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Thursday, 10 October, 2024
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दत्ताजीराव गायकवाड़: हजारे के कौशल को टक्कर देने वाले बल्लेबाज

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नयी दिल्ली, 13 फरवरी (भाषा)  किस्मत के सहारे भारतीय कप्तान बने दत्ताजीराव गायकवाड़ कवर ड्राइव के साथ क्रिकेट के अन्य शॉट खेलने के मामले में विजय हजारे को टक्कर देते थे लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह अपनी प्रतिभा के साथ न्याय करने में विफल रहे।  बड़ौदा के इस बल्लेबाज को अपनी प्रतिभा के दम पर 11 से अधिक टेस्ट खेलने चाहिए थे।

दत्ताजीराव का मंगलवार को 95 वर्ष की आयु में उनके गृहनगर बड़ौदा में निधन हो गया। आंकड़ों के मुताबिक वह 2016 में दीपक शोधन की मृत्यु के बाद सबसे उम्रदराज जीवित भारतीय टेस्ट क्रिकेटर थे।

अपने शानदार कवर ड्राइव से 1950 के दशक की बॉम्बे ( अब मुंबई) की मजबूत टीम को परेशान करने वाले दत्ताजीराव का अंतरराष्ट्रीय करियर घरेलू क्रिकेट जितना परवान नहीं चढ़ा। उन्हें 1952 से 1961 तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वैसी सफलता नहीं मिली। 

उनके बेटे अंशुमान ने 1970 से 80 के दशक तक 40 टेस्ट खेले। अंशुमान का रक्षात्मक खेल अपने पिता से मजबूत था। 

देश की आजादी के बाद के पहले ढाई दशकों में हालांकि हर क्रिकेटर को हमेशा आंकड़ों के चश्मे से नहीं आंका जा सकता था।

टेस्ट में दत्ताजीराव का औसत 20 से कम का रहा लेकिन यह ऐसा समय था जब टीम को जीत से ज्यादा मैचों में हार का सामना करना पड़ता था। 

दत्ताजीराव ने 1959 के इंग्लैंड दौरे पर पांच टेस्ट मैचों में से चार में भारत की कप्तानी भी की थी। इस दौरे में टीम को पांचों मैच में शिकस्त का सामना करना पड़ा था।

उनके आलोचकों ने आरोप लगाया था कि दत्ताजीराव को भाई-भतीजावाद के कारण टीम की बागडोर सौंपी गयी थी। उन्हें वडोदरा के पूर्व महाराजा फतेहसिंह गायकवाड़ का करीबी माना जाता था, जो राष्ट्रीय टीम के प्रबंधक थे।

विजडन ने भी उनकी कप्तानी की शैली की आलोचना करते हुए लिखा था, ‘‘उनमें जज्बा और मजबूत व्यक्तित्व की कमी  दिखी’।

दत्ताजीराव ने एक साक्षात्कार में कहा था कि राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने के बाद वह अपने कमरे में भी टीम की जर्सी पहनते थे। 

उस समय दौरे पर जाने वाली टीमें चार या पांच टेस्ट के अलावा, कम से कम 25 से 30 प्रथम श्रेणी मैच भी खेलती थी। दत्ताजीराव ने काउंटी टीमों के खिलाफ काफी अच्छा प्रदर्शन किया था।

वह हालांकि फ्रेडी ट्रूमैन की गति, या एलेक बेडसर की स्विंग गेंदबाजी का डटकर सामना करने में विफल रहे थे।

उनका कवर ड्राइव हालांकि उस दौरे पर भी चर्चा का विषय था। उस पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ ब्रिटिश क्रिकेट लेखक क्रिस्टोफर मार्टिन-जेनकिंस ने उनके कवर ड्राइव को ‘शानदार’ करार दिया था।

घरेलू मैचों में जब वह बड़ौदा का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने कई यादगार पारियां खेली थी।

उनकी मौजूदगी में बड़ौदा ने 1957-58 में रणजी ट्रॉफी का पहला खिताब जीता था। वह टीम के सबसे अहम खिलाड़ियों में से एक थे। उन्होंने फाइनल में सेना के खिलाफ शतकीय पारी खेल टीम को चैंपियन बनाने में अपना योगदान दिया था।

उस दौर में हालांकि हजारे हमेशा दत्ताजीराव पर भारी पड़े।

 दत्ताजीराव ने उस रणजी फाइनल में शतक बनाया, तो हजारे ने दोहरा शतक जड़ दिया। दत्ताजीराव ने इससे पहले होलकर के खिलाफ सेमीफाइनल में भी मैच विजयी 145 रन बनाए।

दाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने 1952 में लीड्स में इंग्लैंड के खिलाफ पदार्पण किया और उनका अंतिम अंतरराष्ट्रीय मैच 1961 में चेन्नई में पाकिस्तान के खिलाफ था।

गायकवाड़ ने रणजी ट्रॉफी में 1947 से 1961 तक बड़ौदा का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 47.56 की औसत से 3139 रन बनाए, जिसमें 14 शतक शामिल थे।

उनका सर्वोच्च स्कोर 1959-60 सत्र में महाराष्ट्र के खिलाफ नाबाद 249 रन था।

रणजी सत्र (1958) शानदार प्रदर्शन करने के बाद दत्ताजीराव को भारत दौरे पर आयी वेस्टइंडीज की टीम के खिलाफ दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में खेले गये पांचवें टेस्ट में मौका मिला। उन्होंने इस मैच में वेस हॉल और रॉय गिलक्रिस्ट जैसे दिग्गज गेंदबाजों के सामने करियर की सर्वश्रेष्ठ 52 रन की पारी खेली।

यहां भी उन्हें हालांकि किस्मत का साथ नहीं मिला। इस मैच में चंदू बोर्डे ने 109 और 96 की पारियां खेली तो वहीं नारी कॉन्ट्रैक्टर, पॉली उमरीगर और पंकज रॉय का प्रदर्शन भी उन से बेहतर था जिससे लोग दत्ताजीराव के प्रयासों को याद नहीं करते है।

इस तथ्य को हालांकि कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर के रूप में अपने औसत करियर के बावजूद दत्ताजीराव ने अपना सब कुछ दिया।

भारतीय कप्तान के रूप में वह इतिहास का हिस्सा बने रहेंगे।

भाषा आनन्द पंत

पंत

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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