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Friday, 22 November, 2024
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सरकार ने राज्यसभा में बताया — OBC नॉन-क्रीमी लेयर सीमा को संशोधित करने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं

मुद्रास्फीति को समायोजित करने के लिए क्रीमी लेयर के लिए आय मानदंड को हर तीन साल में संशोधित किया जाता है. ओबीसी संगठन क्रीमी लेयर की नीति को खत्म करने की पैरवी कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की ‘क्रीमी लेयर’ के लिए आय सीमा को अंतिम बार संशोधित किए जाने के 6 साल बाद, नरेंद्र मोदी सरकार ने बुधवार को राज्यसभा को सूचित किया कि आय सीमा को और बढ़ाने का “कोई प्रस्ताव नहीं” है.

क्रीमी लेयर एक टर्म है जिसका उपयोग भारत में पिछड़े या हाशिए पर रहने वाले जाति समूह के कुछ सदस्यों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से थोड़े उन्नत हैं.

राज्यसभा सांसद और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता राम नाथ ठाकुर द्वारा बुधवार को संसद में उठाए गए एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री प्रतिमा भौमिक ने कहा, “वर्तमान में ओबीसी के नॉन क्रीमी लेयर संशोधन का कोई प्रस्ताव नहीं है.”

यह ओबीसी समूहों द्वारा आय सीमा में संशोधन के लिए कथित दबाव के बावजूद आया है.

मुद्रास्फीति को समायोजित करने के लिए क्रीमी लेयर के लिए आय मानदंड को हर तीन साल में संशोधित किया जाता है. एक अभ्यास जिसे न्यायमूर्ति राम नंदन समिति द्वारा अनुशंसित किया गया था, एक पैनल जिसे ओबीसी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने का काम सौंपा गया था.

लिमिट को आखिरी बार सितंबर 2017 में 6 लाख रुपये से 8 लाख रुपये की वार्षिक आय तक संशोधित किया गया था. हालांकि, इसे 2020 में फिर से संशोधित किया जाना था और फिर इस साल फिर से, लेकिन यह अभी तक नहीं किया गया है.

2020 में मोदी सरकार ने क्रीमी लेयर के लिए आय मानदंड को फिर से परिभाषित करने की कोशिश के साथ-साथ ओबीसी की क्रीमी लेयर के लिए आय सीमा को 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये प्रति वर्ष करने की सिफारिश की थी. इसने आगे सिफारिश की थी कि वेतन सहित सभी कर योग्य आय को गिना जाना चाहिए.

हालांकि, वेतन को शामिल करने पर कुछ हलकों के विरोध के बाद इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.

1992 में सामाजिक या शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए 1979 में गठित मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया, ताकि ओबीसी को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जा सके. हालांकि, ‘क्रीमी लेयर’ — यानी जिनकी घरेलू आय 8 लाख रुपये है को ऐसे लाभों से बाहर रखा गया है.

इसके अलावा, जो लोग संवैधानिक पदों पर हैं और सरकारी क्षेत्र में क्लास-ए पदों पर हैं, वे स्वचालित रूप से क्रीमी लेयर में शामिल हो जाते हैं.


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‘क्रीमी लेयर खत्म होनी चाहिए’

हालांकि, ओबीसी संगठन क्रीमी लेयर की नीति को खत्म करने की पैरवी कर रहे हैं.

ओबीसी महासभा की कोर कमेटी के सदस्य धर्मेंद्र सिंह कुशवाह ने दिप्रिंट को बताया, “हम क्रीमी लेयर की अवधारणा के खिलाफ हैं.” इससे लाखों लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

ऑल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी किरण कुमार का मानना है कि क्रीमी लेयर की नीति “जब तक ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण हासिल नहीं हो जाती” लागू नहीं की जानी चाहिए. उनके मुताबिक, ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण नीति के बावजूद कई आरक्षित पद खाली हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “सरकारी नौकरियों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण इतने वर्षों के बाद भी हासिल नहीं किया गया है. क्रीमी लेयर की सीमा नहीं होनी चाहिए ताकि आरक्षित पद ओबीसी वर्ग के लोगों से भरे जा सकें.”

कुशवाहा और कुमार दोनों ने कहा कि क्रीमी लेयर के लिए आय सीमा में संशोधन की मांग पर केंद्र सरकार ने चुप्पी साध ली है.

कुमार ने दिप्रिंट को बताया, “यह लिमिट अनुचित है और इसे खत्म किया जाना चाहिए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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