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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतकांग्रेस ने हमेशा पिछड़े, दलितों और गरीबों के लिए काम किया, राहुल गांधी की पदयात्रा इसका ताज़ा उदाहरण है

कांग्रेस ने हमेशा पिछड़े, दलितों और गरीबों के लिए काम किया, राहुल गांधी की पदयात्रा इसका ताज़ा उदाहरण है

कांग्रेस पार्टी के विरोधी जब कांग्रेस पर दलितों पिछड़ों आदिवासियों के हितों पर ध्यान नहीं देने का आरोप लगाते हैं तो वे इतिहास को भूल जाते हैं कि किन झंझावातों से कांग्रेस पार्टी जूझ रही थी.

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डीएस 4 यानि डेमाक्रेसी, सेक्यूलरिज्म, सोशल जस्टिस, सोशलिज्म, संघवाद (लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय, समाजवाद और संघवाद (फ़ेडरलिज़्म)) कांग्रेस पार्टी के डीएनए में रहा है जिस पर वह आज भी लगातार प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है. जातिगत जनगणना और संख्या के अनुपात में संसाधनों एवं अवसरों का वितरण पुरानी मांगें हैं. राहुल गांधी इन मुद्दों के साथ पूरे देश की यात्राएं-पदयात्राएं कर रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण का एक केंद्रीय विषय सामाजिक न्याय भी है.

वस्तुतः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने स्थापना काल से ही जाति, धर्म, क्षेत्र और लिंग आधारित भेदभाव के खिलाफ रही है. समता, बन्धुता, न्याय और मानवतावाद कांग्रेस के राष्ट्रवाद के आधार रहे हैं.

सामाजिक सुधारों के लिए कांग्रेस ने अपनी स्थापना के दो वर्षों के भीतर ही 1887 में अपना एक दूसरा संगठन- भारतीय राष्ट्रीय सामाजिक कॉन्फ्रेंस- बनाया. इस संगठन ने तमाम ज्वलन्त सामाजिक प्रश्नों को हल करने हेतु जनमत निर्माण का ऐतिहासिक कार्य किया. प्रतिवर्ष कांग्रेस के अधिवेशनों के अगले दिन उसी पंडाल और मंच पर सामाजिक कॉन्फ्रेंस होते थे जिनमें क्रांतिकारी सामाजिक विचारों को जमीन पर उतारने की योजनाएं बनती थीं.

1928 में आई ‘नेहरू रिपोर्ट’, जिसके अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू और सचिव जवाहरलाल नेहरू थे, में नागरिकता का आधार जाति, धर्म और लिंग से परे था. इसी में भारतीय जनता के सामाजिक अधिकारों का प्रावधान था. यह रिपोर्ट आगे चलकर भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण आधार बनती है.

1950 में स्वीकृत भारतीय संविधान कांग्रेस के सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक दर्शन का वैधानिक दस्तावेज बनता है. संविधान ने सैंकड़ों वर्षों से प्रचलित मनु के विधान के ख़िलाफ़ जातिगत भेदभाव, वर्णव्यवस्था, सामन्तवाद और लैंगिक भेदभाव का उन्मूलन किया. आज़ादी के बाद नेहरू सरकार ने दलितों, आदिवासियों के आरक्षण के माध्यम से विश्व की सबसे बड़े अफर्मेटिव एक्शन की शुरुआत की. आरक्षण ने वंचित तबकों के जीवन को किस क्रांतिकारी ढंग से बदला है, इसे अलग से कहने की आवश्यकता नहीं.

अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व करना कांग्रेस पार्टी का ऐतिहासिक दायित्व था. राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के लिए ज़रूरी था कि वर्ग जाति धर्म भाषा प्रांत आदि विभाजनों से ऊपर उठकर भारत के लोग एक साथ आयें. लेकिन कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व करते हुए आजादी के बाद देश का नवनिर्माण कैसे होगा इसकी तैयारी भी करना शुरू कर दिया था.

कांग्रेस बहुआयामी पार्टी रही है. एक ओर विदेशी दासता से मुक्ति दिलाना इसका मुख्य ध्येय था तो दूसरी ओर देश का नवनिर्माण भी करना था. राष्ट्रीय एकता और अखंडता की अगुवाई करने वाली पार्टी के रूप में कांग्रेस इस बात के लिए भी सजग थी कि भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों जातियों धर्मों प्रांतों के बीच विचारों की टकराहट इतनी नहीं बढ़ जाये कि यह राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन को पटरी से उतार दे.

कश्मीर से कन्याकुमारी, उत्तर पूर्व के अरुणाचल से उत्तर पश्चिम के बलूचिस्तान जो आज पाकिस्तान में है के बीच विविधताओं विभिन्नताओं विषमताओं विभाजनों के महासागर के बीच राष्ट्रीय भावना को उभारना और लोगों को आजादी की लड़ाई में उतारना एक असंभव सा लगने वाला काम था जिसको महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने कर दिखाया.

कांग्रेस पार्टी के समक्ष बाधाएं भी बहुत थीं. राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन की अगुवाई करते हुए इसके मार्ग में सबसे बड़ी बाधा पहुंचाने वाले थे हिन्दू और मुस्लिम कट्टरपंथी. ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने इन कट्टरपंथियों को खूब प्रोत्साहित किया और अंततः ये भारत का बंटवारा करने में कामयाब रहे. आजादी मिलने के बाद दुनिया भर के राजनीतिक पंडित भविष्यवाणी कर रहे थे कि इतनी विविधताओं विभिन्नताओं विषमताओं विभाजनों को भारत संभाल नहीं पाएगा और यह टुकड़ों में बंट जायेगा.

लेकिन नेहरू और पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने उनको ग़लत साबित कर दिया. आजादी के समय देश सैंकड़ों समस्याओं से जूझ रहा था किंतु नेहरू के प्रतिबद्ध और विजनरी नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने देश को एक ठोस लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी और संघीय आधार प्रदान किया. कांग्रेस पार्टी को यह स्वीकारने में कोई संकोच नहीं है कि सतत कठिन विशाल राजनीतिक चुनौतियों का सामना करते हुए, और ये अस्तित्व को प्रभावित करने वाली चुनौतियां थीं, पार्टी को जितना ध्यान जाति के सवाल पर देना चाहिए था उस पर नहीं दे सकी.

कांग्रेस पार्टी के विरोधी जब कांग्रेस पर दलितों पिछड़ों आदिवासियों के हितों पर ध्यान नहीं देने का आरोप लगाते हैं तो वे इतिहास को भूल जाते हैं कि किन झंझावातों से कांग्रेस पार्टी जूझ रही थी. वे ऐसा या तो अज्ञानता के कारण करते हैं या क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए करते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी ने सामाजिक न्याय के लिए कुछ नहीं किया है.

कांग्रेस ने किसी भी पार्टी से आगे बढ़कर सामाजिक न्याय के लिए काम किया है. कांग्रेस पर अभिजात मानसिकता का आरोप लगाने वाले जान बूझकर भूल जाते हैं कि कांग्रेस पार्टी गरीब गुरबों की पार्टी रही है. यही कारण है कि कांग्रेस हमेशा से सामंती जातिवादी पूंजीवादी मानसिकता वालों के निशाने पर रही है. आज भी यही पार्टी इन तत्वों के निशाने पर सबसे ज़्यादा है.

कांग्रेस अपने किए गए कार्यों का ढोल नहीं बजाती है. लेकिन अब समय आ गया है कि दुष्प्रचारों के कारण जनता में जो भ्रम व्याप्त हो गया है उसका निराकरण किया जाय. आइये देखते हैं कि इस पार्टी ने सामाजिक न्याय के लिए क्या किया है?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना जवाहर लाल नेहरू ने लिखा है. प्रस्तावना में भारत की जनता को तीन न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, न्याय सुनिश्चित करने का संकल्प किया गया है. नेहरू जी ने सामाजिक न्याय को आर्थिक और राजनीतिक न्याय से पहले रखा है. ये उस नेहरू की सोच थी जिन पर कांग्रेस पार्टी के विरोधी इलीट होने का आरोप लगाते थकते नहीं हैं.

हक़ीक़त यह है कि नेहरू जी ने अपनी उच्च शिक्षा का उपयोग पहले देश की आजादी और फिर गरीब गुरबों की जीवन स्थितियों में सुधार के लिए लगाया. उन्होंने फ़्रांस की क्रांति के आदर्श स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को प्रस्तावना में जगह दिया कि भारत के समाज को इन आदर्शों के अनुरूप बनाया जायेगा. इन तीनों तरह के न्याय और आदर्शों को किस रास्ते से सुनिश्चित किया जायेगा?

नेहरू प्रतीकों की राजनीति और लफ़्फ़ाज़ी नहीं करते थे कि तीन न्याय और तीन आदर्श की बात जनता को लुभाने और उनका वोट लेने के लिए कर दिया. उन्होंने प्रस्तावना में ही बताया कि इसे हासिल करने के तीन रास्ते होंगे : लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद. भारतीय संविधान की रचना प्रस्तावना में नेहरू द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों और आदर्शों के अनुरूप की गई.

2. संविधान सभा में डॉक्टर भीम राव अंबेडकर को लाने का निर्णय कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का था. संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉक्टर अंबेडकर ने सामाजिक परिवर्तन के लिए महान ऐतिहासिक कार्य किए. आज कांग्रेस पार्टी इस बात पर गर्व करती है कि उनके महान नेताओं ने राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर डॉक्टर अंबेडकर की प्रतिभा को सम्मान दिया और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में उनकी सेवा लेने में किसी अहम को सामने आने नहीं दिया.

3. अपने प्रधानमंत्रित्व काल में नेहरू जी ने एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी भारत की नींव रखी जिसे ख़त्म करने की पूरी कोशिश बीजेपी आरएसएस द्वारा की जा रही है.इस हेतु उन्होंने संसदीय जनतंत्र और पब्लिक सेक्टर की स्थापना किया और उसे मजबूत बनाया. इस संसदीय जनतंत्र के तहत दलितों पिछड़ों आदिवासियों और श्रमशील जनता ने अपनी पार्टियां बनाईं और सत्ता में अपनी दावेदारी प्रस्तुत किया. जैसे झारखंड मुक्ति मोर्चा, बहुजन समाज पार्टी, डीएमके, राजद, सपा, वामपंथी पार्टियाँ आदि. पब्लिक सेक्टर में लाखों की संख्या में दलितों पिछड़ों आदिवासियों को नौकरी मिली, उनकी आर्थिक सामाजिक स्थिति बेहतर हुई, उनके भीतर शिक्षित मध्यम वर्ग तैयार हुआ. यही शिक्षित मध्यम वर्ग इन पार्टियों की चालक शक्तियां हैं.

4. जवाहरलाल नेहरू ने प्रथम संविधान संशोधन के द्वारा ज़मींदारी उन्मूलन क़ानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाला जिससे इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सके. दलितों पिछड़ों और आदिवासियों के लिए सामाजिक न्याय को लाने में ज़मींदारी उन्मूलन क़ानून की बड़ी देन रही है. साथ ही ओबीसी आरक्षण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए संविधान में आर्टिकल 15(4) का समावेश किया. इसी आर्टिकल 15(4) के तहत काका कालेलकर और बीपी मंडल की अध्यक्षता में प्रथम और द्वितीय राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना हुई.

5. जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस पार्टी और सरकार की दिशा शोषित वंचित वर्गों की ओर मोड़ने के लिए पिछड़ी जाति के के कामराज को कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाया. ये वही कामराज हैं जिन्होंने तमिलनाडु का मुख्य मंत्री रहते हुए सैंकड़ों स्कूल कॉलेज खोले थे और स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए मिड डे मिल योजना की शुरुआत की थी. के कामराज की देन थी कि पूंजीवाद परस्त लोगों की उपेक्षा करके उन्होंने इंदिरा गांधी को प्रधान मंत्री बनवाया जिन्होंने प्रिवि पर्स की समाप्ति और बैंकों का राष्ट्रीयकरण जैसे समाजवादी नीतियों को लागू किया. बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने से पिछड़े वर्गों के लाखों लोगों को नौकरियां मिलीं.

6. बिहार में पिछड़ों के लिए आरक्षण हेतु मुंगेर लाल आयोग की स्थापना 1972 में कांग्रेस की दारोगा राय की सरकार ने किया था. इसकी रिपोर्ट 1976 में आयी जिसको कर्पूरी ठाकुर जी की सरकार ने 1978 में लागू करने की घोषणा किया जिस पर आज की भाजपा जो तब जनसंघ कहलाती थी ने सरकार गिरा दिया.बिहार में कांग्रेस की जो अगली सरकार बनी उसने बिहार में पिछड़ों अति पिछड़ों के आरक्षण को लागू किया.

7. राजीव गांधी की सरकार ने देश के पिछड़े ग्रामीण इलाक़ों में उच्च गुणवत्ता वाले नवोदय विद्यालय खोले जिससे लाखों किसान दलित पिछड़े आदिवासी समाज के बच्चे पढ़कर निकले हैं. राजीव गांधी की सरकार ने ही दलितों आदिवासियों के उत्पीड़न के ख़िलाफ़ क़ानून बनाये थे जिसको कमजोर बनाने की मोदी सरकार की कोशिशों का जब दलित आदिवासी युवाओं ने जमकर विरोध किया तो वापस लेना पड़ा.

8. कांग्रेस पार्टी की मनमोहन सिंह की सरकार में शिक्षा मंत्री अर्जुन सिंह ने उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी आरक्षण लागू किया. बड़ी संख्या में पिछड़े अति पिछड़े छात्र छात्रायें आईआईटी एम्स केंद्रीय विवि आईआईएम एनआईटी आदि से पढ़ाई करके विगत पंद्रह सालों में निकले हैं और अभी पढ़ रहे हैं.इससे पिछड़े अति पिछड़ समाज में एक शिक्षित मध्यम वर्ग तैयार हुआ है जो आज सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा है.

9. जब कि पूरे देश में पचास प्रतिशत आरक्षण की सीमा बनी हुई थी तो तमिलनाडु की सरकार ने इसको बढ़ाकर उनहत्तर प्रतिशत करने का प्रस्ताव पारित किया. इस प्रावधान को क़ानूनी चुनौती नहीं दी जा सके इसके लिए कांग्रेस पार्टी की नरसिम्हा राव की सरकार ने तमिलनाडु सरकार के अनुरोध पर संविधान की नौवीं अनुसूची में डलवाया.

10. सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा काम कांग्रेस पार्टी ने तब किया जब इसकी मनमोहन सिंह की सरकार ने भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, ज़मीन का अधिकार, जंगल का अधिकार, मनरेगा, सूचना का अधिकार आदि क़ानून पास करवाया. ये क़ानून आदिवासी दलित पिछड़ी अति पिछड़ी आबादी को सामाजिक शोषण और ग़रीबी के दलदल से निकालने के लिए लाये गये. इन क़ानूनों की मदद से लगभग बीस करोड़ शोषित वंचित समाज के लोग ग़रीबी रेखा से ऊपर उठे.

11.कांग्रेस पार्टी ने सामाजिक न्याय पर साल 2023 में रायपुर में हुए सम्मेलन में एक सामाजिक न्याय प्रस्ताव पारित किया है जिसमें 46 बिन्दु हैं.

इसी प्रस्ताव के अनुरूप राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी लगातार जाति जनगणना और सामाजिक न्याय के पक्ष में जन जागरण अभियान चला रहे हैं. आज देश की सामंती पूँजीवादी मनुवादी ताक़तें और उनकी गोदी मीडिया जी भर भर के नेहरू जी, कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को गालियाँ देते हैं. उसका कारण यही है कि नेहरू जी ने इन ताकतों को कमजोर करने के लिए धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, लोकतंत्र की नींव रखी ताकि शोषित वंचित दलित पिछड़े वर्गों को सामाजिक न्याय हासिल हो सके. उनके इसी काम को राहुल गांधी आज आगे बढ़ा रहे हैं.

(डॉ चंदन यादव अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव हैं.)


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