नई दिल्ली: मेरी बेटी का कुछ पता चला, कोर्ट में क्या हुआ , कब तक मिल जाएगी मेरी बेटी ? अफजल हर बार यही सवाल पूछता है. व्हाट्स ऍप काल के जरिये अक्सर वो रात के 10 बजे के आस पास मुझे फ़ोन करता है. और जवाब में मेरे पास सिर्फ कोर्ट की अगली तारीख ही बताने को होती है. बेटी कब तक मिलेगी, कहां होगी , इन सवालों के जवाब मेरे पास भी नहीं होता .
अफज़ल उत्तर प्रदेश की भारत नेपाल सीमा पर स्थित सिद्धार्थनगर जनपद के देबरुआ थाना के अंतर्गत पड़ने वाले एक गांव का रहने वाला निवासी है. पर दैनिक मजदूरी के सिलसिले में वो बार्डर पार नेपाल के कृष्णानगर में किराये पर अपने परिवार के साथ रहता है. परिवार में पत्नी व तीन बच्चे हैं, जिनमें 2 लड़कियां और 1 लड़का है. उसके मकान मालिक के घर दिल्ली के शाहीन बाग़ में रहने वाले एक मौलवी और उसकी पत्नी का आना जाना था. मौलवी की बीवी ने जब अफ़ज़ल की 12 वर्षीय लड़की को देखा, तो अफजल की पत्नी को उनकी बेटी को अपने साथ दिल्ली ले जाकर पढ़ाने और कुछ घर का काम सीखाने का लालच दिया. साथ ही एक हजार रुपये भी हाथ में रख दिए. अफजल की पत्नी के लिए यह बड़ी रकम थी. और वो मना न कर सकी. पिछले साल मोहर्रम के अगले दिन मौलवी की बीवी अफ़ज़ल की बेटी को अपने साथ दिल्ली ले गई. फिर लगभग 12 दिनों बाद 12 अगस्त 2022 को मौलवी ने दिल्ली के शाहीन बाग थाने में अफ़ज़ल की बेटी के गुमशुदा होने और तीन हजार रुपये लेकर भाग जाने की शिकायत करते हुए एफ.आई.आर दर्ज करवा दी.
जब अफ़ज़ल को ये पता चला तो वो बहुत हैरान हुआ कि किस तरह मौलवी ने उसकी बेटी को बेच दिया और कानून की नजरों में उसकी ही बेटी को चोर बना दिया. अफ़ज़ल जब शाहीन बाग़ थाने पहुंचा तो उसकी बेटी को खोजने के बजाय पुलिस ने उस पर ही अपनी बेटी को बेचने का इल्ज़ाम लगा दिया. लगभग एक महीने तक दिल्ली में एक थाने से दूसरे थाने, एक आफिस से दूसरे ऑफिस तक भटकने के बाद और मौलवी और उसकी बीवी द्वारा उसकी बेटी को चोर साबित कर दिए जाने के बाद वो वापस अपने घर लौट आया. यहां आकर उसने सिद्धार्थनगर के ढेबरुआ थाने में अपनी आपबीती सुनाई. चूंकि इस मामले में एक एफ.आई. आर. दिल्ली के शाहीन बाग़ थाने में दर्ज हो चुकी थी तो स्थानीय पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की.
पर सवाल उस बच्ची को ढूंढने का था जिसकी गुमशुदगी दिल्ली के शाहीनबाग़ थाने में दर्ज थी. यदि गृह मंत्रालय द्वारा गुमशुदा बच्चों के मामले में जारी की गई मानक संचालन प्रक्रिया पर गौर करें तो शिकायत गुमशुदगी के शुरूआती 24 घंटे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं और विभिन्न विभागों के आपसी समन्वय से बच्चे को ढूंढ़ना आसान होता है, पर दिल्ली पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठे रही. मैंने अफ़ज़ल को दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संगठन शक्तिवाहिनी से मदद लेने को कहा. शक्तिवाहिनी ने भी जब पुलिस से एक मामले में हुई प्रगति को जानने की कोशिश की और उन्हें बताया कि यह गुमशुदगी नहीं बल्कि मानव दुर्व्यापार का मामला है, तो पुलिस इससे इंकार करती रही.
जब दिल्ली पुलिस ने इस मामले में कोई रुचि नहीं ली तो अंततः शक्तिवाहिनी ने दिल्ली हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल कर पुलिस से बच्ची को प्रस्तुत करने को कहा. दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए स्पेशल टास्क फ़ोर्स बना इस बच्ची को ढूंढने का आदेश दिया. पर दिल्ली पुलिस का रवैया अभी भी जस का तस बना हुआ है और हर बार कोर्ट में बच्ची को ढूंढने के लिए और समय चाहिए की गुहार लगाने के साथ तारीख पर तारीख पड़ती जा रही है.
चाइल्ड ट्रैफिकिंग के आंकड़े कई ज्यादा
यदि हम भारतीय दण्ड संहिता की धारा 370 पर गौर करें तो इसमें साफ़ कहा गया है कि किसी को लालच देकर या झूठे वादे कर या बल पूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर उसका शोषण किया जाए, तो यह कृत्य मानव दुर्व्यापार कहलायेगा और 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के साथ ऐसा करने पर 5 से 7 साल तक के सश्रम कारावास और जुर्माने का प्रावधान है.
इस मामले को अगर आप गहनता से देखेंगे तो साफ़ समझ आएगा कि किस प्रकार बच्चों के गुमशुदा होने का लिंक बाल दुर्व्यापार (चाइल्ड ट्रैफिकिंग) से भी है. यदि हम आंकड़ों की बात करें तो गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा वर्ष 2021 में जारी भारत में अपराध नमक रिपोर्ट के अनुसार 2021 के अंत तक कुल 44524 बच्चे देश भर में गुमशुदा थे. जिनमें 31133 लड़कियां, 13379 लड़के और 12 ट्रांसजेंडर थे. 30 जुलाई को पूरी दुनिया मानव दुर्व्यापार के खिलाफ विश्व दिवस मनाता है और इस वर्ष इस दिवस की थीम है कि हम मानव दुर्व्यापार की पीड़ितों के साथ खड़े हों और समाज की मुख्यधारा में उन्हें जोड़ने में मदद करें. पर ऐसी हजारों बच्चियां आज भी अपनी मुक्ति की बाट जोह रही हैं और उनके माता-पिता आज भी उनके सुरक्षित होने का इन्तजार कर रहे हैं.
(लेखक बाल अधिकारों के क्षेत्र में पिछले दो दशकों से सक्रिय हैं.)
(संपादन: आशा शाह)
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