नई दिल्ली: मुख्य सचिव स्तर के एक आईएएस अधिकारी ने प्रधानमंत्री के अतिरिक्त प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा और तीन अन्य वरिष्ठ अधिकारियों पर, एससी/एसटी कानून के तहत, उन पर अत्याचार करने और जातीय पूर्वाग्रहों के कारण नौकरी में उनकी प्रगति रोकने के आरोप लगाए हैं.
तमिलनाडु कैडर के 1985 बैच के अधिकारी जगमोहन सिंह राजू बीते सप्ताह चारों आरोपियों के खिलाफ वीरूगंबक्कम पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज कराने गए थे, पर पुलिस ने उनकी शिकायत लिखने से मना कर दिया. इसके बाद राजू ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का दरवाज़ा खटखटाया. अब आयोग ने चेन्नई के पुलिस आयुक्त को मामले से संबद्ध सारे तथ्य दो दिनों के भीतर जमा कराने के निर्देश दिए हैं.
राजू ने आरोप लगाया है कि उनके ‘निष्कलंक’ सर्विस रिकॉर्ड के बावजूद आरोपियों ने वर्ष 2015 से ही अतिरिक्त सचिव पद के पैनल में उनका दाखिला नहीं होने देने की ‘साजिश’ कर रखी है. जहां राजू के बैच के अधिकारी 2017 में ही सचिव पद – प्रशासनिक सेवा का उच्चतम स्तर – पर पहुंच चुके हैं, उन्हें अभी तक उससे एक पद नीचे अतिरिक्त सचिव के स्तर की पदोन्नति भी नहीं मिल पाई है.
तमिलनाडु पुलिस ने अभी तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की है. दिप्रिंट ने राजू की शिकायत की प्रति हासिल की है, जिसमें उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि ‘आरोपी शक्तिशाली पदों पर बैठे हैं और इस बात की पूरी संभावना है कि वे अपने प्रभाव और दबदबे का दुरुपयोग करते हुए प्राथमिकी दर्ज नहीं होने देंगे, और जांच कार्य में हस्तक्षेप करेंगे.’
‘प्रमुख आशंका’
राजू इससे पहले मुख्य सतर्कता आयुक्त के.वी. चौधरी को पद से हटाने और उन पर एससी/एसटी कानून के तहत मुकदमा चलाने की मांग के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को नोटिस भेज चुके हैं. अपनी शिकायत में राजू ने एक ‘बड़ी आशंका’ जताई है कि शिकायत दर्ज कराने के बाद ‘आरोपी सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग जैसी एजेंसियों के ज़रिए और मेरे खिलाफ फर्जी मामले बनाकर, ना सिर्फ मुझे बल्कि मेरे परिजनों को भी और अधिक तंग कर सकते हैं और धमका सकते हैं.’
उन्होंने शिकायत में लिखा है, ‘मुझे मेरे और मेरे परिवार की जान पर खतरे की भी आशंका है जैसा कि मेरे कई शुभचिंतकों ने आगाह किया है.’
राजू वर्तमान में तमिलनाडु सरकार के अधीन भूमि सुधार आयुक्त (अतिरिक्त मुख्य सचिव) के पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने हर तरह के ‘उत्पीड़न, धमकी और जान पर खतरे’ के विरुद्ध ‘आवश्यक सुरक्षा’ की मांग की है.
मिश्रा और चौधरी ने इस मामले के संबंध में दिप्रिंट के संदेशों का जवाब नहीं दिया.
मिश्रा और चौधरी के अलावा राजू ने कबींद्र जोशी और जी. श्रीनिवास पर भी आरोप लगाए हैं. दोनों डीओपीटी में अवर सचिव हैं.
राजू के विस्तृत आरोप
राजू की 13 पन्नों की शिकायत के अनुसार, चारों आरोपियों ने यह सुनिश्चित करने के लिए उन पर ‘अपने जातीय पूर्वाग्रहों से प्रेरित झूठे और ओछे आरोप लगाए’ कि भारत सरकार के अतिरिक्त सचिव या सचिव स्तर के अधिकारियों के पैनल में उन्हें शामिल नहीं किया जा सके.
राजू जब 2013 में मानव संसाधन मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में तैनात थे, तो छद्म नामों से उनके खिलाफ कुछ गुप्त शिकायतें दर्ज की गई थीं. शिकायतें राजू के कथित भ्रष्टाचार से संबंधित थीं. चूंकि जांच के बाद उन मामलों को उसी साल बंद कर दिया गया था, इसलिए उनके बारे ज़्यादा कुछ ज्ञात नहीं है.
राजू का आरोप है कि 2015 में, जब उनकी पदोन्नति का समय आया, मनमाने ढंग से उन मामलों को दोबारा खोल दिया गया.
राजू अपनी शिकायत में कहते हैं, ‘मुझे दोषमुक्त करार दिए जाने और प्रविष्टियों को रिकॉर्ड से हटाने के मेरे बारंबार के अनुरोधों के बावजूद उन्हें बरकरार रखा जाना, इंसाफ की राह में रोड़े अटकाने की आरोपियों की कुटिल चाल को दर्शाता है.’
‘सुनियोजित तरीके से आरोपियों ने ये सुनिश्चित कर दिया है कि मैं अपने शेष सेवाकाल में, और सेवानिवृति के बाद भी, सरकार में उच्चतर जिम्मेदारी के किसी पद को हासिल नहीं कर पाऊं.’
‘मेरे खिलाफ जाति-आधारित भेदभाव का एजेंडा कामयाब रहा है, और जब तक इन लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती है, मुझे अपरिवर्तनीय कलंक और मानसिक यातना तथा नौकरी और समाज में पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ेगा. (आरोपियों के) रवैये में समानता को देखकर मुझे संदेह है कि मेरे खिलाफ इस तरह जातिगत भेदभाव कायम रखने के पीछे एक बड़ी साजिश काम कर रही है.’
राजू ने आरोप लगाया है कि ‘सुनियोजित तरीके’ से चारों आरोपियों ने उनके गोपनीय रिकॉर्ड को ‘झूठी और ओछी सूचनाओं’ से भर दिया है ताकि उन्हें ‘संदिग्ध निष्ठा’ वाला अधिकारी साबित किया जा सके.
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