मेरे सामने दो वीडियो हैं. एक में पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहीन शाह अफरीदी भारतीय क्रिकेटर जसप्रीत बुमराह के बच्चे के जन्म का जश्न मनाते हुए दिखते हैं. बुमराह भी शाहीन का आभार प्रकट करते हुए दिख रहे हैं.
दूसरे वीडियो में जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक प्रतिष्ठित अनुभवी रिटायर्ड अफसर गुलाम हसन भट्ट को अपने 29 वर्षीय बेटे, डीएसपी हुमायूं भट्ट के सम्मान में पुष्पांजलि अर्पित करते हुए दिखाया गया है. हुमायूं कश्मीर के कोकरनाग में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का सामना करते हुए घात लगाकर किए गए हमले में मारे गए. वह अपने पीछे एक बड़ा परिवार छोड़ गए, जिसमें उनका एक बच्चा भी शामिल है जो केवल एक महीने का है.
कुछ भारतीयों के अनुसार, ये दो अलग-अलग मुद्दे हैं जिन्हें आपस में जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. एक में अफरीदी का बुमराह के प्रति प्रगतिशील सोच शामिल है और दूसरा एक पिता द्वारा अपने बेटे के ताबूत पर फूल चढ़ाने का दिल दहला देने वाला दृश्य है.
मुझे बताया गया है कि खेल और राजनीति को अलग-अलग रखना चाहिए. यह सुझाव दिया गया है कि भट, कर्नल मनप्रीत सिंह और मेजर आशीष धोंचक का अपने परिवार और छोटे बच्चों को छोड़कर दिए गए बलिदान को खेल की दुनिया से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.
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कश्मीर का मसला
जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले अनजाने में ही सही, लेकिन भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ियों के बीच सौहार्द्र को बाधित कर सकते हैं. कुछ लोग मेरे भीतर इस कथित द्वंद्व पर सवाल उठा सकते हैं. वो सोच रहे होंगे कि मैंने इन दो अलग-अलग क्षेत्रों को मिलाने के विकल्प को क्यों चुना.
मेरा प्रश्न बिल्कुल सीधा है: क्या यह सच नहीं है कि भारत को कई मायनों में पाकिस्तान की मूलभूत विचारधारा का परिणाम भुगतना पड़ा है? पाकिस्तान की स्थापना इस विश्वास से प्रेरित थी कि हिंदू-बहुसंख्यक धर्मनिरपेक्ष भारत मुसलमानों के लिए स्वाभाविक रूप से असुरक्षित था. इस दृढ़ विश्वास के कारण इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान का निर्माण हुआ, जो अन्य धर्मों पर इस्लाम की सर्वोच्चता के सिद्धांत पर स्थापित हुआ. नतीजा ये हुआ कि ये विचारधारा पाकिस्तानी समाज में गहराई तक समा गई है.
भारत और व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय जिसे लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद जैसे “आतंकवादी समूहों” के रूप में वर्गीकृत करते हैं, उन्हें अक्सर पाकिस्तान के भीतर काफी अलग तरीके से माना जाता है. पाकिस्तानी सरकार की नज़र में, इन समूहों को अक्सर “स्वतंत्रता सेनानियों” और “मुजाहिदों” के रूप में देखा जाता है. उनका मानना है कि वे अविश्वासियों या “काफ़िरों” के उत्पीड़न के खिलाफ लड़ रहे हैं. यह परिप्रेक्ष्य चिंताजनक रूप से उचित है, भले ही प्रश्न में “काफिर” सिख, हिंदू या मुस्लिम हों, जैसा कि कश्मीर में तीन सेना अधिकारियों की दुखद हत्याओं से पता चलता है.
प्यू रिसर्च के निष्कर्षों के अनुसार, अधिकांश पाकिस्तानी, लगभग 88 प्रतिशत, कश्मीर विवाद को एक अत्यधिक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में देखते हैं. इसके अलावा, 69 प्रतिशत पाकिस्तानी भारत को अपने देश के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देखते हैं. यहां तक कि यह तालिबान को लेकर (57 प्रतिशत) चिंता से भी आगे है. यह भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को आकार देने वाली गहरी और जटिल कहानियों के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाता है.
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आतंकवाद का ट्रैक रिकॉर्ड
इस संबंध में भारत और पाकिस्तान के बीच स्पष्ट अंतर को रेखांकित करना महत्वपूर्ण है. भारत आतंकवादी समूहों को पनाह या समर्थन नहीं देता है, जबकि पाकिस्तान का अपनी विदेश नीति के उपकरण के रूप में ऐसे कई समूहों को आश्रय देने और और उसकी सहायता करने का एक दुखद इतिहास रहा है.
यह देखते हुए कि आतंकवाद हमारी नीति का हिस्सा नहीं है, भारत को वैकल्पिक राजनयिक तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए. उदाहरण के लिए, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) को राजस्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा देता है, जैसा कि पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर रमिज़ राजा ने बताया है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) की स्थिरता भारत के सहयोग पर अत्यधिक निर्भर है, क्योंकि ICC की 90 फीसदी फंडिंग भारत से होती है. हालांकि, BCCI द्वारा PCB के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने की संभावना नहीं है. इसका मुख्य कारण यह है कि वे हमारे सैनिकों के जीवन को कोई मूल्य नहीं देते हैं, क्योंकि अरबों में संभावित मौद्रिक लाभ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर PCB के बहिष्कार के कारणों से अधिक है.
लेकिन एक भारतीय नागरिक के रूप में, यह सवाल उठाना महत्वपूर्ण है: धार्मिक भेदभाव के इतिहास और भारत के खिलाफ आतंकवाद के ट्रैक रिकॉर्ड वाले देश को परिणाम भुगतने के बिना काम करने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए? यह दुविधा इस व्यापक मुद्दे को रेखांकित करती है कि क्या खेल और राजनीति को आपस में जोड़ा जाना चाहिए.
यह उजागर करने लायक है कि शाहीन शाह अफरीदी के ससुर प्रसिद्ध क्रिकेटर शाहिद अफरीदी सहित पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने धर्मनिरपेक्ष भारत से कश्मीर की तथाकथित “आजादी” का जमकर समर्थन किया है. पूर्व क्रिकेटर शोएब अख्तर ने दो-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया और पाकिस्तान के पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान, जो एक क्रिकेटर भी थे, ने कश्मीर मुद्दे को हवा दी और भारत में रहने वाले मुसलमानों पर तथाकथित जुल्म को लेकर भारत की आलोचना की. इन क्रिकेटरों ने बार-बार खेल की दुनिया में गहरे राजनीतिक बातों को उतारा है.
खेल को राजनीति के साथ मिलाने के लिए मुझे माफ करें और पाकिस्तान के साथ अपने अगले क्रिकेट मैच का आनंद लें.
(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वे ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नाम से एक वीकली यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका एक्स हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादन: ऋषभ राज)
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