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Tuesday, 19 November, 2024
होमडिफेंसCDS से DMA तक, मोदी सरकार ने थिएटर कमांड के लिए सेना की उम्मीद जगाई, लेकिन अब 4 साल बीत चुके हैं

CDS से DMA तक, मोदी सरकार ने थिएटर कमांड के लिए सेना की उम्मीद जगाई, लेकिन अब 4 साल बीत चुके हैं

थिएटर कमांड में बदलाव की शुरुआत बुनियादी ढांचे में बदलाव के साथ ही होनी चाहिए. ट्रायल-आधारित थिएटर कमांड न तो यहां होगा और न ही वहां होगा.

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15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि भारत में एक चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ होगा, जो तीनों सेनाओं का प्रमुख होगा. 30 दिसंबर को जनरल बिपिन रावत को पहला CDS नियुक्त किया गया और रक्षा मंत्रालय में सैन्य मामलों का एक विभाग बनाया गया. अन्य मुद्दों के अलावा, DMA को संयुक्त/थिएटर कमांड की स्थापना सहित संचालन में एकजुटता लाकर संसाधनों का मिलकर उपयोग करने के लिए एक सैन्य कमांड के पुनर्गठन का आदेश दिया गया था. CDS को पद संभालने के तीन साल के भीतर तीनों सेनाओं के संचालन, रसद, परिवहन, प्रशिक्षण, सहायता सेवाओं, संचार, मरम्मत और रखरखाव आदि में एकजुटता लाने का काम सौंपा गया था.

2020 में हमने लद्दाख में चीन की आक्रामकता देखी. दिसंबर 2021 में एक हवाई दुर्घटना में जनरल रावत की दुखद मृत्यु के बाद CDS का पद नौ महीने तक खाली रहा. पुनर्गठन के बुनियादी डिजाइन पर निर्णय अभी भी काफी धीमी रफ्तार से आगे बढ़ रही है और लाल किले की प्राचीर से प्रधान मंत्री द्वारा घोषणा किए गए प्रशंसनीय सुधार पर अभी भी काम चल ही रहा है. यहां तक ​​कि सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) की मंजूरी से जुड़ी कागजी कार्रवाई का पहला बड़ा कदम भी पूरा नहीं हुआ है. हालांकि, कुछ हालिया मीडिया रिपोर्ट्स से इस बात के संकेत मिले हैं कि पुनर्गठन को आखिरकार मूर्त रूप दे दिया गया है. यह समझा जाता है कि पुनर्गठन तीन थिएटरों पर आधारित होगा जिसमें उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं के लिए एक भूमि-आधारित थिएटर कमांड और इंडो-पैसिफिक के लिए एक मैरीटाइम थिएटर कमांड शामिल है.

प्रशिक्षण, लॉजिस्टिक्स, मानव संसाधन प्रबंधन, कानूनी और संचार को कवर करने वाली कई अन्य पहलें भी चल रही हैं, जिसे नई संरचना के डिजाइन के संबंध में किसी भी प्रकार के अंतिम निर्णय के अभाव में आगे नहीं बढ़ाया है. छह सेना, दो नौसेना और पांच वायु सेना सहित तेरह सेवा-आधारित परिचालन कमांडों को इसमें रखा गया है. इसके अतिरिक्त, प्रशिक्षण से संबंधित आर्मी और नौसेना, प्रत्येक के लिए एक कार्यात्मक कमान मौजूद है. भारतीय वायुसेना के दो काम हैं- रखरखाव और प्रशिक्षण. दो एकीकृत कमांड भी हैं – अंडमान और निकोबार कमांड (एएनसी) और स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (एसएफसी) – जो परमाणु संपत्तियों को नियंत्रित करते हैं. वर्तमान में, एएनसी और एसएफसी को छोड़कर, ये सभी अपने संबंधित सेवा मुख्यालयों के अधीन हैं, जिन्हें क्रमशः एकीकृत रक्षा स्टाफ और परमाणु कमान प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित किया जाता है.

थिएटर डिज़ाइन का वैचारिक आधार

पुनर्गठन के लिए वैचारिक आधार इस धारणा से प्रेरित होना चाहिए कि “बड़ी [परिचालन] थिएटर संरचनाएं अधिक से अधिक सैन्य ताकत को लचीला बनाने में मदद करती है. यह तर्कसंगत होगा कि दो महाद्वीपीय थिएटर, पश्चिमी और उत्तरी, और एक समुद्री थिएटर को सबसे मजबूती देनी चाहिए, लेकिन एक प्रमुख कारक समुद्री थियेटर को कम करने की कोशिश भी है.”

बाहरी और आंतरिक खतरों को देखते हुए थिएटर कमांड आंतरिक भौगोलिक स्थान को शेयर करें. समुद्री आधारित थिएटर कमांड को जो आंतरिक स्थान शेयर करना होगा वह काफी बड़ा और स्पष्ट है क्योंकि इसे गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड और ओडिशा राज्यों को कवर करना होगा. इसका अर्थ प्रायद्वीपीय भारत के संपूर्ण दक्षिणी भाग से है. इतने विशाल अंतर्देशीय स्थान के साथ एक ही समुद्री क्षेत्र को घेरने से बचना बेहतर है. इसलिए, मोटे तौर पर मौजूदा पश्चिमी नौआर्मी कमान और पूर्वी नौआर्मी कमान पर आधारित दो समुद्री थिएटर बेहतर होंगे, जबकि पूर्वी थिएटर कमांड मौजूदा एकीकृत अंडमान और निकोबार कमांड को शामिल कर लेगा. 

आंतरिक सुरक्षा जिम्मेदारियों के लिए एक अलग कार्यात्मक कमांड रखने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि संपत्ति थिएटर कमांड से लेनी है. आंतरिक सुरक्षा के लिए कमांड संरचना आर्मी के मौजूदा क्षेत्रीय मुख्यालयों पर आधारित हो सकती है, जिनकी ज़िम्मेदारियां पहले से ही मौजूदा राज्य सीमाओं के अनुरूप हैं. हालांकि, और विशेष रूप से किनारों पर, हिमाचल प्रदेश के साथ कच्छ और लद्दाख जैसे स्थानों में, जिला सीमाओं का पालन करना पड़ सकता है. इससे नागरिक अधिकारियों के साथ संचार, रसद, परिवहन और संपर्क के समन्वय में आसानी होगी.

संरचनात्मक संगठन

थिएटर कमांड के नीचे, आर्मी के कोर/क्षेत्रों को जरूरत के हिसाब से दोबारा पुनर्गठित करना होगा. खासकर संयुक्त परिचालन संपत्ति बनाने, आंतरिक सुरक्षा प्रतिबद्धताओं, रसद और प्रशासनिक एकीकरण के संबंध में. वायु सेना स्टेशनों/स्क्वाड्रनों को एक एयर वाइस मार्शल के अधीन दो या तीन ‘विंगों’ वाली परिचालन इकाइयों में बांटा जा सकता है, जो थिएटर स्तर पर ‘घटक कमांडर’ को रिपोर्ट करेंगे. समुद्री थिएटरों की अधीन ‘बेड़े’ होंगे.

ऐसे आदेश होंगे जो या तो एकीकृत या सेवा-विशिष्ट हो सकते हैं. हम एक एकीकृत प्रशिक्षण/साइबर/अंतरिक्ष/विशेष बल/लॉजिस्टिक्स कमांड या सेवा-विशिष्ट आर्मी/वायु आर्मी/नौआर्मी प्रशिक्षण कमांड के बारे में सोच सकते हैं. इन कार्यात्मक आदेशों को स्टाफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष प्रमुखों के नियंत्रण में रखा जा सकता है या सेवा प्रमुखों के अधीन किया जा सकता है. एक बार जब परिचालन जिम्मेदारी थिएटर कमांडरों को सौंप दी जाती है, तो प्रशिक्षण, प्रशासन और मानव संसाधन प्रबंधन सहित सेवा-विशिष्ट कार्य व्यक्तिगत प्रमुखों के अधीन रहेंगे.


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अंतर-थिएटर सीमा

महाद्वीपीय संरचना के डिजाइन में प्रमुख निर्णय बिंदुओं में से एक केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में पश्चिमी और पूर्वी थिएटरों के बीच की सीमा से संबंधित है. यहीं पर चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) और पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (LOC) सटी हुई हैं. वर्तमान में, मुख्यालय 14 कोर लद्दाख क्षेत्र के लिए जिम्मेदार है जो चीन का सामना करता है और कारगिल/सियाचिन क्षेत्र के लिए भी जिम्मेदार है, जहां से पाकिस्तान की सीमा सटी हुई है. पूर्वी थिएटर कमांड को लद्दाख को नियंत्रित करना चाहिए और पश्चिमी थिएटर कमांड को कारगिल/सियाचिन को नियंत्रित करना चाहिए. लेकिन इलाके और संचार लाइनें दोनों आम क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं और पश्चिमी और पूर्वी थिएटरों के बीच लद्दाख और कारगिल/सियाचिन को विभाजित करना विशेष रूप से रसद के लिए बेहद समस्याग्रस्त होगा. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि सतही संचार के संदर्भ में समर्थन आधार रोहतांग दर्रे के माध्यम से पंजाब/हिमाचल प्रदेश और ज़ोजी ला दर्रे के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में होगा, जो पश्चिमी थिएटर के अंतर्गत होगा. इसलिए, संपूर्ण केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को पश्चिमी थिएटर के अंतर्गत होना चाहिए. लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के बीच अंतर-राज्य सीमा के क्षेत्र में इलाके और सड़क संचार के समायोजन के साथ अंतर-थिएटर सीमा का सीमांकन करना होगा.

संक्रमण के दौरान संतुलन बनाए रखना

जब थिएटर की सीमाओं का संरचनात्मक डिज़ाइन तय हो जाता है, तभी सैन्य संपत्ति आवंटन के अन्य सभी डाउनस्ट्रीम निर्णयों को अंतिम रूप दिया जाता है. थिएटर कमांड में बदलाव एक जटिल प्रक्रिया होगी. समसामयिक भू-राजनीतिक खतरे के परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए परिचालन और लॉजिस्टिक संतुलन बनाए रखना बड़ी चुनौती है. परिवर्तन को चरणों में प्रबंधित करना होगा, लेकिन इसकी शुरुआत शीर्ष पर कमांड और नियंत्रण संरचनाओं के निर्माण से होनी चाहिए जिसमें मुख्यालय आईडीएस और मुख्यालय थिएटर कमांड भी शामिल हों. इसके साथ ही भौगोलिक सीमाओं पर आधारित थिएटर कमांड संरचना स्थापित की जानी चाहिए. विशिष्ट मामलों में परिसंपत्तियों के पुनर्निर्धारण और इसकी कमान और नियंत्रण को चरणबद्ध करने की आवश्यकता होगी ताकि हर समय संतुलन बनाए रखा जा सके.

थिएटर कमांड में बदलाव की शुरुआत तयशुदा बुनियादी ढांचे में बदलाव के साथ ही होनी चाहिए. ट्रायल के तौर पर थिएटर कमांड स्थापित करने से बचना चाहिए. यह थिएटर कमांड संरचनात्मक प्रणाली के समान होगा जो न तो यहां होगा और न ही वहां होगा. इस तरह के परीक्षणों से न केवल इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले परिचालन असंतुलन से बचने के लिए बचा जाना चाहिए, बल्कि संपूर्ण अभ्यास को विफल करने के लिए सेवाओं के भीतर आधार के अनपेक्षित प्रावधान की संभावना को भी टालना चाहिए. इन कॉकस ने पहले ही निर्णय प्रक्रिया में देरी कर दी है.

भारत के सशस्त्र बलों के लिए, रंगमंचीकरण एक राजनीतिक जनादेश है और सशस्त्र बलों द्वारा निर्णय/कार्रवाई का मुद्दा यह है कि कैसे और क्यों नहीं.

(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला संस्थान में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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