पांच वर्षों में पीएम मोदी की पहली ‘प्रेस कॉन्फ्रेंस’ एक निराशाजनक मोनोलॉग थी. यदि कोई निर्वाचित नेता जवाबदेह नहीं है, तो यह विचलित करने वाला यकीन नहीं है कि पूछे गये सवालों को लगातार नकारना जो कि उनके आत्मविश्वास की कमी को दर्शाता है. कोरियोग्राफ किए गए साक्षात्कार और सार्वजनिक रैलियों में आलंकारिक विश्वास दिखाना सवाल-जवाब सत्र में पड़ताल का एक विकल्प नहीं हैं.
मोदी, शाह को गोडसे की टिप्पणी के लिए माफी मांगनी चाहिए अन्यथा यह कार्रवाई बहाना है
प्रधानमंत्री ने प्रज्ञा ठाकुर के बयान की भर्त्सना की और अमित शाह ने गोडसे पर दिए बयान से खुद को दूर करना
बहुत छोटा कदम है और बहुत देर से आया है. उन्होंने ये ज़हर बोया है और उन्हें भारतीयों से माफी मांगनी चाहिए. नहीं तो ये चुनाव के आखिरी चरण में नुकसान से बचने के लिए की गई लीपापोती होगी.