गुरुग्राम: हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को 9वीं शताब्दी के सम्राट मिहिर भोज के बारे में “ऐतिहासिक तथ्यों की जांच” करने के लिए एक पैनल का गठन किया है. बता दें कि सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का जुलाई में कैथल में अनावरण किया गया था, जिसके बाद से गुर्जर और राजपूत समुदायों के बीच विवाद पैदा हो गया है.
सरकार का यह कदम दो दिन बाद आया है जब राजपूत (क्षत्रिय) समुदाय ने कैथल में एक महासम्मेलन आयोजित किया था और मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी-जेजेपी सरकार को अल्टीमेटम दिया था. इस महासम्मेलन में अगले साल के चुनावों में बीजेपी का विरोध करने और उनके नेताओं को इलाके में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी गई थी. समुदाय के लोगों का कहना था कि यदि उनकी शिकायतों का समाधान नहीं किया गया तो उनके गांव में उनके नेताओं को घुसने नहीं दिया जाएगा.
दिप्रिंट द्वारा देखे गए हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार, करनाल डिविजनल कमिश्नर के नेतृत्व में सात सदस्यीय पैनल, जिसमें इतिहासकार, पुलिस अधिकारी और वकील शामिल हैं, का गठन किया गया है. इसमें कहा गया है कि इसका गठन “दुष्प्रचार के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से” किया गया है.
आदेश में कहा गया है कि करनाल के मंडलायुक्त समिति के अध्यक्ष होंगे और करनाल रेंज के पुलिस महानिरीक्षक उपाध्यक्ष होंगे तथा कैथल के उपायुक्त इसके सदस्य सचिव होंगे.
इसमें कहा गया है, “पुलिस अधीक्षक कैथल, दोनों पक्षों (राजपूत और गुर्जर) के वकील और पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में मध्यकालीन इतिहास के प्रोफेसर राजीव लोचन और प्रियतोष शर्मा समिति के सदस्य होंगे.”
हालांकि, क्षत्रिय संघर्ष समिति के अध्यक्ष कर्नल देवेंदर सिंह राणा (सेवानिवृत्त) ने कहा कि सरकार द्वारा गठित समिति द्वारा इस मुद्दे को हल करने की संभावना नहीं है और कहा कि कोई भी दो इतिहासकार कभी भी एक आम निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं.
उन्होंने शनिवार को दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने सेना में राजपूत रेजिमेंट की चौथी बटालियन में काम किया था, जहां रेजिमेंट में लगभग 50 प्रतिशत सैनिक राजपूत थे और बाकी गुर्जर थे.
कर्नल राणा ने कहा, “दोनों समुदायों के बीच कोई मतभेद नहीं थे, लेकिन वर्तमान बीजेपी सरकार अपने फायदे के लिए एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रही है.”
उन्होंने आगे कहा कि राजपूत समुदाय को बीजेपी सरकार से न्याय की कोई उम्मीद नहीं है और वे पहले से ही राजनीतिक और कानूनी मोर्चों पर लंबी लड़ाई के लिए खुद को तैयार कर चुके हैं. उन्होंने आगे कहा कि 30 सितंबर को करनाल में आयोजित राजपूत महाकुंभ में उन्होंने तीन समितियों का गठन किया था- संघर्ष समिति, एक इतिहासकार समिति और एक कानूनी समिति – जो उन्हें लड़ाई में मदद करेगी.
राणा ने कहा, “हम लड़ाई के लिए तैयार हैं. लेकिन अगर बीजेपी सरकार 15 दिनों के भीतर हमारी सभी मांगें पूरी नहीं करती है, तो हम उनके किसी भी नेता को अपने गांवों में घुसने नहीं देंगे. आने वाले संसदीय और विधानसभा चुनावों में उन्हें सबक सिखाया जाएगा.”
इस बीच, बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता संजय शर्मा ने कहा कि इस विवाद से बीजेपी का कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने कहा, “अगर बीजेपी का समर्थन करने वाले दो अलग-अलग समुदायों के बीच किसी मुद्दे पर विवाद है, तो यह पार्टी का मुद्दा नहीं बनता है. न ही इसका मतलब यह है कि पार्टी इसे बढ़ावा दे रही थी. बीजेपी इस मुद्दे को सुलझाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और शुक्रवार को गठित समिति उसी दिशा में एक कदम है.”
कैथल से गुर्जर समुदाय से बीजेपी विधायक लीला राम, जो बीजेपी के जिला अध्यक्ष अशोक गुर्जर के साथ मूर्ति स्थापित करने के कदम के पीछे थे, ने दिप्रिंट द्वारा की गई कॉल का कोई जवाब नहीं दिया.
जब दिप्रिंट ने अशोक गुज्जर से उनके फोन पर संपर्क किया तो उन्होंने इसपर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
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राजपूत समाज की मांगें
20 जुलाई को विधायक लीला राम द्वारा कैथल में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किए जाने के बाद से राजपूत समुदाय बीजेपी से नाराज है.
गुर्जर और खट्टर कैबिनेट में मंत्री कंवर पाल को प्रतिमा का अनावरण करना था, लेकिन जब राजपूत समुदाय ने कार्यक्रम से एक दिन पहले इस कदम का विरोध करना शुरू कर दिया तो उन्होंने कार्यक्रम छोड़ दिया और कथित तौर पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज के बाद भीड़ को तितर-बितर कर दिया गया.
शुक्रवार को कैथल में महासम्मेलन में, राजपूत समुदाय ने कई शिकायतें उठाईं और हरियाणा में सम्राट मिहिर भोज की सभी मूर्तियों से गुर्जर शब्द हटाने और इसके बजाय उन्हें ‘हिंदू सम्राट’ कहने की मांग की.
उन्होंने क्षत्रिय आयोग के गठन और जोधा अकबर और पद्मावत फिल्मों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान राजपूत समुदाय के लोगों के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों को वापस लेने की भी मांग की है.
शिकायतों में राष्ट्रीय नायकों के इतिहास और पहचान के साथ छेड़छाड़ को तत्काल रोकने का भी आह्वान किया गया. समुदाय ने उन अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की है जिन्होंने सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के अनावरण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान राजपूत युवाओं पर कथित तौर पर लाठीचार्ज का आदेश दिया था.
इसके अलावा, समुदाय ने पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल की घोषणा के अनुसार कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में महाराणा प्रताप चेयर स्थापित करने और उन्हें सिखों की तरह तलवारें ले जाने का अधिकार देने की मांग की है.
राणा के अनुसार, राजपूत समुदाय ने कभी भी सम्राट मिहिर भोज की पहचान या जाति स्थापित करने के लिए स्टैंड नहीं लिया है. उन्होंने कहा, “हमने हमेशा माना है कि महापुरुष (राष्ट्रीय नायक) पूरे देश के होते हैं, किसी विशेष समुदाय के नहीं.”
उन्होंने कहा कि “हमने कभी मिहिर भोज के नाम के साथ क्षत्रिय सम्राट या राजपूत सम्राट अंकित करने की मांग नहीं की.”
राणा ने कहा, “हम चाहते हैं कि मिहिर भोज के नाम के आगे गुर्जर शब्द हटा दिया जाए और हिंदू सम्राट शब्द लिखा जाए.”
(संपादन : ऋषभ राज)
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