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Monday, 25 November, 2024
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लोकसभा में बोले अमित शाह, J&K के लिए लाए गए विधेयक अनदेखी किए लोगों को दिलाएंगे न्याय और हक

गृहमंत्री ने कहा कि इन विधेयक का मकसद उन लोगों को न्याय देने का प्रयास है, जिन्हें अपने ही देश में शरणार्थी बनने के लिए मजबूर किया गया.

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नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर पर लोकसभा में मंजूरी के लिए पेश किए गए दो विधेयक उन लोगों को अधिकार प्रदान करने से जुड़े हैं जिन्होंने अन्याय का सामना किया, जिनका अपमान किया गया और जिन्हें नजरअंदाज किया गया.

जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 पर बहस का जवाब देते हुए, गृहमंत्री ने कहा कि इन विधेयक का मकसद उन लोगों को न्याय देने का प्रयास है, जिन्हें अपने ही देश में शरणार्थी बनने के लिए मजबूर किया गया.

“मुझे खुशी है कि जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2023 पर पूरी चर्चा और बहस के दौरान, किसी भी सदस्य ने विधेयक के ‘तत्व’ का विरोध नहीं किया.”

उन्होंने कहा कि अधिकार देना और सम्मानपूर्वक अधिकार देना दोनों में बहुत अंतर है.

उन्होंने कहा, “जो विधेयक मैंने यहां पेश किया है वह उन लोगों को न्याय दिलाने और उनके अधिकार प्रदान करने से संबंधित है जिनके खिलाफ अन्याय हुआ, जिनका अपमान किया गया और जिनकी उपेक्षा की गई. किसी भी समाज में, जो वंचित हैं उन्हें आगे लाया जाना चाहिए. यही भारत के संविधान की मूल भावना. लेकिन उन्हें इस तरह से आगे लाना होगा जिससे उनका सम्मान कम न हो. अधिकार देना और सम्मानपूर्वक अधिकार देना दोनों में बहुत बड़ा अंतर है. इसलिए कमजोर और वंचित वर्ग के बजाय इसका नाम बदलकर अन्य पिछड़ा वर्ग करना अहम है.”

अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीबों का दर्द समझते हैं.

उन्होंने कहा, “कुछ लोगों ने इसे कमतर आंकने की भी कोशिश की…किसी ने कहा कि सिर्फ नाम बदला जा रहा है. मैं उन सभी से कहना चाहूंगा कि अगर हममें थोड़ी भी सहानुभूति है तो हमें यह देखना होगा कि नाम के साथ सम्मान जुड़ा है. ये वही लोग देख सकते हैं जो उन्हें अपने भाई की तरह समझकर आगे लाना चाहते हैं. जो लोग इसे अपने राजनीतिक फायदे के लिए वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते हैं…नरेंद्र मोदी एक ऐसे नेता हैं जो एक गरीब परिवार में पैदा हुए और देश के प्रधानमंत्री बने हैं. वह गरीबों का दर्द जानते हैं.”

विधेयकों में से एक का उद्देश्य जम्मू और कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 में संशोधन करना है. इसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के सदस्यों के लिए व्यावसायिक संस्थानों में नियुक्ति और प्रवेश में आरक्षण प्रदान करने के लिए बिल बनाया जा रहा है.

विधेयक में “कमजोर और वंचित वर्गों (सामाजिक जातियों) के नाम को “अन्य पिछड़ा वर्ग” में बदलने और परिणामगत संशोधन के लिए आरक्षण अधिनियम की धारा 2 में संशोधन करने का प्रावधान है.

अन्य विधेयक में “कश्मीरी प्रवासियों”, “पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर के विस्थापित लोगों” और अनुसूचित जनजातियों को उनके राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की विधानसभा में उनके समग्र सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए प्रतिनिधित्व प्रदान करने का प्रावधान है.

इसके जरिए जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में नई धारा 15ए और 15बी को सम्मिलित करने का प्रयास है, ताकि जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए दो से अधिक सदस्यों को नामांकित किया जा सके, जिनमें से एक महिला “कश्मीरी प्रवासियों” के समुदाय से होगी और एक सदस्य पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर से “विस्थापित व्यक्तियों” से होगा.

मंगलवार को दो विधेयकों पर सदन की कार्यवाही शुरू हुई. विधेयकों पर बहस में 29 सदस्यों ने हिस्सा लिया.


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