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Saturday, 23 November, 2024
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इज़रायल-फ़िलिस्तीन विवाद को केवल क्षेत्रीय संघर्ष के रूप में देखना ‘गंभीर भूल’— हिंदू राइट प्रेस ने लिखा

दिप्रिंट का राउंड-अप, जिसमें पिछले कुछ हफ़्तों में हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने किस तरह समाचारों और सामयिक मुद्दों को कवर किया और उन पर टिप्पणी की.

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नई दिल्ली: संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर के एक संपादकीय में कहा गया कि “भारत सरकार ने इज़रायल के पक्ष में और हमास के आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट रुख अपनाया है.” इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के ‘मूल कारण’ पर विस्तार से बताते हुए संपादक प्रफुल्ल केतकर के लेख में विवेकानन्द को उद्धृत करते हुए कहा गया है कि “इस्लामवादियों के लिए यहूदी और ईसाई कम आस्था वाले सबसे खराब लोग हैं, लेकिन हिंदू मूर्तिपूजक, घृणित और काफिर हैं.”

उन्होंने लिखा कि पूरे संघर्ष को केवल एक क्षेत्रीय दावे के रूप में प्रस्तुत करना “धर्मनिरपेक्ष, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों द्वारा की गई एक गंभीर भूल है”. उन्होंने कहा कि पूरे यूरोप में यहूदी उत्पीड़न का एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन भारत इसमें एक “सम्मानजनक अपवाद” है.

16 अक्टूबर के संपादकीय में लिखा गया, “जेकब, जीसस और फिर मोहम्मद के बाद इब्राहीम जनजाति से उत्पन्न एकेश्वरवादी धर्म एक साथ नहीं रह सकते क्योंकि सर्वोच्चतावादी और विशिष्टतावादी धर्मशास्त्रीय व्याख्या ही समस्या का मूल कारण है.”

केतकर ने लिखा कि “इस्लामवादी यहूदियों के मूल क्षेत्रीय दावे को स्वीकार नहीं कर सकते, इसलिए नफरत है”. इसके बाद उन्होंने यूएई और कुछ हद तक सऊदी अरब के साथ इज़रायल के संबंधों के सामान्य होने का जिक्र करते हुए कहा कि यह “सुधारवादी रास्ता” “इस्लामवादियों के लिए अस्वीकार्य” है, जिसका “इस्लामिक ब्रदरहुड के नाम पर दुनिया भर में विरोध” हो रहा है. 

संपादकीय में यह भी कहा गया है कि भारत के “इज़रायल के पक्ष में” रुख ने देश के भीतर कुछ तत्वों को परेशान कर दिया है और इससे सावधान रहना चाहिए क्योंकि “इस्लामवादियों का समूह, जो आतंक समर्थक राजनेताओं और कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों द्वारा समर्थित है, भारत में भी माहौल खराब कर देगा”.

विवेकानन्द को उद्धृत करने के अलावा, केतकर ने अंबेडकर की “पाकिस्तान पर पुस्तक” का हवाला देते हुए लिखा कि इस्लामवादियों के लिए, “काफिर द्वारा शासित देश दार-उल-हर्ब (युद्ध का घर) है”.

संपादकीय ने यह कहते हुए निष्कर्ष निकाला कि इज़रायल-हमास युद्ध “क्षेत्रीय दावों से परे जाने और आतंकवाद की धार्मिक जड़ों को समझने और संबोधित करने का अवसर है”.

‘मुसलमानों की चुप्पी चरमपंथ का समर्थन’

17 अक्टूबर को ऑर्गेनाइजर में प्रकाशित एक लेख में स्तंभकार पंकज जगन्नाथ जयसवाल ने लिखा कि “छद्म धर्मनिरपेक्षता आतंकवादियों की सहायता कर रही है”.

उन्होंने कहा, “भारत और दुनिया भर के मुसलमानों को यह एहसास होना चाहिए कि उनकी चुप्पी उन अतिवादी संगठनों को सपोर्ट कर रही है, जो सच में मानवता विरोधी हैं. इस पीड़ित आम मुसलमान भी हैं, चाहे वह गाज़ा के हों या फिर सीरिया, इराक, ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के.”

जयसवाल ने हमास के हमले की तुलना अतीत में भारत और अन्य देशों के खिलाफ किए गए अन्य हमलों से भी की.

उन्होंने कहा, “इज़रायलियों पर हमला मानवता पर पहला हमला नहीं है. भारत ने अतीत में ऐसे कई हमलों का अनुभव किया है, जिसमें 1990 में कश्मीरी पंडित नरसंहार, 1921 में मोपला नरसंहार और कई अन्य अत्याचार शामिल हैं. अफगानिस्तान में हाल के अमानवीय कदम उन लोगों के लिए स्पष्ट संकेतक हैं जिन्होंने अतीत में ऐसे अमानवीय कार्यों पर सवाल उठाया था जब डिजिटल और सोशल मीडिया उतना सक्रिय नहीं था.”

उनके अनुसार, ऐसे “भयानक अपराध अभी भी धार्मिक चरमपंथियों, कम्युनिस्ट छद्म-धर्मनिरपेक्षतावादी गिरोहों, मानवता के दुश्मनों द्वारा किए जाते हैं जो बाद में खुद को मानवता के संरक्षक के रूप में प्रस्तुत करते हैं”.

जयसवाल ने लिखा, “साम्यवाद और शहरी नक्सलवाद देश को अस्थिर करने और इसके मजबूत सांस्कृतिक आधार को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं. हालांकि, अगर हम इतिहास में पीछे जाएं, तो हम देख सकते हैं कि इन सभी स्वार्थी तकनीकों के परिणामस्वरूप आपदा और मानवता का विनाश हुआ है.”


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रिज़वान और उसका ‘संदेश’

इज़रायल-हमास संघर्ष पर संघ के हिंदी मुखपत्र पांचजन्य के संपादकीय में भी लिखा गया. पत्रिका के संपादक हितेश शंकर ने अपने लेख में हमास के हमले की तुलना कश्मीर में हुए अत्याचारों से की – जो कि कश्मीरी पंडितों के पलायन का एक स्पष्ट संदर्भ था.

15 अक्टूबर को छपे संपादकीय में लिखा गया, “यह कहा जाना चाहिए कि इज़रायल की महिलाओं और बच्चों के साथ जो वीभत्सता और क्रूरता दिखाई गई, वह ऐसी कोई चीज़ नहीं थी जिसका भारत ने बार-बार और हाल ही में कश्मीर में सामना नहीं किया हो. लेकिन शायद इससे भी बड़ी त्रासदी यह थी कि तमाम तूफ़ानों के बाद जिस तरह भारत धीरे-धीरे अपनी सामान्य लय में लौटा, उसे भारत की स्वाभाविक कमजोरी माना गया. दुःख की बात यह है कि भारत के इस दर्द को समझने की कोशिश न के बराबर की गई. अपनी जघन्यता और क्रूरता के लिए माफ़ी मांगना तो दूर, एक ऐसा वर्ग देखा गया है जो आज तक उसी का दावा करता है.”

शंकर ने पाकिस्तानी क्रिकेटर मुहम्मद रिज़वान का उदाहरण देते हुए लिखा कि दुनिया भर में कई लोगों ने हमास के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है, जिन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में मौजूदा विश्व कप में श्रीलंका पर अपनी टीम की जीत को गाजा में लोगों को समर्पित किया था.

उन्होंने लिखा: “एक अतिथि होने के बावजूद, उन्होंने (रिज़वान) हैदराबाद के मैदान में नमाज़ पढ़के एक संदेश देने की कोशिश की. यह संदेश क्या था? और यह किसके लिए था?”

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग के बारे में लिखते हुए, RSS से संबंध रखने वाले स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने जर्मन निजी सहायता एजेंसी वेल्थुंगरहिल्फे पर सवाल उठाया. बता दें कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत को 125 देशों में से 111वें स्थान पर दिखाया गया है. वेल्थुंगरहिल्फे इंटरनेशनल एनजीओ कंसर्न वर्ल्डवाइड के साथ मिलकर यह सूचकांक तैयार करती है. 

महाजन ने लिखा, “भारत सरकार द्वारा प्रकाशित आंकड़े जहां साल 2020 में शिशु मृत्यु दर 28 प्रति हजार दिखा रहे थे, वहीं अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां ​​अपने पुराने अनुमान के आधार पर इसे 29.84 बता रही हैं. यह उल्लेखनीय है कि किसी भी विदेशी या भारतीय एजेंसी को सरकार द्वारा प्रकाशित डेटा के अलावा किसी भी डेटा का उपयोग करने की अनुमति नहीं है,”

उन्होंने कहा कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट “खुले तौर पर कहती है” कि वह केवल विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर निर्भर हो, यह जरूरी नहीं है. उन्होंने लिखा, “भारत में तेजी से सुधरते हालात शायद नापाक एजेंडे के साथ काम करने वाले संगठनों को खुश नहीं कर रहे हैं.”

महाजन ने कहा कि यदि “सही डेटा” को ध्यान में रखा जाए, तो भारत ’48वें स्थान पर होगा न कि 111वें’ स्थान पर.


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‘माओवादी छिपे हुए राक्षस हैं’

विश्व हिंदू परिषद (VHP) की पाक्षिक पत्रिका हिंदू विश्व के एक संपादकीय में “माओवादी विचार के पूर्ण उन्मूलन” को आवश्यक बताते हुए न्यूज़क्लिक और उसके कर्मचारियों के खिलाफ दिल्ली पुलिस और ईडी की कार्रवाई का विरोध करने वाले पत्रकारों की आलोचना की गई.

संपादकीय में लिखा गया, “जैसे-जैसे भारत सरकार चीन-प्रेरित आतंकवादी नक्सलियों पर अपना शिकंजा कस रही है, भारत विरोधी पत्रकार इस कार्रवाई को पत्रकार विरोधी बताते हुए शर्मनाक बयान दे रहे हैं. यह पहली बार नहीं है कि शहरी माओवादियों को गिरफ्तार किया गया है. इससे पहले भी 20 से अधिक उच्च स्तरीय शहरी माओवादियों को गिरफ्तार किया गया था.”

इसमें आगे कहा गया, ‘माओवादी भेष बदलकर काम करने वाले राक्षसों से कम नहीं हैं.’

इसमें लिखा गया, “कभी वे भगत सिंह की आड़ लेने लगते हैं, तो कभी कबीर की आड़ में कबीर कला मंच जैसे संगठन चलाने लगते हैं. माओवादियों ने सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित राजनीतिक दल फॉरवर्ड ब्लॉक पर कब्ज़ा कर लिया, फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (PUCLDR) पर कब्ज़ा कर लिया और इसे PUCL (पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़) के नाम से पंजीकृत कर लिया. इन दिनों वे मानवाधिकार संगठनों की आड़ में आतंकवादियों की वकालत करते नजर आ रहे हैं.”

‘भारतीय धरती पर छाया युद्ध’

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की मासिक पत्रिका राष्ट्रीय छात्र शक्ति में प्रकाशित एक संपादकीय में कहा गया है कि हमास के विरोध और इज़रायल के समर्थन को इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में हस्तक्षेप के रूप में नहीं बल्कि “आतंकवाद के खिलाफ मानवता की रक्षा के उपाय” के रूप में देखा जाना चाहिए. 

इसमें कहा यहा, “दो विश्व युद्धों के बाद भी, पश्चिम की युद्ध की प्यास नहीं बुझी है और वह एक बार फिर युद्ध के मैदान में दिखाई दे रहा है. भारत ने कभी भी किसी सभ्यता को नष्ट करने की कोशिश नहीं की है और जब तक भारत अपने मूल्यों के साथ जीवित है, तब तक ऐसा कभी नहीं करेगा. यह तर्क से परे है कि यह भारत का संघर्ष नहीं है, फिर भी यह संघर्ष छाया युद्ध के रूप में भारतीय धरती पर जारी है.”

इज़रायल के लिए पश्चिमी देशों के समर्थन को “स्वाभाविक” बताते हुए लेखक ने लिखा है कि “जिस क्रूरता के साथ हमास ने हमला किया और निर्दोष नागरिकों और यहां तक ​​कि बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को बेरहमी से मार डाला, उसकी हर समझदार व्यक्ति द्वारा निंदा की जाएगी”.

इसमें कहा गया है कि यह हमला “वैश्विक आतंकवाद के सबसे जघन्य रूप की श्रेणी में आता है, जिसकी न केवल निंदा की जानी चाहिए बल्कि इसका तेजी से मुकाबला भी किया जाना चाहिए”.

संपादकीय में आगे कहा गया है कि यह “चिंता का विषय है कि भारत में राजनीतिक विपक्ष इस संवेदनशील मुद्दे पर भी राष्ट्रीय नीति के पक्ष में खुलकर सामने आने से झिझक रहा है”.

इसमें आगे लिखा गया, “वसुधैव कुटुंबकम जैसे महान विचार की विरासत के ध्वजवाहक होने के नाते, यह प्रत्येक भारतीय, विशेषकर उसके नेतृत्व की जिम्मेदारी है कि वह मानवता पर हर हमले के खिलाफ खड़ा हो.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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