एक गर्म उमस भरी दोपहर में फ़्लिपर, मिस्टर मोल्ट, डेज़ी, डोनाल्ड, ओलिव, पोपेय, बबल और उनके साथी मुंबई के बायकुला चिड़ियाघर के अपने बर्फीले बाड़े में इधर-उधर मस्त चहलकदमी कर रहे हैं. उनकी फलती-फूलती कॉलोनी उन सभी विरोधियों के लिए एक करारा झटका है, जिन्होंने कुछ साल पहले 2.5 करोड़ रुपये खर्च कर इसे बनाने पर सवाल उठाए थे.
आज सीसीटीवी से लैस चट्टानी गुफाओं, बर्फ और कृत्रिम तालाबों वाला यह बाड़ा काफी तेजी से फैल रहा है. यह कुल 1800 वर्ग फुट का है. वहां पहले से ही 15 पेंगुइन हैं, और दो अब विनिमय कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए तैयार हैं. चिड़ियाघर के अधिकारी गुजरात और हैदराबाद में अपने समकक्ष अधिकारी से इसके लिए लगातार संपर्क कर रहे हैं.
लेकिन मुंबई में पेंगुइन जब पहली बार आए थे तो माहौल ऐसा नहीं था. यह उनके अस्तित्व और संरक्षण की कहानी है.
भारत लाए जाने के दो साल बाद, सात हम्बोल्ट पेंगुइन में से एक ने 7 जुलाई 2018 को एक अंडा दिया. यह चिड़ियाघर के लिए एक ऐतिहासिक दिन था. इस दिन चिड़ियाघर में काफी जश्न मनाया गया. पहली बार कैद में किसी पेंगुइन ने भारतीय धरती पर अंडा दिया था. उस साल स्वतंत्रता दिवस के दिन लगभग 8 बजे, अंडा फूटा और पेंगुइन के पहले फ्रीडम बेबी को स्वतंत्रता मिली. भारत में जन्मा पहला पेंगुइन, जिसका वजन लगभग 75 ग्राम और मुश्किल से 3-4 इंच लंबा था, का जन्म मुंबई के चिड़ियाघर में हुआ था.
लेकिन यह जश्न काफी कम समय के लिए ही चला. एक सप्ताह बाद 22 अगस्त को, नवजात चूज़े में आंतरिक विसंगतियों के चलते उसकी मृत्यु हो गई. उस समय, चिड़ियाघर के अधिकारियों को इसके लिए बहुत आलोचना झेलनी पड़ी थी और सवाल उठाए गए थे कि क्या ये विदेशी पक्षी भारत में रह सकेंगे.
अब, सियोल से मुंबई लाए जाने के सात साल बाद, वीरमाता जीजाबाई भोसले उद्यान और बायकुला चिड़ियाघर में पेंगुइन कॉलोनी काफी बिकसित हो चुकी है. इसे लोकप्रिय रूप से रानी बाग के नाम से जाना जाता है. यह काफी फल-फूल रहा है. अब तक आठ पेंगुइन बाडे़ में पैदा हुए हैं और शिशु पेंगुइन और उनके माता-पिता की ख़ुशी से उनकी संख्या दोगुनी हो गई है.
शिवसेना विधायक आदित्य ठाकरे ने कहा, “मुंबई में पेंगुइन देखने वाले परिवारों के चेहरों पर जो खुशी हम देखते हैं, वह हमारे लिए तर्क और सफलता का सबसे अच्छा उपाय है.” आदित्य ठाकरे को ही पेंगुइन को भारत लाने का श्रेय दिया जाता है.
प्यारी जीत
2 फीट लंबे ये जलीय पक्षी बर्फीले घेरे के चारों ओर इधर-उधर घूमते रहते हैं. वे वयस्कों और बच्चों के बीच समान रूप से आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं.
ठाकरे के लिए इस कार्यक्रम की सफलता एक असाधारण प्यारी जीत है. जब पेंगुइन को लेकर राज्य में आरोप-प्रत्यारोप चल रहा था उस वक्त विरोधियों ने उन पर कटाक्ष किया था और कई लोगों ने उन्हें ‘बेबी पेंगुइन’ कहा था.
ठाकरे ने कहा, “हमने विज्ञान और विशेषज्ञ की सलाह मानी. चिड़ियाघर के प्रति हमारा दृष्टिकोण इसे एक पूर्व सीटू संरक्षण स्थल और एक ऐसी प्रजाति के अंतरराष्ट्रीय प्रजनन कार्यक्रम के रूप में मानना रहा है, जो निवास स्थान के विनाश के कारण अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहा है.”
चिड़ियाघर के बाड़े में 25 पेंगुइन रखने की क्षमता है और अधिकारियों को आशा है कि भविष्य में और बच्चे जन्म लेंगे जिसके चलते अधिकारी विनिमय कार्यक्रम के तहत दो पेंगुइन को बाहर भेजने की सोच रहे हैं. अधिकारियों ने पहले ही हैदराबाद चिड़ियाघर को इसके लिए एक पत्र लिखा है और वे अब उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं.
चिड़ियाघर के निदेशक डॉ. संजय त्रिपाठी ने कहा, “बदले में, हमने एक सुनहरा सियार, मगरमच्छ, भेड़िया और सियार के लिए अनुरोध किया है, जो हैदराबाद चिड़ियाघर में बहुतायत में हैं.”
हैदराबाद चिड़ियाघर से जब दिप्रिंट ने इसकी जानकारी के लिए कॉल और ईमेल के माध्यम से संपर्क किया तो उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. जवाब मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
चिड़ियाघर के अधिकारी अब गुजरात के चिड़ियाघरों को भी एक पत्र लिखने की योजना बना रहे हैं.
त्रिपाठी कहते हैंस “मैंने इन पेंगुइनों को अपनी अतिरिक्त सूची में डाल दिया है. लेकिन इसमें जोखिम अवश्य है. जो चिड़ियाघर उन्हें ले जाएगा, उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि इन विदेशी पक्षियों के लिए प्रोटोकॉल का पालन किया जाए. इसका मतलब यह है कि चिड़ियाघरों को चिलर में निवेश करना होगा. साथ ही स्वच्छ वायु, पशु चिकित्सकों और रखवालों की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित करनी होगी. यह काफी महत्वपूर्ण है अन्यथा अनुमति नहीं दी जाएगी.”
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हैप्पी फीट
हम्बोल्ट पेंगुइन चिली और पेरू का मूल निवासी है. इसे दक्षिण कोरिया के सबसे बड़े एक्वैरियम, कोएक्स एक्वेरियम से मुंबई लाया गया था. आठ पेंगुइनों का दल- जिसमें तीन नर और पांच मादा थे- 26 जुलाई 2016 को मुंबई उतरे थे.
उन्हें प्यार से फ़्लिपर, मिस्टर मोल्ट, डेज़ी, डोनाल्ड, ओलिव, पोपेय, बबल और डोरी कहा जाता था. हालांकि, पेंगुइन को भारत में लाने के कार्यक्रम की शुरुआत बेहद ख़राब रही. कुछ दिन बाद ही जीवाणु संक्रमण के चलते एक पेंगुइन डोरी की मृत्यु हो गई. मिस्टर मोल्ट और फ़्लिपर के पहले चूज़े की मौत के चलते चिड़ियाघर के कर्मचारियों का मनोबल और गिर गया और उन्हें काफी झटका लगा.
हालांकि, उसके बाद से पेंगुइन कॉलोनी का विस्तार हो रहा है. इसमें वहां मौजूद प्रकृति, पोषण, विज्ञान और विस्तार, इन सबने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
डॉ. त्रिपाठी ने कहा, “पेंगुइन अच्छे माता-पिता हैं और वह अपने बच्चों की अच्छी देखभाल कर रहे हैं.” साथ ही उन्होंने सभी दिशानिर्देशों का पालन करने के महत्व पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा, “हमारे पेंगुइन की सफलता की कहानी का एक कारण यह है कि हमने WAZA (वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ़ ज़ू एंड एक्वेरियम) के अनुसार हवा, पानी, प्रकाश, पोषण प्रबंधन के दिशानिर्देशों का पालन किया है.”
उन्होंने कहा, “पेंगुइन कॉलोनी को खुश रखने के लिए हमने बहुत काम किया जाता है. पेंगुइन एक विशेष तापमान वाले बाड़े में रहते हैं. उनके घेरे में रेत और चट्टानी क्षेत्र, जल कुंड और विश्राम और घोंसले के क्षेत्र शामिल हैं. बाड़े के अंदर का तापमान 12-14 डिग्री सेल्सियस के बीच बनाए रखा जाता है. उनके लिए बनाया गया बाड़े में 40,000 लीटर पानी का इस्तेमाले हर घंटे में किया जाता है.”
पेंगुइन को दिन में तीन बार खाना खिलाया जाता है और वे अपनी पसंदीदा मछलियां खाते हैं, जिसमें बॉम्बे डक, इंडियन मैकेरल और सार्डिन शामिल हैं. बैक्टीरिया को खत्म करने और लंबे समय तक ताजा रखने के लिए सभी मछलियों को ब्लास्ट फ्रोजन किया जाता है.
प्राणीविज्ञानी डॉ. अभिषेक साटम कहते हैं, “अपने भोजन के समय, वे सभी बाड़े के गेट पर खड़े होकर भोजन पाने की प्रतीक्षा करते हैं. हालांकि, नवजात शिशु समझ नहीं पाते कि क्या हो रहा है.”
जंगल की तरह, कैद में रहने वाले पेंगुइन भी एक ही पत्नी रखते हैं और जीवन भर जोड़े में रहते हैं. मिस्टर मोल्ट और फ़्लिपर सबसे प्रसिद्ध जोड़े हैं. उनकी अब वयस्क लड़की ओरियो ने बबल के साथ जोड़ा बना लिया है. बबल के साथी डोरी की मौत शुरुआती दिनों में हो गई थी.
पेंगुइन कीपर प्रफुल्ल अप्पनकर कहते हैं, “श्री मोल्ट काफी लोकप्रिय और शरारती है. डोनाल्ड और पोपेय आक्रामक व्यवहार दिखाते हैं और उसपर हावी होने की कोशिश करते रहते हैं.” उन्होंने कहा कि शुरू से ही उनकी देखभाल करने के चलते वह हर पक्षी के बारे में जान गए हैं. वह उनकी पसंद, नापसंद, विचित्रता, व्यक्तित्व, लक्षण- सबकुछ समझते हैं.
अप्पनकर कहते हैं, “जब मैं डोनाल्ड को खाना खिलाता हूं, या दवाइयां देता हूं तो वह मेरे नाखून काटता है. एकबार हेल्थ टेस्ट के दौरान जब मैंने उसे पकड़ लिया, तो वह इतना गुस्सा हो गया कि उसकी चोंच मुझसे टकरा गई. पोपेय अन्य पेंगुइन कि तरह मुझपर भी हमला कर देता है, लेकिन सबसे चंचल मिस्टर मोल्ट ही है.”
वो कहते हैं, “जब मिस्टर मोल्ट पानी में घुसता हैं, तो अन्य पेंगुइन इसमें घुसने की हिम्मत नहीं करते हैं. वह बहुत बड़ा तैराक है इसलिए अन्य पेंगुइन उससे अलग ही रहते हैं.”
मधुमिता काले के अनुसार, जो पेंगुइन की प्राथमिक चिकित्सक हैं, क्योंकि पेंगुइन मनोरंजन से जुड़े हैं और काफी प्यारा प्राणी है, उसे ऐसा नाम देना चाहिए जो बच्चे से जुड़ा हो.
पेंगुइन के बेहतर पहचान के लिए अलग-अलग रंग कोड के साथ टैग किया जाता है. नर अपने पंखों पर मोती जुड़ा हुआ एक नीला टैग पहनते हैं, जबकि मादा पक्षी मोतियों के साथ पीले बैंड पहनती हैं. शिशुओं का पेट सादा सफेद होता है, जबकि वयस्कों के पेट के किनारे पर काली पट्टी होती है.
कभी-कभी पेंगुइन को देखने वाले आगुंतक चिंतित हो जाते हैं जब वे पक्षियों को पानी में प्रवेश नहीं करते हुए देखते हैं. अगर वह पानी में नहीं घुसती है तो वह अपने पंख समेट लेती है.
साटम कहते हैं, “लोग सोचते हैं कि पक्षी बीमार है, लेकिन ऐसा नहीं है. इसके बजाय, यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो उसके स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा होता है.”
पिछले साल, चिड़ियाघर ने न केवल तीन पेंगुइन चूजों, निमो, सिरी और डोरा के जन्म का जश्न मनाया, बल्कि दो नर बाघ शावक जय और रुद्र के जन्म का जश्न भी मनाया. दोनों अब अपने माता-पिता शक्ति (8) और करिश्मा (10) की देखरेख में नौ महीने के हैं.
पेंगुइन के बाद से और अब बाघ शावकों के कारण चिड़ियाघर में पर्यटकों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है, जिन्हें मई में जनता को देखने के लिए खोला गया. डॉ. त्रिपाठी ने कहा, “हम मां और शावकों को दिन में एक बार और पिता को हर बार लोगों को देखने के लिए ले जाते हैं.”
चिड़ियाघर के अधिकारियों के अनुसार, सप्ताह के बाकी दिनों में जहां लगभग 5,000 लोग देखने के लिए आते हैं वहीं शनिवार को यह संख्या दोगुनी होकर 10,000 और रविवार को 25,000 हो जाती है.
एक दिन के लिए अब तक की सबसे अधिक संख्या 1 जनवरी 2023 थी जब 32,000 लोग जानवरों को देखने के लिए पहुंचे थे.
त्रिपाठी ने कहा, “हमारे बाड़ों को जानवरों के प्राकृतिक आवासों के करीब बनाने के लिए सावधानीपूर्वक डिजाइन किया गया है.”
उन्होंने कहा कि यह आगंतुकों को यह जानकारी देता है कि विभिन्न प्रजातियां जंगली में अपने परिवेश के साथ कैसे बातचीत करती हैं.
उदाहरण के लिए, बाघ के शावक एक बार बड़े पानी के गड्ढे में चले गए, जिसका उपयोग नर शक्ति द्वारा किया जाता है. तुरंत, इसकी मां, करिश्मा, इसे खींचकर ले गई क्योंकि यह उसका क्षेत्र नहीं था. त्रिपाठी ने कहा, “हमारे पास चौबीसों घंटे उनकी देखभाल के लिए समर्पित रखवाले और डॉक्टर हैं.”
साथ ही हर कोई तेंदुए के जोड़े, रोगन और पिंटू पर भी बारीकी से नजर रख रहा है. एक चिड़ियाघर के रखवाले ने कहा, “वे आम तौर पर शांति से रहते हैं, लेकिन पिछले महीने, उनके बीच एक बड़ी लड़ाई हुई थी.”
डब्ल्यूएचओ डॉ. साटम ने कहा, “पिंटू ने रोगन को चोट पहुंचाई और उसका खून बहने लगा. इसलिए उन्हें एक महीने के लिए अलग रखना पड़ा. स्पष्ट रूप से महिला को पुरुष में कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन अब वे एक साथ फिर वापस आ गए हैं.”
विनिमय कार्यक्रम
पूरे भारत में, पशु विनिमय कार्यक्रमों को अधिक जनसंख्या और बढ़ती आनुवंशिक विविधता के समाधान के रूप में देखा जा रहा है.
लगभग 153 एकड़ में फैले पटना चिड़ियाघर में जंगली जानवरों की 108 विभिन्न प्रजातियां हैं. इसने हाल ही में मैसूर चिड़ियाघर से बाइसन, ज़ेबरा, ढोल और काले हंस के बदले जिराफ़ मंगाया था.
इंदौर चिड़ियाघर के सबसे बड़े पशु विनिमय कार्यक्रमों में से एक के हिस्से के रूप में, जामनगर, गुजरात और विदेशों में कुछ अन्य स्थानों जैसे दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अन्य स्थानों से पीले एनाकोंडा की एक जोड़ी सहित 15 प्रजातियों के 42 जानवरों का आदान-प्रदान किया गया.
इस साल, मुंबई के संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में पशु विनिमय कार्यक्रम के तहत गुजरात के जूनागढ़ से एशियाई शेरों की एक जोड़ी भी लाई गई. बदले में, उन्होंने बाघों का एक जोड़ा भेजा.
देश भर के कई चिड़ियाघरों और राष्ट्रीय उद्यानों ने भी धन जुटाने और जागरूकता फैलाने के लिए गोद लेने का कार्यक्रम शुरू किया है. महामारी के दौरान, बेंगलुरु के बन्नेरघट्टा बायोलॉजिकल पार्क ने संरक्षकों को प्रति वर्ष कम से कम 2,000 रुपये में एक भारतीय कोबरा या 1.75 लाख रुपये में एक एशियाई हाथी को ‘गोद लेने’ का मौका दिया. इसके बदले संरक्षकों को वाउचर, मुफ्त टिकट, अपडेट के रूप में कई गिफ्ट्स मिलते हैं और दान की गई राशि के आधार पर उनका नाम भी चिड़ियाघर में पशुओं के बाड़े के बाहर लिखा जाता है.
संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में, लोग तेंदुए, शेर, हिरण और अन्य जानवरों को गोद ले सकते हैं.
नाम न छापने की शर्त पर एसजीएनपी के एक अधिकारी के अनुसार, पार्क में पशुओं गोद लेने के कार्यक्रम को काफी अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली है. बहुत से जानवरों को गोद नहीं लिया जा रहा है.
पेंगुइन और बाघों की सफलता से उत्साहित, वीरमाता जीजाबाई भोसले वनस्पति उद्यान और बायकुला चिड़ियाघर अधिक विदेशी जानवरों को लाने की योजना बना रहा है. इसके लिए परिसर के भीतर 10 एकड़ भूखंड पर काम शुरू हो चुका है.
डॉ. त्रिपाठी ने कहा, “अगले तीन वर्षों में, रानी बाग में विदेशी जानवरों में ज़ेबरा, जिराफ, सफेद शेर, जगुआर आदि आ सकते हैं.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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