scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमतअपने लिंग को लेकर गोडसे की कन्फ्यूजन और गांधी कैसे बने एक सरोगेट पिता

अपने लिंग को लेकर गोडसे की कन्फ्यूजन और गांधी कैसे बने एक सरोगेट पिता

कुछ लोग गोडसे का पुनर्वास करना चाहते हैं, उनकी छवि को हत्यारे से देशभक्त के रूप में पुनः स्थापित करना चाहते हैं. लेकिन द फादर एंड द असैसिन में नाटककार अनुपमा चंद्रशेखर उन्हें बचाना नहीं चाहतीं.

Text Size:

भारत में हिंदू महासभाओं से लेकर लंदन के प्रमुख नाट्य स्थलों तक, नाथूराम गोडसे और उनकी विरासत को लेकर बहस बहुत जीवंत है. यह हर साल तब जोर पकड़ता है जिस समय उन्होंने एमके गांधी की हत्या की थी, या जब 75 साल पहले 15 नवंबर को जब गोडसे को फांसी दी गई थी.

कुछ मुखर समूह गांधी के हत्यारे का पुनर्वास करना चाहते हैं, उनकी छवि को हत्यारे से देशभक्त के रूप में पुनः स्थापित करना चाहते हैं. स्मरणोत्सव के रूप में, हिंदू महासभा के नेताओं ने 30 जनवरी 2019 को गांधी की हत्या की 71वीं वर्षगांठ पर उनके पुतले को गोली मार दी. तीन साल पहले संगठन के सदस्यों ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर में गोडसे के चित्र पर माला चढ़ाई थी.

चेन्नई स्थित नाटककार अनुपमा चंद्रशेखर की द फादर एंड द असैसिन – जो सितंबर और अक्टूबर 2023 के बीच लंदन के नेशनल थिएटर में चली, अब यह भी बहस में शामिल कई फिल्मों में से एक है. इसे 2022 में इवनिंग स्टैंडर्ड थिएटर अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ नाटक के लिए नामांकित किया गया था, और यह चंद्रशेखर के 2019 के नाटक, व्हेन द क्रोज़ विजिट का अनुसरण करता है, जो 2012 के निर्भया मामले की घटनाओं पर आधारित था.

नाटक की शुरुआत में, गोडसे (हिरन अबेसेकरा द्वारा अभिनीत) दर्शकों को सीधे संबोधित करते है, जिसमें वह एक विरल, अंधेरे मंच पर नंगे पैर खड़े है. उनका सुझाव है कि नाटक के अंत तक, वह शायद लोगों को उतने बुरे न लगे. यह चंद्रशेखर की ओर से गोडसे को छुड़ाने का प्रयास नहीं है – बल्कि एक हत्यारे के दिमाग में प्रवेश करने का प्रयास है.

नाटक का सार यह है कि गोडसे के कार्यों को समझने के लिए उनके अनुभवों और दृष्टिकोण को उजागर करना आवश्यक है. वह दर्शकों से पूछते हैं, “आपको किसकी तलाश है? क्या आपने पहले कभी किसी हत्यारे को नहीं देखा?”

सबसे दिलचस्प बात यह है कि अच्छी तरह से रची गई इस नाटक में लिंग और परिवार की गतिशीलता सामने और केंद्र में है.


यह भी पढ़ें: हिरोशिमा में PM मोदी ने महात्मा गांधी की प्रतिमा का किया अनावरण, बोले- अहिंसा के विचार को आगे बढ़ाएंगे


लिंग की जटिलताएं

कम से कम यह तो कहा जा सकता है कि गोडसे का बचपन असामान्य था. उनकी मां ने उनसे पहले तीन लड़कों को जन्म दिया था, लेकिन सभी शिशु के रूप में ही मर गए. इस बात से आश्वस्त होकर कि परिवार के सभी लड़के शापित हैं, माता-पिता ने निर्णय लिया कि उनके अगले बच्चे का पालन-पोषण लड़की के रूप में किया जाएगा, चाहे उनका जैविक लिंग कुछ भी हो.

वैसे तो, गोडसे को यह सोचकर बड़ा किया गया था कि वह एक लड़की है. उन्होंने देवी दुर्गा के लिए एक दैवज्ञ के रूप में भी काम किया, जो देवता के साथ संवाद करने की उम्मीद में आगंतुकों को परिवार के घर लाता था. यह नाटक उनके बचपन के इन पहलुओं को शुरुआती अभिनय में पिरोता है. एक जगह पर, गोडसे मासूमियत से अपनी मां से पूछते है कि क्या वे अपने पिता की तरह खड़े होकर पेशाब कर सकते है.

गोडसे के नाम में ही एक महिला की झलक थी. उनके माता-पिता उन्हें नाथू कहते थे, जिसका अर्थ है नाक की नथ, जो कि पारंपरिक रूप से केवल महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला आभूषण है. और चूंकि उनका जन्म नाम रामचन्द्र था, वे नाथूराम बन गए – वह राम जो नथ पहनते थे.

नाटक को देखकर, कोई भी आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सकता कि क्या बचपन में अपने लिंग को लेकर गोडसे के भ्रम ने एक वयस्क के रूप में उनकी राजनीति को प्रभावित किया था. क्या गोडसे को सच पता चलने के बाद एक “असली” लड़के की तरह महसूस हुआ? शायद उन्हें लगा कि उनके जीवन के पहले दशक ने एक आदमी के रूप में उनकी स्थिति को कमजोर कर दिया है.

नाटक के बाद के दृश्यों में, गोडसे अनजाने में अपनी बचपन की दोस्त विमला (आयशा कला द्वारा अभिनीत) के साथ बातचीत की कल्पना करते है, जिसमें वह मज़ाक उन्हें “नोज़ रिंग” कहती है. क्या इन दृश्यों का मतलब यह है कि वयस्क गोडसे अभी भी पुरुषत्व की अपेक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ महसूस करते है? क्या इस डर के कारण कि कुछ लोग अभी भी उन्हें स्त्री के रूप में देखते हैं. क्या इसके कारण ही हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति के माध्यम से ताकत, जो कि कथित तौर पर एक मर्दाना गुण है, का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया? नाटक जानबूझकर निर्णायक उत्तर प्रदान नहीं करता है, बल्कि यह दर्शकों से विचार करने के लिए गहन प्रश्न पूछता है.

गोडसे को लगता था कि गांधी (स्त्रैण) स्त्री के गुणों वाला अथार्त कमजोर थे. इसके विपरीत, उन्होंने खुद को और अपनी राष्ट्रवादी राजनीति को मर्दाना और मजबूत के रूप में देखा. ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने भारतीय पुरुषों को स्त्रैण और बदले में अधीनता के योग्य और संरक्षण की आवश्यकता के रूप में देखा. विद्वान मृणालिनी सिन्हा का 1995 का मौलिक पाठ, कोलोनियल मैस्कुलिनिटी: द “मेनली इंग्लिशमैन” एंड द “एफ़ेमिनेट बंगाली”, इन द लेट नाइनटीन्थ सेंचुरी, प्रसिद्ध रूप से इस विषय से संबंधित है. यह कुछ हद तक विडंबनापूर्ण है कि राष्ट्रवादी गोडसे ने गांधी के मूल्यांकन में उपनिवेशवादी प्रवचन का उपयोग किया है.

सरोगेट पिता

यह नाटक काफी हद तक पितृत्व के बारे में भी है. शुरू के एक दृश्य में गांधी और गोडसे के बीच आकस्मिक मुठभेड़ दिखाई देती है: गांधी बच्चे को बताते हैं कि वह वास्तव में एक लड़का है. यह संभवतः एक काल्पनिक मुठभेड़ है, लेकिन इस दृश्य के माध्यम से नाटक में दिखाया गया हैं कि यह गांधी ही हैं जो गोडसे को पुरुष होने का एहसास दिलाते है.

इस प्रकार, गोडसे राष्ट्रवादी नेता को एक सरोगेट पिता के रूप में देखते है. जहां उनके अपने पिता ने उनसे झूठ बोला था, वहीं उनके सरोगेट पिता ने सच कहा.

एक बच्चे और युवा वयस्क के रूप में, गोडसे को गांधी का प्रबल समर्थक भी दिखाया गया है. जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता है, चन्द्रशेखर दिखाते हैं कि कैसे गोडसे खुद को और अधिक निराश महसूस करते है. ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुरूप, नाटक दिखाता है कि कैसे गोडसे ने गांधी की सांप्रदायिक विरोधी राजनीति को हिंदू विरोधी के रूप में देखा.

इस बात से आश्वस्त होकर कि नायक ने हिंदुओं की जगह मुसलमानों के साथ दिया है, गोडसे व्यक्तिगत और सांप्रदायिक रूप से ठगा हुआ महसूस करते है. वह सांप्रदायिक अस्वीकृति को आत्मसात करते हुए खुद को हिंदू राष्ट्र का एक विशेष प्रतिनिधि मानते हैं. उनकी नज़र में, गांधी अब न तो ‘राष्ट्रपिता’ हैं और नाही उनके सरोगेट पिता.

ऐसा लगता है कि चन्द्रशेखर ने जानबूझकर गोडसे के मुकदमे के बारे में नाटक नहीं लिखा, दर्शकों को न्यायिक कार्यवाही भी देखने को नहीं मिली. हालांकि, एक पल के लिए अदालती कार्रवाई पर विचार करने से नाटक का फोकस पितृत्व पर केंद्रित हो जाता है.

गोडसे ने घोषणा की, “गांधीजी स्वयं पाकिस्तान के सबसे बड़े समर्थक और वकील थे.” पूरा भाषण 1989 में मे इट प्लीज योर ऑनर में और फिर 1993 में व्हाई आई असैसिनेटेड महात्मा गांधी में प्रकाशित हुआ था. उनका मानना था कि गांधी और कांग्रेस ने लगातार मुसलमानों को बढ़ावा दिया और विभाजन इसका कारण बना था. असंतुष्ट राष्ट्रवादी ने गांधी को “पाकिस्तान का पिता” कहा.

यह उस समय की राजनीतिक संस्कृति की विशेषता थी. प्रशिक्षण से वकील मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान के पक्ष में तर्क तैयार करने के लिए वसीयतनामा ढांचे का सहारा लिया था. उनका विचार था कि औपनिवेशिक पिता मर रहा था, और उसके दो बेटे विरासत को लेकर लड़ रहे थे. जैसा कि जिन्ना ने देखा था, औपनिवेशिक विरासत को विभाजित करके हिंदू पुत्र और मुस्लिम पुत्र के पास अपनी संपत्ति होनी चाहिए.

अपने मुकदमे के दौरान, गोडसे ने बताया कि ‘भारत माता’ के पुत्र के रूप में जो अपने कर्तव्यों को समझता था, उसके पास गांधी को मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. इस प्रकार यह हत्या एक बेटे द्वारा अपनी मां की रक्षा और सेवा करने का प्रयास करने वाला एक राष्ट्रवादी कृत्य बन जाती है.

नाटक में, विभाजन के लिए खींची गई सीमाओं का वर्णन करते हुए, गोडसे ने ज्यादातर ब्रिटिश और ब्रिटिश भारतीय दर्शकों के साथ मजाक किया कि माउंटबेटन भारत और पाकिस्तान को अलग करते समय एक कठिन ब्रेक्सिट की तलाश में थे. ब्रेक्सिट के लिए मतदान करने वालों में से कई ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने महसूस किया कि उनकी आवाज़ को अभिजात वर्ग और महानगरीय वैश्विकवादियों ने दबा दिया था. भारत और दुनिया भर के कई देशों में, राष्ट्रवाद का संदेश उन लोगों के बीच सबसे सबसे ज्यादा प्रचलित है, जो मानते हैं कि उन्हें छोड़ दिया गया है.

चन्द्रशेखर दर्शकों का इतना अधिक सम्मान करते हैं कि उनकी राय क्या होनी चाहिए, यह तय नहीं कर पाते. वह पूरे नाटक में, हल्के अंदाज़ में गहरे महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए जाते हैं.

आज की राजनीति से मेल खाता हुआ

नाटक के दूसरे भाग में महाराष्ट्र के रत्नागिरी में कई दृश्य हैं, जिसमें गोडसे वीडी सावरकर से खुद को प्रशिक्षित करने का आग्रह करते है. अंततः, हिंदू राष्ट्रवाद के दिग्गज गोडसे को शिक्षित करने के लिए सहमत हो गए. ये काल्पनिक दृश्य सावरकर की राजनीति की ओर गोडसे के आंदोलन को चतुराई से प्रदर्शित करते हैं.

सितंबर 2023 में द इवनिंग स्टैंडर्ड थिएटर पॉडकास्ट पर एक साक्षात्कार में, नाटक में गांधी की भूमिका निभाने वाले पॉल बेज़ली ने बताया कि प्रासंगिकता के लिए, ऐतिहासिक नाटकों को वर्तमान समय के बारे में कुछ कहना होगा. बेज़ली के लिए, नाटक की विशेषता वाले अतिवाद, ध्रुवीकरण और हिंसा के विषय ऐसे मुद्दे हैं जिनका समाज वर्तमान में सामना कर रहा है.

आतंकवादी और विद्रोही अक्सर ऐसे व्यक्ति होते हैं जो समाज द्वारा उपेक्षित महसूस करते हैं. दुनिया से गहराई से अलग-थलग, इन परेशान व्यक्तियों को कट्टरपंथी बनाया जा सकता है और चरमपंथी, हिंसक विचारधाराओं की ओर धकेला जा सकता है.

नाटक के अंत में, गोडसे फिर से दर्शकों से सीधे बात करते है. ऐसा प्रतीत होता है कि वह अब अपनी सबसे स्पष्ट स्थिति में है: वह सामान्यता और अदृश्यता की अपनी भावना को स्वीकार करते है. लड़का बनने के बाद उनका देवी दुर्गा से संपर्क टूट गया और साथ ही यह एहसास होना भी बंद हो गया कि वह विशेष है.

नाटक का तात्पर्य यह है कि सबसे पहले, गोडसे कुछ बनना चाहते थे. वह खुद को एक शहीद के रूप में देखते थे और अपने लिए एक शहीद जैसा व्यवहार ही चाहते थे. दिलचस्प बात यह है कि जैसा कि हम मे इट प्लीज योर ऑनर में देखते हैं, गोडसे ने मुकदमे के दौरान स्वीकार किया कि “जिस दिन मैंने गांधीजी को राजनीतिक मंच से हटाने का फैसला किया था, मुझे पता था कि मैं व्यक्तिगत रूप से सब कुछ खो दूंगा.”

वह एक बहिष्कृत और देश में सबसे अधिक नफरत किया जाने वाला व्यक्ति बन जाएंगे, लेकिन कम से कम उन्हें याद किया जाएगा.

(व्यक्त विचार निजी हैं.)

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: गांधी जंयती पर जयराम रमेश का RSS-BJP पर निशाना- गोडसे के विचारों, कामों के खिलाफ खड़े होने की अपील


 

share & View comments