हापुड़: ‘मुझे बाबू(नरेंद्र) ने उस दिन अपने घर बुलाया. कहा कि बहुत सारा काम पड़ा है. घर की औरतें बाहर गई हुई हैं. जब मैं वहां पहुंची तो उसने अपने घर में ही बलात्कार किया. उस वक्त मुझे माहवारी आई हुई थी. लेकिन उसने फिर भी किया. दूसरी बार उसने खेतों में किया. फिर रामू ने भी घर पर काम करने के लिए बुलाया. अपने घर के कोने में पड़े तख्त पर किया. फिर श्यामू, गुड्डू ने किया. एक ने खेत में जाते हुए खंभे के पास रोककर किया. एक ने बागान में काम करते हुए देख लिया तो उसने भी किया. एक ने शुरुआत की और फिर लाइन बढ़ती गई…’
दिल्ली के सरकारी अस्पताल में अपने झुलसे शरीर को एकटक देखती गीता बताए जा रही हैं. वो उन जगहों के बारे में भी बता रही थी, जहा उसके साथ बलात्कार हुआ ताकि कोई जांच हो सके. गीता बार-बार कह रही हैं, ‘मैं झूठ नहीं बोल रही हूं. इतना झूठ बोलूंगी कि खुद को ही आग लगा लूंगी?’
क्या है विक्टिम गीता की ज़िंदगी का पथ?
हापुड़ के शैषपुरा में 1990 मे गीता का जन्म हुआ और ये धुना जाति( पिंजने का काम करने वाले) की हैं. परिवार दयनीय हालत में गुज़र बसर कर रहा है. इनकी पहली शादी 2009 में मोनू से हुई. ‘मुझे पहला बच्चा सतवासा हुआ था. यानी सात महीने में ही हो गया. फिर मेरा पति मेरे से दहेज की मांग करने लगा. हमारी लड़ाई होने लगी. फिर हमारा तलाक हो गया.’ पुलिस को दिए बयान में मोनू ने कहा है कि गीता को बच्चा पांचवें महीने में हो गया था और उसे उसके चरित्र पर शक था, जो तलाक की वजह बना. गीता का पहला बच्चा 9 साल है और शरीर किसी 5-6 साल के बच्चे की तरह.
पहले तलाक के बाद 2012 में गीता की शादी श्यामपुर जट्ट गांव के विनोद से तय की गई जो जाट परिवारों में बंधुआ मज़दूर की तरह काम करता था. गांव के कुछ लोगों का कहना है कि चाचा-ताउओं को मिलाकर ये 4-5 पांच भाई हैं, इनकी शादियां नहीं हो रही थीं. विनोद के पास घर के नाम पर सिर्फ ईंटों से बने दो कमरे हैं जिसमें तीन बच्चे, एक कुंवारी बहन, माता-पिता और गीता रह रही थी. विनोद जिन जाट परिवारों के खेतों में काम करता है उनका कहना है, ‘ये हमारे यहां बचपन से ही रहा है. सारा काम करता है. भैंसों को नहलाना, खेत-क्यार सारा.’ विनोद के दूसरों से ब्याज पर पैसे लेने की बात पर गांव वालों का कहना है, ‘ब्याज में लेता तो है, लेकिन किस गरीब आदमी का गुजारा बिना ब्याज के चलता है?’
क्या कहानी की जड़ में है बंधुआ मज़दूरी?
आरोपी रामू-श्यामू के परिवार वाले विनोद की ऐसे बात करते है जैसे वो इंसान न हो कोई पालतू जानवर हो. कहते हैं, ‘कभी भी बिना पूछे सामान नहीं उठाता. हमारा सामान कोई उठा ले तो ये लड़ाई तक कर लेता है.’ लेकिन इतनी वफादारी दिखाते हुए भी इन परिवारों से विनोद को ब्याज में पैसे उधार दिए हैं, जिसे वो चुका नहीं पा रहे थे और जिसकी वजह से ये मालिक गीता का शोषण कर रहे थे. इस शोषण का ज़िक्र गीता ने अपनी एफआईआर में भी किया है. वे दिहाड़ी न मिलने का आरोप लगती हैं और दिहाड़ी के बदले शोषण का ज़िक्र भी करती हैं.
गीता-अनुज की मुलाकात
अनुज के घर गीता लिपाई-पुताई के दौरान काम करने गई थी. इसी दौरान ही उसकी बातचीत अनुज से हुई. उसके बाद वो कांवड़ के लिए लगाए एक भंडारे में मिले. गीता ने अपने साथ हुए बलात्कार की कहानी अनुज को बताई. अनुज का कहना है कि वो बलात्कार की बात लेकर गांव के प्रधान के पास गए. लेकिन इस मामले में प्रधान के ही घर के दो आदमियों के नाम आने से वो मामले को दबाने की कोशिश करने लग गए. गांव के प्रधान ने दिप्रिंट को बताया कि उनके पास अनुज या गीता की कोई शिकायत नहीं आई.
दोनों के गांव छोड़ने पर विवाद
गीता का कहना है कि वो अनुज के साथ गांव छोड़कर चली गई क्योंकि गांव ने पंचायत करके निकाला था. लेकिन अनुज के पिताजी इन दोनों को वापस ले आए. पंचायत अब इस बात से भी इनकार कर रही है कि इस मामले को लेकर कोई पंचायत हुई थी. गांव के ज्यादातर लोग कह रहे हैं कि अब से डेढ़ साल पहले गीता विनोद के घर से भाग गई थी.
अनुज ने बताया, ’10 अप्रैल 2018 को गीता के पति के साथ बहस हुई और उसके बाद हम 25 मई 2018 को फिर गांव छोड़कर चले गए. यहां से जाने के बाद हम मुरादाबाद में रहने लगे. मेरी की एक मुंशी के यहां 9000 की नौकरी लग गई. 600 रुपए प्रति महीना किराए पर रहने लग गए. इस दौरान गीता ने पुलिस को लगातार प्रार्थना पत्र लिखकर बच्चे वापस करने की बात कही. लेकिन पुलिस ने इसपर कोई संज्ञान नहीं लिया.’
अनुज की छवि अपराधी की तरह पेश की जा रही
पुलिस का कहना है कि पिछले एक साल से उनके पास लगातार बच्चों को लेकर ही शिकायत दर्ज हुई हैं. गीता के केस में कभी रेप का जिक्र नहीं हुआ. ये पिछले 15 दिनों से ही बात उछली है. लेकिन गीता कह रही हैं, ‘ मैंने महिला हेल्पलाइन नंबर पर बलात्कार की शिकायत दर्ज की है.’ गांववाले अनुज का मजाक बनाते हुए कह रहे थे कि वो पता नहीं कैसे न्याय, जस्टिस, सोशल जस्टिस की बातें करने लगा था. एक तरह से अनुज को पागल घोषित किया जा रहा है.
अनुज के रिटायर्ड फौजी पिता बताते हैं, ‘इसको हमने आर्मी की तैयारी के लिए मेरठ भेजा था. पता नहीं वहां इसे किसी ने क्या खिलाया है कि ये न्याय की बातें करने लगा था.’
अनुज के पिता की दो शादियां हो चुकी हैं. अनुज ने साल 2010 के आसपास अपने ही पिता के खिलाफ भी शिकायत दर्ज की थी कि वो उन्हें पैसे नहीं देते हैं.
भाईचारे का हवाला देते हुए उनके पिता भी गांव की हां में हां मिला रहे हैं. लेकिन ये भी बताते हैं, ‘गरीब परिवार शोषित तो होता है. इस गांव के कुछ लोग रसूखदार हैं. हो सकता है गीता के साथ ऐसा हुआ हो. लेकिन हमें बताती तो हम आवाज़ उठाते. मेरे बेटे का करियर खराब करने की क्या ज़रूरत थी.’
अनुज के साथ चले जाना है गीता का सबसे बड़ा अपराध
गीता के बारे में उनके दोनो पतियों का का कहना है कि उनका चरित्र खराब था. गांव की महिलाएं भी कह रही हैं कि वो लिपस्टिक-बिंदी लगाती थी. वहीं गीता के मां-बाप के लिए उसका सबसे बड़ा अपराध है कि वो डेढ़ साल पहले किसी जाट लड़के के साथ क्यों गई. पिता कहते हैं, ‘अगर उसके साथ गलत काम हो रहा था तो मुझे बताती. मैं समाधान ढूंढता.’ गीता के जले हुए शरीर की तस्वीरें जब उन्हें दिखाती हूं तो वो कहते हैं, ‘मरे या जिए. मेरा नाम खराब कर दिया. कोई रिश्तेदार नहीं आएगा.’ लेकिन मां भावुक होकर गीता की तस्वीरें और वीडियो देखती हैं. लेकिन कहती कुछ नहीं.
गीता के एक चाचा कहते हैं, ‘वो जलेगी क्यों? हमें ये पूरा मामला तो नहीं पता लेकिन इसकी जांच ज़रूर होनी चाहिए.’ बाबूगढ़ थाने में गीता के पिता के बयानों को पुलिस ने अपने हिसाब से मोड़-तोड़ लिया है. एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि उसके पिता के ही शब्द थे कि वो धंधा करती है, उसको फांसी दे दो. गीता के पिता इस बात से इनकार करते हुए कहते हैं, ‘मैं गुस्से में उबल रहा था. लेकिन मैंने ऐसा नहीं कहा है.’
गांव की महिलाएं गीता के जले शरीर की वीडियो देखने को उत्सुक हैं लेकिन वीडियो दिखाने के बाद कहती हैं, ‘ये मर क्यों नहीं जाती. इससे पूरा गांव त्रस्त है.’
‘क्रॉनिकल ऑफ ए डेथ फोरटोल्ड’ जैसी कहानी बन गई है
इस कहानी में कथित इज़्ज़त सबसे बड़ी बात हो गई है. डेढ़ साल पहले भागने की घटना हर चीज़ पर भारी है. इस अपराध के आगे कोई भी अपराध छोटा लगता है. गांववाले, पुलिस सब किसी जांच या फैक्ट के बजाय पूर्वाग्रह वाली बातें कर रहे हैं. लड़की को पहले से ही दोषी मानकर बैठे हुए हैं.
बाबूगढ़ पुलिस थाने में मैं जब गई तो पुलिस अधिकारी और स्थानीय पत्रकार इस मामले पर जजमेंट देते हुए नज़र आए. उनके मुताबिक जिस स्त्री की दो शादियां हो चुकी हों और तीसरे के साथ रह रही हो उसका क्या भरोसा. पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, इस महिला के खिलाफ वेश्यावृति करने की शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं. लेकिन पुलिस के पास ऐसी शिकायतें आई तो कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई के सवाल पर पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है.
गीता के पति विनोद बार-बार कहते हैं कि उन्हें इंसाफ चाहिए. लेकिन इंसाफ के सवाल पर कहते हैं, ‘ये सारे आदमी निर्दोष हैं. इनके नाम हटाए जाएं.’
गीता के केस के बारे में गांव के लोग एक सांस में कहते हैं कि उसके गांव के मर्दों के साथ संबंध तो थे लेकिन दूसरी सांस में ही ये भी कहते हैं कि किसी मर्द के साथ कोई संबंध नहीं थे. सबकी बातें विरोधाभाषी हैं.
आखिरी सहारा है डीएनए टेस्ट
गीता के पक्ष में एक ही तर्क जा सकता है. वो अपने एक बेटे के बारे में लगातार बता रही हैं कि बाबू ने जब रेप किया, तो ये पैदा हुआ. अगर रेप के आरोपी व्यक्ति और बच्चे का डीएनए टेस्ट करा लिया जाए तो पता चलेगा. पर पुलिस का जिस तरीके का रवैया है, ये डीएनए टेस्ट किसी अन्य की निगरानी में कराया जाए तो ज्यादा अच्छा रहेगा. गैर जिम्मेदाराना तरीके से इस केस से डील किया जाएगा तो सच का शायद ही पता लगेगा.
एक पीड़िता की कहानी इस समय दावों और प्रतिदांवों के पेंच में फंस गई है और न्याय की आस और समाज के पूर्वाग्रह ने उनका जीवन नरक बना दिया है.
(पीड़ितों के नाम बदले गए हैं)