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Monday, 4 November, 2024
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अयोध्या-बाबरी जमीन विवादः सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता का समय 15 अगस्त तक बढ़ाया

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस एसए बोबडे, चंद्रचूड़, अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की पांच जजों वाली खंडपीठ ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई की.

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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या-बाबरी जमीन विवाद पर मध्यस्थता का समय 15 अगस्त तक बढ़ा दिया है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस एसए बोबडे, चंद्रचूड़, अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की पांच जजों वाली खंडपीठ ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई की. सीजेआई ने कहा वह अभी नहीं बताने जा रहे हैं कि इस मामले में क्या प्रगति हुई है, इसे अभी गुप्त रखा गया है.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा तीन सदस्यों वाले मध्यस्थता पैनल ने मामले में सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए और समय की मांग की है. कोर्ट ने इस मामले के समाधान के लिए 15 अगस्त तक का समय दिया है. गोगोई ने कहा वह अभी नहीं बताने जा रहे हैं कि इस मामले में क्या प्रगति हुई है, इसे अभी गुप्त रखा गया है.

कोर्ट ने पैनल के चेयरमैन और सेवानिवृत्त जज जस्टिस एफएम खलीफुल्लाह की गुजारिश पर यह समय बढ़ाया है. मामले की मध्यस्थता के लिए दो महीने पहले कोर्ट ने यह पैनल बनाया था जिसमें पूर्व जज जस्टिस एफएम खलीफुल्लाह, श्री श्री रविशंकर और सीनियर वकील श्रीराम पांचू शामिल हैं. बेंच ने मामले में यह भी स्पष्ट निर्देश दिया था कि मध्यस्थता प्रक्रिया कैमरे की निगरानी में हो और इससे मीडिया को दूर रखा जाय.

सुप्रीम कोर्ट इस बारे में क्या कहता है?

सात जनवरी 1993, अयोध्या में कार सेवकों द्वारा विवादित बाबरी मस्जिद ढ़ांचे के गिराए जाने के बाद पीवी नरसिंह राव सरकार एक कानून लेकर आई जिसमें उसने विवादित स्थल के आसपास की 67.703 एकड़ भूमि अधिग्रहित कर ली. इसको अयोध्या में कतिपय क्षेत्र अर्जन अधिनियम के तहत किया गया जिसे बाद में , अयोध्या में कतिपय क्षेत्र अर्जन कानून 1993 में तब्दील कर दिया गया.

विवादित ढांचे के स्थान को छोड़कर अधिग्रहित क्षेत्र को दो ट्रस्टों को राम मंदिर निर्माण और मस्जिद निर्माण के लिए देना था. पर भूमि अधिग्रहण से उपजे विवाद के बाद राव सरकार ने राष्ट्रपति से मामले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भिजवाया और उसकी इस पर राय मांगी कि क्या विवादित ढ़ांचे के पहले वहा राम मंदिर था. उसने ये भी फैसले किया कि मामला जस का तस रहेगा, जब तक अदालत इसपर अपना मत नहीं दे देता.

कुछ अन्य पक्ष भी मामले में शामिल हो गए और उन्होंने धर्मनिरपेक्षता, बराबरी के अधिकार और धर्म की आज़ादी के आधार पर इस कानून पर सवाल उठाए. राव सरकार ने अदालत को ये समझाने का प्रयास किया कि कानून व्यवस्था कि स्थिति को बिगड़ने देने से बचाने के लिए इस कानून की ज़रूरत है.

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उस कानून के एक हिस्से को निरस्त कर दिया. और सरकार को भूमि के मालिकाना हक पाने से उस समय तक रोक दिया जब तक सारे मामलों में अंतिम फैसला न आ जाता.

केंद्र सरकार अपने अधिनियम या कानून से दावेदारों को कानूनी सुधार के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती. और यही कोशिश कानून के सेक्शन 4(3) की थी. उसने सभी मामलों, अपील और कानूनी प्रक्रियाओं को रोक दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को असंवैधानिक बता कर निरस्त कर दिया. उसने कहा कि न्यायिक सुधार प्रक्रिया को संविधान की मूल संरचना बताया और कहा कि इस पर अंकुश नहीं लगाया जो सकता.

पर फिर मोदी की बीजेपी और आरआरएस ऐसी छोटी मोटी बातों को अपने उद्देश्य से भटकने नहीं देने वाला. और अगर मामले में अदालत का दखल होता है तो ये पार्टी के लिए और अधिक वोट जुटाएगा.

 

 

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