प्रिविलेज क्लास (विशेषाधिकृत वर्ग) द्वारा विरोध और आक्रोश तब ही सामने आता है, जब अत्याचार और हिंसा उनके दरवाजे पर दस्तक देते हैं. खासतौर से तब, जब उनकी रोजमर्रा की जिंदगी सही तरीके से चलना ठप्प हो जाए. यह जनरलाइजेशन (सामान्यीकरण) हो सकता है, लेकिन यह सोशल मीडिया पर एक वीडियो में साफ-साफ दिखाई दे रहा है जो नुह और गुरुग्राम में हिंसा के बाद वायरल हो रहा है.
गुरुग्राम के कुछ हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा होने के बाद एक महिला का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह सरकारी अधिकारियों से अनुरोध कर रही हैं कि हाउसकीपिंग स्टाफ को सुरक्षा मुहैया की जाए. सेक्टर 70 आरडब्ल्यूए की प्रेसिडेंट किरण कपूर की इस भावुक अपील का मुद्दा स्टाफ की सुरक्षा नहीं, बल्कि उनके रहने वाले शानदार अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में बढ़ते हुए कचरे के ढेर का था.
प्रिविलेज क्लास की भावहीनता कभी इतनी साफ नहीं रही है.
उन्होंने कहा, “हमारे घरों के सामने कचरा पड़ा है.” उन्होंने आगे कहा कि कचरे के ढेर की वजह से कोई भी बेसमेंट में नहीं जा सकता है. नुंह में सांप्रदायिक हिंसा होने के बाद से यह गुरुग्राम तक फैल गए. प्रवासी मजदूर अपनी सुरक्षा की खातिर वहां से छोड़ कर जा चुके हैं, जिसके कारण गुरुग्राम के बड़े अपार्टमेंट कम्प्लेक्स और गेटेड सोसाइटी के परिवारों को कोई सेवा नहीं मिल रही है.
क्या कपूर जी यह सोचती हैं कि प्रभावित लोगों को सुरक्षा दी की जानी चाहिए? हां, लेकिन ताकि वे काम पर वापस आ सकें.
उन्होंने कहा, “सरकारी अधिकारियों को कम से कम कुछ सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए ताकि वे आकर काम कर सकें.”
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दो गुरुग्राम
दिल्ली के करीब दो गुरुग्राम बसते हैं. एक जहां झोपड़ी बसी हुई हैं और वहां कोई सही सीवेज सिस्टम या बुनियादी सुविधा नहीं है, वहां प्रवासी मजदूर रहते हैं और वह दूसरे गुरुग्राम के लोगों की सेवा करते हैं — वो लोग जो उनकी ऊंची बिल्डिंग्स और गेटेड सेसाइटी में रहते हैं. उनकी सुरक्षित दीवारों से घिरी दुनिया है, जहां पार्क, स्विमिंग पूल और क्लबहाउस हैं. यह सब घरेलू कर्मचारियों, चालकों और सुरक्षा कर्मचारियों की एक छोटी सेना संभालती है.
हिंसा के दौरान, एक मस्जिद जला दी गई और उसके 22 वर्षीय नाइब इमाम को भीड़ द्वारा मार दिया गया, जिसके बाद से 4500 प्रवासी गुड़गांव छोड़ गए हैं.
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मुसलमानों पर हमला हो रहा था. मध्यम वर्ग को उन लोगों की परेशानी से कोई परवाह नहीं थी जो उनकी रोजमर्रा की आराम की जिंदगी जीने में मदद करते हैं. मिसेज कपूर जैसे लोगों के लिए, श्रम अनावश्यक है.
वीडियो में, उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के बारे में बात करते हुए देखा जा सकता है. लेकिन वो यह समझने में नाकामयाब हैं कि गुरुग्राम में पहले से मुहैया कराई गई सुरक्षा, मस्जिद में एक भीड़ को घुसने या इमाम की हत्या करने को नहीं रोक पाई.
यह भावहीनता सांप्रदायिक भेद से भी आगे बढ़ गई है. जब भी गेट्स के बाहर रहने वाले लोग अपनी आवाज़ उठाते हैं, गुरुग्राम में वर्ग टकराव होता है.
पांच साल पहले, गुड़गांव राष्ट्रीय अख़बारों के पहले पेज पर था—स्टार्टअप्स और कॉर्पोरेट पार्क्स के लिए नहीं—बल्कि डीएलएफ5 में घरेलू कर्मचारियों के कड़े विरोध प्रदर्शन के लिए. यह मामला एक नियोक्ता द्वारा कथित तौर पर अपने घरेलू कामगार की पिटाई से भड़का था. सैकड़ों घरेलू कामगार और उनके पति न्याय की मांग करते हुए चारदीवारी के बाहर जमा हो गए थे.
जांच सिर्फ शब्दों का विषय बन कर रह जाती है. प्रिविलेज क्लास द्वारा किए गए अत्याचार बार-बार होते रहते हैं, जिन्हें अक्सर अख़़बारों में ही जगह मिलती है. इस साल फरवरी में गुरुग्राम के एक कपल पर एक नाबालिग लड़की को कथित तौर पर प्रताड़ित करने का मामला दर्ज किया गया था, जिसे उन्होंने घरेलू कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया था. पिछले साल, एक अन्य सोसायटी के निवासी पर भी मामला दर्ज किया गया था, क्योंकि वो लिफ्ट में फंस गया था जिसकी वजह से उसने सुरक्षा गार्ड पर हमला कर दिया था.
ज्यादातर घरेलू कर्मचारी कम आय वाले प्रवासी होते हैं, जो कृषि और निर्माण के बाद तीसरे सबसे बड़े व्यवसायिक समूह को बना जाते हैं. हालांकि, नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स मूवमेंट के अनुसार, घरेलू कामगारों की संख्या 50 मिलियन से अधिक है जहां 66 प्रतिशत से अधिक कार्यबल शहरों में केंद्रित है.
तेजी से बदलते सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य में, सभी हाशिए पर रहने वाले श्रमिक सस्ते श्रम तक सीमित हो गए हैं, भले ही वे खुद हिंसा से सीधे प्रभावित हों.
अगर गुरुग्राम बढ़ती असमानता से जूझ रहे भारत का एक छोटा सा हिस्सा है तो सहानुभूति सालों पहले ही मर गई है.
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सुरक्षा से ज्यादा अहम कचरा
श्रमिकों के जाने का वीडियो 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान भारत भर के शहरों को छोड़ने वाले प्रवासी श्रमिकों की याद दिलाते हैं. हाल की हिंसा के बाद गुरुग्राम से भाग गए अधिकांश लोग शायद वापस नहीं लौटेंगे. उनके पास वापस आने के लिए कुछ भी नहीं है.
लेकिन यह खाली जगह श्रमिकों की एक नई सेना के जरिए भरा जाएगा, जो नौकरियों की तलाश में चमचमाते शहर की ओर आकर्षित हुए हैं.
मुसलमानों के लिए, भेदभाव कई स्तरों पर है. अल-जजीरा की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में किसी भी अन्य धार्मिक महिलाओं की तुलना में अधिक मुस्लिम महिलाएं अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करती हैं.
लेकिन संकट के दौरान भी, टावरों को साफ-सुथरा रहना चाहिए. गुरुग्राम की आंटियों के लिए,शारीरिक कूड़ा को साफ करने की जरूरत है, मानसिक कूड़ा इंतजार कर सकता है.
व्यक्त विचार निजी हैं.
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