नई दिल्ली: कनाडा ने भारतीय एजेंटों और सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बीच कथित संबंध पर भारत को अभी तक कोई सबूत नहीं दिया है. ये बातें विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने लंदन के विल्टन पार्क में एक चर्चा के दौरान कही. बता दें कि जयशंकर इस सप्ताह यूनाइटेड किंगडम की यात्रा पर है. उन्होंने वहां कहा कि भारत ओटावा के आरोपों की किसी भी जांच से इंकार नहीं कर रहा है.
बुधवार को ‘एक अरब लोग दुनिया को कैसे देखते हैं’ शीर्षक वाले एक कार्यक्रम में बोलते हुए जयशंकर ने कहा कि कनाडाई राजनीति ने “हिंसक और अतिवादी राजनीतिक विचारों को जगह दी है जो भारत से अलगाववाद की वकालत करते हैं” और “इन लोगों को कनाडाई राजनीति में समायोजित भी किया गया है”.
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, “हमारे उच्चायोग पर हमले हुए हैं. उच्चायोग पर धुएं वाले बम फेंके गए हैं. मेरे महावाणिज्य दूत और अन्य राजनयिकों को सार्वजनिक रूप से रिकॉर्ड पर धमकाया गया, लेकिन ये सब जानने वालों ने इसपर कोई कार्रवाई नहीं की.” उन्होंने कहा कि कनाडा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का “दुरुपयोग” नहीं किया जाना चाहिए.
जयशंकर 11 से 15 नवंबर तक ब्रिटेन की आधिकारिक यात्रा पर थे. उन्होंने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और नए विदेश सचिव डेविड कैमरन सहित कई अन्य अधिकारियों से मुलाकात की, जिन्हें इस सप्ताह के शुरू में एक बड़े कैबिनेट फेरबदल के बाद नियुक्त किया गया था.
A pleasure to meet UK Foreign Secretary @David_Cameron this afternoon on his first day in office. Congratulated him on his appointment.
Held a detailed discussion on realizing the full potential of our strategic partnership.
Also exchanged views on the situation in West Asia,… pic.twitter.com/guxyCxLuRM
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) November 13, 2023
विल्टन पार्क में आयोजित उस कार्यक्रम में उन्होंने चीन के साथ भारत के सीमा संबंधों, रूसी तेल की खरीद, बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों के साथ इसके संबंधों और भारत-अमेरिका संबंधों पर भी बात की.
सितंबर में कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो द्वारा निज्जर की हत्या के पीछे नई दिल्ली पर आरोप लगाने के बाद से भारत और कनाडा राजनयिक विवाद में उलझे हुए हैं. विवाद के बीच कनाडा ने भारत से अपने कई राजनयिकों को वापस बुला लिया. कनाडा पर जयशंकर की नवीनतम टिप्पणी पिछले सप्ताह नई दिल्ली में 2+2 वार्ता के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ इस मामले पर चर्चा करने के कुछ दिनों बाद आई है. ब्लिंकन ने कहा था कि अमेरिका “दोनों देशों का मित्र” है और भारत से इसकी जांच में कनाडा के साथ सहयोग करने का आग्रह किया था.
लंदन में चर्चा रॉयल ओवर-सीज़ लीग क्लब में हुई और इसका संचालन पत्रकार और फाइनेंशियल टाइम्स के पूर्व संपादक लियोनेल बार्बर ने किया. सत्र के दौरान, बार्बर ने कहा कि तर्क दिया गया है कि रूस, अमेरिका, सऊदी अरब और इज़राइल जैसे देशों ने अतीत में कथित तौर पर अलौकिक हत्याएं की हैं.
जयशंकर ने मजाक में कहा कि वह “देशों की सूची पर विवाद नहीं कर सकते”, लेकिन उन्होंने कहा कि यह वह तर्क नहीं है जिसे ऐसी किसी भी हत्या को उचित ठहराने के लिए अपनाया जाना चाहिए.
अमेरिका के साथ संबंध
यह देखते हुए कि भारत और अमेरिका के बीच नया उत्साह है, भारतीय विदेश मंत्री ने चर्चा के दौरान कहा कि अमेरिका एक ऐसी शक्ति है जो खुद को “पुनर्निर्मित” कर रहा है, खासकर अफगानिस्तान और इराक में सैन्य भागीदारी के चलते “बेहद हानिकारक” परिणाम आने के बाद.
उन्होंने कहा कि भारत ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ चार साल तक “अच्छा काम” किया, ऐसे समय में जब अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव एक साल दूर हैं.
उन्होंने कहा, “हमने ट्रम्प के साथ चार साल तक काम किया और हमारा काम अच्छा था. हमने यह पता लगा लिया है कि अलग-अलग तरह के अमेरिकियों के साथ कैसे काम करना है.”
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भारत-चीन सीमा पर झड़प से रिश्ते ‘बिगड़े’
चीन के साथ भारत के सीमा संबंधों पर जयशंकर ने टिप्पणी की कि 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प ने दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को “खराब” कर दिया.
उन्होंने कहा, “1975 से 2020 तक वास्तव में सीमा [LAC] पर कोई रक्तपात नहीं हुआ था. फिर 2020 में, किसी भी कारण से चीनियों ने समझौतों का पालन करना जारी नहीं रखा. वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैनिकों की एक बड़ी आवाजाही हुई और अंततः झड़प हुई जिसमें कुछ सैनिक मारे गए.”
उन्होंने आगे कहा: “उन्होंने जो भी किया है उसने वास्तव में रिश्ते को खराब कर दिया है. इसने संघर्ष और तीखे मतभेदों की यादों को वापस लाने और विश्वसनीयता तथा विश्वास के रिश्ते को खराब कर दिया है.
भारत और चीन ने सीमा की स्थिति के बारे में 20 से अधिक कमांडर-स्तरीय वार्ता की है, जहां LAC के कुछ क्षेत्रों में दोनों पक्षों के सैनिकों की बड़ी उपस्थिति बनी हुई है.
‘भारत ने वैश्विक तेल बाजारों को नरम किया’
चर्चा के दौरान जयशंकर ने रूस के साथ भारत के संबंधों पर सवाल उठाए, खासकर यूक्रेन युद्ध के बीच और अपनी पुस्तक ‘द इंडिया वे: स्ट्रैटेजीज फॉर एन अनसर्टेन वर्ल्ड’ में उन्होंने कहा कि नई दिल्ली और मास्को के बीच संबंधों में असाधारण स्थिरता रही है.
चर्चा के दौरान उन्होंने कहा, “यह स्वचालित नहीं है कि यदि किसी देश को पश्चिम से एक निश्चित तरीके से देखा जाता है, तो वह तर्क पूर्व तक फैला हुआ है. मुझे लगता है कि जब हम रूस के पास पहुंचते हैं – इतिहास के उन 70-विषम वर्षों, एक साथ काम करना और स्थिरता – यह बहुत कुछ है और यह बात हमारे दिमाग में है.” उन्होंने ये बातें तब कहीं जब उनसे पूछा गया कि नई दिल्ली ने यूक्रेन में रूस के आक्रमण की स्पष्ट रूप से निंदा क्यों नहीं की है और न ही मॉस्को के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों में शामिल हुआ.
उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि भारत द्वारा रूस से तेल की खरीद – इस वित्तीय वर्ष में प्रतिदिन लगभग दस लाख बैरल – ने वैश्विक तेल बाजारों को स्थिर करने में मदद की. विदेश मंत्री ने कहा, “अगर हमने रूस से तेल नहीं खरीदा होता, तो मुझे लगता है कि वैश्विक तेल की कीमतें अधिक हो गई होती. हमने अपनी खरीद नीतियों के माध्यम से तेल और गैस बाजारों को नरम कर दिया है. हमने वैश्विक मुद्रास्फीति को बहुत स्पष्टता से प्रबंधित किया है.”
उन्होंने कहा, “मैं तो बस धन्यवाद का इंतजार कर रहा हूं.”
भारत-बांग्लादेश साझा ‘मॉडल रिलेशनशिप’
लंदन में चर्चा के दौरान ब्रिटेन में बांग्लादेश की उच्चायुक्त सईदा मुना तस्नीम ने भारतीय विदेश मंत्री से पूछा कि भारतीय विदेश नीति में बांग्लादेश कहां खड़ा है.
जयशंकर ने टिप्पणी की कि दोनों देश एक “मॉडल रिलेशनशिप” साझा करते हैं, जिसमें दोनों ने भूमि सीमा तय की है, समुद्री सीमा पर मतभेदों को सुलझाया है और ऊर्जा संबंधों को मजबूत कर रहे हैं.
यह बांग्लादेश में आम चुनाव होने से कुछ महीने पहले हुआ है. अमेरिका और ब्रिटेन ने वहां होने वाली आगामी चुनावों की निष्पक्षता पर बार-बार चिंता व्यक्त की है. पिछले सप्ताह नई दिल्ली में भारत-अमेरिका 2+2 वार्ता के दौरान यह मुद्दा चर्चा का विषय था.
हालांकि, भारत ने कहा कि वह बांग्लादेश की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का समर्थन करता है और चुनाव उनका एक घरेलू मामला है.
भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने 2+2 वार्ता के बाद एक ब्रीफिंग में कहा था, “बांग्लादेश के एक करीबी दोस्त और भागीदार के रूप में, हम बांग्लादेश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का सम्मान करते हैं और उस देश के स्थिर, शांतिपूर्ण और प्रगतिशील राष्ट्र के दृष्टिकोण का समर्थन करना जारी रखेंगे, जिसे उस देश के लोग अपने लिए चाहते हैं.”
उन्होंने आगे कहा था, “हम दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपनी स्थिति को कैसे देखते हैं, इस पर अपना दृष्टिकोण साझा करने में बहुत स्पष्ट थे. और इसमें इन चर्चाओं के दौरान अमेरिकी पक्ष के साथ बांग्लादेश भी शामिल है.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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