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Thursday, 21 November, 2024
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कीट-पतंग और फंगस के हमले से हरियाणा में कपास के किसान परेशान, दूसरे सीजन में भी खड़ी फसलें हुईं नष्ट

सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च के प्रधान वैज्ञानिक ने कहा राज्य में संक्रमण की रेंज 40-45% थी, जहां कीटों के हमलों के कारण 2022-2023 सीज़न में उपज 20 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई.

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गुरुग्राम: लगातार दूसरे साल हरियाणा में कपास किसान कीटों, मुख्य रूप से आम गुलाबी सुंडी और फंगल संक्रमण के हमलों के कारण अपनी फसल बर्बाद होते देख रहे हैं.

हरियाणा कृषि और किसान कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक (कपास) राम प्रताप सिहाग ने पुष्टि की कि टिंडों का हमला बहुत बड़ा था और राज्य के लगभग सभी 17 जिलों को इसने घेर लिया, जहां कपास उगाया जाता है.

मंगलवार को दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा कि फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान सिरसा, फतेहाबाद और हिसार जिलों में हुआ है, जहां कपास का सबसे बड़ा क्षेत्र है.

उन्होंने कहा कि सटीक नुकसान तब पता चलेगा जब किसान ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर अपना दावा दर्ज़ करेंगे और अधिकारियों द्वारा नुकसान का आकलन किया जाएगा.

बता दें कि गुलाबी सुंडी एक सबसे विनाशकारी कीट है जो कपास के बीज को खाता है और पौधे के रेशे को नष्ट कर देता है, जिससे इसकी गुणवत्ता के साथ-साथ उपज भी कम हो जाती है.

हरियाणा में कपास की फसल को हुए नुकसान को सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर यूजर्स ने उजागर किया, जब राज्य के कृषि और किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल ने एक खेत में फसलों की जांच करते हुए अपनी तस्वीरें पोस्ट कीं.

दलाल ने एक्स पर पोस्ट किया, “सिवानी से भिवानी जाते हुए रास्ते में कपास की फसल का मुआयना किया. किसान का बेटा हूं किसान के सुख दुःख में सदैव किसानों के साथ हूं.”

कपास के खेतों की तस्वीरों में कुछ कपास के बीजकोषों (पौधे पर फूले हुए गुच्छे) के साथ मुरझाई हुई फसल दिखाई दे रही है. दलाल की पोस्ट के जवाब में कई लोगों ने कॉमेंट किए, जिसमें कहा गया कि उनकी कपास की फसल कीट-पतंगों के हमले से लगभग पूरी तरह से नष्ट हो गई है.

सिरसा जिले के बेगू गांव के कपास उत्पादक किसान रत्ती राम ने दिप्रिंट को बताया कि उनके गांव में फसल को 70 से 80 फीसदी का नुकसान हुआ है. अनुमान है कि हरियाणा में उत्पादित कुल कपास का लगभग एक-तिहाई हिस्सा सिरसा जिले का है.

किसान राम ने कहा, “सामान्य परिस्थितियों में हमें प्रति एकड़ 10 से 12 क्विंटल कच्चा कपास मिलता है, लेकिन इस बार हमें मुश्किल से 2 से 2.5 क्विंटल प्रति एकड़ मिल रहा है.”

उन्होंने यह भी दावा किया कि हालांकि, मनोहर लाल खट्टर सरकार ने कहा था कि ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल एक अक्टूबर से खुलेगा, लेकिन वह अपना नुकसान दर्ज़ नहीं कर पाए क्योंकि “पोर्टल काम नहीं कर रहा था”.

बेगू गांव के एक अन्य किसान दिलावर सिंह ने कहा कि वे अपनी फसल काटने के लिए रविवार को सिरसा से मजदूरों को लेकर आए थे, लेकिन फसल की हालत देखकर मजदूर लौट गए.

कपास चुनने के लिए काम पर रखे गए मजदूरों को उनके द्वारा उठाए गए कपास के वजन के आधार पर भुगतान किया जाता है.

सिंह ने कहा, “70 प्रतिशत से अधिक फसल बर्बाद होने के कारण, मजदूरों ने कहा कि वे खेत में दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद ज्यादा कमाई नहीं कर पाएंगे.”

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के एक निकाय, सिरसा स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च के प्रमुख वैज्ञानिक और प्रमुख डॉ. ऋषि कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि कीटों के कारण कपास की फसल को नुकसान हरियाणा के साथ-साथ पड़ोसी पंजाब और राजस्थान में भी बड़े पैमाने पर हुआ है. हालांकि, इसकी रेंज स्थान-दर-स्थान अलग थी.

कुमार ने कहा, “मैं नुकसान पर टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि संक्रमण का घनत्व स्थान-दर-स्थान अलग होता है, लेकिन मैं कह सकता हूं कि संक्रमण की रेंज 40-45 प्रतिशत है.”

उन्होंने कहा कि कपास की फसल गुलाबी सुंडी संक्रमण और बॉल रॉट, एक फंगल संक्रमण की दोहरी समस्याओं से प्रभावित हुई थी.

पिछले 2022-2023 सीज़न में कीट-प्रतिरोधी बीटी कपास किस्म के कीटों का शिकार होने के बाद, हरियाणा ने दो दशकों में सबसे कम कपास की उपज दर्ज़ की थी.

गुलाबी सुंडी और सफेद मक्खी के हमलों के साथ-साथ लीफ कर्ल और पैराविल्ट जैसी बीमारियां, फसल बोने के शुरुआती दिनों में अत्यधिक गर्मी के कारण पौधों का जलना और बेमौसम बारिश ने उपज में गिरावट में योगदान दिया.


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‘लागत भी वसूल करना संभव नहीं’

सिरसा की ऐलनाबाद तहसील के मेहना खेड़ा गांव के प्रगतिशील किसान ओम प्रकाश गर्वा ने दिप्रिंट को बताया कि इस सीजन में कपास की फसल को लगभग 100 प्रतिशत नुकसान हुआ है.

उन्होंने कहा, “हमारे पौधों पर मुश्किल से प्रति एकड़ एक या दो क्विंटल कपास बची है. ऐसे में मजदूर फसल उठाने के लिए 18 से 20 रुपये प्रति किलोग्राम की मांग करते हैं, जबकि सामान्य दरें 7 से 8 रुपये होती हैं. ऐसे में हम यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि बची हुई फसल की कटाई कराएं या पौधे उखाड़ दें.”

गरवा ने बताया कि उन्होंने इस साल 18 या 20 अप्रैल के आसपास अपने खेतों में कपास लगाया था और जुलाई के पहले सप्ताह में पहली बार कीटनाशक का छिड़काव किया था.

उन्होंने अफसोस जताया, “तब से कीटनाशकों के 13 राउंड का छिड़काव किया गया है और प्रत्येक राउंड की लागत 1,000 रुपये प्रति एकड़ से थोड़ी अधिक है, लेकिन अब, फसल के समय, इसे कीटों ने खा लिया है.”

सिरसा जिले में किसान ओम प्रकाश गर्वा के खेतों में लाल कपास की फसल को नुकसान पहुंचा | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
सिरसा जिले में किसान ओम प्रकाश गर्वा के खेतों में लाल कपास की फसल को नुकसान पहुंचा | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

गरवा के अनुसार, इस साल नुकसान के लिए गुलाबी सुंडी एकमात्र कीट नहीं है, बल्कि एक फंगल संक्रमण ने भी फसलों को प्रभावित किया है, जिससे कपास के बॉल्स का रंग लाल हो गया है.

उन्होंने कहा कि नुकसान इतना गंभीर था कि “लाभ कमाना तो दूर, इनपुट लागत भी वसूल करना संभव नहीं होगा”.

कुमार ने कहा कि टिंडे के छिपने के तरीके के कारण, फसल के समय तक कीट का पता लगाना संभव नहीं था.

उन्होंने बताया कि किसी भी कीटनाशक स्प्रे से मदद नहीं मिलती है क्योंकि लार्वा बंद बीजकोषों में छिपा रहता है, उन्होंने बताया कि गुलाबी सुंडी के साथ दूसरी समस्या यह थी कि अमेरिकी टिंडे और चित्तीदार टिंडे के विपरीत, इसके पास कपास के अलावा कोई वैकल्पिक मेजबान नहीं था.

कुमार ने कहा, “पिंक टिंडे का कोई विकल्प नहीं है. अपने अस्तित्व के लिए इसे कपास की फसलें ढूंढनी होंगी. इसके अलावा, टिंडे मौसम के अंत में फसल पर हमला करता है, जब बीटी कपास के बीज के माध्यम से पौधों में मौजूद बीटी विषाक्त पदार्थ कम होने लगते हैं, जिससे पौधे पर कीटों का हमला होने का खतरा होता है.”

सीआईसीआर के पूर्व प्रमुख डॉ. दिलीप मोंगा ने दिप्रिंट को बताया कि शुरू से ही आशंका व्यक्त की जा रही थी कि इस साल गुलाबी सुंडी का हमला होगा और अब ये आशंका सच हो गई है.

मोंगा ने कहा, “यह एक बहुत ही पेचीदा कीट है क्योंकि यह बीजकोष से बाहर नहीं निकलता है. जब तक हमें हमले के बारे में पता चलता है, तब तक नुकसान हो चुका होता है.”

उन्होंने कहा कि “फेरोमोन ट्रैप इस कीट को रोकने का एकमात्र तरीका है.” फेरोमोन ट्रैप एक प्रकार का कीट जाल है जिसमें कीड़ों को लुभाने के लिए फेरोमोन का उपयोग किया जाता है.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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