इस बात पर आम सहमति बनती दिख रही है कि खासकर अयोध्या के मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद — 2024 का लोकसभा चुनाव अब लगभग तय हो चुका है और इंडिया के घटक दलों, विपक्षी गठबंधन से अधिक आश्वस्त कोई नहीं दिख रहा है. उनकी गतिविधियों और घोषणाओं को देखिए. वो आपको पूर्व राजनयिक रोनेन सेन की “बिना सिर वाली मुर्गियों” की याद दिलाएंगे — भ्रमित और घबराई हुईं. उन्होंने इसे ‘राजनीतिक कार्यक्रम’ बताते हुए समारोह का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया, लेकिन वे सोमवार को मंदिरों और मठों का दौरा कर रहे थे.
भोपाल में कांग्रेस कार्यालय के बाहर एक बड़े होर्डिंग में भगवान राम की तस्वीर के साथ-साथ कांग्रेस नेताओं की छोटी तस्वीरें भी थीं. इसमें लिखा था: राजीव गांधी का सपना हुआ साकार, राम मंदिर ने लिया आकार. कांग्रेस के नेतृत्व वाली हिमाचल प्रदेश सरकार ने रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का जश्न मनाने के लिए सार्वजनिक अवकाश घोषित किया. कई अन्य दलों के नेताओं ने भी जल्द अयोध्या जाने की योजना की घोषणा की है.
इस घबराहट और विश्वास के संकट के मूल में धारणा है कि राम लला की प्राण प्रतिष्ठा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अजेय बना दिया है और हिंदू वोटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दावा और मज़बूत कर दिया है, लेकिन ये कितना सही है? भारत में प्यू रिसर्च सेंटर (पीआरसी) के धर्म सर्वे हमें क्या बताते हैं. नवंबर 2019 से मार्च 2020 के बीच किया गया यह सर्वे उन लोगों की मानसिकता की जानकारी देता है जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट दिया था. आइए 29,999 वयस्कों से आमने-सामने की बातचीत पर आधारित सर्वे के इन निष्कर्षों पर नज़र डालें.
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हिंदू-हिंदी बीजेपी वोटर्स
क्या “सच्चा भारतीय” होने के लिए आपका हिंदू होना ज़रूरी है? 39 करोड़ से अधिक हिंदुओं — 2011 की जनगणना के अनुसार अनुमानित 61.5 करोड़ हिंदू वयस्क आबादी में से लगभग 64 प्रतिशत — का जवाब ‘हां’ था.
39 करोड़ हिंदुओं में से 80 प्रतिशत (31.5 करोड़) ने कहा कि “सच्चा भारतीय” होने के लिए हिंदी बोलना बहुत ज़रूरी है. सर्वेक्षण के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों में, 60 प्रतिशत (18.91 करोड़) हिंदू मतदाता, जो मानते थे कि एक “सच्चा भारतीय” होने के लिए हिंदू होना और हिंदी बोलना बहुत ज़रूरी है, ने भाजपा को वोट दिया. पीआरसी सर्वेक्षण के निष्कर्षों को संक्षेप में देखते हुए, अनुमान लगाया जा सकता है कि 2019 में भाजपा को वोट देने वाले 23 करोड़ लोगों में से लगभग 20 करोड़ हिंदू थे जिनका मानना था कि हिंदू होना और हिंदी बोलना “सच्चा भारतीय” होने का मानदंड है.
ध्यान रखें, 20 करोड़ का आंकड़ा सिर्फ मतदाताओं से नहीं बल्कि 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल वयस्क आबादी से हिंदू-हिंदी-सच्चे-भारतीय मतदाताओं को निकालकर निकाला गया है. सर्वेक्षण के निष्कर्ष केवल इस तथ्य को दिखलाता है कि हिंदू-हिंदी विश्वासी भाजपा के समर्थन आधार का मूल हिस्सा हैं.
सर्वेक्षण ने कुछ अन्य संकेत दिए हैं जिनसे हमें अयोध्या घटनाक्रम के संभावित राजनीतिक और चुनावी प्रभाव का आकलन करने में मदद मिलेगी:
- सर्वेक्षण में सभी भारतीय हिंदुओं से पूछा गया कि वे किस भगवान के सबसे करीब हैं. जवाबों में आया कि 44 फीसदी लोग शिव के सबसे करीब हैं, 35 फीसदी हनुमान के, 32 फीसदी गणेश के, 28 फीसदी लक्ष्मी के, 21 फीसदी कृष्ण के, 20 फीसदी काली के और 17 फीसदी राम के सबसे करीब हैं. राम के प्रति करीबी भी मध्य क्षेत्र में 27 प्रतिशत मजबूत हैं, जबकि उत्तर में यह 20 प्रतिशत, पूर्व में 15 प्रतिशत, पश्चिम में 12 प्रतिशत, दक्षिण में 13 प्रतिशत और पूर्वोत्तर में 5 फीसदी है.
2. अधिकांश भारतीय हिंदू (84 प्रतिशत) धर्म को अपने जीवन में बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं. क्षेत्र-वार, ऐसे लोगों का सबसे कम प्रतिशत — 69 प्रतिशत — दक्षिण में है.
3. 59 प्रतिशत हिंदू हर रोज़ प्रार्थना करते हैं. दक्षिण में यह आंकड़ा 37 प्रतिशत है.
4. राष्ट्रीय पहचान को धर्म और भाषा दोनों से जोड़ने वाले हिंदू भाजपा मतदाताओं में से 95 प्रतिशत लोग धर्म को अपने जीवन में महत्वपूर्ण मानते हैं और उनमें से 73 प्रतिशत लोग हर रोज़ प्रार्थना करते हैं. अन्य हिंदू मतदाताओं में 80 प्रतिशत धर्म को अपने जीवन में ज़रूरी मानते हैं और उनमें से 53 प्रतिशत रोज़ाना प्रार्थना करते हैं.
5. 45 प्रतिशत हिंदुओं को अन्य सभी धर्मों-मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन-के पड़ोसी होने से कोई आपत्ति नहीं है. हालांकि, एक समान हिस्सा (45 प्रतिशत) इनमें से कम से कम एक वर्ग को स्वीकार करने को तैयार नहीं है.
6. 36 प्रतिशत हिंदू किसी मुस्लिम को अपना पड़ोसी नहीं चाहते.
7. भारतीय वयस्कों में 53 प्रतिशत (52 प्रतिशत हिंदू) मानते हैं कि धार्मिक विविधता से देश को लाभ होता है, जहां 24 प्रतिशत लोग इसे देश को नुकसान पहुंचाने वाला मानते हैं, वहीं अन्य 24 प्रतिशत की कोई राय नहीं है.
पीआरसी के निष्कर्षों के अनुसार, भारतीय धार्मिक सहिष्णुता के प्रति उत्साही हैं और साथ ही विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए अलग-अलग क्षेत्रों को पसंद करते हैं. सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया है, “ये दोनों भावनाएं विरोधाभासी लग सकती हैं, लेकिन कई भारतीयों के लिए, ऐसा नहीं हैं.”
इसी तरह, जिन हिंदुओं ने पीआरसी सर्वेक्षणकर्ताओं को बताया कि हिंदू महिलाओं के अंतर-धार्मिक विवाह को रोकना बहुत महत्वपूर्ण है, उनमें से 82 प्रतिशत ने कहा कि अन्य धर्मों का सम्मान करना हिंदू पहचान का महत्वपूर्ण पहलू है. ये भावनाएं भी उतनी ही विरोधाभासी हैं.
इन्हीं विरोधाभासों में विपक्षी दलों की दुविधा बसी है. अगर 36 प्रतिशत हिंदू किसी मुस्लिम को अपना पड़ोसी नहीं बनाना चाहते और 45 प्रतिशत किसी अन्य धर्म के व्यक्ति को अपना पड़ोसी नहीं चाहते, तो वे विपक्षी दलों की धर्मनिरपेक्षता पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे? अगर केवल 53 प्रतिशत नागरिक मानते हैं कि धार्मिक विविधता भारत के लिए अच्छी है, तो विविधता और बहुलवाद पर विपक्ष का जोर उनके साथ कैसे चलेगा? अगर 84 प्रतिशत हिंदुओं और यहां तक कि 80 प्रतिशत गैर-भाजपा मतदाताओं के जीवन में धर्म इतना महत्वपूर्ण है, तो भाजपा द्वारा राजनीति को धर्म के साथ मिलाने के बारे में विपक्षी नेताओं का तर्क कितना प्रभावी होगा?
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क्षेत्रवार, विरोधाभास
विपक्ष इस निष्कर्ष से धीरज धर सकता है कि 2019 के आम चुनावों में मतदान करने वालों में से 10 में से केवल 3 हिंदू-हिंदी-“सच्चे भारतीय” भाजपा के मतदाता थे. यह भाजपा की भौगोलिक सीमाओं का संकेत हो सकता है. हालांकि, उन्हें इस बात से चिंतित होना चाहिए कि भारत में 64 प्रतिशत हिंदू “सच्चे भारतीय” होने के लिए “हिंदू होने” को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं, भले ही क्षेत्रीय विभाजन अलग-अलग क्यों न हो. उत्तर में वे 69 प्रतिशत हैं; मध्य भारत में 83 प्रतिशत; पूर्व में 65 प्रतिशत; पश्चिम में 61 प्रतिशत; दक्षिण में 42 प्रतिशत और पूर्वोत्तर में 39 प्रतिशत हैं.
गौर कीजिएगा, सर्वे लगभग चार साल पहले किया गया था. सोमवार को बहुप्रचारित प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद इन प्रतिशतों में बढ़ोतरी होने की संभावना है. सर्वे के निष्कर्षों से पता चलता है कि विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस को उत्तरी, मध्य और पश्चिमी भारत में भाजपा से मुकाबला करना इतना मुश्किल क्यों लगता है. यह देखते हुए कि कैसे भाजपा ने दक्षिण में राम मंदिर का उत्साह फैलाने की कोशिश की — मोदी ने दक्षिणी राज्यों में भगवान राम से जुड़े मंदिरों का दौरा किया — विपक्ष को दक्षिण में मिलने वाली चुनौती के लिए बेहतर तैयारी करनी होगी.
जब तक विपक्षी दल पीआरसी निष्कर्षों में बताए गए हिंदुओं के विरोधाभासों को समझ नहीं लेते, तब तक वे हर बार भाजपा द्वारा एक और विस्तार-राजनीतिक या वैचारिक-परियोजना शुरू करने पर एक मंदिर से दूसरे मंदिर की ओर भागते रहेंगे. सोमवार को अयोध्या से मोदी के “देव से देश और राम से राष्ट्र” संदेश की उस देश में बड़ी अपील होने की संभावना है, जहां 64 प्रतिशत हिंदू सोचते हैं कि “सच्चा भारतीय” होने के लिए हिंदू होना बहुत ज़रूरी है. विपक्षी नेता केवल यह आशा कर सकते हैं कि ये सभी मोदी लहर की भावनाएं हैं, जो उनके सत्ता से हटने के बाद शांत हो जाएंगी.
(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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