मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक ने 2023-24 के लिए देश की खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को, जून में अपनी पिछली मौद्रिक नीति के अनुमानित 5.1 प्रतिशत के मुकाबले, संशोधित कर 5.4 प्रतिशत कर दिया है.
आरबीआई गवर्नर शशिकांत दास, इस बैठक के बाद सामान्य मानसून की बात करते हुए कहा कि खुदरा मुद्रास्फीति को संशोधित करके 5.4 प्रतिशत कर दिया है, जो कि Q2 में 6.2 प्रतिशत, Q3 में 5.7 प्रतिशत और Q4 में 5.2 प्रतिशत पर हो सकती है. 2024-25 की पहली तिमाही के लिए खुदरा मुद्रास्फीति 5.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है.
दास ने कहा, “जोखिम सामान्य रूप से संतुलित हैं.”
भारत में खुदरा मुद्रास्फीति जून में बढ़कर 4.81 प्रतिशत हो जाने के बाद, मुद्रास्फीति के इस अनुमान में बढ़ोत्तरी की गई है, इसका मुख्य कारण टमाटर समेत सब्जियों की कीमतों में तेज उछाल है. सब्जियों के अलावा, महंगाई सूचकांक में मांस, और मछली; दालें, मसालों के दाम में भी इजाफा देखा गया है.
वापस मई को देखें तो, खुदरा मुद्रास्फीति 2 साल के निचले स्तर 4.25 प्रतिशत पर थी. यह अप्रैल में यह 4.7 थी और पहले के महीने में 5.7 प्रतिशत थी.
दास ने कहा, “जुलाई के महीने में मुख्य रूप से सब्जियों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि देखी गई है. टमाटर की कीमतों में बढ़ोत्तरी और अनाज व दालों की कीमतों में और वृद्धि ने इसमें भूमिका निभाई है. इसका नतीजा ये हुआ है कि निकट भविष्य में महंगाई में पर्याप्त वृद्धि हुई है.”
उन्होंने कहा, “पहले के ट्रेंड को देखें, कुछ महीनों बाद, सब्जियों के दामों में महत्वपूर्ण सुधार दिख सकता है. मानसून में सुधार के कारण ख़रीफ़ फ़सलों की संभावना अच्छी हो गई है. हालांकि, अगस्त और उसके बाद अचानक मौसम की घटनाओं और संभावित अल नीनो स्थितियों के कारण घरेलू खाद्य मूल्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. खाद्य वस्तुओं के वैश्विक दामों को लेकर नए सिरे से भू-राजनीतिक तनाव का सख्त असर दिख रहा है. हाल के सप्ताह में, कच्चे तेल के दामों में मजबूती आई है और जिस वजह से मांग-आपूर्ति को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है.”
उस पृष्ठभूमि में, आरबीआई गवर्नर ने कहा अगर जरूरी हो, तो यह “अर्जुन की नज़र बनाए रखने” की तरह नीतिगत तरीके अपनाने से आगे जाने को तत्पर है.
उन्होंने जून की बैठक में कही गई बात को दोहराया- “प्रमुख चीजों की मुद्रास्फीति को कम करना पर्याप्त नहीं है; हमें 4.0 प्रतिशत के मुद्रास्फीति के लक्ष्य के अनुरूप लाने पर मजबूती से ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.”
लचीले मुद्रास्फीति के लक्ष्य वाले ढांचे के तहत, यदि सीपीआई-आधारित मुद्रास्फीति लगातार तीन तिमाहियों में 2-6 प्रतिशत की सीमा से बाहर हो, तो आरबीआई को मूल्य वृद्धि के प्रबंधन में विफल माना जाता है.
आज की मौद्रिक नीति परिणाम को फिर से देखें तो, आरबीआई दर-निर्धारण पैनल ने सर्वसम्मति से रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर बनाए रखने का फैसला किया है, कुछ ऐसा, जिसकी ज्यादातर वित्तीय बाज़ार विशेषज्ञ अपेक्षा कर रहे थे.
आरबीआई आमतौर पर एक वित्तीय वर्ष में छह द्विमासिक बैठकें करता है, जिसमें यह व्याज दरें, पैसे की आपूर्ति, महंगाई परिदृश्य और कई व्यापक आर्थिक इंडिकेटर्स पर फैसला करता है. जारी तीन दिवसीय और 2023-24 की तीसरी बैठक मंगलवार को शुरू हुई.
शुरुआती जून में, इसकी पहले की बैठक में, केंद्रीय बैक की मौद्रिक नीति कमेटी ने सर्वसम्मति से रेपो रेट 6.5 प्रतिशत को अपरिवर्तित रखने का फैसला किया था, कुछ ऐसा कि, जिसकी ज्यादातर विश्लेषकों को अपेक्षा थी. आरबीआई ने अप्रैल की बैठक में रोपो रेट को बनाए रखने का फैसला किया था.
रेपो रेट वह ब्याज दर है, जिस पर आरबीआई अन्य बैंकों को ऋण देता है.
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