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Wednesday, 16 October, 2024
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गुजरात ने AAP को ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा दिलाया, लेकिन अंदरूनी कलह और दलबदल से अब हो रहा है नुकसान

आप पार्टी, जिसने 2022 के विधानसभा चुनावों और 2021 के नगर निगम चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था, अब राज्य में अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है.

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मुंबई: इस साल अप्रैल में, चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी (आप) को “राष्ट्रीय पार्टी” का दर्जा दिया, क्योंकि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप को पिछले साल के गुजरात विधानसभा चुनावों में पांच विधायकों के साथ एक बड़ा वोट शेयर मिला था. जिसके बाद पंजाब, गोवा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सहित चार राज्यों में पार्टी ने खुद को एक राज्य पार्टी के रूप में स्थापित किया.

जैसे ही आप गुजरात में देश की छठी राष्ट्रीय पार्टी बन गई, पार्टी के कुछ लोगों को आश्चर्य हुआ कि क्या राज्य विधानसभा चुनावों से पहले की गई पार्टी के अभियान के पीछे यह विशिष्ट राष्ट्रीय दर्जा ही एकमात्र उद्देश्य था.

10 महीनों में आप ने गुजरात में 12.5 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया और 182 सदस्यीय राज्य विधानसभा में पांच विधायकों को निर्वाचित कराया, पार्टी- जो खुद को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के लिए एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में पेश कर रही है, राज्य में इसका बड़े पैमाने पर मंथन हुआ है.

पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में फेरबदल हुआ है, और कई वरिष्ठ नाम, जिनमें से कुछ एक दशक से पार्टी के साथ थे- मुख्य रूप से कांग्रेस में शामिल होने के लिए आप छोड़ चुके हैं.

पार्टी के उपाध्यक्ष भेमाभाई चौधरी- जो लगभग एक दशक तक गुजरात में आप के साथ थे, ने दावा किया कि “आप के साथ समस्या यह है कि पार्टी केवल चुनाव के दौरान ही सक्रिय होती है. यह प्रभारी को बदल देते हैं, फिर इन्हें दिल्ली से अपनी नई टीम मिलती है, और वे यहां आते हैं और संगठन का पुनर्गठन करते हैं. मेरे जैसे वफादारों ने अभी भी इतने सालों तक काम किया है.”

उन्होंने कहा, “लेकिन, 2022 में जब नेतृत्व हमें 40 से अधिक सीटें मिलने की उम्मीद दे रहा था, तब हमें केवल पांच सीटें ही मिलीं और नेतृत्व द्वारा जिम्मेदारी तय करने या यह पता लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया कि हम कहां गलत हुए.”

बनासकांठा के देवदार निर्वाचन क्षेत्र से पिछला विधानसभा चुनाव लड़ने वाले चौधरी ने अपने समर्थकों के साथ आप से इस्तीफा दे दिया और पिछले महीने कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार गुजरात कोई अलग मामला नहीं है और आम आदमी पार्टी के लिए चुनावी प्रभाव दिखाने के बाद उसका पतन होना आम बात है, जिसका मुख्य कारण मजबूत स्थानीय नेतृत्व की कमी है.

आप और कांग्रेस दोनों के नेताओं ने दावा किया कि अनुभवी आप नेताओं के पार्टी छोड़ने के पीछे कांग्रेस की गुजरात इकाई में नेतृत्व में बदलाव एक और प्रमुख कारण था. शक्तिसिंह गोहिल ने जून में गुजरात कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष के रूप में जगदीश ठाकोर की जगह ली थी.

इस बीच, गुजरात विधानसभा पहुंचे आप के विधायकों ने कहा कि वे विधानसभा के अंदर स्कूलों और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे मुद्दों को उठाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और आप शासित राज्यों के बीच तुलना भी कर रहे हैं जिस तरह पार्टी ने पंजाब, दिल्ली तथा भाजपा शासित गुजरात में अपनी सर्वोत्तम क्षमता से काम किया हैं.

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वे विधानसभा के अंदर अपने काम को प्रभावी ढंग से लोगों तक नहीं पहुंचा पाए हैं.

दिप्रिंट ने कॉल और टेक्स्ट के जरिए आप के राज्यसभा सांसद और गुजरात के प्रभारी संदीप पाठक से संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशन के समय तक उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलते ही रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.


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गुजरात में आम आदमी पार्टी

आप ने 2013 में अपनी गुजरात इकाई की स्थापना की और 2017 का विधानसभा चुनाव बिना किसी प्रभाव के लड़ा. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पार्टी ने 29 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन पार्टी को केवल 0.62 प्रतिशत वोट शेयर ही हासिल हुआ.

2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों के बीच, पार्टी गांधीनगर-अहमदाबाद बेल्ट के साथ-साथ सूरत और राजकोट – गुजरात के दो शहरों- जहां बड़ी संख्या में पाटीदार आबादी थी और जो कांग्रेस से निराश थे, वहां प्रवेश करने में कामयाब रही.

2021 में, पार्टी को सूरत नगर निगम की 120 सीटों में से 27 सीटों के साथ 28 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस को कोई वोट नहीं मिला था.

इस जीत ने AAP को सूरत में प्राथमिक विपक्षी दल की स्थिति में पहुंचा दिया, जिसने पहली बार राज्य में एक तीसरी ताकत का परिचय दिया, जहां मुख्य रूप से दो-पक्षीय भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की राजनीति का वर्चस्व रहा है.

उसी वर्ष राजकोट में, AAP ने 17 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया और गांधीनगर में कुल वोटों का 21 प्रतिशत हासिल किया.

2022 के विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी ने विशेष प्रयास किए और खुद को भाजपा और कांग्रेस के लिए एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में पेश किया, साथ ही भाजपा विरोधी वोटों को लक्षित किया जो कांग्रेस के खाते में जा सकते थे.

पार्टी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और आप के पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की मेगा रैलियां आयोजित कीं और राज्य को ‘एक मोको केजरीवाल ने’ (केजरीवाल को एक मौका दें) जैसी अपील करने वाले विज्ञापनों से भर दिया.

चुनाव आयोग को दी गई जानकारी के अनुसार, पार्टी ने 2022 के राज्य चुनावों से पहले प्रचार पर कुल 33.8 करोड़ रुपये खर्च किए. इसके विपरीत, 2017 में, उसने विधानसभा चुनावों पर केवल 20.29 लाख रुपये खर्च किए थे, जैसा कि चुनाव आयोग के आंकड़ों में कहा गया है.

दिप्रिंट द्वारा चुनाव परिणामों के विश्लेषण से पता चला कि AAP ने भाजपा को जीतने में मदद की और कम से कम 33 सीटों पर कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया, जिनमें से 17 सौराष्ट्र क्षेत्र में थीं, जहां AAP और कांग्रेस की संख्या भाजपा से अधिक थी.

गुजरात में AAP के पांच विधायकों में से एक चैतर वसावा, जो नर्मदा में आदिवासी डेडियापाड़ा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने कहा, “अगर और कुछ नहीं, तो हमारे प्रदर्शन ने इस धारणा को सही कर दिया कि गुजरात की राजनीति में कांग्रेस और भाजपा के अलावा कोई तीसरी पार्टी नहीं हो सकती है.”

वसावा, जो आप के विधायक दल के नेता हैं- ने कहा, “चुनाव के समय, हमने सोचा था कि हम 40-50 विधायकों का लक्ष्य रखेंगे. लेकिन, पिछला हफ़्ता बहुत मुश्किल था. महौल (माहौल) खराब था, हमारे लोगों और स्वयंसेवकों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा. फिर जब नतीजे आए तो पार्टी कार्यकर्ताओं में कुछ निराशा थी.”

पार्टी ने चुनाव के तुरंत बाद जनवरी 2023 में अपनी पूरी गुजरात इकाई में कुछ परिवर्तन किए और तब से पुराने और वरिष्ठ पदाधिकारियों का पार्टी छोड़ने का सिलसिला लगातार जारी है.

इनमें चौधरी जैसे नाम शामिल हैं- छोटा उदेपुर के आदिवासी नेता अर्जुन राठवा, वशराम सागथिया, जो AAP में एक प्रमुख दलित चेहरा थे; हरेश कोठारी, जो पार्टी में महासचिव थे; आप नेताओं ने कहा कि राजेश प्रजापति, जो पश्चिम क्षेत्र के पूर्व अध्यक्ष थे, इत्यादि.

इसके अलावा, 2022 के राज्य चुनावों में AAP के कई उम्मीदवार भी कथित तौर पर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.

‘दिल्ली के नेताओं ने हमारी बात नहीं सुनी’

आप और कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि इस्तीफों का एक कारण गुजरात कांग्रेस राज्य इकाई में नेतृत्व में बदलाव था.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इस साल जून में, कांग्रेस ने पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद शक्तिसिंह गोहिल को जगदीश ठाकोर की जगह गुजरात कांग्रेस इकाई का नया अध्यक्ष नियुक्त किया, जिनके नेतृत्व में पार्टी ने 2022 में गुजरात में अपना अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया.

गुजरात कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “कांग्रेस के भीतर बड़े पैमाने पर अंदरूनी कलह और गुटबाजी थी और पार्टी स्थिति को ठीक करने में विफल रही. आप और कांग्रेस के पास लोगों तक ले जाने के लिए समान मुद्दे थे. हमारे नेतृत्व को इन मुद्दों को लेकर लोगों के पास जाना चाहिए था, लेकिन पार्टी ने अपना काम सही से नहीं किया.”

उन्होंने कहा, “सत्ता परिवर्तन के साथ, पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं का एक असंतुष्ट वर्ग- जो पुराने नेताओं द्वारा नियंत्रित गुट की सदस्यता नहीं लेते थे, वो अब सक्रिय हो गए हैं.”

आप के वसावा ने यह भी कहा कि “जब से शक्तिसिंह गोहिल गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं, वह अपने सभी पुराने वफादारों को वापस ले आए हैं, और इसीलिए कुछ आप नेता कांग्रेस में चले गए हैं.”

लेकिन छोटा उदेपुर से 2022 का राज्य चुनाव लड़ने वाले राठवा के अनुसार, AAP के भीतर ही परेशानियां चल रही थी.

दिप्रिंट से बात करते हुए, राठवा, जो इस महीने की शुरुआत में आप छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे, ने कहा कि उनके जैसे पुराने लोगों ने एक संगठन खड़ा करने के लिए कड़ी मेहनत की थी – आठ क्षेत्रों में एक संगठन मंत्री के साथ, गुजरात के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया और लोगों से संपर्क स्थापित करना.

उन्होंने दावा किया, “यह सारी पूंजी जो हमने बनाई थी उसका उपयोग किया जाना चाहिए था. लेकिन, चुनाव से पहले दिल्ली से एक पूरी टीम आई और उन्होंने चुनाव की तैयारियों पर कब्ज़ा कर लिया.”

उन्होंने कहा, ”उनके इरादे अच्छे रहे होंगे, लेकिन काम इस तरह नहीं हो सकता.”

राठवा ने कहा, “उम्मीदवारों का चयन उचित नहीं था, उम्मीदवारों को चुनने के बाद उन्होंने यह नहीं पूछा कि क्या मुझे किसी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है या किसी मदद की ज़रूरत है.”

उन्होंने कहा कि, चुनाव के बाद उनके जैसे कुछ नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि सीट-दर-सीट विश्लेषण होना चाहिए कि पार्टी कहां पीछे रह गई, लेकिन आलाकमान ने इन नेताओं के साथ कोई चर्चा नहीं की.


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पार्टी में अंदरूनी कलह और दलबदल

दिप्रिंट से बात करते हुए, बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अमित ढोलकिया ने कहा कि एक सामान्य सूत्र है जो बताता है कि क्यों AAP ने राज्यों में चुनावों के दौरान अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की और बाद में टूटना शुरू कर दिया और इसमें गुजरात कोई अपवाद नहीं था.

उन्होंने कहा, “सारा प्रचार केवल अरविंद केजरीवाल पर केंद्रित है. आप के पास कोई स्थानीय नेता नहीं है. यहां तक कि इसुदान गढ़वी (आप की गुजरात इकाई के प्रमुख) के पास भी राज्य में पार्टी को चलाने के लिए आवश्यक जमीनी स्तर की उपस्थिति और अनुभव नहीं है.”

उन्होंने कहा, “आप के पांचों विधायक किसी भी मुद्दे को मजबूती से उठाने में विफल रहे हैं. पार्टी अंदरूनी कलह और समस्याओं से निपटने में जुटी है. आप ने कांग्रेस के नकारों के दम पर गुजरात में खुद को खड़ा किया. वे सभी अब वापस जा रहे हैं.”

ढोलकिया के अनुसार, AAP ने गोवा और उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी चुनावों के दौरान जोरदार प्रचार किया था – राष्ट्रीय पार्टियों के लिए एक विकल्प प्रदान करने का वादा किया था. और चुनाव के बाद, पार्टी ने अंदरूनी कलह और दलबदल से निपटने के लिए राज्य इकाइयों को भंग कर दिया और उन्हें नए सिरे से खड़ा किया.

दिप्रिंट ने गुजरात के जिन पांच आप विधायकों से बात की, उनमें से दो ने कहा कि वे विधानसभा में राज्य से संबंधित मुद्दे उठाते रहे हैं, लेकिन पार्टी से असंबंधित कई बाधाएं हैं, जिससे लोगों के लिए विधानसभा में उनके काम के बारे में जानना मुश्किल हो जाता है.

जामनगर जिले के जामजोधपुर विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के विधायक हेमंत खावा ने कहा, “पिछले सत्र (पिछले सप्ताह संपन्न मानसून सत्र) में हमने जाति-आधारित जनगणना और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए राजनीतिक आरक्षण का मुद्दा उठाया था. हमने इस बारे में बात की कि कैसे गुजरात को बेहतर स्कूलों की आवश्यकता है और दिल्ली और पंजाब से तुलनात्मक आंकड़े दिए. बजट सत्र के दौरान, हमने कृषि और स्वास्थ्य पर तीन राज्यों के खर्च की तुलना की, यह दिखाने के लिए कि गुजरात कैसे पिछड़ रहा है.”

वसावा ने सूची में आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण, आंगनबाड़ियों की कमी, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की ‘नल से जल’ योजना में भ्रष्टाचार जैसी और चीजें भी जोड़ीं.

हालांकि, खावा ने कहा कि गुजरात विधानसभा की बैठक साल में जितनी होनी चाहिए उससे कम दिनों के लिए होती है और आप विधायकों को सदन में उनकी संख्या के अनुसार बोलने के लिए बहुत कम समय मिलता है.

उन्होंने कहा, “इसके अलावा, सरकार कई अन्य राज्यों के विपरीत, विधानसभा सत्रों का सीधा प्रसारण नहीं करती है.”

वसावा और खावा दोनों ने कहा कि गुजरात इकाई को भंग करने के बाद नई संगठनात्मक ताकत बनाने का काम जोरों पर चल रहा है.

पार्टी ने लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों में अपने संपर्क सूत्र बनाए हैं और वहां जिला अध्यक्ष और तहसील प्रभारी नियुक्त किए गए हैं. उन्होंने विभिन्न समुदायों – छात्रों, अल्पसंख्यकों, कृषि समुदायों, महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, आदि की जरूरतों को पूरा करने के लिए 22 शाखाएं भी स्थापित की हैं. उन्होंने कहा, पिछले हफ्ते अहमदाबाद में एक कार्यकर्ता सम्मेलन (पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक) भी हुई थी.

वसावा ने कहा, “हम चुपचाप काम कर रहे हैं और पन्ना प्रमुख तक नियुक्तियां करने की योजना बना रहे हैं. इस सब में समय लगता है. और हर पार्टी को कहीं न कहीं से कुछ निराशा से जूझना पड़ता है.”

वसावा ने कहा कि पार्टी छोड़ने वालों की अपनी मजबूरियां होंगी.

उन्होंने कहा, “भगवान हर किसी को खुश नहीं रख सकते. किसी को पद मिलता है, किसी को नहीं. कोई खुश है, कोई खुश नहीं है. यह एक नई पार्टी है. कुछ संघर्ष होगा ही.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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