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Friday, 22 November, 2024
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सेना की कार्रवाई के लिए इंदिरा गांधी पर मोदी का हमला राष्ट्रीय सुरक्षा से ज्यादा राजनीति से प्रेरित था

मोदी लाल बहादुर शास्त्री और नरसिम्हा राव को छोड़कर सभी कांग्रेस प्रधानमंत्रियों के आलोचक रहे हैं, उनकी आलोचना इंदिरा गांधी का जिक्र काफी हद तक आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों और अनुच्छेद 356 के लगातार दुरुपयोग अब तक सीमित थी.

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लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंदिरा गांधी पर तीखा हमला असामान्य था. हालांकि वह आपातकाल के बड़े आलोचकों में से एक रहे हैं, लेकिन शायद ही कभी उन्होंने या उनके वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इंदिरा गांधी पर व्यक्तिगत हमले किए हों या राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में उनके ट्रैक रिकॉर्ड पर सवाल उठाया हो. 1971 में बांग्लादेश को आज़ाद कराकर पाकिस्तान को विभाजित करने के अपने कारनामे के लिए उन्हें संघ परिवार से काफी सम्मान और प्रशंसा मिली. इस हद तक कि अटल बिहारी वाजपेई द्वारा उनकी तुलना देवी दुर्गा से करना सार्वजनिक चर्चा में आज भी जारी है, भले ही बाद में उन्हें सफाई दी थी कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा था.

हालांकि मोदी लाल बहादुर शास्त्री और नरसिम्हा राव को छोड़कर सभी कांग्रेस प्रधानमंत्रियों के आलोचक रहे हैं, इंदिरा गांधी की आलोचना काफी हद तक आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों और अनुच्छेद 356 के लगातार दुरुपयोग तक ही सीमित रहा था. लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी पर जमकर तीखा हमला बोला. मोटे तौर पर तीन मामले थे जिन पर उन्होंने इंदिरा को जिम्मेदार ठहराया.

सबसे पहले, उन्होंने 1974 में तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए उनकी आलोचना की, जिसमें 285 एकड़ में फैले निर्जन कच्चातिवु द्वीप पर भारत के अधिकारों को छोड़ दिया गया था. मणिपुर में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर भारत माता की “हत्या” करने का आरोप लगाने के लिए राहुल गांधी पर जवाबी हमला करते हुए प्रधान मंत्री ने कहा, “तमिलनाडु के बाद और श्रीलंका से पहले द्वीप को दूसरे देश को किसने दिया? क्या ये भारत माता नहीं थी? क्या ये मां भारती का हिस्सा नहीं था? तब वहां कौन था? यह इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुआ?”

दूसरा, मोदी ने 5 मार्च 1966 को मिजोरम में “असहाय नागरिकों” पर भारतीय वायु सेना के हमले का मुद्दा उठाया, जो इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान हुआ था. मोदी ने कहा, “कांग्रेस को जवाब देना चाहिए कि क्या यह किसी दूसरे देश की वायु सेना थी. क्या मिजोरम के लोग मेरे देश के नागरिक नहीं थे? क्या उनकी सुरक्षा भारत सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं थी?”

तीसरा, उन्होंने 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार का जिक्र किया, जो स्वर्ण मंदिर से सशस्त्र आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए चलाया गया था. मोदी ने कहा, “अकाल तख्त पर हमला किया गया था, जो आज भी हमारी स्मृति में है. उन्हें मिजोरम में पहले ही इसकी आदत हो गई थी.”

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दो अन्य मुद्दे थे जिन पर प्रधानमंत्री ने इंदिरा गांधी पर कटाक्ष किया, लेकिन वो विवेचना का विषय है. जब उन्होंने 14 अगस्त (1947) को “मां भारती को तीन टुकड़ों में काटने” के लिए कांग्रेस पर हमला किया, तो कई लोगों ने इसे 1971 की बांग्लादेश की मुक्ति के संदर्भ के रूप में व्याख्या की होगी. लेकिन, निश्चित रूप से, मोदी पाकिस्तान को विभाजित करने के लिए इंदिरा की आलोचना नहीं करेंगे. . इसलिए, तीसरा भाग एक पहेली बना हुआ है. उन्होंने कांग्रेस पर गांधी का नाम चुराने का भी आरोप लगाया. ऐसा प्रतीत होता है कि वह इंदिरा गांधी के पति, फ़िरोज़ गांधी का जिक्र कर रहे थे, जिन्होंने अपना उपनाम गांधे से बदलकर गांधी कर लिया था, जो उनके परिवार ने अपनाया.

हालांकि, पहले तीन मामलों में इंदिरा गांधी पर मोदी का हमला असामान्य और आश्चर्यजनक था. उदाहरण के लिए कच्चातिवू द्वीप पर उन पर किए गए उनके तंज को ही लीजिए. 1974 की संधि के खिलाफ एआईएडीएमके और डीएमके दोनों अदालत गए थे. 27 अगस्त 2014 को, जब मोदी प्रधान मंत्री बन चुके थे, तब अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा: “आज इसे वापस कैसे लिया जा सकता है? यदि आप कच्चातिवू को वापस चाहते हैं, तो आपको इसे वापस पाने के लिए युद्ध करना होगा.

यदि 2014 में मोदी सरकार का यही रुख था, तो प्रधानमंत्री इसे अब सार्वजनिक रूप से क्यों उठाएंगे और पड़ोसी देश को नाराज करने का जोखिम क्यों उठाएंगे?

जहां तक मिजोरम मुद्दे का सवाल है, मोदी का रुख एक ऐसे नेता के रूप में अस्वाभाविक लगता है जिसकी यूएसपी राष्ट्रीय सुरक्षा है. वे कौन सी परिस्थितियां थीं जिनमें इंदिरा गांधी ने भारतीय वायुसेना को हमला करने का आदेश दिया? जैसा कि मेरी सहयोगी अनन्या भारद्वाज ने बताया, मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने 1 मार्च 1966 को आइजोल खजाने और सुरक्षा चौकियों पर हमला करके भारत से स्वतंत्रता की घोषणा की थी. असम राइफल्स के पांच जवान भी मारे गये. एमएनएफ की योजना सेना और अर्धसैनिक ठिकानों पर कब्जा करने और कम से कम 48 घंटों के लिए स्वतंत्र मिजोरम का झंडा फहराने की थी क्योंकि पाकिस्तान ने विद्रोही समूह को संयुक्त राष्ट्र में अपना मामला उठाने और मिजोरम को राजनयिक मान्यता दिलाने का वादा किया था. एमएनएफ को आइजोल में असम राइफल्स की चौकी पर कब्ज़ा करने से रोकने के लिए, इंदिरा गांधी ने हवाई हमले का आदेश दिया, जिससे एमएनएफ को म्यांमार और पूर्वी पाकिस्तान के जंगलों में पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसमें कम से कम 13 नागरिक भी मारे गये थे.

जरा सोचिए, अगर 1966 में मोदी प्रधानमंत्री होते और किसी विद्रोही समूह द्वारा केंद्रीय अर्धसैनिक बल की चौकी पर कब्जा करने और स्वतंत्रता की घोषणा करने की संभावना होती, तो उन्होंने इसे रोकने के लिए क्या किया होता? हम कह सकते हैं कि उन्होंने इसे रोकने के लिए वस्तुतः कुछ भी किया होता . क्या इंदिरा गांधी ने अन्य विकल्प तलाशे? यह विशेषज्ञों के बहस करने का विषय है.

पीएम मोदी द्वारा अकाल तख्त पर हमले के संदर्भ में ऑपरेशन ब्लूस्टार को एक तरह से आलोचना करना और इसे मिजोरम हवाई हमले के संदर्भ में रखना आश्चर्यजनक था. 1984 में सिख विरोधी दंगों के लिए कांग्रेस पर अपना हमला केंद्रित करते हुए, भाजपा ने इस मामले पर हमेशा एक सधी हुई चाल चली है. अरुण जेटली ने ऑपरेशन ब्लूस्टार को “ऐतिहासिक भूल” और “रणनीतिक गलत अनुमान” कहा था, लेकिन उनकी आलोचना इस पर केंद्रित थी स्वर्ण मंदिर परिसर के भीतर हथियार और गोला-बारूद लाने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले जैसे “चरमपंथी कट्टरपंथियों” को रोकने में इंदिरा गांधी सरकार की विफलता और सैन्य हस्तक्षेप का सहारा लेने से पहले उन्हें निकालने के लिए वैकल्पिक विकल्पों का उपयोग करने में गांधी विफल रही थीं..

2012 में, जब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने ऑपरेशन ब्लूस्टार में मारे गए लोगों के सम्मान में स्वर्ण मंदिर परिसर के भीतर एक स्मारक बनाने का प्रस्ताव रखा, तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ने आपत्ति जताई. भाजपा नेता जेपी नड्डा, जो बाद में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, ने स्मारक को अनावश्यक मानते हुए कहा कि इससे राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव बाधित होगा.

उसी वर्ष, तत्कालीन कांग्रेस नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह, जो अब भाजपा में शामिल हो गए हैं, ने बताया था कि लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी आत्मकथा माई कंट्री, माई लाइफ में ऑपरेशन ब्लूस्टार का समर्थन किया था.

नरेंद्र मोदी अक्सर 1984 के सिख विरोधी दंगों के लिए कांग्रेस पर हमला करते थे, लेकिन संसद में उनका नवीनतम भाषण सार्वजनिक रूप से ऑपरेशन ब्लूस्टार की आलोचना करना पहला उदाहरण था.


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इंदिरा पर मोदी के हमले के पीछे की राजनीति

पहली नज़र में, यह पीएम मोदी द्वारा राहुल गांधी को जवाब देने का मामला जैसा लग सकता है, जिन्होंने मणिपुर में उनकी कथित निष्क्रियता पर सवाल उठाकर एक मजबूत और निर्णायक नेता की उनकी छवि पर कीचड़ उछालने की कोशिश की थी. लेकिन आइए मोदी की टिप्पणियों को करीब से देखें. यह इस बारे में नहीं है कि इंदिरा गांधी ने 1966, 1974 या 1984 में क्या किया था. यह मोदी द्वारा अपनी पार्टी को 2024 के लिए युद्ध के लिए तैयार करने के बारे में है. उन्होंने श्रीलंका से कच्चाथीवू द्वीप को पुनः प्राप्त करने के किसी इरादे की कोई घोषणा नहीं की है. उन्होंने केवल अन्नाद्रमुक के साथ संबंधों को गहरा करने की कोशिश की है, जो लोकसभा में 39 सदस्यों को भेजने वाले राज्य में भाजपा की एकमात्र उम्मीद बनी हुई है. जब भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख अन्नामलाई एन मन एन मक्कल यात्रा पर हैं तो इससे भाजपा को द्रविड़ राज्य में अपनी साख मजबूत करने में भी मदद मिलेगी.

मोदी ने भले ही इंदिरा के 1966 में देश के भीतर वायु शक्ति का उपयोग करने के फैसले पर नौ साल तक चुप्पी साध रखी हो, लेकिन अब उन्होंने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा रिकॉर्ड पर सवाल उठाने वालों को आईना दिखाने के लिए इसका इस्तेमाल करना चुना है. उन्होंने बीजेपी की सहयोगी पार्टी एमएनएफ को भी संदेश भेजा है, जिसने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया था. एमएनएफ ने 1986 में मिजोरम समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद राजनीतिक मुख्यधारा में शामिल होने के लिए अलगाववाद को त्याग दिया था.

जहां तक अकाल तख्त पर “हमले” पर मोदी की टिप्पणी का सवाल है – इस तरह इसका वर्णन करने वाले पहले प्रधान मंत्री – उन्होंने कुछ हद तक वांछित परिणाम प्राप्त कर लिया है. रविवार को, भाजपा के पूर्व सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने 1984 में श्री हरमंदिर साहिब पर सैन्य हमले के बारे में मोदी के “ईमानदार बयान” का स्वागत किया और उनसे “बिना शर्त माफी” के साथ भारत सरकार से इस पर अमल करने को कहा. आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस पंजाब और दिल्ली में गठबंधन बनाने की योजना बना रही हैं, जिसमें कुल मिलाकर 20 लोकसभा सीटें हैं और वर्तमान में भाजपा के पास नौ सीटें हैं – केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी को अपने पुराने सहयोगी SAD को वापस लाने की सख्त जरूरत है.

मोदी की अकाल तख्त टिप्पणी वह शुरुआत है जिसे अकाली दल को एनडीए में अपनी वापसी को उचित ठहराने नाम मदद मिल सकती है. तीन केंद्रीय कृषि कानूनों पर विरोध के कारण पंजाब में राजनीतिक हाशिए पर आये हुए शिअद अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. हालांकि, बादल ने ऑपरेशन ब्लूस्टार के लिए केंद्र की माफी की मांग करके भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं. क्या पीएम मोदी इसपर दांव लगाएंगे? 1984 के सिख विरोधी दंगों के लिए कांग्रेस से माफी की मांग करना एक बात है, लेकिन स्वर्ण मंदिर से सशस्त्र आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य अभियान के लिए माफी मांगने के लिए मोदी को एक मजबूत और निर्णायक नेता के रूप में अपनी ब्रांड छवि को रीसेट करने की आवश्यकता होगी.

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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