बेंगलुरु: कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा ने जनता दल (सेक्युलर) के साथ गठबंधन करने के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आलाकमान के फैसले पर सवाल उठाया और कहा कि यह पुराने मैसूरु क्षेत्र में पार्टी कैडरों को कमतर करने जैसा है व संभवतः जमीनी स्तर के कार्यकर्ता इसका समर्थन नहीं करेंगे.
हालांकि, सीट बंटवारे को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है, दिप्रिंट ने बताया है कि जेडी(एस) बेंगलुरु ग्रामीण के अलावा, मांड्या, हसन और चिक्कबल्लापुरा संसदीय सीटों को सुरक्षित करने की उम्मीद कर रहा है – ये सभी पुराने मैसूरु क्षेत्र में हैं.
गौड़ा ने दिप्रिंट को बताया, ”मेरी जानकारी के अनुसार, राज्य के किसी भी नेता से सलाह नहीं ली गई.” उन्होंने कहा कि जब तक केंद्रीय नेतृत्व कुछ दिशा-निर्देश या प्रेरणा नहीं देता, तब तक जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए हाथ मिलाना मुश्किल होगा.
उन्होंने कहा,“जिन क्षेत्रों में जेडी(एस) का थोड़ा एकाधिकार है, वह पुराना मैसूर क्षेत्र है. लेकिन बीजेपी ने इस बार इस क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया है. पहले हमें 4-5 फीसदी (वोट शेयर) मिलता था, लेकिन इस बार हम 17 फीसदी तक पहुंच गए हैं. तो कई नेता भी उभरे हैं. अब जेडी(एस) के एनडीए का हिस्सा बनने के बाद, जहां तक उस क्षेत्र का सवाल है, खुद-ब-खुद सभी निर्णयों में जेडी(एस) को प्राथमिकता दी जाएगी. इसलिए, हमारे जिन लोगों ने कई वर्षों तक कड़ी मेहनत की, उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए,”
दोनों पार्टियां, जो कर्नाटक चुनाव से पहले आमने-सामने थीं, अब गठबंधन की खातिर अपनी प्रतिद्वंद्विता को नजरअंदाज करने के लिए मजबूर होंगी.
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और जेडी(एस) के बीच इसी तरह के चुनाव पूर्व गठबंधन की हार हुई थी और भाजपा ने कर्नाटक में 28 में से 25 सीटों पर अभूतपूर्व जीत हासिल की थी. लेकिन 10 मई के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने सत्ता खो दी और जेडी(एस) का वोट शेयर पांच प्रतिशत घटकर 13 प्रतिशत रह गया. कांग्रेस ने कर्नाटक की 224 सीटों में से 135 सीटें जीतीं.
गौड़ा ने कहा, “ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि सिर्फ इसलिए कि हम 2023 का चुनाव हार गए, हमने उनके साथ गठबंधन किया है. नहीं, ऐसा नहीं है. जैसा कि मैंने पहले कहा, जब कांग्रेस कर्नाटक में शासन कर रही थी, तब भाजपा को 18 सीटें मिलीं.”
जब से गठबंधन की घोषणा हुई है, दोनों दलों के बीच पहले चुनाव पूर्व गठबंधन को सही ठहराने के लिए विभिन्न गणनाओं और समीकरणों का इस्तेमाल किया गया है. सबसे महत्वपूर्ण है सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली अहिंदा (अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए कन्नड़ संक्षिप्त नाम) का मुकाबला करने के लिए लिंगायत समर्थित भाजपा और वोक्कालिगा समर्थित जेडी(एस) का एक साथ आना.
गौड़ा ने कहा कि गठबंधन तभी काम करेगा जब केंद्रीय नेता दोनों संगठनों के बीच मतभेदों को दूर करेंगे. उन्होंने कहा, जेडी(एस) के साथ करीबी जुड़ाव और गठबंधन ही एकमात्र मुद्दा है. अगर केंद्रीय नेता इस मुद्दे को सुलझा लें तो सब कुछ ठीक हो जाएगा.”
कर्नाटक की अस्थिर राजनीति में, जेडी(एस) भाजपा और कांग्रेस दोनों के साथ गठबंधन करने वाली एकमात्र प्रमुख पार्टी रही है. जेडी(एस) और भाजपा के बीच पुराने मैसूरु क्षेत्र में अनौपचारिक समझ रही है, जहां भाजपा के बीच सीमित कार्यकर्ता जेडी(एस) के समर्थन में काम करेंगे. लेकिन उत्तरी जिलों में इसके विपरीत स्थिति होगी, जहां जेडी(एस) की सीमित उपस्थिति है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि दोनों पार्टियां कांग्रेस को ‘कॉमन दुश्मन’ मानती हैं.
दिप्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि जेडी(एस) का वोक्कालिगाओं पर कुछ प्रभाव पड़ने की संभावना है, जिससे वे बीजेपी को वोट देने के लिए राजी हो जाएं, लेकिन मुसलमानों पर इसका बहुत बहुत सीमित प्रभाव पड़ने की संभावना है.
जेडी(एस) के वरिष्ठ नेता एच.डी. रेवन्ना ने कहा है कि मुस्लिम समुदाय पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा के साथ रहेगा, लेकिन पार्टी के गढ़ के लोग क्षेत्रीय दल के साथ बने रहने को लेकर आश्वस्त नहीं हैं.
माना जाता है कि अल्पसंख्यकों के एक बड़े हिस्से ने 2023 के विधानसभा चुनावों में जेडी(एस) को छोड़कर कांग्रेस का समर्थन किया था. गौड़ा ने कहा, “अगर जेडी(एस) गठबंधन के समय भी अपने कार्यकर्ताओं को बरकरार रखने में सक्षम है, तो खुद-ब-खुद.. राज्य भर में मौजूदा स्थिति के कारण एक निश्चित प्रतिशत (अल्पसंख्यकों का) जा सकता है… सिर्फ इसलिए कि भाजपा पर एक सांप्रदायिक पार्टी होने का ठप्पा लग गया है.”
भाजपा-जेडी(एस) गठबंधन लिंगायत और वोक्कालिगा कॉम्बिनेशन को भुनाने की उम्मीद कर रहा है. गौड़ा ने कहा, “जाति जनगणना चल रही है. जाति जनगणना का वोक्कालिगा और लिंगायत दोनों ने विरोध किया है. इसलिए, एक बिंदु था जहां हमारा एक साझा एजेंडा हो सकता है.” उन्होंने आगे कहा, कांग्रेस में 37 लिंगायत विधायक हैं जो इस बात पर विभाजित हैं कि क्या कर्नाटक में जाति जनगणना के निष्कर्षों को जारी किया जाना चाहिए या रद्द कर दिया जाना चाहिए.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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