नई दिल्ली : 21 देशों में नए मिशन स्थापित करने से लेकर अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में लगातार उच्च-स्तरीय यात्राओं तक, जो अक्सर अतीत में छोड़ दिए गए थे, इसके अलावा क्वाड जैसी नई साझेदारियों के कारण, भारत की विदेश नीति में पिछले छह वर्षों में तेजी देखी गई है.
यह तब हुआ है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की अध्यक्षता में अपने चार मंत्रियों के समूह के साथ, ‘वैश्विक दक्षिण की आवाज़’ बनना चाहते हैं और विश्व मंच पर भारत का प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं.
मोदी सरकार ने ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को अपनाया है, साथ ही अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ क्वाड जैसी नई साझेदारियों को शामिल करने की अपनी रणनीतिक खेमे का विस्तार करने का भी प्रयास कर रहा है.
2014 में, विदेश मंत्रालय (एमईए) ने उन देशों की एक सूची बनाई थी, जहां वर्षों से किसी भी भारतीय मंत्री ने दौरा नहीं किया था, मामले से परिचित लोगों ने दिप्रिंट को बताया.
ऐसे एक सूत्र ने कहा, “यह लगभग 50 देशों की सूची है, खासकर अफ़्रीका में. यही कारण है कि आपने हाल के वर्षों में अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे अनछुए या रह गए क्षेत्रों में कई उच्च स्तरीय दौरे (प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री या राज्य मंत्री) देखे गए हैं.”
मई 2017 से अक्टूबर 2023 तक विदेश मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत 123 देशों से बढ़कर 144 देशों में मिशन स्थापित कर चुका है. (इसमें मानद कौंसल और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के मुख्यालयों के मिशन शामिल नहीं हैं.)
21 नये देश लिस्ट में जुड़े हैं, 16 अफ्रीका में हैं.
जैसा कि कहा गया है, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के 193 सदस्य देशों में से लगभग 50 में ही भारत के मिशन हैं. अधिक पोस्टें होने से नई दिल्ली को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने की उसकी आकांक्षा को “बढ़ावा” देने में मदद कर सकती हैं, जैसा कि पिछले साल एक संसदीय समिति ने सिफारिश की थी.
वर्तमान में, विश्व में सबसे बड़ी राजनयिक उपस्थिति वाला देश चीन है. लोवी इंस्टीट्यूट के अनुसार, बीजिंग ने 2019 में शीर्ष स्थान रखने वाले अमेरिका को पीछे छोड़ दिया और वर्तमान में कुल 275 पोस्टें कार्य कर रही है. उस सूची में भारत 12वें नंबर पर है.
अधिक मिशनों के अलावा, नई दिल्ली ने अफ्रीका और लैटिन अमेरिका और कैरेबियन (एलएसी) जैसे “अप्रयुक्त” क्षेत्रों में मंत्री-स्तरीय दौरे बढ़ाने का प्रयास किया है, जहां भारतीय जुड़ाव अपेक्षाकृत सीमित है और मुख्य रूप से भारतीय आईटी और फार्मा व्यवसायों द्वारा संचालित है.
अप्रैल में डॉ. एस. जयशंकर की मोजाम्बिक यात्रा किसी भारतीय विदेश मंत्री की पूर्वी अफ्रीकी देश की पहली यात्रा थी.
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Paid homage to the leaders of Mozambique’s freedom struggle at the Heroes Square this morning.
Remembering them brings the Global South together. pic.twitter.com/NSX7OEdpej
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) April 14, 2023
और यह सिर्फ भारत ही नहीं है जो विदेशों में नए मिशन खोल रहा है. मुख्य रूप से विकसित देशों द्वारा अपनी सीमाओं के भीतर अधिक वाणिज्य दूतावास खोले गए हैं, जहां भारतीयों की ओर से वीजा की मांग तेजी से बढ़ रही है.
जून में, अमेरिका ने घोषणा की कि वह अहमदाबाद और बेंगलुरु में वाणिज्य दूतावास खोलेगा. इसका उलटा भी सच है: भारत फ्रांस (मार्सिले) और ऑस्ट्रेलिया (ब्रिस्बेन) में नए वाणिज्य दूतावास खोलने की योजना बना रहा है.
अधिक मिशन, संयुक्त मान्यता को कम करना
विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने पिछले 6 वर्षों में 21 और देशों में मिशन खोले हैं. इनमें से कुछ में मिशनों को फिर से खोलना शामिल है.
बड़ी आबादी वाले अफ्रीकी देश हैं – बुर्किना फासो, कांगो गणराज्य, कैमरून, जिबूती, इक्वेटोरियल गिनी, इरिट्रिया, इस्वातिनी, गिनी, लाइबेरिया, मॉरिटानिया, काबो वर्डे, रवांडा, साओ टोमे और प्रिंसिपे, सिएरा लियोन, सोमालिया और टोगो.
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अन्य में डोमिनिकन गणराज्य (2022), एस्टोनिया (2021), लिथुआनिया (2022), पैराग्वे (2022) और माल्टा (2017 में फिर से खोला गया) शामिल हैं.
लिथुआनिया और काबो वर्दे में मिशन स्थापित होने की प्रक्रिया में हैं, हालांकि राजदूतों की नियुक्ति कर दी गई है.
भारत तिमोर-लेस्ते में भी एक मिशन खोलने के लिए तैयार है, जो कि हिंद और प्रशांत महासागरों के बीच रणनीतिक रूप से स्थित एक द्वीप देश है, जिसे चीन भी हाल के वर्षों में बढ़ावा दे रहा है.
Act East in action – Delhi to Dili: PM Modi announces opening of Indian embassy in Timor-Leste
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— ANI Digital (@ani_digital) September 7, 2023
हालांकि, केंद्रीय कैबिनेट के लिए एक नए मिशन के उद्घाटन का प्रस्ताव के लिए “गंभीर जस्टिफिकेशन” की जरूरत है, इस मामले से परिचित लोगों ने दिप्रिंट को बताया.
उन्होंने कहा कि द्विपक्षीय व्यापार की मात्रा, रणनीतिक लाभ, उस देश में भारतीय प्रवासियों की ताकत और क्या उस देश के साथ नजदीकी सहयोग से संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंचों पर कुछ मानदंड पर लाभ हो सकता है.
(संपादन: इंद्रजीत)
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विदेश मंत्रालय संयुक्त मान्यता को कम करने का भी प्रयास कर रहा है. ऐसा तब होता है जब एक राजनयिक के पास दो या दो से अधिक देशों की जिम्मेदारी होती है.
उदाहरण के लिए, 2019 में भारत द्वारा कैमरून में दूतावास खोलने से पहले, नाइजीरिया में भारतीय राजदूत को आमतौर पर चाड और बेनिन की भी देखना होता था. एक उच्चायुक्त को आमतौर पर मानद कौंसिल द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी – एक अंशकालिक प्रतिनिधि जो उन अन्य देशों में तैनात कैरियर (पेशेवर) राजनयिक नहीं है.
लेकिन प्रति देश एक राजनयिक होना अभी भी एक दूर का सपना है. पनामा, स्विट्जरलैंड, कोलंबिया में भारतीय राजनयिकों के पास अभी भी अपने-अपने क्षेत्र में दूसरे देश की अतिरिक्त जिम्मेदारी है. संयुक्त मान्यता में अपनी चुनौतियों होती हैं.
नाइजीरिया के पूर्व उच्चायुक्त ए आर घनश्याम, जिन्होंने 2013 से 2016 तक बेनिन, कैमरून और चाड में संयुक्त दूत के रूप में कार्य किया, ने गैबॉन जरिए चाड की यात्रा को याद किया, जब चाड-नाइजीरिया सीमा पर बोको हरम आतंकवादियों का नियंत्रण था.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मैं कैमरून में नए मिशन को एक सकारात्मक घटना के रूप में देखता हूं. कुछ दफा, अफ्रीकी देशों ने दिल्ली में मिशन खोले हैं और आपसी आदान-प्रदान को लेकर वर्षों इंतजार किया.”
भारत ने पिछले साल पराग्वे में एक रेजीडेंट मिशन भी खोला था. इससे पहले, अर्जेंटीना में दूतावास को संयुक्त रूप से पराग्वे से मान्यता प्राप्त थी और असुनसियन में एक मानद महावाणिज्यदूत था.
मानद कौंसिल एक मेजबान देश के गैर-वेतनभोगी, अंशकालिक प्रतिनिधि होते हैं, जिसमें नियुक्ति करने वाला देश प्रतिनिधित्व करना चाहता है. वे कैरियर राजनयिक नहीं होते हैं और आमतौर पर हाई-प्रोफाइल बिजनेस लीडर होते हैं जो मेजबान देश में काम संभालते हैं. मई 2017 से अक्टूबर 2023 तक विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के डेटा से पता चलता है कि मानद कौंसिल की संख्या 38 से एक तिहाई घटकर 24 हो गई है.
‘अप्रयुक्त’ क्षेत्रों का मंत्री-स्तरीय दौरा
इस अप्रैल में, 2 साल से भी कम समय में तीसरी बार, विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर एलएसी क्षेत्र के दौरे पर निकले, जिसमें उन्होंने गुयाना, पनामा, कोलंबिया और डोमिनिकन गणराज्य का दौरा किया.
60 साल बाद किसी भारतीय विदेश मंत्री का स्वागत करने वाले देश पनामा में एक मंच पर बोलते हुए जयशंकर ने कहा, “भारत दुनिया के विभिन्न कोनों में अधिक से अधिक उपस्थित होगा.”
दिसंबर 2022 में, जयशंकर ने साइप्रस का भी दौरा किया – 2007 में प्रणब मुखर्जी के देश के दौरे के बाद किसी भारतीय विदेश मंत्री द्वारा पहली बार. वहां, जयशंकर ने अपने साइप्रस समकक्ष इयोनिस कासोलाइड्स से मुलाकात की, जहां उन्होंने यूक्रेन संघर्ष पर चर्चा की और रक्षा व सैन्य समेत तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए.
Such a pleasure to meet my friend FM of Cyprus @IKasoulides at UN Headquarters today.#UNGA pic.twitter.com/BNrXVW72Bs
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) September 23, 2022
जुलाई 2021 में दो नए विदेश राज्य मंत्रियों के शामिल होने – विदेश मंत्रालय को चार मंत्रियों की टीम में विस्तारित करने के साथ- उन देशों के साथ अधिक जुड़ाव की भी अनुमति दी है, जिनका देशों का वर्षों से दौरा नहीं किया गया है.
चार मंत्रियों की टीम में पहले विदेश मंत्री जयशंकर और राज्य मंत्री वी मुरलीधरन शामिल थे, लेकिन अब मंत्री मीनाक्षी लेखी और डॉ. राजकुमार रंजन सिंह भी शामिल हैं.
मुरलीधरन तीनों डिप्टी में से सबसे अधिक यात्रा करते हैं, मुख्य रूप से मध्य पूर्व, खाड़ी और दक्षिण पूर्व एशिया की. इस बीच, लेखी ने उत्तरी मैसेडोनिया, होंडुरास, माल्टा और क्यूबा जैसे कुछ दूर देशों का दौरा किया है. डॉ. सिंह ने कम अकेले कम यात्राएं की हैं.
2019 में, मुरलीधरन ने नाइजीरिया के अलावा किसी और देश की अपनी पहली यात्रा की थी, जो अफ्रीकी देशों के साथ संबंधों को बढ़ावा देने और क्षेत्र में चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए मोदी सरकार के प्रयास को दिखाता है.
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