क्या आप ऐसे व्यक्ति हैं जो बेहतरीन तस्वीरों के लिए स्नैपचैट और इंस्टाग्राम फ़िल्टर का उपयोग करना पसंद करते हैं, और वास्तविक जीवन में भी ऐसी चिकनी त्वचा पाने का प्रयास करते हैं? यदि हां, तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक और अवास्तविक फिज़िकल स्टैंडर्ड को स्थापित करने में सफल हो गया है. एआई की बेहतरीन एडिटिंग क्षमताओं ने लोगों को अपनी तस्वीरों को खूबसूरत बनाने में मदद की है और इसकी वजह से ब्यूटी इंडस्ट्री को नुकसान हुआ है.
फोर्ब्स के अनुसार, ब्यूटी फिल्टर चेहरे की विशेषताओं को पहचानने और सावधानीपूर्वक मैप करने के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिदम और कंप्यूटर विज़न तकनीक का उपयोग करते हैं. इसके बाद, ये फ़िल्टर त्वचा को स्मूथ करने, चेहरे की आकृति को रिफाइन करने और आंखों और होंठों को रिसाइज़ करने के लिए एक विस्तृत सीरीज़ के साथ यूज़र के चेहरे पर डिजिटल तरीके से जेनरेट हुए लेयर्स को सुपरइम्पोज़ करते हैं. एडवॉन्स्ड फ़िल्टर लाइट और कलर बैलेंस को भी ठीक कर सकते हैं, जिससे लोगों के पिक्चर-परफेक्ट वर्ज़न तैयार हो सकते हैं.
दरअसल, एआई-पावर्ड ब्यूटी इनोवेशन अधिक पर्सनलाइज़ विकल्प उपलब्ध कराते हैं. उदाहरण के लिए, लेंसकार्ट ऐप ऑग्मेंटेड रियलिटी (एआर) का उपयोग करके यह दिखाने की कोशिश करता है कि कोई खास चश्मा लगाने के बाद व्यक्ति कैसे दिखेगा. मिंत्रा (Myntra) और नाइका (Nykaa) जैसे ऐप भी एआर का उपयोग करके यूज़र्स को सही फाउंडेशन और लिपस्टिक शेड्स को चुनने में मदद करते हैं.
हालांकि, समस्या तब होती है जब लोग बेदाग, कांच जैसी चमकती त्वचा या आकर्षक शैम्पू- के विज्ञापन जैसे बालों को पाने के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं. मुझे लगभग छह साल पहले का एक पल स्पष्ट रूप से याद है जब एक मरीज एक अजीब सा रिक्वेस्ट किया. जैसे ही मैंने उसे अपनी स्क्रीन पर सर्जिकल वीडियो और तस्वीरें दिखाईं, उसने पूछा: “क्या आप मुझे दिखा सकते हैं कि सर्जरी के बाद बालों से भरे सिर के साथ मैं कैसा दिखूंगा?” इसके बजाय, मैंने उनसे कुछ पुरानी तस्वीरें साझा करने के लिए कहा ताकि हम एक समान हेयरलाइन बना सकें. यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वह भरे बालों के साथ दिखाने वाले ऐप्स के बारे में बात कर रहा था.
झूठे दावे, न पाए जा सकने वाले लक्ष्य
कई लोग, विशेष रूप से युवा महिलाएं, मेरे लिए YouCam परफेक्ट, फेसट्यून, एयरब्रश और ब्यूटीप्लस जैसे एडिटिंग ऐप्स से एडिट की हुई बेहतर तस्वीरें मेरे पास लेकर आती हैं. इसके बाद वे इस बेदाग त्वचा के चले जाने का दुख मनाती हैं और वहां मौजूद पिंपल्स, काले धब्बों और पिगमेंटेशन की आलोचना करते हैं. ऐसे उदाहरण उतने ही निराशाजनक हैं जितने आम हैं, यही कारण है कि मैं हमेशा उन्हें नेचुरल फोटोज़ खींचने की सलाह देती हूं जिससे उनके स्किन के बारे में सही-सही पता लग सके ताकि उचित ट्रीटमेंट प्लान के बारे में बताया जा सके.
एआई ने महिलाओं को ऐश्वर्या राय के रंग, प्रियंका चोपड़ा की नाक व शरीर और सुष्मिता सेन की गालों की चाहत के लिए प्रेरित किया है. दूसरी ओर, पुरुष अक्सर ब्रैड पिट या बराक ओबामा की याद दिलाने वाली एक तराशी हुई जॉलाइन पाना चाहते हैं. वे भूल जाते हैं कि इन मशहूर हस्तियों के वीडियो और तस्वीरें तेज़ रोशनी में और प्रोफेशनल कैमरों से ली गई हैं.
ये हस्तियां पर्दे के पीछे अपने पसंदीदा ऑन-स्क्रीन व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए की जाने वाली कड़ी मेहनत को उजागर नहीं करती हैं. इसके अलावा, चूंकि उनकी आजीविका इस बात पर निर्भर करती है कि वे कैसी दिखती हैं, इसलिए वे अपने आहार, स्किन केयर रूटीन, वर्कआउट और विभिन्न कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट के लिए काफी समय देते हैं. लेकिन एक आम आदमी इतना समय नहीं दे सकता.
एआई का उपयोग केवल मरीजों तक ही सीमित नहीं है; यहां तक कि कुछ डॉक्टर्स की वेबसाइटें भी पहले और बाद की तस्वीरों को बढ़ा-चढ़ाकर और गलत तरीके से प्रदर्शित करने वाले भ्रामक विज्ञापनों को बढ़ावा देती हैं. ऐसे इलाजों की सब्जेक्टिव नेचर के कारण कॉस्मेटिक प्रक्रियाओं के परिणामों का आकलन करना एक लगातार चुनौती रही है. ये दावे केवल अवास्तविक परिणामों को बढ़ावा देकर समस्या को बढ़ाते हैं जो रोगियों को अनावश्यक रूप से आशावान बनाते हैं.
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एआई खतरा क्यों बन रहा है?
एक अनुभवी त्वचा विशेषज्ञ के रूप में, मुझे पता है कि ब्यूटी इंडस्ट्री में एआई का उपयोग को लेकर कुछ नैतिक चिंताएं हैं. यूज़र्स की पसंद के अनुसार विज्ञापन तैयार करने में एआई महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उदाहरण के लिए, यदि कोई लिपस्टिक सर्च करता है, तो संभवतः उसे कॉस्मेटिक ब्रांड्स के विज्ञापन दिखाई देने लगेंगे. यह इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर स्पष्ट है. वे यूज़र्स को रेलीवेंट ग्रुप्स में वर्गीकृत करते हैं, जिससे एडवरटाइजिंग अधिक टारगेटेड और प्रभावी हो जाता है.
हालांकि, इसके साथ डेटा चोरी और रिसेल का जोखिम भी आता है. कुछ ऐप्स आपके चेहरे का डेटा स्टोर कर सकते हैं, जिससे गोपनीयता संबंधी चिंताएं पैदा होती हैं. ऐसे व्यापक डेटासेट के स्टोरेज से उल्लंघनों का एक महत्वपूर्ण जोखिम पैदा होता है जो व्यक्ति की गोपनीयता से समझौता कर सकता है. कुछ सोशल मीडिया और फोटो एडिटिंग एप्लिकेशन यूज़र्स को डेटा को अन्य किसी ऐप्स के साथ भी शेयर कर सकते हैं, जो कि अक्सर बिना सूचना या सहमति के होता है.
यह जितना आकर्षक है, ऐसी तकनीक अवास्तविक मानकों को बढ़ावा देती है जो लोगों के आत्मसम्मान पर असर डाल सकता है. ऐसी तकनीक के संभावित परिणामों पर विचार करना जरूरी है, खासकर किशोरों के लिए, जो अत्यधिक असरदार हो सकते हैं. नियमित रूप से उन्हें बदली हुई या एडिटेड इमेज के संपर्क में आने से लोगों की सुंदरता और खुद की वैल्यू के बारे में उनकी धारणा को विकृत कर सकती है और इसका स्थाई मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है.
(डॉ. दीपाली भारद्वाज एक त्वचा विशेषज्ञ, एंटी-एलर्जी विशेषज्ञ, लेजर सर्जन और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षित सौंदर्यशास्त्री हैं. उनका एक्स हैंडल @dermatdoc है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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