नई दिल्ली: असम ने 1875 में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा तैयार किए गए मानचित्र की आइजोल की व्याख्या पर सवाल उठाते हुए विवादित सीमा पर मिजोरम के क्षेत्रीय दावों को खारिज कर दिया है.
अगले महीने के चुनावों में एक और कार्यकाल की उम्मीद कर रही मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) सरकार ने पड़ोसी राज्य के फैसले पर तीखा विरोध जताया.
मिजोरम गृह विभाग के संयुक्त सचिव लालथियामसांगा सेलो ने सोमवार को दिप्रिंट को बताया कि जिस आधार पर असम ने कछार सीमा पर क्षेत्रीय दावों को खारिज कर दिया है वह “आधारहीन और अतार्किक” है.
यह टिप्पणी भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा मिज़ोरम चुनाव की घोषणा के कुछ घंटों बाद आई.
मिजोरम को अपने 7 अक्टूबर के पत्र में, असम सीमा सुरक्षा और विकास विभाग ने लिखा कि 1875 की जिस अधिसूचना के बारे में आइज़ोल बात कर रहा है, उसे 28 अगस्त, 1930 को जारी सीमा रेखा अधिसूचना द्वारा हटा दिया गया था. जहां मिजोरम 1875 के सीमांकन को मान्यता देता है, जिसके बारे में वह दावा करता है कि मिज़ो प्रमुखों के परामर्श से तैयार किए गए थे, वहीं असम 1930 की अधिसूचना को मानता है.
गुवाहाटी का प्रतिनिधित्व करने वाले और इस मुद्दे पर पिछले दौर की वार्ता का नेतृत्व करने वाले असम सीमा सुरक्षा और विकास विभाग के मंत्री अतुल बोरा को दिप्रिंट ने कॉल और मैसेज के जरिए संपर्क किया पर उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला.
दिप्रिंट की पहले की रिपोर्ट के मुताबिक मिजोरम इस मुद्दे के समाधान के लिए एक “क्षेत्रीय समिति” बनाने के लिए मंत्रियों के एक समूह को आइजोल भेजने के असम सरकार के प्रस्ताव के पक्ष में भी नहीं है.
यह तीखी नोक-झोंक काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि सीमा विवाद को लेकर चल रहे इस तनाव ने 26 जुलाई, 2021 को बड़ा रूप ले लिया, जिसकी वजह से असम के लैलापुर और मिजोरम के वैरेंगटे कस्बे के बीच सीमा के पास एक जगह पर छह असम पुलिस कर्मियों और एक नागरिक की मौत हो गई थी.
तब से, दोनों पूर्वोत्तर राज्यों ने कई दौर की चर्चा की है, आखिरी बार यह चर्चा नवंबर 2022 में हुई. एमएनएफ, जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का सहयोगी है, उसका राज्य स्तर पर भाजपा के साथ कोई संबंध नहीं है. दूसरी ओर, असम में 2016 से भाजपा की सरकार है, जब 15 साल के लंबे निर्बाध कार्यकाल के बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी.
फरवरी में, मिजोरम ने असम को पत्र लिखकर अपने क्षेत्रीय दावे पेश किए थे. आठ महीने बाद, असम ने दावों का जवाब देते हुए कहा कि आइजोल द्वारा पेश किए गए मैप में 1875 इनर लाइन फॉरेस्ट का चित्रण “गलत” था और “सुलह व सुधार” के लिए कार्रवाई की मांग की. इनर लाइन, जिसे 20 अगस्त 1875 को ब्रिटिश प्रशासन द्वारा अधिसूचित किया गया था, उसका उद्देश्य लुशाई हिल्स (अब मिजोरम) में लोगों के प्रवेश को रेग्युलेट करना था.
2018 में, मिजोरम में राजनीतिक दलों और नागरिक समाज संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपा था जिसमें दावा किया गया था कि 1933 में खींची गई सीमाएं 1875 के सीमांकन के विपरीत, इसके लोगों की “सहमति और अनुमोदन के बिना” की गई थीं, जिसके लिए ब्रिटिश प्रशासकों ने मिज़ो ग्राम प्रमुखों से परामर्श किया था.
मिज़ोरम विधानसभा के रिकॉर्ड के अनुसार, दोनों राज्यों के बीच मतभेदों के कारण 749 वर्ग किमी भूमि विवादित है.
मिजोरम गृह विभाग के संयुक्त सचिव सेलो ने दिप्रिंट को बताया कि आइजोल तय समय में इन बिंदुओं को उठाकर असम को जवाब देगा.
सेलो ने अपने पत्र में असम द्वारा दिए गए उस तर्क पर भी सवाल उठाया जिसमें कहा गया था कि मिजोरम द्वारा दावा किए गए गांवों में मिज़ो निवासी नहीं हैं. उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “हम उनकी आबादी के आधार पर क्षेत्रों पर दावा नहीं कर रहे हैं. त्रिपुरा में 10 गांव हैं जिनमें पूरी तरह से मिज़ो लोग रहते हैं, लेकिन हम उन पर दावा नहीं कर रहे हैं. हमने असम के मामले में 1875 की इनर लाइन रिजर्व फॉरेस्ट अधिसूचना के आधार पर दावे किए, जो अभी भी प्रचलित है. इसलिए असम की प्रतिक्रिया निराधार और किसी भी तर्क से रहित है.”
संयुक्त सचिव ने कहा कि रिज़र्व फॉरेस्ट होने के नाते, मिजोरम उन गांवों के निवासियों पर नहीं, बल्कि ज़मीन पर दावा कर रहा है. “उस क्षेत्र में मौजूद कोई भी मानव बस्ती अवैध होगी क्योंकि यह एक अधिसूचित आरक्षित वन है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ग्रामीण चीनी हैं, या तिब्बती, या बांग्लादेशी, या यहां तक कि मीज़ो भी. यहां तक कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी पिछले दिनों यह बात कह चुके हैं. लेकिन बात यही है कि यह मीज़ो क्षेत्र है.”
पिछले महीने मिजोरम ने असम को बताया था कि सीमा वार्ता का अगला दौर विधानसभा चुनाव के बाद ही संभव होगा. सेलो ने सोमवार को कहा, “हम पहले ही बता चुके हैं कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही बातचीत की जा सकती है क्योंकि एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते आपको लोगों के फैसले को उचित महत्व देना होगा.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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