिन वे बाधा डालने की पूरी कोशिश कर सकते हैं.

(जयतीर्थ राव एक सेवानिवृत्त व्यवसायी हैं जो मुंबई में रहते हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: भारत जोखिम लेना सीख ले और नुकसान सहने को तैयार हो तो ड्रोन्स के उत्पादन का बड़ा केंद्र बन सकता है


 

share & View comments