नई दिल्ली: 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के डेमोलिशन में कल्याण सिंह की भूमिका के बारे में आम धारणा के विपरीत, उत्तर प्रदेश सरकार में तत्कालीन आईएएस अधिकारी अनिल स्वरूप ने रविवार को कहा कि विध्वंस की खबर सुनने के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री “स्तब्ध” थे.
स्वरूप का दावा है कि उस समय सिंह के साथ वह अकेले मौजूद थे. “कल्याण सिंह की मनोदशा” के दावे का समर्थन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता स्वपन दास गुप्ता, जो उस समय पत्रकार थे, ने किया था, जिन्होंने डेमोलिशन से एक दिन पहले सिंह से मुलाकात की थी.
स्वरूप ने अपनी तीसरी पुस्तक ‘एनकाउंटर विद पॉलिटिशियंस’ के लॉन्च पर बोलते हुए कहा कि रविवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में गुप्ता, पुडुचेरी की पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल किरण बेदी और पूर्व आईएएस अधिकारी संदीप चोपड़ा भी शामिल हुए. यह पुस्तक राजनेताओं के साथ उनके “प्रत्यक्ष” अनुभवों पर आधारित है.
लॉन्च पर बोलते हुए, भाजपा सरकार में सूचना और जनसंपर्क के तत्कालीन निदेशक स्वरूप ने कहा, “6 दिसंबर को जो हुआ उसके बारे में मेरा दृष्टिकोण बिल्कुल अलग है. उस दिन कल्याण सिंह के साथ मैं अकेला व्यक्ति था. जब मैं उनके घर में गया, चूंकि सभी लोग अयोध्या में थे, मैंने पहली बार उन्हें अकेले बैठे देखा. वह थोड़ा परेशान दिख रहे थे.”
बाबरी मस्जिद विध्वंस की खबर आने से पहले दोनों के बीच “सामान्य बातचीत” हुई थी. स्वरूप ने कहा, “मैंने उन्हें इतना हैरीन-परेशान कभी नहीं देखा था. आम धारणा के विपरीत, वह स्तब्ध थे.”
मोदी सरकार के तहत पूर्व कोयला सचिव स्वरूप ने कहा कि सिंह ने लालकृष्ण आडवाणी से बात की और “बातचीत अविश्वसनीय थी”.
हालांकि उन्होंने आडवाणी के साथ बातचीत का जिक्र नहीं किया, लेकिन उन्होंने वरिष्ठ भाजपा नेता भैरों सिंह शेखावत के साथ सिंह की बातचीत के बारे में विस्तार से बताया.
कल्याण सिंह ‘थोड़े आशावादी’ थे
स्वरूप के अनुसार, कल्याण सिंह उस स्थान पर इतने सारे लोगों के जमा होने के खिलाफ थे, जिसे उस समय “कारसेवा” कहा जाता था.
शेखावत के साथ सिंह की बातचीत के बारे में स्वरूप ने कहा, ”मैं वहां कमरे में बैठा था. मैंने आप लोगों से कहा था कि इतने लोगों को इकट्ठा मत करो. मैं अपने तरीके से इस प्रकरण का समाधान निकाल रहा था. आप अगर मुझे समय देते तो इसका समाधान निकल जाता.”
गुप्ता के मुताबिक, स्वरूप 6 दिसंबर को कल्याण सिंह की मनोदशा के बारे में जानते थे. “एक दिन पहले मेरी कल्याण सिंह से मुलाकात हुई थी. मेरी उनसे लंबी बातचीत हुई…अनिल (स्वरूप) ने जो निष्कर्ष निकाला है, वह सही है.”
गुप्ता के आकलन के अनुसार, कल्याण सिंह इस विश्वास में “थोड़े आशावादी” थे कि उनकी प्रेरक शक्तियां राम जन्मभूमि आंदोलन को उस दिशा में ले जाने के लिए पर्याप्त होंगी जो आवश्यक रूप से बड़े पैमाने पर लामबंदी को शामिल किए बिना उनके लिए “अनुकूल” होगी.
स्वरूप ने कहा कि सिंह सुप्रीम कोर्ट के समान समाधान की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. “…सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला वही था जो कल्याण सिंह करना चाह रहे थे. मस्जिद के लिए कहीं और जगह ले लो और जहां रामलला का जन्म हुआ था, वहां मंदिर बनवाओ.”
यह दावा करते हुए कि उन्हें अल्पसंख्यक समुदायों के साथ हुई कुछ चर्चाओं की जानकारी थी, स्वरूप ने दावा किया कि सिंह उन्हें बताते थे, “मैं आपको एक बहुत भव्य मस्जिद के लिए जगह दूंगा. आप मेरी आस्था का थोड़ा ख्याल रखें.”
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