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Saturday, 23 November, 2024
होमदेश‘सरकार हमें भूल गई’, खुले में शौच नहीं करने के सपने को साकार करने वाले UP के स्वच्छाग्रहियों की ‘वेतन की गुहार’

‘सरकार हमें भूल गई’, खुले में शौच नहीं करने के सपने को साकार करने वाले UP के स्वच्छाग्रहियों की ‘वेतन की गुहार’

स्वच्छाग्रही 10,000 रुपये के वादे के साथ प्रतिदिन 250 रुपये मुआवजे की मांग कर रहे हैं. सीएम योगी ने पिछले साल न्यूनतम वेतन का वादा किया था, लेकिन ऐसा लगता है कि इसे पूरा किया जाना बाकी है.

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लखनऊ: ‘खुले शौच से मुक्त किया है हमने हिंदुस्तान,
अब हमारी कही अपेक्षा सुन लो धर के ध्यान,
अरे ओ योगी बाबा, कहो यूपी में क्या बा!’

तीन हफ्ते से अधिक समय बीत गया है, जब उत्तर प्रदेश में मोदी सरकार के प्रिय प्रोजेक्ट स्वच्छ भारत मिशन के पैदल सैनिक, स्वच्छाग्रही, 2019 से अवैतनिक बकाया राशि को लेकर लखनऊ के इको पार्क में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण स्वच्छाग्रही कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रामशंकर तिवारी, जिनका आरोप है कि स्वच्छाग्रहियों को 2019 से वेतन नहीं दिया गया है, ने कहा, “हमें स्वच्छ भारत मिशन के लिए काम करने के लिए सुबह जल्दी बुलाया जाता है और हम देर रात तक मिशन के लिए काम करते हैं, लेकिन जब हमारे मुआवजे, हमारे अधिकारों, हमारे सम्मान की बात आती है, तो सरकार ने हमें नज़रअंदाज कर दिया है.”

ऐसा उत्तर प्रदेश प्रशासन को इन शिकायतों के बारे में अच्छी तरह से पता होने के बावजूद है, जैसा कि पिछले साल स्वच्छता दिवस (1 अक्टूबर) पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के न्यूनतम वेतन के वादे में देखा गया था. उन्होंने कहा था, “हमने राज्य में स्वच्छाग्रहियों के वेतन और मुआवजे की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है. मैं यहां आपको आश्वस्त करने आया हूं कि हम जल्द ही इस मुद्दे को सुलझा लेंगे.”

तिवारी ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें उत्तर प्रदेश के 45 जिलों के 8,000 से अधिक स्वच्छाग्रहियों का समर्थन प्राप्त है और लगभग 500 लोग बारी-बारी से लखनऊ में विरोध प्रदर्शन में उनके साथ शामिल हुए हैं.

स्वच्छाग्रही प्रति खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) गांव के लिए 250 रुपये प्रतिदिन के मुआवजे के साथ-साथ 10,000 रुपये के बोनस की मांग कर रहे हैं. मुआवजा केंद्र के पेयजल और स्वच्छता विभाग के 2018 और 2021 के दिशानिर्देशों से अलग है, जिसमें लक्ष्य-आधारित प्रोत्साहन निर्धारित किया गया था. दिशानिर्देशों में कहा गया है कि जब भी गांवों को ओडीएफ घोषित किया जाएगा, तो स्वच्छाग्रहियों के लिए बोनस सुनिश्चित करना हर राज्य के लिए अनिवार्य होगा.

ओडीएफ सतत गतिविधियों को सुनिश्चित करने के लिए वे प्रति गांव 200 रुपये और गांव में आने वाले नए परिवारों के लिए शौचालय निर्माण के लिए 25 रुपये के पात्र हैं.

दिप्रिंट द्वारा प्राप्त 11 दिसंबर 2021 के एक पत्र में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के निदेशक ने जिला मजिस्ट्रेटों को स्वच्छाग्रहियों को प्रति शौचालय निर्माण के लिए 150 रुपये का मुआवजा और साथ ही प्रति ओडीएफ गांव पर 10,000 रुपये का बोनस जारी करने का निर्देश दिया था.

स्वच्छताग्रहियों का आरोप है कि मुआवजा कभी नहीं मिला और अब उनके पास धरना देने के अलावा कोई चारा नहीं है.

प्रदर्शनकारी, जिन्हें शाम ढलते ही इको पार्क छोड़ना पड़ता है, फुटपाथ और रेलवे स्टेशन पर सोते हैं. औरैया की स्वच्छाग्रही मालती देवी ने कहा, “धर्मशालाओं और आश्रय घरों में हर रात 20 रुपये लगते हैं, मेरे पास धर्मशालाओं के लिए पैसे देने और नाश्ता खरीदने के लिए इतने पैसे नहीं हैं. इसलिए मैं फुटपाथ पर सो रही हूं. मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है.”

19 जनवरी को स्वच्छाग्रहियों, जिनमें सभी महिलाएं थीं, ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के सामने प्रदर्शन करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें वापस इको गार्डन में लाया गया.

तिवारी का कहना है कि 3 जनवरी को उनका विरोध शुरू होने के बाद से उत्तर प्रदेश प्रशासन का कोई भी प्रतिनिधि उनसे मिलने नहीं आया है.

योगी द्वारा वादा की गई समिति की स्थिति और स्वच्छाग्रहियों की मांग पर प्रशासन की प्रतिक्रिया के बारे में जानकारी के लिए दिप्रिंट ने व्हाट्सएप के जरिए से पंचायती राज सचिव बी, चंद्रलेखा से संपर्क किया. जवाब आने के बाद रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.


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स्वच्छाग्रहियों की भूमिका

शौचालयों के निर्माण से लेकर उनके ठीक से चलने को सुनिश्चित करने, लोगों की आदतों को बदलने और उन्हें शौचालयों का उपयोग करने का तरीका सिखाने तक, स्वच्छाग्रही ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ता थे, जिन्होंने देश में मौन क्रांति के तहत स्वच्छता लाने की कोशिश करते समय उपहास, अपमान, अलगाव और यहां तक कि हिंसा का भी सामना किया है.

मिशन की शुरुआत में विभिन्न गांवों के इन गुमनाम नायकों को अपने समुदायों में आदतन बदलाव लाने के लिए यूनिसेफ ने ट्रेनिंग दी. वे सुबह 4 बजे उठते और गले में सीटी लटकाकर गांवों में घूमना शुरू कर देते थे और लोगों को खुले में शौच करने से हतोत्साहित करते थे.

मालती देवी कहती हैं, “मैं लोगों के घरों में जाती थी और महिलाओं को बताती थी कि खुले में शौच करने से उन्हें शर्म आती है. उन्हें अपनी गरिमा की खातिर ऐसा नहीं करना चाहिए. जब शौचालय का उपयोग करने की बात आती है तो मैं जाऊंगी ही. लोग मुझे गालियां देते थे, मारने की धमकी देते थे, मैंने वह सब सहा.”

अन्य स्वयंसेवक भी स्वच्छ भारत मिशन के शुरुआती दिनों में कठिनाइयों का सामना करने की बात करते हैं.

सुल्तानपुर जिले के अनिल “मिशन के शुरुआती दिनों में जब हम लोगों को खुले में शौच करने से रोकने के लिए सुबह के समय खेतों में जाते थे तो गांव वाले हमें भगा देते थे. हमारे कुछ भाई-बहनों को पीटा भी गया है. उत्तर प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त बनाना सुनिश्चित करने के लिए हमने यह सारी हिंसा झेली. हमें हमारा उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए.”

इतना ही नहीं था. इन स्वच्छताग्रहियों ने स्वच्छता और साफ-सफाई का संदेश देने के लिए नुक्कड़ नाटक किए, गीत लिखें और नृत्य किए. कुमार ने कहा, “यहां हमारे भाई-बहनों ने अपने हाथों से मानव मल उठाया है और उसे कूड़ेदान में फेंका है. एक समय था जब मैदान में टहलने से पैंट मल से गंदी हो जाती थी. अब यह सब साफ है, लेकिन जब मुआवज़ा देने की बात आई तो सरकार हमें भूल गई.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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