(पारदीस महदावी, अध्यक्ष, ला वर्ने विश्वविद्यालय)
कैलिफोर्निया, आठ अक्टूबर (द कन्वरसेशन) नोबेल पुरस्कार देने वाली समिति का कहना है कि वर्ष 2022 में महसा अमीनी की अन्यायपूर्ण मौत का विरोध करने के लिए ईरानियों द्वारा अपनाया गया नारा ‘‘नारी, जीवन, स्वतंत्रता’’ इस साल की नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नरगिस मोहम्मदी के काम का सबसे उपयुक्त वर्णन है।
शिरीन एबादी को मिले नोबेल पुरस्कार के ठीक 20 साल बाद इस पुरस्कार को पाने वाली मोहम्मदी दूसरी ईरानी महिला हैं।
लोकतंत्र को बढ़ावा देने और शरिया कानून के तहत कानूनी सुधार शुरू करने के लिए शिरीन को वर्ष 2003 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
मोहम्मदी चौथी नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं, जिन्हें जेल में रहते हुए चुना गया है और वे आंग सान सू ची और एलेस बियालियात्स्की की कतार में शामिल हो गईं हैं।
नोबेल समिति के अनुसार, मोहम्मदी को कम से कम 13 बार गिरफ्तार किया गया है। उन्हें पांच बार दोषी ठहराया गया, कुल 31 साल जेल और 154 कोड़े की सजा सुनाई गई।
पिछले चार वर्षों में उन्हें समय-समय पर रिहा किया जाता रहा है, लेकिन महिला हितैषी कार्यों और मृत्युदंड के खिलाफ उनकी मुखर आवाज के कारण ईरान में इस्लामी शासन ने उन्हें बार-बार निशाना बनाया है।
वह राजनीतिक बंदियों के लिए ईरान की सबसे कुख्यात जेल ‘एविन’ में कैद हैं, जो उत्तरी तेहरान की पहाड़ियों में स्थित है।
मैं दो दशकों से अधिक समय से ईरान में महिलाओं के अधिकारों, मानवाधिकारों और लैंगिक भेदभाव का अध्ययन कर रही हूं। मुझे ईरान में लैंगिक भेदभाव के खिलाफ हुई क्रांति के दौरान ईरान में जमीनी स्तर पर कार्य के दौरान शिरीन एबादी और वहां की दर्जनों महिला अधिकार कार्यकर्ताओं से मिलने और काम करने का अवसर मिला है।
मैंने ईरानी महिलाओं की बहादुरी देखी है क्योंकि उन्होंने साहसपूर्वक बदलाव के लिए आंदोलन किया था। ईरान में महिलाओं की सक्रियता कोई हालिया घटना नहीं है, वे एक सदी से भी अधिक समय से ईरान में बदलाव के आह्वान में सबसे आगे रही हैं।
मोहम्मदी ने 1990 के दशक की शुरुआत में इमाम खुमैनी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक छात्र के रूप में महिला अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करनी शुरू की, जहां उन्होंने ईरान में महिलाओं के दमन की निंदा करते हुए लेख लिखे।
वर्ष 1979 में क्रांति के बाद, अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में सत्ता संभालने वाले इस्लामी शासन ने अनिवार्य रूप से पर्दा करने के आदेश जारी किए और यात्रा, बच्चों की अभिरक्षा, विरासत और तलाक के मुद्दे पर कठोर नियम लागू किए गए, जिससे महिलाओं के लिए दमन के युग की शुरुआत हुई।
मोहम्मदी का जन्म ईरान के जंजन में हुआ था, लेकिन वह तेहरान के बाहरी उपनगर कारज में पलीं-बढ़ीं। बाद में उन्होंने भौतिकी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और इस दौरान वह एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कम करने लगीं और ‘ताशक्कोल दानेशजूई रोशनगरान’ नामक एक समूह की सह-संस्थापक रहीं। उन्होंने शासन से जवाबदेही की मांग करते हुए लेख लिखे।
कॉलेज छात्रा के रूप में उनके लेखन के कारण उन्हें दो बार गिरफ्तार किया गया। इसने ईरान में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के जुनून की शुरुआत की, जिसके कारण मोहम्मदी को बार-बार जेल जाना पड़ा। 2002 में मोहम्मदी ने एबादी के साथ मिलकर ‘डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट्स सेंटर’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य ईरान में महिलाओं, राजनीतिक कैदियों और जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना है।
जब मोहम्मदी को 2018 में ‘‘मानवाधिकारों की रक्षा और विचारों की अभिव्यक्ति’’ के लिए सखारोव पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तो मोहम्मदी ने मृत्युदंड और महिलाओं के खिलाफ अन्याय को समाप्त करने का आह्वान किया। उन्होंने राजनीतिक और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की कारावास और यातना का विरोध किया।
2007 में, जब शिरीन एबादी ने मृत्युदंड, कठोर पारिवारिक कानूनों और कैदियों के साथ खराब व्यवहार के शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लिए ‘राष्ट्रीय शांति परिषद’ की स्थापना की, तो मोहम्मदी को 83 सदस्यीय निकाय का अध्यक्ष चुना गया।
(द कन्वरसेशन)
शफीक नरेश
नरेश
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