नई दिल्ली: चीन में दिखावे वाली अपनी पहली राजकीय-यात्रा पूरी करके अपनी मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने भारत के साथ संबंधों में आई खटास का जायज़ा लेने के लिए माले लौट आए.
मुइज़ू द्वारा भारतीय सैनिकों को उनका देश छोड़ने की मांग की जा रही है और उनकी सरकार द्वारा उस एग्रीमेंट को रिन्यू नहीं किया जा रहा है जिसके आधार पर भारतीय सैनिक मालदीव के जलीय क्षेत्र में हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण कर सकते थे. इसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है. लेकिन पिछले छह दिनों में, नदी में काफी पानी बह चुका है. अब सवाल यह है कि क्या मुइज़ू स्थिति को फिर से सामान्य करने की कोई कोशिश करेंगे या कि इसे ज्यों की त्यों रहने देंगे?
हालिया विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब मुइज़ु कैबिनेट के तीन मंत्रियों द्वारा बड़े पैमाने पर पीएम मोदी और भारतीयों के ऊपर कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं. इसमें काफी गिरा हुआ वह था जिसमें भारतीयों को गौमूत्र पीने वाला बताया गया था, लेकिन जब भारतीयों ने सोशल मीडिया पर मालदीव का पर्यटन स्थल के रूप में बहिष्कार किए जाने जैसा कमेंट करना शुरू कर दिया तो माले ने अपने मंत्रियों की टिप्पणियों से दूरी बनाते हुए उन्हें निलंबित कर दिया.
ईवा अब्दुल्ला जैसे मालदीव के कुछ सांसदों ने भारत के प्रति एक औपचारिक माफी जारी करने का सुझाव दिया, और पूर्व उपराष्ट्रपति अहमद अदीब ने मुझे एक साक्षात्कार में बताया कि अगर मुइज़ू ने मोदी को फोन कर दिया होता, तो इन सभी से बचा जा सकता था.
लेकिन यह एक कल्पनामात्र है.
लेकिन मुइज़ू की नवीनतम यात्रा यदि कोई संकेत मिलता है तो वह यह है कि वह पूरी तरह से चीन के खेमें में शामिल हैं. उन्होंने चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की प्रशंसा की, जो कि भारत के लिए काफी छोटी बात है, और बीजिंग को अपने यहां सर्वाधिक टूरिस्ट भेजने वाले देश के रूप में पहला स्थान पाने की अपील की. (पिछले साल, मालदीव जाने वाले 2 लाख पर्यटकों के साथ भारत का पहला स्थान था).
निश्चित रूप से, मुइज़ू और मोदी ने पिछले महीने दुबई में COP28 के मौके पर एक बैठक की थी, लेकिन उसी कार्यक्रम में चीन के पहले उपप्रधानमंत्री डिंग ज़्युजियांग के साथ उनकी बातचीत ज्यादा गर्मजोशी से भरी थी. इसके तुरंत बाद राष्ट्रपति के कार्यालय से एक बयान जारी किया गया जिसमें कहा गया था कि मुइज़ू के नेतृत्व में चीन और मालदीव के बीच संबंध “बेहतर” होंगे.
अक्षय कुमार जैसी बॉलीवुड हस्तियों के इस विवाद में कूदने के बाद सोशल मीडिया पर हैशटैग #boycottmaldives ट्रेंड करने लगा, भारतीय ट्रैवल एजेंसियों ने माले के लिए उड़ानें रद्द कर दीं और भारतीय समाचार आउटलेट्स द्वारा मुइज़ू की चीन की यात्रा के हर पहलू को कवर किया जाना इसे न्यूज़ मेकर ऑफ द वीक बनाता है.
राजनयिक कोशिश की कम होती गुंजाइश
पद संभालने के बाद से चीन को अपनी पहली आधिकारिक विदेशी यात्रा के रूप में चुनकर, मुइज़ू ने तुरंत अपने पहले राष्ट्रपतियों से खुद को अलग कर दिया, जिनमें से अधिकांश ने अपनी पहली यात्रा के लिए भारत को चुना था. यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन, जिन्हें चीन समर्थक माना जाता था और जिन्होंने नई दिल्ली के साथ तमाम रक्षा सौदों को भी बंद कर दिया, उन्होंने भी 2013 में अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए भारत को ही चुना था.
यहां तक कि, रिपोर्टों से पता चलता है कि मुइज़ू की सरकार ने भारत की एक प्रस्तावित यात्रा पर तारीखों के लिए नवंबर में नई दिल्ली से संपर्क किया था. पर क्या नई दिल्ली ने इस पर चुप्पी साधे रखी?
यहां तक कि अगर ऐसा किया गया, तो कोई यह तर्क दे सकता है कि पहले से ही मुइज़ू के शपथ ग्रहण समारोह में के दौरान ही एक लक्ष्मण रेखा खींच दी गई थी, जिसमें मोदी उपस्थित नहीं हुए थे. इस समारोह में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भाग लिया.इस बैठक के दौरान ही माले ने औपचारिक रूप से भारत से मालदीव से सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने का अनुरोध किया था, जो मुइज़ू द्वारा “इंडिया-आउट” अभियान की शुरुआत थी. यामीन से विरासत में मिला, यह अभियान सिर्फ चुनावी बयानबाजी नहीं थी.
अब जब उन्होंने चीन के साथ 20 समझौते कर लिए हैं, जिसमें अनुदान सहायता पर भी एक समझौता है, तो भारत के साथ राजनयिक प्रयासों के लिए जगह और कम हो गई है.
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क्या मालदीव में भारत द्वारा वित्त पोषित परियोजनाएं खतरे में हैं?
यदि हम चीन के साथ मुइज़ू के लंबे समय से चले आ रहे संबंधों को देखें, तो इसके बारे में 2012-2018 के बीच यामीन की सरकार में उनके कार्यकाल से पता चलता है जब वह हाउसिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर मिनिस्टर थे. उन्होंने परियोजनाओं को को-ऑर्डिनेट करने के लिए नियमित रूप से चीन की यात्रा की और चीन के नेतृत्व वाले एशियाई इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) द्वारा आयोजित उद्घाटन कार्यक्रमों में भी भाग लिया जब उन्होंने मालदीव से AIIB के लिए गवर्नर के रूप में काम किया.
सिनामले ब्रिज पर मुइज़ू का काम यकीनन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी. मूल रूप से “चाइना-मॉल्डिव्स फ्रेंडशिप ब्रिज” के नाम से मशहूर यह ब्रिज, जो मालदीव में माले, हुलहुले और हुलहुमाले के द्वीपों को जोड़ता है, उसका अगस्त 2018 में उद्घाटन किया गया था, जब मुइज़ू ने वरिष्ठ चीनी अधिकारियों के साथ मिलने के लिए बीजिंग के लिए कई यात्राएं शुरू कीं थीं. पुल बनाने का ठेका चीन की CCCC सेकंड हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड को दिया गया था. इसे चीन के ही द्वारा वित्तपोषित भी किया गया था. 200 मिलियन डॉलर की इस परियोजना में लगभग 116 मिलियन डॉलर चीन द्वारा अनुदान सहायता के रूप में और 72 मिलियन डॉलर रियायती दर पर ऋण के रूप में दिया गया था. बाकी का 12 मिलियन डॉलर मालदीव को अपनी तरफ से खर्च करना था.
एक समय था जब यामीन के कार्यकाल में मालदीव एक “उधार लेने की होड़” में लगा हुआ था, जैसा कि अमेरिकी सैन्य-प्रायोजित पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया. 2015 में यामीन ने एक कानून भी पारित किया जिसके तहत विदेशियों को भी पहली बार मालदीव में जमीन लेने की अनुमति मिल गई. भारत को यह नागवार गुजरा. 2017 में, भारत के विदेश राज्य मंत्री मोबाशर जावेद ‘एमजे’ अकबर ने मालदीव की एक आधिकारिक यात्रा के दौरान इस पर चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि चीन अपने सैन्य प्रभाव को बढ़ाने के लिए इस बिल का फायदा उठा सकता है.
चीन द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं के बारे में उत्साह दिखाने वाले मुइज़ू ने मालदीव में 500 मिलियन डॉलर की ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (या थिलामाले ब्रिज प्रोजेक्ट) सहित भारत की सहायता से बनने वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लेकर वैसी भावना या उत्साह नहीं व्यक्त किया. उन्होंने पहले तर्क दिया है कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) अनुरोधों के बावजूद परियोजना के लिए समझौतों का खुलासा नहीं किया गया है.
पिछले अगस्त में जब वह “गैर-लाभकारी” सभी विदेशी समझौतों को खत्म करने के लिए कैंपेन चला रहे थे, तब उन्होंने कहा था कि, “हम अध्ययन करेंगे कि समझौते में क्या है और जो कुछ भी लोगों के हित में नहीं होगा उसके ठीक करेंगे,”
हालांकि मुइज़ू की सरकार ने पिछले नवंबर में भारत द्वारा वित्त पोषित परियोजना को “तेज” करने के इरादे के बारे में बात की थी, पर कोई यह सवाल ज़रूर कर सकता है कि क्या यह सोच अभी भी मौजूद है, खासकर उनकी चीन की यात्रा के बाद जहां उन्होंने बीआरआई की तारीफ की और दो परियोजनाओं का हवाला दिया, जिनपर बीआरआई के विजन के अनुरूप काम किया जाना है.
मुइज़ू ने स्पष्ट रूप से यामीन के चीन की तरफ झुकाव वाली रणनीति को अपनाया है, विशेष रूप से मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में दोषी ठहराए जाने के बाद जब यामीन चुनाव नहीं लड़ सके और वह वर्तमान में नज़रबंद हैं. पिछले साल अगस्त में मुइज़ू ने कहा था, “राष्ट्रपति यामीन की सरकार ने चीन के साथ बहुत करीबी संबंध बनाए. यह इस देश के सर्वोत्तम हित में है.”
जब मैंने मालदीव के पूर्व उपराष्ट्रपति का इंटरव्यू किया, तो उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मुइज़ू संभवतः श्रीलंका की तरह मालदीव की अर्थव्यवस्था को चीनी ऋण-जाल में फंसाने की तरफ लेकर जा रहे हैं. यामीन के कार्यकाल के दौरान भी यह एक चिंता का विषय था. “ऐसा लगता है कि मालदीव और श्रीलंका दोनों उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं जिस दिशा में वे अफ्रीकी देशों ने चीनी ‘ऋण’ लेकर आगे कदम बढ़ाया था. मालदीव के पत्रकार रुशधा रशीद ने 2017 में समाचार आउटलेट राजे के लिए एक ऑप-एड में लिखा था, ‘जबकि यमीन प्रशासन तेजी से विकास की नीति को आगे बढ़ा रहा है, लेकिन कोई भी मालदीव का इस बात को पसंद नहीं करेगा यदि यह कुछ खास शर्तों के साथ मिलती है तो.’
लेकिन मुइज़ू अपने गुरु की तुलना में बीजिंग के साथ ज्यादा खुल के और आक्रामकता के साथ संबंध निभा रहे हैं. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बातचीत के बाद उन्होंने जिन 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए, उनमें से एक अनुदान सहायता के लिए था, हालांकि इस राशि का खुलासा नहीं किया गया. चीन के मालदीव का सबसे बड़ा उधार देने वाला देश होने के साथ ही आईएमएफ के डेटा के मुताबिक मालदीव के सिर पर बीजिंग का लगभग 1.3 बिलियन डॉलर उधार है.
(व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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