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Sunday, 24 November, 2024
होममत-विमतपटना के फ्रेज़र रोड से दुबई तक: लिट्टी चोखा को कैसे टक्कर दे रहा है चंपारण मटन

पटना के फ्रेज़र रोड से दुबई तक: लिट्टी चोखा को कैसे टक्कर दे रहा है चंपारण मटन

यूट्यूबर्स, प्रभावशाली लोगों से लेकर राहुल गांधी तक हर कोई इन दिनों चंपारण मटन के बारे में बात कर रहा है.

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किसी भी राज्य या शहर की एक पहचान उसके यहां परोसे जाने वाले व्यंजनों से होती है. ये व्यंजन एक सीमित सांस्कृतिक दायरों से होते हुए कभी-कभी राष्ट्रीय ख्याति भी पा लेते हैं जिससे न सिर्फ राज्य या शहर का नाम जुड़ा होता है बल्कि वो साथ-साथ पुरानी धारणाओं को भी तोड़ता है. यही काम बीते कुछ सालों में चंपारण मटन ने किया है, जो मुख्यत: बिहार के चंपारण जिले की उत्पत्ति मानी जाती है.

बीते कुछ दशकों में बिहार के व्यंजनों की जब भी बात होती थी तो सिर्फ लिट्टी-चोखा का ही नाम हर जुबान से सुनाई पड़ता था. लेकिन अब इसका तिलिस्म टूटता दिख रहा है और एक नया व्यंजन राष्ट्रीय स्तर पर अपनी खास पहचान बनाता हुआ दिख रहा है- वो है चंपारण मटन.

पूर्वांचल और बिहार के इलाकों में सत्तू खाने का चलन रहा है. इसके सांस्कृतिक उभार ने लिट्टी-चोखा का स्वरूप लिया तो राजनेताओं ने इसे अपनी बैठकों और दौरों में शामिल कर इसे लोकप्रिय कर दिया और पैसा कमाने का एक जरिया बना दिया. 2004 में, जब लालू यादव केंद्रीय रेल मंत्री थे, तब वे फ्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, फ्रांस और ऑस्ट्रिया के दौरे पर अपने साथ सत्तू लेकर गए थे.

लिट्टी सत्तू से ही बना एक व्यंजन है जिसकी लोकप्रियता निर्विवाद है और ये एक तरह से बिहार की पहचान से भी जुड़ गया है. लेकिन मैं ये कहने का जोखिम लेना चाहूंगा कि इस व्यंजन को पूरी तरह से बिहार का नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसी तरह का व्यंजन बाटी-चोखा का चलन पूर्वांचल में दिखता है वहीं राजस्थान में दाल-बाटी भी कुछ इसी ढंग का ही व्यंजन है. लेकिन बिरयानी और रसगुल्ला के विपरीत, लिट्टी चोखा को लेकर अभी तक कोई दावेदारी की लड़ाई पैदा नहीं हुई है.

लेकिन अब लिट्टी-चोखा को चंपारण मटन से चुनौती मिल रही है. और ये चुनौती अब राजनैतिक मेल-मिलाप से लेकर सांकेतिक तौर पर संदेश देने तक जा चुकी है. और हर कोई चंपारण मटन के बारे में बात कर रहा है, जो कटे हुए प्याज, साबुत मसाले, लहसुन और सरसों के तेल के साथ मांस को एक साथ मिलाकर मिट्टी के बर्तन में पकाया जाने वाला एक अनोखा व्यंजन है.

हाल ही में चंपारण मटन पर चर्चा तब तेज हो गई जब राहुल गांधी लालू यादव के घर पर चंपारण मटन बनाते हुए दिखे. लालू जी की सीक्रेट रेसिपी और राजनीतिक मसाला नाम के इस कार्यक्रम में लालू यादव और उनकी बेटी मीसा भारती राहुल गांधी को चंपारण शैली में मटन बनाना सिखाते हुए दिखते हैं. मटन बनते हुए लालू से राहुल गांधी पूछते हैं: इसमें एक साथ सबकुछ मिक्स किया जाता है, इसमें और राजनीति में क्या फर्क है. लालू अपनी चिरपरिचित हंसी हंसते हुए कहते हैं, बिना मिक्स किए राजनीति हो ही नहीं सकती है.

लालू जिस मिक्सिंग की बात कर रहे थे वो इंडिया नाम के 28 दलों के एकसाथ आने का संकेत दे रही थी.

बीते कुछ सालों में चंपारण मटन ने बिहार के बाहर जिस स्तर पर लोकप्रियता हासिल की है और जिस ढंग से एक बहुत बड़ी आबादी उससे जुड़ी है, शायद यही कारण हो कि गांधी ने अपनी राजनीतिक बातचीत के मध्य में चंपारण मटन को रखा


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गांधी का चंपारण और चंपारण मटन

लिट्टी-चोखा बिहार के शायद हर इलाके में बनने वाला व्यंजन है लेकिन पटना के आसपास के जिलों में इसकी लोकप्रियता काफी है. बक्सर में पांच दिनों तक चलने वाले पंचकोसी मेले की तो पहचान ही लिट्टी-चोखा से होती है, जहां दूर-दूर से लोग आकर यहीं पर इसे बनाते हैं. कभी दही-चूड़ा को लेकर उत्तर-बिहार में क्रेज हुआ करता था. इसलिए कहा जा सकता है कि लिट्टी-चोखा को किसी क्षेत्र विशेष से नहीं जोड़ा जा सकता लेकिन चंपारण मटन का नाम चंपारण से जुड़ा है. और ये एक ऐसी जगह है जो हमारी आजादी के इतिहास से जुड़ा है.

दक्षिण अफ्रीका से जब महात्मा गांधी भारत आए तो पहला सत्याग्रह उन्होंने चंपारण में ही किया था और लंबे समय तक इस जगह को गांधी और सत्याग्रह के नाम से ही याद किया जाता रहा. लेकिन मौजूदा वक्त एक नई करवट लेकर इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ता हुआ नजर आता है. 2017 में जब चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे हुए तो सत्याग्रह से इतर सबसे ज्यादा चर्चा इस इलाके के चंपारण मटन की ही हुई.

लेकिन किसी व्यंजन को इतनी लोकप्रियता मिलना आसान काम नहीं है. लिट्टी-चोखा को भी पैन इंडिया बनाने में कई कारकों ने काम किया है. और इसकी शुरुआत मनोज तिवारी की फिल्म दरोगा बाबू आई लव यू के गाने इंटरनेशनल लिट्टी-चोखा से होती है जिसे यूट्यूब पर एक मिलियन से ज्यादा बार देखा जा चुका है.

और इसके बाद पीके फिल्म के प्रमोशन के दौरान आमिर खान जब पटना की सड़कों पर लिट्टी-चोखा खाते दिखे तो इसने शहर में एक नई तरह की लिट्टी-चोखा क्रांति ला दी. पटना के बोरिंग रोड से लेकर फ्रेजर रोड तक लिट्टी-चोखा के नए खोमचे खुलने लगे जिस पर आमिर खान की लिट्टी-चोखा खाने वाली तस्वीरें लगी हुई थी. लोगों ने इसे कमाई के एक जरिए के तौर पर देखना शुरू कर दिया. और फिर 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली के हुनर हाट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लिट्टी-चोखा खाते हुए तस्वीर भला कौन भूल सकता है.

यानि कि एक व्यंजन को प्रसिद्ध करने में बड़े-बड़े कलाकार, राजनेता से लेकर संगीत तक माध्यम बनते हैं. और यही कहानी अब चंपारण मटन भी लिखता नज़र आ रहा है और ये बिहारी व्यंजन का इन दिनों पोस्टर बॉय बन चुका है.


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लिट्टी-चोखा को कैसे पछाड़ रहा है चंपारण मटन

पटना के फ्रेज़र रोड़ पर ओल्ड चंपारण मीट हाउस चलाने वाले गोपाल कुमार कुशवाहा का दावा है कि उन्होंने ही चंपारण मटन को लोकप्रिय किया है. उनकी दुकान पटना में चंपारण मटन की खुलने वाली सबसे पहली दुकान मानी जाती है.

फूड इतिहासकार पुष्पेश पंत ने हाल ही में बताया कि जब वो 30 साल पहले चंपारण गए थे तब उन्हें चंपारण मटन परोसा गया था लेकिन तब इसे वो ब्रांडिंग हासिल नहीं थी जो आज है. साथ ही पंत इसे ‘assertion of the Bihari cuisine’ मानते हैं.

बिहार के लोगों को लंबे समय से इस बात की कोफ्त होती थी कि उनकी पहचान सिर्फ लिट्टी-चोखा तक सीमित कर दी गई है लेकिन अब उन्हें इसका जवाब चंपारण मटन के तौर पर मिल गया है. हर किसी की जबान पर लिट्टी-चोखा आने का कारण यह भी रहा कि मेट्रो स्टेशन से लेकर आम बाजारों में ये बड़ी आसानी और कम दाम में उपलब्ध होने लगा. हालांकि मटन की कीमत फिलहाल 700 रुपए किलो हो चुकी है लेकिन फिर भी इसका क्रेज बढ़ता ही जा रहा है.

और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि रंजन कुमार द्वारा निर्देशित फिल्म चंपारण मटन से मिली, जो इसी साल ऑस्कर के स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड की दौड़ में शामिल हुई. वहीं लोकप्रियता का आलम यह है कि बिहार की सड़कों से निकलकर अब ये दिल्ली-एनसीआर, पुणे, बंगाल, चंडीगढ़, तमिलनाडु की सड़कों पर जगह बनाने लगा है.

कोयले की धीमी आंच पर रखी मिट्टी की हांडियों में चंपारण मटन को तैयार किया जाता है जिसे आहुना मटन भी कहा जाता है. हाल ही में, यह व्यंजन दुबई के मोहल्ला रेस्तरां तक पहुंच गई, जहां फूड ब्लॉगर्स इसे चखने के लिए उमड़ पड़े.

हालांकि इंस्टाग्राम रील्स, फूड ब्लॉग्स और यूट्यूब-वीडियोज में तो चंपारण मटन ने अपनी जगह बना ली है और विकिपीडिया पेज भी इस व्यंजन की तस्दीक करता है. अब इस व्यंजन को इंतजार है कि मनोज तिवारी की तरह ही कोई उसे संगीत का हिस्सा बना ले.

राजनीति एक ऐसा व्यंजन है जो बिहारियों की थाली में हमेशा मौजूद रहता है. क्या राहुल गांधी चंपारण मटन पकाकर राज्य के मतदाताओं में पैठ बना पाएंगे. यह भी एक धीमी तैयारी है, 2024 तक इंतजार कीजिए.

(व्यक्त विचार निजी है)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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