नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति ने अपनी दिसंबर की समीक्षा बैठक में सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर लगातार पांचवीं बार बरकरार रखा.
शुक्रवार सुबह नीतिगत बयान पर विचार-विमर्श करते हुए, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट को बरकरार रखने के पीछे मुद्रास्फीति में गिरावट को कारण बताया. इसके साथ ही ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया जाएगा और ईएमआई में भी बढ़ोत्तरी नहीं होगी.
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बुधवार से शुरू हुई तीन दिन की बैठक में किए गए निर्णय की जानकारी देते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, “एमपीसी के सभी छह सदस्यों ने परिस्थितियों पर गौर करने के बाद आम सहमति से रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर कायम रखने का फैसला किया.”
इसके साथ, एमपीसी ने उदार रुख को वापस लेने के अपने रुख पर कायम रहने का निर्णय किया है.
दास ने कहा, “वैश्विक चुनौतियों के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है और हमारी बुनियाद सृदृढ़ है. जीएसटी संग्रह, पीएमआई (परजेचिंग मैनेजर इंडेक्स) जैसे महत्वपूर्ण आंकड़े मजबूत बने हुए हैं. इन सबको देखते हुए चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर सात प्रतिशत रहने का अनुमान है.”
चालू वित्त वर्ष 2023-24 की जुलाई-सितंबर तिमाही के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत की दर से बढ़ी और सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बनी रही. अप्रैल-जून तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रही.
लगातार चौथे अवसर पर, मौद्रिक नीति समिति ने अपनी अक्टूबर की समीक्षा बैठक के माध्यम से सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया, जिससे यथास्थिति बनी रहेगी.
अपनी पिछली चार बैठकों में RBI ने रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा. रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर आरबीआई अन्य बैंकों को ऋण देता है.
नवीनतम रुकावटों को छोड़कर, आरबीआई ने मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई में मई 2022 से रेपो दर को संचयी रूप से 250 आधार अंक बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है. ब्याज दरें बढ़ाना एक मौद्रिक नीति साधन है जो आम तौर पर अर्थव्यवस्था में मांग को दबाने में मदद करता है, जिससे मुद्रास्फीति दर में गिरावट में मदद मिलती है.
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