नई दिल्ली: केंद्र सरकार की सांसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY) — गांवों में विकास को बढ़ावा देने के लिए 2014 में शुरू की गई एक 10-वर्षीय परियोजना — अपनी समय सीमा के करीब है, इस योजना द्वारा लक्षित लगभग 6,000 ग्राम पंचायतों में से केवल 52 प्रतिशत को इसके संसद सदस्यों द्वारा गोद लिया गया है. दिप्रिंट को इसकी जानकारी मिली है.
अक्टूबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई योजना के तहत, हर एक सांसद से बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आठ ग्राम पंचायतों को अपनाने की उम्मीद की गई थी — हालांकि यह अनिवार्य नहीं था. SAGY के दिशानिर्देशों के अनुसार, हर एक सांसद के तहत आठ ग्राम पंचायतों में से तीन मार्च 2019 तक और शेष पांच 2024 तक विकसित किए जाने थे.
ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा इस साल मार्च में जारी एक आधिकारिक बयान में बताया गया, “ग्राम पंचायतों के विकास की परिकल्पना मौजूदा सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को अभिसरण मोड में लागू करने और सामुदायिक और निजी संसाधनों को जुटाने के माध्यम से की गई है.”
मंत्रालय के डैशबोर्ड पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, बड़ी संख्या में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में, गोद लिए गए गांवों में पूरा किए गए काम का प्रतिशत 75% से भी कम है.
मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि पिछले हफ्ते एक समीक्षा बैठक में मंत्रालय ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से काम में तेज़ी लाने और ज़रूरत पड़ने पर विकास योजनाओं को फिर से तैयार करने को कहा है.
ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी जो समीक्षा बैठक का हिस्सा थे, ने कहा, “असम, गोवा, पंजाब, बिहार सहित 10 से अधिक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां नियोजित परियोजनाओं की प्रगति 50 प्रतिशत से कम है. बिहार, दिल्ली, गोवा, पश्चिम बंगाल आदि जैसे कुछ राज्य हैं जहां योजना के तहत किए गए काम की प्रगति की समीक्षा के लिए कोई नियमित बैठकें आयोजित नहीं की जाती हैं. हमने अब राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से गोद ली गई ग्राम पंचायतों में विकास कार्यों में तेज़ी लाने के लिए कहा है ताकि उन्हें 2024 तक ‘आदर्श’ ग्राम के रूप में विकसित किया जा सके.”
यहां तक कि गोवा और असम सहित भाजपा शासित राज्यों में भी ग्राम पंचायतों में योजना के तहत नियोजित काम की प्रगति 30 प्रतिशत से कम है. अधिकारियों के मुताबिक, हरियाणा, उत्तराखंड, केरल, राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र में प्रगति 75 प्रतिशत से कम है.
SAGY को केंद्र सरकार की योजनाओं के अभिसरण और लोगों की भागीदारी के माध्यम से बुनियादी सुविधाओं और जीवन स्तर में सुधार करके ग्रामीण गांवों के व्यापक विकास के उद्देश्य से शुरू किया गया था. इसका उद्देश्य पड़ोसी ग्राम पंचायतों से सीखने और एक मॉडल के रूप में काम करना था.
अधिकारियों ने कहा कि सांसद SAGY के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया अब तक मौन रही है.
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए ईमेल के जरिए ग्रामीण विकास मंत्रालय से संपर्क किया, लेकिन इस खबर के छापे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला था. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
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अब तक केवल 52% ग्राम पंचायतों को अपनाया गया
SAGY के दिशानिर्देशों के अनुसार, लोकसभा सांसदों को अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों से ग्राम पंचायतों को गोद लेना होगा. हालांकि, अगर उनका निर्वाचन क्षेत्र शहरी है, तो वे पास के ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों से ग्राम पंचायतों को गोद ले सकते हैं. राज्यसभा सांसद अपने राज्यों से ग्राम पंचायतों को चुन सकते हैं और नामांकित सांसद देश में कहीं से भी इसका चयन कर सकते हैं.
मंत्रालय के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “दिशानिर्देशों के अनुसार, अब तक 6,000 से अधिक ग्राम पंचायतों का चयन किया जाना चाहिए था, क्योंकि 543 लोकसभा सांसद और 239 राज्यसभा सांसद (नामांकित सहित) हैं, लेकिन, अब तक, केवल 3,364 ग्राम पंचायतों को ही अपनाया गया है.”
नौ अगस्त, 2023 को राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री (MoS) साध्वी निरंजन ज्योति ने 2014 से अपनाई गई ग्रां पंचायतों की वर्ष-वार डिटेल्स दीं. डेटा दिखाता है कि 2014 के बीच और 2016 में 703 ग्राम पंचायतों को सांसदों द्वारा अपनाया गया. हालांकि, 2019 (भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का दूसरा कार्यकाल) के बाद से संख्या में गिरावट देखी गई है.
2019 के बाद से 3 अगस्त, 2023 तक सांसदों द्वारा 1,782 ग्राम पंचायतों को अपनाया गया – 2019-20 में 467, 2020-21 में 350, 2021-22 में 320 और 2022-23 में 282 को गोद लिया गया.
2023-24 में तीन अगस्त, 2023 तक 204 ग्राम पंचायतें अपनाई गईं.
पिछले पांच साल में सबसे अधिक ग्राम पंचायतें केवल उत्तर प्रदेश (263) में अपनाईं गईं, इसके बाद तमिलनाडु (203), गुजरात (154), आंध्र प्रदेश (119), महाराष्ट्र (114), राजस्थान (104) और बिहार में केवल (102) पंचायतें अपनाईं गईं.
उक्त मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, “हम ग्राम पंचायतों को अपनाने के लिए सांसदों को लिख रहे हैं और राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से योजनाबद्ध कार्य को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए कह रहे हैं.”
दिशानिर्देशों में सांसदों को न केवल ग्राम पंचायतों की पहचान करने की ज़रूरत है, बल्कि उन्हें अपने क्षेत्रों में आवश्यक विकास कार्यों की योजना बनाने के लिए समुदाय के साथ जुड़ने के साथ-साथ ग्राम विकास योजनाएं (वीडीपी) तैयार करने, अतिरिक्त संसाधन जुटाने और अन्य कार्यों के साथ प्रगति की नियमित निगरानी करने को भी कहा गया है.”
राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को मुख्य सचिव के अधीन एक समिति बनानी होगी, जिसमें ग्रामीण विकास सचिव सदस्य-संयोजक होंगे और समिति को SAGY की प्रगति की तिमाही समीक्षा करनी होगी.
मंत्रालय के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “समीक्षा के दौरान यह पाया गया कि कुछ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने समिति का गठन ही नहीं किया है. कुछ राज्यों में समिति बनी है, लेकिन पिछले पांच साल में कोई बैठक नहीं हुई है. चूंकि इस योजना में कोई समर्पित फंड नहीं है, इसलिए राज्यों को इसकी बारीकी से निगरानी करनी होगी क्योंकि विकास कार्य राज्य और केंद्रीय योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से किया जाना है.”
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SAGY के लिए कोई समर्पित फंड नहीं
योजना के लिए मंत्रालय के डैशबोर्ड के अनुसार, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जहां ग्राम विकास योजनाएं (वीडीपी) ग्राम पंचायतों के लिए तैयार की गई हैं, कार्यान्वयन की गति धीमी है.
गोवा और असम सहित भाजपा शासित राज्यों में, वीडीपी के तहत नियोजित गतिविधियों को पूरा करने में प्रगति लगभग 25 प्रतिशत है. हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और महाराष्ट्र में, जहां भाजपा सत्ता में है या सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है, प्रगति 70 प्रतिशत से नीचे है.
महाराष्ट्र और असम सरकार के अधिकारियों ने कहा है कि इस योजना को खराब प्रतिक्रिया मिली है क्योंकि इसके लिए कोई समर्पित फंड नहीं है और काम पूरा करने के लिए विभिन्न राज्य एजेंसियों के साथ समन्वय करना मुश्किल है.
असम सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “शुरुआत में इस योजना पर ज्यादा स्पष्टता नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे, हमने कुछ ग्राम पंचायतों के लिए वीडीपी तैयार कर ली है. हमने पंचायतों को अपनाने के लिए सांसदों को पत्र लिखा है. काम की धीमी गति फंड के कारण है, क्योंकि योजना के लिए कोई समर्पित फंड नहीं है. इसलिए काम पूरा करना थोड़ा मुश्किल है.”
अधिकांश राज्यों में जबकि योजना की निगरानी ग्रामीण विकास विभाग द्वारा की जाती है, ज़मीनी स्तर पर काम जिला कलेक्टरों द्वारा किया जाता है. महाराष्ट्र सरकार के एक अधिकारी ने कहा, “सभी विकास परियोजनाओं को विभिन्न राज्य और केंद्रीय योजनाओं के तहत धन से चलाया जाना है. कभी-कभी हमें काम पूरा करने के लिए दो-तीन विभागों को एक साथ लाना पड़ता है क्योंकि उन्हें धन जारी करना होता है. उन सभी के बीच समन्वय बनाना और यह सुनिश्चित करना कठिन है कि वे मिलकर काम करें. इससे अक्सर काम पूरा होने में देरी होती है.”
बिहार में चयनित ग्राम पंचायतों में प्रगति केवल 35 प्रतिशत के आसपास है.
राज्य के ग्रामीण विकास विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “अधिकारियों का बार-बार स्थानांतरण योजनाओं की उचित निगरानी में एक मुद्दा है. हम इस समस्या का समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं.”
बिहार और असम जैसे कुछ राज्यों के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने उनसे वीडीपी को संशोधित करने और उन परियोजनाओं या गतिविधियों को हटाने के लिए कहा है जिनकी योजना बनाई गई है, लेकिन अभी तक कोई काम शुरू नहीं हुआ है. असम सरकार के अधिकारी ने कहा, “हम ग्राम विकास परियोजनाओं में बदलाव के लिए गोद लिए गए ग्राम पंचायतों की बैठकें बुलाने की प्रक्रिया में हैं.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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