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शनिवार, 28 जून, 2025
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काकोरी कांड : अनदेखी से आहत हैं शहीद क्रांतिकारियों के परिजन

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शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश), नौ अगस्त (भाषा) आजादी के आंदोलन की प्रमुख घटनाओं में शामिल ‘काकोरी कांड’ के नायक रहे शाहजहांपुर के क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह के परिजनों को निराशा है कि शासन—प्रशासन की अनदेखी के कारण नयी पीढ़ी इन क्रांतिकारियों को भूल रही है।

भारतीय स्वाधीनता संग्राम की प्रमुख घटना के रूप में याद किये जाने वाले काकोरी कांड की आज 98वीं वर्षगांठ है। इस घटना का अहम हिस्सा रहे क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान के प्रपौत्र का नाम भी अशफाक उल्ला खान ही है। उनका दावा है कि सरकार ने प्रदेश की माध्यमिक कक्षाओं में क्रांतिकारियों पर आधारित पाठ्यक्रम में अशफाक उल्ला खां को शामिल नहीं किया गया है।

खान ने कहा कि उन्हें इस बात का दुख है कि जिसने देश के खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया उन्हें यह सरकार भूलती जा रही है।

कुछ ऐसी ही निराशा ठाकुर रोशन सिंह के प्रपौत्र जितेंद्र प्रसाद सिंह भी व्यक्त करते हैं। नवादा दरोवख्त गांव में रहने वाले सिंह का कहना है कि उनके गांव को पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्णा राज ने गोद लिया था लेकिन आज उसे पूछने वाला कोई नहीं है और गांव की हालत बेहद दयनीय है।

आर्य समाज के प्रमुख राजीव शुक्ला बताते हैं कि खिरनी क्षेत्र में क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के मकान को संग्रहालय बनाने में बात हो रही है लेकिन उस पर अभी तक कोई काम शुरू नहीं हुआ है।

स्वामी शुकदेवानंद स्नातकोत्तर महाविद्यालय के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर विकास खुराना ने अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन लाल की वीरता की मिसाल के तौर पर पेश किये जाने वाले काकोरी कांड के बारे में बताया कि 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने बंगाल के क्रांतिकारी नेता सचिंद्र सान्याल के साथ मिलकर ‘हिंदुस्तान प्रजातांत्रिक संगठन’ बनाया था। इस संगठन को चलाने के लिए धन की आवश्यकता के मद्देनजर नौ अगस्त, 1925 को लखनऊ से खजाना लेकर सहारनपुर जा रही ट्रेन को काकोरी स्टेशन पर रोक लिया गया था और उसमें रखा धन लूट लिया गया था।

खुराना ने बताया कि इस मामले में 40 लोगों को आरोपी बनाया गया था। उनमें से 10 को सजा हुई थी। शाहजहांपुर निवासी अशफाक उल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल (ठाकुर) और गोंडा के रहने वाले राजेंद्र लाहिड़ी को 19 दिसंबर, 1927 को फांसी की सजा हुई थी।

भाषा सं. सलीम अर्पणा

अर्पणा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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