नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न विधेयकों और अधिसूचनाओं को मंजूरी देने में देरी पर राज्यपाल के खिलाफ तमिलनाडु सरकार की याचिका पर शुक्रवार को केंद्र को नोटिस भेजा है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दे बेहद चिंताजनक हैं.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मुद्दे पर अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल से सहयोग मांगा है.
न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 200 के प्रावधान में कहा गया है कि यदि यह मनी बिल न हो तो राज्यपाल “जितनी जल्दी हो सके” विधेयक को पुनर्विचार के लिए सदन में वापस कर सकते हैं, और यदि विधेयक सदनों द्वारा पारित हो जाता है, तो राज्यपाल इसे रोक नहीं सकते हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि कैदियों की समय से पहले रिहाई के लिए 54 फाइलें 14 अगस्त, 2023 और 28 जून, 2023 के बीच राज्यपाल को सौंपी गईं और टीएन लोक सेवा आयोगों में नियुक्ति के प्रस्ताव भी लंबित हैं.
अदालत ने कहा कि टीएन लोक सेवा आयोग 14 के बजाय 4 सदस्यों के साथ काम कर रहा है.
अदालत ने कहा, ”उठाए गए मुद्दे बेहद चिंताजनक हैं.”
तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल को निर्देश जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है कि उनके कार्यालय में लंबित तमिलनाडु विधानसभा और सरकार द्वारा भेजे गए बिलों और विभिन्न फाइलों को, एक निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर क्लीयर किया जाए.
याचिका में, टीएन सरकार ने राज्यपाल को तमिलनाडु विधानसभा द्वारा भेजे गए और उनके कार्यालय में लंबित सभी बिलों, फाइलों और आदेशों को एक निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर निपटाने का निर्देश देने की मांग की है.
यह याचिका एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड सबरीश सुब्रमण्यम के माध्यम से दायर की गई है.
याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई है कि तमिलनाडु राज्य विधानमंडल द्वारा पारित और भेजे गए विधेयक, जो विचार और सहमति के योग्य हैं, तमिलनाडु के राज्यपाल/प्रथम प्रतिवादी द्वारा संवैधानिक आदेश का पालन करने में निष्क्रियता, चूक, देरी और विफलता मान जाए और उनके हस्ताक्षर के लिए राज्य सरकार द्वारा भेजी गाई फाइलों, सरकारी आदेशों और नीतियों पर विचार न करना असंवैधानिक, अवैध, मनमाना, अनुचित है, साथ ही सत्ता का दुर्भावनापूर्ण इस्तेमाल भी है.
टीएन की सरकार ने कहा, राज्यपाल द्वारा “छूट आदेशों, दिन-प्रतिदिन की फाइलों, नियुक्ति आदेशों, भर्ती आदेशों को मंजूरी देने, भ्रष्टाचार में शामिल मंत्रियों और विधायकों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करने और बिलों पर हस्ताक्षर न करने से तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पूरे प्रशासन को ठप कर रहा है और राज्य प्रशासन के साथ सहयोग न करके प्रतिकूल रवैया पैदा कर रहा है.”
इस प्रकार, राज्य सरकार ने सरकारिया आयोग की सिफारिशों के आलोक में संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विधानमंडल द्वारा पारित और सहमति के लिए भेजे गए विधेयकों पर विचार करने के लिए प्रथम प्रतिवादी राज्यपाल के लिए अंतिम समय सीमा निर्धारित करने का निर्देश जारी करने की मांग की है.
याचिका में कहा गया है, “मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने से इनकार या राज्यपाल की ओर से बिलों या फाइलों पर कार्रवाई में जानबूझकर निष्क्रियता, जिसमें कोई देरी भी शामिल है, संसदीय लोकतंत्र और लोगों की इच्छा को विफल करेगी और लिहाजा यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन है.”
राज्य सरकार ने कहा कि वर्तमान रिट याचिका उस विशिष्ट मुद्दों को लेकर है, जिसमें तमिलनाडु सरकार और विधानसभा उन संशोधनों या परिवर्तन चाह रही है जिसे वे उचित समझें.
याचिका में कहा गया है, “यदि, इस तरह के पुनर्विचार पर, विधेयक को संशोधनों के साथ या बिना संशोधनों के फिर से पारित किया जाता है, और राज्यपाल की सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो उन्हें अपनी सहमति देनी होगी. दूसरे प्रावधान में कहता है कि यदि, राज्यपाल की राय में, उनके समक्ष प्रस्तुत कोई भी विधेयक, उच्च न्यायालय की शक्तियों का अपमान करता है, उच्च न्यायालय संविधान की बनाई गई स्थिति को खतरे में डालता हो तो, वह, राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक रिजर्व रखने के लिए बाध्य हैं.”
तमिलनाडु सरकार ने कहा कि जब जांच अधिकारियों ने भ्रष्टाचार के प्रथमदृष्टया सबूत पाए हैं और मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी हो, तो मंजूरी देने से इनकार कर, पहले प्रतिवादी राज्यपाल राजनीति से प्रेरित आचरण में संलग्न माने जाते हैं. इसमें वह सीबीआई जांच भी शामिल है, जिसे इस न्यायालय ने मंजूरी दी है और जिसका आदेश मद्रास उच्च न्यायालय ने दिया था.
राज्य सरकार ने कहा, “राज्यपाल की निष्क्रियता ने राज्य के संवैधानिक प्रमुख और राज्य की निर्वाचित सरकार के बीच संवैधानिक गतिरोध पैदा कर दिया है और अपने संवैधानिक कार्यों पर कार्रवाई नहीं करके, राज्यपाल नागरिकों के जनादेश के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.”
इसलिए, राज्य सरकार ने सरकारिया आयोग की सिफारिशों के आलोक में विधानमंडल द्वारा पारित और संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत सहमति के लिए भेजे गए विधेयकों पर विचार करने के लिए प्रथम प्रतिवादी के लिए अंतिम समय सीमा निर्धारित करते हुए उचित दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की है.
इसमें प्रथम प्रतिवादी के लिए अपने संवैधानिक कार्यों के निर्वहन में हस्ताक्षर के लिए भेजी गई फाइलों, नीतियों और सरकारी आदेशों पर विचार करने के लिए अंतिम समय सीमा निर्धारित करने वाले दिशा-निर्देश जारी करने की भी मांग की गई.
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