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Tuesday, 19 November, 2024
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UP में कमजोर हो रही है BSP और कैसे राजनीतिक दल कांशीराम को अपना बताने में जुटे हैं

सपा, कांग्रेस, भाजपा और एएसपी ने दलित समुदाय के लिए आउटरीच कार्यक्रम की योजना बनाई, तो बसपा प्रमुख मायावती ने उन्हें पार्टी संस्थापक का 'नया शुभचिंतक' बताया और कहा कि यह 2024 से पहले 'वोट की खातिर दिखावा' है.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश (यूपी) में राजनीतिक दल अनुसूचित जाति (एससी) या दलितों को, जो कि उनके लिए एक प्रमुख वोट बैंक और कथित तौर पर राज्य की आबादी का 21 प्रतिशत है – को लुभाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिससे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का साथ छूटता और दूर होता दिख रहा है.

9 अक्टूबर को बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्य तिथि इन पार्टियों के मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी (सपा), भाजपा और कांग्रेस के लिए दलितों तक पहुंचने के लिए अभियान शुरू करने का एक और अवसर बन गई, जिसके बाद बसपा प्रमुख मायावती ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर कटाक्ष किया और उन्हें कांशी राम के “नए शुभचिंतक” कहा.

यूपी कांग्रेस प्रमुख अजय राय ने सोमवार को बसपा संस्थापक को पुष्पांजलि अर्पित की और लखनऊ में दलितों को साधने के लिए ‘दलित गौरव संवाद’ शुरू किया – जो राज्य के 80 लोकसभा क्षेत्रों में 4,000 रात्रि चौपाल (छोटी बैठकें) आयोजित करने का एक महत्वाकांक्षी अभियान है.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सोमवार को लखनऊ में पार्टी मुख्यालय में कांशीराम की तस्वीर पर माला चढ़ाने के बाद कहा कि नेता ने “दलितों में आत्मविश्वास और राजनीतिक चेतना जगाने का परिवर्तनकारी कदम” उठाया है.

दलित समुदाय तक पहुंचने के प्रयासों के तहत इस साल जून में गठित पार्टी की शाखा ‘समाजवादी अंबेडकर वाहिनी’ भी एक आउटरीच अभियान का नेतृत्व कर रही है.

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी ने भी बसपा दिग्गज को श्रद्धांजलि दी.

26 सितंबर को बीजेपी ने एससी बहुल गांवों में दलितों तक पहुंचने के लिए एक हफ्ते का ‘दलित संपर्क और संवाद अभियान’ शुरू किया था.

बीजेपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “पार्टी 2 नवंबर को लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर मैदान में एससी/एसटी महासम्मेलन आयोजित करने की भी योजना बना रही है, जहां पांच लाख लोगों के इकट्ठा होने की उम्मीद है.”

चंद्रशेखर आज़ाद द्वारा स्थापित आज़ाद समाज पार्टी (एएसपी), जिसने पूरे यूपी में ‘संविधान बचाओ यात्रा’ शुरू की है, ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले राज्य भर में आयोजित कई कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में सोमवार को बिजनौर में एक रैली आयोजित की.

राजनीतिक दलों द्वारा ये अभियान, जिसे कांशी राम की राजनीतिक विरासत को हथियाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, ऐसे समय में आया है जब बसपा अपने समर्थन में गिरावट देख रही है.

2017 के यूपी चुनाव में 22 प्रतिशत वोट-शेयर और 19 सीटें हासिल करने के बाद, पार्टी विधानसभा में एक सीट पर सिमट गई और 2022 के राज्य चुनाव में इसका वोट-शेयर लगभग 13 प्रतिशत कम हो गया.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मिर्जा असमर बेग ने कहा कि पार्टियों के बीच बाबासाहेब अंबेडकर जैसे दलित आइकन सहित कई प्रतिष्ठित चेहरों की विरासत को हथियाने की प्रतिस्पर्धा चल रही है.

उन्होंने कहा, “इन प्रतिष्ठित लोगों की विरासत को अपनाने से, समुदाय तक पहुंचना आसान हो जाता है क्योंकि समुदाय की पहचान अक्सर उनसे ही जुड़ी होती हैं. बसपा के कमजोर होने के साथ, सभी राजनीतिक दल दलित वोट-शेयर से अपना हिस्सा निकालने का अवसर ढूंढ रहे हैं और जातिगत जनगणना की मांग भी उसी से जुड़ी हुई है.”

उन्होंने कहा, “लक्ष्य दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के हाशिए पर मौजूद वर्गों से समर्थन प्राप्त करना है. यहां तक कि अगर वे (पार्टियां) थोड़ा सा वोट शेयर हासिल करने में सक्षम हैं, तो यह उनको सीटें हासिल करने में मदद करता है.”

बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख शशिकांत पाण्डेय ने कहा कि 2022 के चुनाव में बसपा का प्रदर्शन पार्टी के लिए ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ.

उन्होंने आगे कहा, “अगर एक पार्टी जो चार बार (यूपी में) सत्ता में रही है और फिर एक सीट पर आ जाती है, तो यह पार्टी के पतन को दर्शाता है. और ऐसा सिर्फ यूपी में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी हो रहा है.”

उन्होंने कहा, “बसपा का पतन मायावती की राजनीति की शैली के कारण हुआ है. जहां अन्य पार्टियों ने मतदाताओं तक पहुंचने के अपने तरीके बदल दिए हैं, वहीं मायावती कांशीराम की कार्यशैली से भटक गई हैं. वह दलितों और पिछड़ों को साथ लेकर चलेंगे, लेकिन आज पार्टी में कोई पुराना नेता नहीं बचा है और एक मतभेद पैदा हो गया है. जाहिर है कि अन्य पार्टियां इसका फायदा उठाने की कोशिश करेंगी.”

पाण्डेय के मुताबिक, जहां पहले बसपा को दलित वोट का सहारा मिल जाता था, वहीं अब स्थिति बदल गई है और बीजेपी ने गैर-जाटव मतदाताओं और दलितों में वाल्मिकी और पासियों के बीच गहरी पैठ बना ली है.

पाण्डेय ने कहा, “बीजेपी और एसपी को 2022 के चुनाव में जाटव (एक दलित जाति जिससे मायावती आती हैं) से भी वोट मिले. एसपी ने अंबेडकर वाहिनी नाम से एक संगठन बनाया है और वह पहले से ही पश्चिम यूपी में चंद्रशेखर की एएसपी के साथ गठबंधन में है. यह एक अच्छा प्रयास है क्योंकि यूपी में दलित वोट करीब 20 फीसदी है. मायावती के वोट-शेयर में कमी के साथ, कांग्रेस, सपा और भाजपा पैठ बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. चुनाव नजदीक आने के साथ, वे दलितों तक पहुंच रहे हैं और कांशीराम जैसे दलित प्रतीकों को याद कर रहे हैं.”


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‘मतदाता सपा को पसंद कर रहे हैं’

सपा 2022 के यूपी चुनाव से काफी पहले से दलित समुदाय को लुभाने में लगी है और ‘संविधान बचाओ जन चौपाल’ के बैनर तहत राज्य भर में बूथ स्तर की बैठकें शुरू करने की तैयारी में है. यह समुदाय के बीच अपने संगठनात्मक आधार का विस्तार करने की भी योजना बना रही है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, सपा की अंबेडकर वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती ने कहा कि पार्टी अगले तीन महीनों के भीतर हर मतदान केंद्र पर दलितों और पिछड़ों तक पहुंचने की योजना बना रही है.

उन्होंने कहा, “हर मतदान केंद्र पर चौपाल आयोजित की जाएंगी और हम जल्द ही समुदाय के साथ संवाद करने के लिए प्रत्येक बूथ पर अपने प्रतिनिधियों को नियुक्त करेंगे और उन्हें बताएंगे कि सपा ही एकमात्र पार्टी है जो राज्य से भाजपा को हटा सकती है और उसे प्रतिस्पर्धा दे सकती है.”

उन्होंने दावा किया कि “घोसी विधानसभा उपचुनाव में, मतदाताओं को (बसपा द्वारा) नोटा दबाने के लिए कहा गया था. लेकिन मतदाताओं ने दिखा दिया कि वोट देने का अधिकार बाबा साहब अंबेडकर ने दिया था और सपा को भारी जीत दिलाई. वे अब सपा को पसंद कर रहे हैं.”

भारती ने कहा कि समुदाय को बताया जाएगा कि सत्तारूढ़ भाजपा आरक्षण खत्म करना और संविधान बदलना चाहती है. उनसे यूपी में जातीय जनगणना की मांग उठाने को कहा जाएगा ताकि विधायिका, नौकरशाही और न्यायपालिका में दलितों और पिछड़ों की स्थिति का पता लगाया जा सके.

‘बीएसपी को दलितों के लिए जो करना चाहिए था वह नहीं किया’

दलित गौरव संवाद का शुभारंभ करते हुए, कांग्रेस के राय ने टिप्पणी की कि कांशीराम को बसपा के कारण भुला दिया गया और पार्टी ने “दलितों के लिए वह नहीं किया जो उसे करना चाहिए था”.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संगठन सचिव अनिल यादव ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि संवाद अभियान, जो प्रभावी रूप से बुधवार से शुरू होगा, 26 नवंबर को संविधान दिवस तक जारी रहेगा, और पार्टी तब लखनऊ में एक बड़ा सम्मेलन या रैली आयोजित करने की योजना बना रही है.

यादव ने कहा, “दलित बुद्धिजीवियों और प्रभावशाली लोगों के साथ कई छोटे कार्यक्रम और बैठकें आयोजित की जाएंगी जिनमें ग्राम प्रधान, ब्लॉक विकास परिषद के सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, ठेकेदार और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ दलित समुदाय के प्रभावशाली व्यक्ति शामिल होंगे.” उन्होंने कहा कि उनसे ‘दलित अधिकार मांग पत्र’ नामक फॉर्म भरने के लिए कहा जाएगा.

यादव ने आगे कहा कि “हम प्रत्येक विधानसभा सीट पर दलित बुद्धिजीवियों से 500 फॉर्म भरवाएंगे और इस प्रक्रिया में राज्य भर में दो लाख बुद्धिजीवियों तक पहुंचेंगे. पत्र में दलितों की प्रमुख मांगें शामिल होंगी.”

यादव के अनुसार, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में समुदाय के 10 सदस्यों का एक कोर-ग्रुप बनाया जाएगा और इस तरह, लोकसभा स्तर पर समूह में कुल लगभग 50 सदस्य होंगे, जिनके साथ दलित एजेंडे पर चर्चा की जाएगी.

उन्होंने आगे कहा कि कांशीराम दलितों के नेता थे और उन पर किसी भी पार्टी का एकाधिकार नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि “कांशीरामजी जमीन जुड़े हुए व्यक्ति थे. यूपी का कोई संसदीय क्षेत्र ऐसा नहीं था यूपी की ऐसी कोई विधान सभा नहीं थी जहां उन्होंने दौरा न किया हो. लोग उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते थे. लेकिन आज उनका नारा ‘जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी भागीदारी’ अधूरा है. कांग्रेस नेता आज वही नारा दे रहे हैं.”

एएसपी, जिसने ‘संविधान बचाओ यात्रा’ शुरू की है, लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में और अधिक रैलियां और सार्वजनिक बैठकें आयोजित करने की योजना बना रही है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील कुमार चित्तौड़ ने कहा कि सोमवार को पश्चिम यूपी के बिजनौर में एक बड़ी रैली आयोजित की गई थी और दो और की योजना बनाई गई थी – एक 22 अक्टूबर को कानपुर देहात में और दूसरी 29 अक्टूबर को फूलपुर में.

उन्होंने कहा, “हम बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों में भी जनता तक पहुंचेंगे. यात्रा चुनाव अधिसूचना (2024 के लिए) जारी होने तक जारी रहेगी.”

मायावती ने किया पलटवार

मायावती ने कांग्रेस और बीजेपी को कांशीराम का ‘नया शुभचिंतक’ करार दिया.

लखनऊ में नेता की फोटो पर फूल चढ़ाने के बाद, मायावती ने कहा कि “जातिवादी और आरक्षण विरोधी पार्टियां, विशेषकर भाजपा और कांग्रेस, लोकसभा चुनावों से पहले वोटों की खातिर खुद को (कांशी राम के) नए शुभचिंतक के रूप में चित्रित करने की होड़ में हैं, उनका ओबीसी के कल्याण और संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष और दलितों/आदिवासियों के साथ-साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों का विकास अनुकरणीय रहा है.”

उन्होंने यह भी बताया कि कैसे “भाजपा और कांग्रेस ने वी.पी. सिंह सरकार’ को समर्थन देने के कांशीराम के कदम का विरोध किया था, जिसने ओबीसी आरक्षण लागू किया, और कैसे इस अवसर (कांशी राम की मृत्यु तिथि) पर दुख व्यक्त करने वालों ने उनके निधन (2006 में) के बाद पंजाब और यूपी में शोक की अवधि भी घोषित नहीं की थी.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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