कोलकाता: ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव का एक नया तोड़ ढूंढ लिया है – पांच दिनों के भीतर, वह विधाननगर पुलिस के कमिश्नर के पद पर भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पांच अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले कर चुकी हैं.
लोकसभा चुनावों में बंगाल के अपने गढ़ में भाजपा के सेंध लगाने से बहुत पहले बनर्जी ने 2012 में कोलकाता के निकटवर्ती उत्तर 24 परगना जिले से काट कर नया विधाननगर पुलिस कमिश्नरेट बनाया था.
कोलकाता से सटा विधाननगर अपने अधिकार क्षेत्र में कई पांच-सितारा होटलों, नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, साल्टलेक स्टेडियम, सेक्टर 5-राजारहाट आईटी हब तथा साल्टलेक और राजारहाट जैसी महंगी आवासीय कोलोनियों के होने के कारण एक महत्वपूर्ण पुलिस कमिश्नरेट माना जाता है.
तबादले का चक्र
अप्रैल में चुनाव आयोग ने ज्ञानवंत सिंह को विधान नगर पुलिस कमिश्नर के पद से हटा दिया था क्योंकि वह बनर्जी के करीबी माने जाते हैं. गृह मंत्रालय के अनुसार वह उन पांच आईपीएस अधिकारियों में से हैं जो फरवरी में मुख्यमंत्री के साथ धरने पर बैठे थे.
चुनाव आयोग ने सिंह की जगह नटराजन रमेश बाबू को नियुक्त किया जो 25 मई तक पद पर रहे. जैसे ही 26 मई को आदर्श आचार संहिता हटाई गई, सिंह को दोबारा उनके पद पर तैनाती दे दी गई. पर उसके अगले ही दिन ज्ञानवंत सिंह को अतिरिक्त महानिदेशक (कानून व्यवस्था) के एक अन्य अहम पद पर लगा दिया गया, और निशात परवेज़ को विधाननगर कमिश्नर बनाया गया. लेकिन 28 मई को परवेज़ को हटाकर उनकी जगह भरतलाल मीणा को नियुक्त कर दिया गया. पर भरतलाल के पदभार ग्रहण से पहले ही 30 मई को उनकी जगह लक्ष्मीनारायण मीणा को नियुक्त कर दिया गया.
तबादलों के इस चक्र ने लोगों को चक्कर में डाल दिया है क्योंकि इससे पहले इस तरह का कोई अन्य उदाहरण मौजूद नहीं है.
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रमेश बाबू ने चुनाव प्रक्रिया के जारी रहते ज्ञानवंत सिंह का नेमप्लेट तक नहीं बदलवाया था क्योंकि वह जानते थे कि उन्हें हटा दिया जाएगा. खबरों के अनुसार, कमिश्नर कार्यालय में सिंह का नेमप्लेट अब भी लगा हुआ है क्योंकि लक्ष्मीनारायण मीणा भी अपने कार्यकाल को लेकर आश्वस्त नहीं हैं.
चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री बनर्जी ने बारंबार आरोप लगाया था कि भाजपा विधाननगर स्थित पांचसितारा होटलों से बंगाल में अवैध स्रोतों से जुटाई गई नकदी उड़ेल रही है, और चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त अधिकारी इसे रोकने के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं.
सिर्फ विधाननगर का मामला नहीं
विधाननगर त्वरित तबादले का गवाह बनने वाला अकेला कमिश्नरेट नहीं है. कोलकाता के उत्तर में स्थित बैरकपुर के पुलिस कमिश्नर सुनील चौधरी को तृणमूल कांग्रेस नेता दिनेश त्रिवेदी की भाजपा के अर्जुन सिंह के हाथों पराजय का दोषी मानते हुए तबादला कर दिया गया. पर उनकी जगह नियुक्त किए गए देवेंद्र प्रकाश सिंह महज एक ही दिन पद पर रह पाए, और उनकी जगह तन्मय रायचौधरी को लाया गया.
इसी तरह, तीन अन्य आईपीएस अधिकारियों अर्णव घोष, अनप्पा ई. और जॉय विश्वास की नई तैनातियों को दो दिनों के भीतर रद्द किए जाने के कदमों ने भी लोगों को चौंकाया है.
चुनाव संबंधी आदर्श आचार संहिता हटते ही आईपीएस की तरह आईएएस अधिकारियों की नियुक्ति और पुनर्नियुक्ति का दौर भी शुरू हो गया है. 26 मई के बाद से दार्जीलिंग, कलिमपोंग, पूर्वी बर्धमान, हुगली, मुर्शिदाबाद, उत्तर 24-परगना और दक्षिण 24-परगना के जिलाधिकारियों को हटाया जा चुका है.
जिन जिलों में भाजपा ने तृणमूल को पीछे छोड़ा है वहां के नए जिलाधिकारियों से अपेक्षा की जा रही है कि वे ठोस कार्यों से असंतुष्ट वर्गों का दिल जीतते हुए तृणमूल के वोटबैंक को दोबारा एकजुट कर सकेंगे. भाजपा की शिकायत पर चुनाव आयोग द्वारा हटाए गए बांकुड़ा के जिलाधिकारी उमाशंकर को अपेक्षानुरूप दोबारा बहाल कर दिया गया है.
अधिकारियों की खामोशी
तबादलों और पुनर्नियुक्तियों के अभूतपूर्व दौर पर प्रतिक्रिया के लिए दिप्रिंट ने जिन मौजूदा और सेवानिवृत अधिकारियों से संपर्क किया वे चुप्पी तोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. कोलकाता के पूर्व पुलिस कमिश्नर प्रसून मुखर्जी ने कहा, ‘ये सामान्य तो नहीं है, पर ये सरकार का विशेषाधिकार है.’
टेलीग्राफ अख़बार ने एक अनाम आईपीएस अधिकारी के हवाले को उद्धृत किया है: ‘इससे पहले ऐसा कभी देखने को नहीं मिला था. भगवान जाने एक या दो दिन में नियुक्ति पलटने के पीछे क्या तर्क हो सकता है. एक या दो पदों पर ऐसा होना संभव है. पर इतने सारे पदों के मामले में ऐसा कैसे हो सकता है?’
ममता बनर्जी ऐसा क्यों कर रही हैं?
पुलिस विभाग को बनर्जी खुद देखती हैं क्योंकि उन्होंने 2011 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही गृह विभाग अपने पास रखा है. इसलिए कोलकाता से सटे इलाकों में नियुक्ति-तबादले के इस विचित्र खेल को तृणमूल कांग्रेस के अभेद्य किले में भाजपा की सेंधमारी के बाद के उथल-पुथल भरे दौर में मुख्यमंत्री की भय और आशंका से ग्रस्त मनोदशा के संकेत के रूप में देखा जा रहा है.
राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि बेचैन और परेशान मुख्यमंत्री आईपीएस और आईएएस अधिकारियों की वफादारी को लेकर सशंकित हैं, और मुश्किल भरे मौजूदा दौर पर काबू रखने के उद्देश्य से वह पुलिस कमिश्नरों, पुलिस अधीक्षकों और जिलाधिकारियों को बारंबार इधर से उधर कर रही हैं.
मुख्यमंत्री के खुद के असुरक्षा भाव के अलावा विधाननगर, बैरकपुर और बंगाल के अन्य हिस्सों में प्रशासन में लगातार फेरबदल में बनर्जी तक पहुंच रखने वाले तृणमूल के स्थानीय प्रभावशाली नेताओं के गृह मंत्रालय पर दबाव की भूमिका भी मानी जा रही है.
फिर से बहाल नहीं किया गया एकमात्र अधिकारी
चुनाव आयोग द्वारा हटाए गए शीर्ष अधिकारियों में से जिस इकलौते अधिकारी को बनर्जी ने पुनर्बहाल करने इनकार कर दिया वो हैं- पूर्व गृह सचिव अत्रि भट्टाचार्य. इस 1989 बैच के आईएएस अधिकारी को मुख्यमंत्री का करीबी माना जाता रहा है. उन्हें कई अधिकारियों की वरीयता की अनदेखी कर 2017 में इस प्रमुख पद पर बिठाया गया था, पर चुनाव आयोग ने ‘चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप’ की वजह से उन्हें हटा दिया था.
इसलिए जब 28 मई को अचानक भट्टाचार्य की जगह अलापन बंधोपाध्याय को गृह सचिव बनाया गया तो राज्य के प्रशासनिक मुख्यालय नाबन्ना में विस्मय का भाव देखा गया. बंधोपाध्याय अब इसी साल सितंबर में मुख्य सचिव मलय डे की जगह लेने की दौड़ में सबसे आगे बताए जाते हैं.
दिप्रिंट को पता चला है कि भट्टाचार्य की पत्नी मौसमी सेनगुप्ता के फेसबुक पेज पर सरकारी पत्राचारों के उल्लेख से मुख्यमंत्री नाराज़ थीं. हालांकि खुद ‘जे अल्फ्रेड प्रूफ्रॉक’ नाम से फेसबुक पर सक्रिय भट्टाचार्य ने इससे संबंधित खबरों को ‘बकवास’ करार दिया है.
जिन पत्राचारों की बात की जा रही है उनमें से एक मुख्य चुनाव अधिकारी आरिज़ आफताब के नाम भट्टाचार्य का 13 मई का नोट, जिसे चुनाव आयोग ने आपत्तिजनक माना था, और भट्टाचार्य को हटाने के लिए मुख्य सचिव को चुनाव आयोग का 15 मई का निर्देश शामिल हैं.
नाबन्ना में उत्साहवर्द्धन
बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव के मुकाबले के लिए हौसला बढ़ाने हेतु बनर्जी ने सभी पुलिस अधीक्षकों और जिलाधिकारियों को 7 जून को नाबन्ना में एकत्रित होने को कहा है.
जब माकपा के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को राज्य सरकार के तत्कालीन मुख्यालय राइटर्स बिल्डिंग में संबोधित किया करते थे, तो उनका बस यही संदेश होता था कि अधिकारी संविधान और भारतीय दंड संहिता को गीता, क़ुरान और बाइबिल मानते हुए निडर होकर अपना काम करें.
इस शुक्रवार, हिंदू दक्षिणपंथ की अभूतपूर्व चुनौती – जिसे कम्युनिस्टों ने खत्म कर दिया था, पर जो अब बनर्जी को परेशान करने दोबारा उभर आया है – का सामना कर रहीं मुख्यमंत्री को अपने शीर्ष अधिकारियों को संबोधित करते देखना दिलचस्प होगा.
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