लखनऊ, एक सितंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दो आरोपियों के बीच के रिकॉर्ड टेलीफोनिक वार्तालाप का साक्ष्य इस आधार पर अस्वीकार्य नहीं किया जा सकता कि उक्त रिकॉर्डिंग गैर कानूनी तरीके से की गई।
पीठ ने कहा कि इस संबंध में कानून बिल्कुल स्पष्ट है कि कोई भी साक्ष्य इस आधार पर अस्वीकार नहीं करार दिया जा सकता कि उसे गैर कानूनी ढंग से प्राप्त किया गया है।
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने फतेहगढ़ छावनी बोर्ड के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) महंत प्रसाद राम त्रिपाठी की पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
अदालत ने रिश्वत मामले में ‘क्लीन चिट’ की मांग करने वाले याचिकाकर्ता के आरोप मुक्त करने की अर्जी को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता ने निचली अदालत की कार्यवाही को इस आधार पर चुनौती दी थी कि पूरा मामला फोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग पर आधारित था जो कि अवैध तरीके से प्राप्त की गई थी और चूंकि यह साक्ष्य स्वीकार्य नहीं हो सकता, इसलिए निचली अदालत के समक्ष कार्यवाही एक निरर्थक अभ्यास थी।
वर्ष 2015 में हैदर अली ने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनका एक बिल पास करने के लिए फतेहगढ़ छावनी बोर्ड के सदस्य शशि मोहन ने बोर्ड के सीईओ महंत प्रसाद राम त्रिपाठी की ओर से डेढ़ लाख रुपये रिश्वत की मांग की।
जांच के दौरान सीबीआई ने दोनों आरोपियों का टेलीफोनिक वार्तालाप रिकॉर्ड पर लिया जिसमें शशि मोहन द्वारा कथित रूप से याचिकाकर्ता को बताया गया कि हैदर अली ने बिल राशि का छह प्रतिशत भुगतान कर दिया है। एक आरोपी द्वारा स्पीकर पर फोन डालने के बाद सीबीआई ने डिजिटल वॉयस रिकॉर्डर पर दोनों आरोपियों के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत को रिकॉर्ड किया था।
भाषा सं आनन्द आशीष
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