जम्मू: एक जुलाई से शुरू हो रही अमरनाथ यात्रा और अन्य सुरक्षा कारणों को देखते हुए जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव इस वर्ष अक्टूबर-नवम्बर तक ही होने की संभावना बन रही है. इस बात की भी पूरी उम्मीद है कि समय पर चुनाव न हो पाने की सूरत में 19 जून को खत्म हो रहे राज्य में लागू राष्ट्रपति शासन की अवधि भी बढ़ा दी जाए.
लगातार हालात की समीक्षा कर रहा चुनाव आयोग अभी तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने को लेकर कोई फैसला नहीं ले पाया है. निर्णय में हो रही देरी और ज़मीनी हालात को देखते हुए अब यही संकेत मिल रहे हैं कि विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर तक ही संभव हो पाएंगे. सूत्रों के अनुसार, राज्य प्रशासन की भी यही राय है कि अमरनाथ यात्रा के बाद ही विधानसभा चुनाव कराए जाएं.
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यहां यह उल्लेखनीय है कि 21 नवम्बर 2018 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग कर दिया था. कानूनी रूप से विधानसभा भंग किए जाने के 6 महीने के भीतर चुनाव कराना आवश्यक है. इस हिसाब से 21 मई 2019 से पहले नई विधानसभा का गठन हो जाना ज़रूरी है. लेकिन अभी तक चुनाव आयोग द्वारा विधानसभा चुनाव को लेकर कोई भी निर्णय न लेने के कारण अब किसी भी तरह से संभव नहीं है कि 21 मई तक चुनाव हो पाएं.
विधानसभा चुनाव के बारे में अभी तक कोई फैसला नहीं होने से साफ है कि अब चुनाव के लिए अनुकूल समय अमरनाथ यात्रा और बरसात का मौसम बीतने के बाद ही हो सकता है.
एक जुलाई से शुरू होगी अमरनाथ यात्रा
इस बार सालाना श्री अमरनाथ यात्रा एक जुलाई से प्रारंभ होगी और श्रावण पूर्णिमा के दिन 15 अगस्त को संपन्न होगी. यात्रा के दौरान विधानसभा चुनाव संपन्न कराना मुश्किल ही नहीं बेहद असंभव काम है. अमरनाथ यात्रा भले ही एक जुलाई से प्रारंभ हो रही हो, पर यात्रा से जुड़े प्रबंध लगभग एक महीने पहले ही शुरू हो जाते हैं. यहां तक कि यात्रा के दोनों यात्रा मार्गों और पवित्र गुफा पर सुरक्षा बलों की तैनाती की प्रक्रिया भी ठीक एक महीने पहले ही आरंभ हो जाती है.
ऐसे में यात्रा के कारण विधानसभा चुनाव के लिए सुरक्षा बलों की उपलब्धता भी संभव नहीं हो पाती. राज्य प्रशासन का सारा ध्यान अमरनाथ यात्रा को शांतिपूर्वक ढंग से संपन्न कराने की ओर रहता है.
बता दें कि इसमें भाग लेने के लिए हर साल देशभर से लाखों लोग जम्मू कश्मीर आते हैं. राज्य में 1990 में आतंकवाद शुरू होने के बाद से यात्रा पर आतंकवादियों का खतरा लगातार मंडराता रहा है. आतंकवादियों ने कई बार इस पर हमला कर यात्रा बाधित करने की कोशिश की है. गौरतलब है कि 2017 में आतंकवादियों द्वारा अमरनाथ यात्रियों की एक बस पर किए गए हमले में आठ यात्री मारे गए थे. इसी तरह से पहले भी कई बार आतंकवादी यात्रा को निशाना बनाते रहे हैं.
आतंकवादियों की धमकियों और यात्रा व यात्रियों की सुरक्षा को देखते हुए राज्य सरकार को हर साल व्यापक स्तर पर सुरक्षा इंतज़ाम करने पड़ते हैं. यात्रा व यात्रियों की पुख़्ता सुरक्षा के लिए राज्य पुलिस के साथ-साथ अर्धसैनिक बलों की तैनाती होती है, यहां तक की सेना की मदद भी ली जाती है. अमरनाथ यात्रा को संपन्न कराना अपने आाप में एक बहुत ही बड़ा काम है. इसे पूरा करने में सुरक्षा बलों के साथ-साथ राज्य सरकार के कई अन्य विभाग भी अपना सहयोग देते हैं. पर्यटन, वन, बिजली, पीएचई, राजस्व, स्वास्थ्य, यातायात, सड़क परिवहन निगम, सड़क एवं भवन निर्माण विभाग जैसे कई ऐसे विभाग हैं जिनके सहयोग से यात्रा संपन्न होती है. प्रशासन का एक बड़ा हिस्सा किसी न किसी तरह से यात्रा से जुड़ा रहता है.
गत वर्ष लगभग 2.85 लाख यात्रियों ने इसमें भाग लिया था. यह संख्या कई बार बढ़ भी चुकी है. 2011 में 6.35 लाख और 2012 में 6.22 लाख यात्रियों ने पवित्र गुफा व पवित्र हिमलिंग के दर्शन किए थे. इतनी बड़ी संख्या में आने वाले यात्रियों की सुरक्षा राज्य सरकार के लिए पहली प्राथमिकता रहती है.
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हालात का भी नहीं कोई भरोसा
राज्य के मौजूदा हालात भी कब किस ओर करवट ले लें कहना बेहद मुश्किल है. गत फरवरी में पुलवामा हमले के बाद हालात में जो खतरनाक मोड़ आया है उसे नज़रअंदाज़ नही किया जा सकता. विशेषकर दक्षिण कश्मीर की स्थिति बेहद नाज़ुक है. सुरक्षित माहौल नहीं होने से लोग मतदान कैसे कर पाएंगे यह भी एक बड़ा सवाल है?
इस बार भी लोकसभा चुनाव के दौरान वैसे तो पूरी कश्मीर घाटी में कम मतदान हुआ पर दक्षिण कश्मीर में आतंकवादियों के भय से अधिकतर लोग मतदान से दूर ही रहे. दक्षिण कश्मीर में सबसे कम मतदान हुआ है. अनंतनाग की बिजबिहाड़ा तहसील में हुआ मतदान यह बताने के लिए काफी है कि हालात किस हद तक विपरीत हैं. बिजबिहाड़ा तहसील में कुल 93289 में से मात्र 1905 लोगों ने वोट डाले.
उल्लेखनीय है कि अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र में चुनाव संपन्न कराना चुनाव आयोग के लिए बहुत बड़ी चुनौती रहा है. उल्लेखनीय है कि राज्य की मुख्यमंत्री बनने पर महबूबा मुफ्ती ने अप्रैल 2016 में लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था जिस कारण यह सीट खाली हुई थी. लेकिन आतंकवादी बुरहान वानी के एक मुठभेड़ में मारे जाने के बाद ऐसे हालात बने कि चुनाव आयोग अनंतनाग में चुनाव नहीं करा सका.
16वीं लोकसभा का कार्यकाल तक भी पूरा हो गया पर अनंतनाग में चुनाव नहीं हो सके. अब पूरे देश के साथ अनंतनाग लोकसभा सीट के लिए भी चुनाव हो रहा है. लेकिन यह देश की एकमात्र सीट है यहां तीन चरणों में मतदान कराया जा रहा है. तीन चरणों में मतदान का होना भी दर्शाता है कि दक्षिण कश्मीर में क्या स्थिति है. दक्षिण कश्मीर के वर्तमान हालात को देखते हुए विधानसभा चुनाव करा पाना एक बड़ी चुनौती है.
मौसम भी है बड़ी बाधा
अमरनाथ यात्रा के अलावा जम्मू कश्मीर जैसे पर्वतीय प्रदेश में जुलाई से सितम्बर तक का समय चुनाव के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है. भारी बारिश, भू-स्खलन और बाढ़ आदि से हर साल राज्य के कई हिस्सों में जन जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है. कई इलाकों का सड़क संपर्क टूट जाता है और अन्य संचार सुविधाएं भी ठप हो जाती हैं.
अक्टूबर से दिसम्बर और फिर मार्च से जून तक का समय ही चुनाव के लिए सही माना जाता है. जम्मू कश्मीर विधानसभा के लिए 2018 में हुआ पिछला चुनाव भी 25 नवम्बर से 20 दिसम्बर के बीच संपन्न हुआ था.
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पर्यवेक्षक सौंप चुके हैं रिपोर्ट
चुनाव आयोग ने गत मार्च में लोकसभा चुनाव की घोषणा करते समय जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कराने के लिए एक तीन सदस्यीय पर्यवेक्षकों की समिति नियुक्ति की थी. इसको ज़िम्मेवारी दी गई थी कि आतंकवादग्रस्त जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने की संभावनाओं को तलाशे और चुनाव आयोग को आवश्यक सुझाव दे. इस समिति में नूर मोहम्मद, विनोद जुत्शी और एएस गिल शामिल हैं. पर्यवेक्षकों ने राज्य का कई बार दौरा कर एक रिपोर्ट तौयार की है जिसे चुनाव आयोग को सौंपा जा चुका है.
(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)